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जलवायु कार्रवाई नीतियों में करुणा को एकीकृत करना

Lokesh Pal September 16, 2025 03:07 74 0

संदर्भ

नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने इस बात पर जोर दिया है कि जलवायु नीतियों में करुणा (Compassion) को शामिल किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सामाजिक एवं आर्थिक रूप से कमजोर लोग असमान रूप से प्रभावित न हों।

  • जलवायु कार्रवाई में करुणा/संवेदना नैतिक नीति-निर्माण, सामाजिक न्याय और सतत् विकास सुनिश्चित करती है।

करुणा (Compassion) क्या है?

  • यह समानुभूति (Empathy) का एक गहन स्तर है, जिसमें न केवल समझ शामिल है, बल्कि दूसरों के दुख को कम करने में मदद करने की इच्छा भी शामिल है। यहाँ जोर कार्रवाई पर है।
    • समानुभूति (Empathy): इसमें, सबसे पहले, किसी अन्य व्यक्ति की परिस्थिति को उसके दृष्टिकोण से देखना तथा दूसरा, उस व्यक्ति की भावनाओं को साझा करना, जिसमें, यदि कोई हो, तो उसका कष्ट भी शामिल है।
    • सहानुभूति (Sympathy): यह दयालुता के प्रति एक सहज प्रतिक्रिया है, जो क्षणिक होती है। यह स्वतःस्फूर्त होती है और इसमें समस्या की वास्तविक समझ नहीं होती है।

करुणा (Compassion) = समानुभूति (Empathy) + दूसरों के दुख को दूर करने की प्रवृत्ति।

जलवायु कार्रवाई में करुणा की आवश्यकता

  • असमान संवेदनशीलता: जलवायु परिवर्तन के प्रभाव असमान रूप से वितरित हैं और महिलाओं, निम्न-आय वर्ग, देशज समुदायों और हाशिए पर रहने वाली आबादी पर असमान रूप से प्रभाव डाल रहे हैं।
    • विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 80% से अधिक आबादी जलवायु-जनित आपदाओं के जोखिम वाले जिलों में रहती है।
  • असमानताओं को बढ़ने से रोकना: करुणा के बिना, जलवायु नीतियाँ सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को बढ़ाने का जोखिम उठाती हैं।
    • उदाहरण: प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को स्वच्छ खाना पकाने का ईंधन उपलब्ध कराना, पारंपरिक खाना पकाने के तरीकों से जुड़े स्वास्थ्य जोखिमों को कम करना और महिलाओं को सशक्त बनाना है।
  • नैतिक अनिवार्यता: करुणा, नैतिक निर्णय लेने को सुनिश्चित करती है, जो कमजोरों की रक्षा करने और न्याय को बढ़ावा देने की नैतिक जिम्मेदारी को दर्शाती है।
    • कांटियन नैतिकता (कर्तव्य-आधारित): नीतियाँ सुविधा या लागत की परवाह किए बिना, सुभेद्य समूहों की रक्षा करने के नैतिक कर्तव्य द्वारा निर्देशित होनी चाहिए।
    • देखभाल संबंधी नैतिकता: मानव, पारिस्थितिकी तंत्र और भावी पीढ़ियों के बीच परस्पर निर्भरता पर जोर देती है, यह सुनिश्चित करती है कि नीतियाँ संबंधों और कल्याण को पोषित करें।
  • अंतर-पीढ़ीगत जिम्मेदारी: करुणा दीर्घकालिक स्थिरता को बढ़ावा देती है, भावी पीढ़ियों के लिए संसाधनों और अवसरों की सुरक्षा करती है।
    • उदाहरण: नवीकरणीय ऊर्जा और जल प्रबंधन नीतियाँ भावी नागरिकों के लिए पर्यावरण की रक्षा करती हैं।
  • समावेशी शासन: नीति-निर्माण में हाशिए पर पड़े समुदायों की भागीदारी को प्रोत्साहित करती है, यह सुनिश्चित करती है कि उनके मुद्दों को समझा जाए और उनकी आवश्यकताओं का समाधान किया जाए।
    • शी चेंजेस क्लाइमेट इंडिया (SHE Changes Climate India- SCC इंडिया) जलवायु नीति और निर्णय लेने में महिलाओं और हाशिए पर पड़े समुदायों को शामिल करने की वकालत करके उन्हें सशक्त बनाती है ताकि लैंगिक रूप से न्यायसंगत बदलाव और जलवायु परिवर्तन के समान समाधान सुनिश्चित किए जा सकें।

‘ग्लोबल एथिकल स्टॉकटेक’ (Global Ethical Stocktake- GES) पहल

  • परिचय: नैतिक दृष्टिकोण से चल रही और आगामी जलवायु कार्रवाइयों का मूल्यांकन करने हेतु एक वैश्विक पहल है।
    • यह आकलन करता है कि क्या जलवायु नीतियाँ असमानताओं को कम करती हैं या बढ़ाती हैं और सुभेद्य आबादी की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं।
  • उद्देश्य: समावेशी और न्यायसंगत जलवायु कार्रवाई सुनिश्चित करना।
    • नैतिकता, समानता और करुणा के अनुरूप जलवायु नीतियों को लागू करने में राष्ट्रों का मार्गदर्शन करना।

प्रमुख विशेषताएँ

  • नैतिक दृष्टिकोण: सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों की जाँच करना।
  • वैश्विक संवाद: विभिन्न हितधारकों को शामिल करने के लिए विभिन्न महाद्वीपों में क्षेत्रीय परामर्श।
  • नागरिक समाज की भागीदारी: हाशिए पर पड़े और प्रभावित समुदायों के मुद्दों को प्रमुखता देना।

भारत की भागीदारी

  • कैलाश सत्यार्थी को एशियन डायलॉग (Asian Dialogue) के लिए सह-नेता नियुक्त किया गया।
  • जलवायु नीति में न्यायसंगत परिवर्तन और नैतिक विचारों पर प्रकाश डाला गया।

नैतिक निर्णय लेना सुनिश्चित करना

  • नैतिक उत्तरदायित्व: करुणा से प्रेरित नीतियाँ, सुभेद्य समूहों की रक्षा के नैतिक दायित्व को दर्शाती हैं।
    • उदाहरण: UNFCCC, 2025 के अनुसार, COP30 के अंतर्गत नैतिक समीक्षा पहल यह मूल्यांकन करती है कि क्या जलवायु परिवर्तन संबंधी कार्य असमानताओं को कम करते हैं?
  • नुकसान को कम करना: जलवायु नीतियों के अक्सर अनपेक्षित परिणाम होते हैं; एक करुणामय दृष्टिकोण नकारात्मक प्रभावों का पूर्वानुमान लगाता है और उन्हें कम करता है।
    • उदाहरण: नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ कभी-कभी स्थानीय समुदायों को विस्थापित कर देती हैं; सामाजिक प्रभाव का आकलन निष्पक्षता सुनिश्चित करता है (ILO, 2024)।
  • मानव-केंद्रित दृष्टिकोण: करुणा यह सुनिश्चित करती है कि जलवायु नीतियाँ पर्यावरणीय लक्ष्यों के साथ-साथ मानव कल्याण को भी प्राथमिकता दें।

जलवायु कार्रवाई के लिए नैतिक अनिवार्यताएँ

  • सार्वभौमिक नैतिक सिद्धांत: जीवन और सम्मान की रक्षा कांटियन नैतिकता और ‘किसी को नुकसान न पहुँचाना’ के सिद्धांत के अनुरूप है।
  • क्षमता से अधिक उत्तरदायित्व: विकसित राष्ट्र, जो ऐतिहासिक रूप से उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार रहे हैं, उन्हें उत्सर्जन न्यूनीकरण का नेतृत्व करना चाहिए और कमजोर राष्ट्रों का समर्थन करना चाहिए, जो साझा लेकिन विभेदित उत्तरदायित्वों (CBDR-RC) को दर्शाता है।
    • उदाहरण: भारत के COP29 हस्तक्षेप ने इस बात पर जोर दिया कि विकसित देशों को न्यायसंगत बदलावों में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
  • सद्गुण नैतिकता: करुणा सहानुभूति, निष्पक्षता और न्याय जैसे सद्गुणों को बढ़ावा देती है, जो नैतिक नीति निर्माण के केंद्र में हैं।
  • देखभाल संबंधी नैतिकता: मानव, पारिस्थितिकी तंत्र और भावी पीढ़ियों के बीच परस्पर निर्भरता को मान्यता देती है, समग्र स्थिरता को बढ़ावा देती है।
  • विश्वास एवं वैधता: करुणापूर्ण नीतियाँ जनता के विश्वास को मजबूत करती हैं, सहयोगात्मक कार्रवाई को सुगम बनाती हैं और अनुपालन को बढ़ाती हैं।

जलवायु कार्रवाई में करुणा अपनाने की चुनौतियाँ

  • परस्पर विरोधी ‘विकास प्राथमिकताएँ’: करुणामयी नीतियों के लिए अक्सर पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक वृद्धि के बीच संतुलन बनाना आवश्यक होता है।
    • उदाहरण: कोयला, भारत की ऊर्जा सुरक्षा का केंद्र बना हुआ है (वाणिज्यिक ऊर्जा का लगभग 55% कोयला, CEA 2023)।
      • तीव्र चरणबद्ध समाप्ति से आजीविका को नुकसान हो सकता (लगभग 6 मिलियन श्रमिक) है (नीति आयोग 2023)।
    • नैतिक दुविधा: कमजोर श्रमिकों की सुरक्षा का कर्तव्य बनाम जलवायु परिवर्तन को कम करने का दायित्व।
  • संसाधन की कमी और उच्च लागत: न्यायसंगत, सहानुभूतिपूर्ण नीतियों (जैसे- न्यायसंगत परिवर्तन, सामाजिक सुरक्षा जाल) को लागू करने के लिए महत्त्वपूर्ण वित्तीय और संस्थागत संसाधनों की आवश्यकता होती है।
    • आँकड़े: भारत को कोयला/ताप विद्युत क्षेत्रों में बदलाव के लिए अगले तीन दशकों में 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की आवश्यकता हो सकती है (जस्ट फाइनेंस, 2024)।
    • नैतिक चुनौती: सीमित बजट का प्रबंधन करते हुए निष्पक्षता सुनिश्चित करना।
  • नीतिगत कमियाँ और संस्थागत कमजोरियाँ: मौजूदा जलवायु नीतियाँ अक्सर हाशिए पर पड़े समूहों की आवश्यकताओं को नजरअंदाज कर देती हैं।
    • उदाहरण: शहरी जलवायु अनुकूलन योजनाएँ अक्सर अनौपचारिक बस्तियों या आदिवासी समुदायों (MoHUA, 2022) को संबोधित करने में विफल रहती हैं।
    • नैतिक चुनौती: कमजोर संस्थागत ढाँचों के भीतर न्याय और समानता को बनाए रखना।
  • अल्पकालिक राजनीतिक और आर्थिक दबाव: करुणामयी नीतियों के लिए अक्सर दीर्घकालिक सोच की आवश्यकता होती है, लेकिन सरकारों को छोटे चुनावी चक्रों और औद्योगिक दबावों का सामना करना पड़ता है।
    • उदाहरण: राजनीतिक कारणों से जलवायु लक्ष्यों के बावजूद जीवाश्म ईंधन सब्सिडी जारी है (वित्त मंत्रालय, 2023)।
    • नैतिक दुविधा: नागरिकों की तात्कालिक माँगों और दीर्घकालिक अंतर-पीढ़ीगत नैतिकता के बीच संतुलन बनाना।
  • सांस्कृतिक और सामाजिक बाधाएँ: करुणा जैसे नैतिक दृष्टिकोण जड़ जमाए हुए व्यवहारों, सामाजिक पदानुक्रमों या लाभ-प्रेरित मानसिकताओं के साथ संघर्ष कर सकते हैं।
    • उदाहरण: स्वच्छ ऊर्जा या स्वच्छ जल तक लैंगिक पहुँच असमान बनी हुई है, जिससे निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी सीमित हो रही है (संयुक्त राष्ट्र महिला भारत, 2023)।
    • नैतिक चुनौती: प्रणालीगत पूर्वाग्रहों के विरुद्ध समावेशन और न्याय को बढ़ावा देना।
  • वैश्विक समन्वय में जटिलता: वैश्विक जलवायु कार्रवाइयों के लिए समन्वय की आवश्यकता होती है, फिर भी CBDR-RC और कार्बन ऋण (ऐतिहासिक उत्तरदायित्व) जैसे सिद्धांत, सहानुभूतिपूर्ण उपायों के कार्यान्वयन को जटिल बनाते हैं।
    • उदाहरण: भारत इस बात पर जोर देता है कि विकसित देशों को समतामूलक कार्बन स्पेस बनाने के लिए न्यायसंगत बदलावों का नेतृत्व करना चाहिए (COP29, 2024)।
    • नैतिक दुविधा: विभिन्न प्राथमिकताओं वाले देशों के बीच बातचीत करते समय निष्पक्षता सुनिश्चित करना।

आगे की राह

  • न्याय और समता को संस्थागत बनाना: जलवायु नीतियों को दायित्व-साझाकरण में निष्पक्षता सुनिश्चित करनी चाहिए और सबसे सुभेद्य वर्गों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
    • उदाहरण: न्यायसंगत परिवर्तन रोडमैप (नीति आयोग, 2023) लगभग 60 लाख कोयला क्षेत्र के श्रमिकों को पुनः प्रशिक्षित करके समता एवं वितरणात्मक न्याय को शामिल करता है।
  • नीति कार्यान्वयन में सत्यनिष्ठा और ईमानदारी को शामिल करना: पारदर्शी और जवाबदेही ढाँचे जलवायु निधियों के दुरुपयोग को रोकते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि संसाधन हाशिए पर पड़े समूहों तक पहुँचें।
    • उदाहरण: पीएम-कुसुम में ट्रैकिंग तंत्र नवीकरणीय ऊर्जा सब्सिडी में जवाबदेही सुनिश्चित करते हैं।
  • शासन में सहानुभूति और करुणा को मजबूत करना: नीति निर्माताओं को अनपेक्षित नुकसानों का पूर्वानुमान लगाना चाहिए और विस्थापित समुदायों और जलवायु प्रवासियों के लिए सुरक्षा उपाय तैयार करने चाहिए।
    • उदाहरण: NDMA का जलवायु विस्थापन डेटा (लगभग 2 करोड़ प्रतिवर्ष) सहानुभूति-आधारित पुनर्वास उपायों की माँग करता है।
  • सहभागी और समावेशी निर्णय-प्रक्रिया को बढ़ावा देना: महिलाओं, देशज समूहों और स्थानीय निकायों को शामिल करते हुए नागरिक-केंद्रित शासन वैधता को बढ़ाता है।
  • नीति निर्माताओं में भावनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास करना: सिविल सेवकों को आत्म-जागरूकता, करुणा और नैतिक तर्क का प्रशिक्षण देने से संकट की स्थितियों में संतुलित निर्णय लेने की क्षमता सुनिश्चित होती है।
    • उदाहरण: NCERT द्वारा सहानुभूति-आधारित पर्यावरण शिक्षा (2023) को शामिल करने से दीर्घकालिक मूल्य-उन्मुखीकरण को बढ़ावा मिलता है।
  • गांधीवादी ट्रस्टीशिप और सर्वोदय को लागू करना: कॉरपोरेट और राजनीतिक नेताओं को प्राकृतिक संसाधनों के ट्रस्टी के रूप में कार्य करना चाहिए, जिससे सभी का कल्याण सुनिश्चित हो सके।
    • उदाहरण: कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) से जुड़ी नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ सबसे गरीब परिवारों के लिए ऊर्जा की पहुँच को प्राथमिकता दे सकती हैं।

निष्कर्ष 

जलवायु कार्रवाई में करुणा केवल नैतिक ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक भी है। जलवायु कार्रवाई के प्रति करुणामय दृष्टिकोण न्याय, सहानुभूति, सत्यनिष्ठा, ईमानदारी, पारदर्शिता, जवाबदेही और भावी पीढ़ियों की देखभाल जैसे नैतिक मूल्यों पर आधारित है। ऐसी नीतियाँ न केवल असमानताओं को कम करती हैं, बल्कि विश्वास, वैधता और सामाजिक सद्भाव को भी बढ़ावा देती हैं।

  • जलवायु कार्रवाई को सर्वोदय, अहिंसा, ट्रस्टीशिप और ग्लोबल एथिकल स्टॉकटेक पहल जैसे गांधीवादी मूल्यों के साथ जोड़कर, भारत यह प्रदर्शित कर सकता है कि प्रभावी जलवायु नेतृत्व दक्षता को नैतिकता के साथ, विज्ञान को मानवता के साथ और विकास को न्याय के साथ एकीकृत करने में निहित है।

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