राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने केरल के कुलथुपुझा ग्राम पंचायत में एक एकीकृत आदिवासी विकास कार्यक्रम शुरू किया है।
संबंधित तथ्य
एकीकृत आदिवासी विकास कार्यक्रम
यह नाबार्ड की एक प्रमुख पहल है, जो सतत् जनजातीय आजीविका पर केंद्रित है।
कार्यान्वयन एजेंसी
पर्यावरण संगठन ‘थानल’ इस परियोजना की कार्यान्वयन एजेंसी होगी, जिसका उद्देश्य अगले पाँच वर्षों में आदिवासी परिवारों की आजीविका को बदलना है।
वित्तपोषण
इस कार्यक्रम के अंतर्गत परियोजनाओं का वित्तपोषण जनजातीय विकास कोष से किया जा रहा है।
अवधि
यह परियोजना पाँच वर्षों तक संचालित होगी, जिसका लक्ष्य आठ बस्तियों में रहने वाले 429 परिवारों की स्थायी आजीविका प्रदान कर कृषि संवर्द्धन करना है।
‘वाडी’ मॉडल पर आधारित
यह कार्यक्रम जनजातीय विकास के ‘वाडी’ मॉडल पर आधारित है, जिसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विकास एजेंसियों की सहायता से विकसित किया गया है।
कार्यक्रम के अंतर्गत पहल
यह कार्यक्रम मिर्च, सुपारी, नारियल, अदरक, थाई अदरक, हल्दी और केला जैसी विविध कृषि फसलों को बढ़ावा देने के साथ-साथ बकरीपालन, मुर्गीपालन, मधुमक्खीपालन, मत्स्यपालन और चारा उत्पादन में पहल पर केंद्रित है।
राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (NABARD)
उद्देश्य: इसका गठन ‘भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि एवं अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए ऋण के क्षेत्र में नीति, योजना तथा संचालन से संबंधित मामलों’ के लिए किया गया है।
स्थापना:बी. शिवरामन समिति की सिफारिशों के आधार पर, इसे राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम 1981 को लागू करने के लिए अस्तित्व में आया।
NABARD ने भारतीय रिजर्व बैंक के कृषि ऋण विभाग (ACD) एवं ग्रामीण योजना और क्रेडिट सेल (RPCC) एवं कृषि पुनर्वित्त एवं विकास निगम (ARDC) का स्थान ले लिया।
सहयोगी: विश्व बैंक से संबद्ध संगठनएवं कृषि तथा ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कार्य करने वाली वैश्विक विकास एजेंसियाँ NABARD की सहयोगी हैं।
मुख्यालय: मुंबई।
इसके अतिरिक्त, समुदाय को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए एक आदिवासी किसान उत्पादक कंपनी (FPO) की स्थापना की भी योजना बनाई गई है।
घटक
एकीकृत विकास: क्षेत्र की क्षमता और जनजातीय आवश्यकताओं के आधार पर स्थायी आय-उत्पादक गतिविधियों के माध्यम से जनजातीय परिवारों के लिए एकीकृत विकास के अनुकरणीय मॉडल तैयार करना।
संस्था निर्माण: जनजातीय संस्थाओं का निर्माण और सुदृढ़ीकरण करना, समुदायों को नीति निर्माण, कार्यक्रम क्रियान्वयन में भाग लेने में सक्षम बनाना और उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार करना।
उत्पादक संगठन: उत्पादकों के संगठनों का निर्माण और सुदृढ़ीकरण करना।
जल संसाधन विकास
कार्यक्रम में जल संसाधन विकास पहल शामिल होंगी।
नेतृत्व प्रशिक्षण
समुदायों को सशक्त बनाने के लिए नेतृत्व प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
जागरूकता सृजन
स्वच्छता प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता सृजन पहल की जाएगी।
मार्केटिंग और ब्रांडिंग प्रशिक्षण
आय स्तर को बढ़ाने के लिए मार्केटिंग और ब्रांडिंग प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा।
कौशल विकास कार्यशालाएँ
स्थायी कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिए कौशल विकास कार्यशालाएँ आयोजित की जाएँगी।
जनजातीय विकास के अन्य उपाय
परंपरा और आधुनिकता में संतुलन: विकास के दोहरे चक्र (परंपरा और आधुनिकता) को वर्तमान पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिए संतुलित किया जाना चाहिए। आधुनिकता की खोज में प्रकृति के दोहन से प्रायः पर्यावरणीय गिरावट आती है।
आधुनिक प्रथाओं के साथ-साथ पारंपरिक ज्ञान को अपनाने से पारिस्थितिकी रूप से टिकाऊ, नैतिक रूप से वांछनीय और सामाजिक रूप से न्यायसंगत भविष्य को बढ़ावा मिल सकता है।
स्थिरता के लिए जनजातीय ज्ञान: जनजातीय समुदाय, प्रकृति के नियमों के अपने गहन ज्ञान के साथ, स्थायी जीवन के बारे में अमूल्य अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
स्थायी प्रथाओं को सीखना: वन अधिकारियों को जनजातीय समुदायों के साथ निकटता से जुड़ने, उनकी स्थायी प्रथाओं से सीखने और उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाने में मदद करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
जनजातीय समुदायों के साथ समावेशी विकास: विकास प्रक्रियाओं में जनजातीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना समावेशी और सतत् प्रगति के लिए महत्त्वपूर्ण है।
पारिस्थितिकी पर्यटन पहल को बढ़ावा देना: यह उनकी सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करते हुए उन्हें वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान कर सकता है।
जनजातीय वन संरक्षक कार्यक्रम लागू करना: इस कार्यक्रम के तहत, जनजातीय समुदायों के सदस्यों को वन रक्षक या इको-गाइड के रूप में प्रशिक्षित और नियोजित किया जाता है। यह स्थानीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के उनके गहन ज्ञान का लाभ उठा सकता है, स्वामित्व को बढ़ावा दे सकता है और स्थायी आजीविका प्रदान कर सकता है।
जनजातीय ज्ञान बैंक: सकारात्मक लाभ प्राप्त करने के लिए जनजातीय समुदायों के पारंपरिक पारिस्थितिकी ज्ञान को आधुनिक संरक्षण रणनीतियों में दस्तावेजित और एकीकृत करने की आवश्यकता है।
वन उत्पाद मूल्य संवर्द्धन और विपणन: जनजातीय समुदायों द्वारा एकत्रित वन उत्पादों के लिए मूल्य संवर्द्धन और विपणन पहल स्थापित करने की आवश्यकता है, जिससे जनजातियों द्वारा वन संसाधनों के संरक्षण को प्रोत्साहित करते हुए उन्हें स्थायी आजीविका प्रदान की जा सके।
सहभागी वन प्रबंधन और संयुक्त वन प्रबंधन (Joint Forest Management- JFM) कार्यक्रम को सुदृढ़ बनाना: यह जनजातीय समुदायों के लिए अधिक प्रतिनिधित्व और निर्णय लेने की शक्ति सुनिश्चित कर सकता है, उनके पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं को मान्यता प्रदान कर सकता है।
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