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भारत में नदियों को आपस में जोड़ना

Lokesh Pal January 10, 2025 03:16 24 0

संदर्भ

भारत के प्रधानमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 100वीं जयंती पर केन-बेतवा नदी लिंक परियोजना (KBLP) का शुभारंभ किया।

केन-बेतवा परियोजना

  • केन-बेतवा परियोजना एक नदी जोड़ो पहल है, जिसे मध्य प्रदेश में केन नदी से उत्तर प्रदेश में बेतवा नदी में अधिशेष जल स्थानांतरित करने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिसंबर, 2021 में KBLP परियोजना के लिए 44,605 ​​करोड़ रुपये मंजूर किए थे।
  • केन-बेतवा लिंक परियोजना प्राधिकरण (KBLPA) इस ‘विशेष प्रयोज्य व्हीकल’ (SPV) परियोजना के कार्यान्वयन की देखरेख करेगा।
  • लिंक नहर की लंबाई: 221 किमी लंबाई, जिसमें 2 किमी. सुरंग भी शामिल है।
  • केन-बेतवा लिंक परियोजना के दो चरण हैं-
    • चरण I में दौधन बाँध परिसर और इसकी सहायक इकाइयों जैसे कि निम्न-स्तरीय सुरंग, उच्च-स्तरीय सुरंग, केन-बेतवा लिंक नहर और बिजलीघरों का निर्माण शामिल होगा।
    • चरण II में तीन घटक शामिल होंगे: लोअर ओर बाँध (Lower Orr Dam), बीना कॉम्प्लेक्स परियोजना और कोठा बैराज।
  • लाभ
    • सिंचाई: इस परियोजना का उद्देश्य भारत के सर्वाधिक सूखा प्रभावित क्षेत्रों में से एक बुंदेलखंड को सिंचाई हेतु जल उपलब्ध कराना है।
      • जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना से 10.62 लाख हेक्टेयर (मध्य प्रदेश में 8.11 लाख हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश में 2.51 लाख हेक्टेयर) भूमि को वार्षिक सिंचाई हेतु जल प्रदान करने और लगभग 62 लाख लोगों को पेयजल उपलब्ध कराने की उम्मीद है।
    • विद्युत उत्पादन: इस परियोजना का उद्देश्य 103 मेगावाट से अधिक जल विद्युत और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पन्न करना भी है।

केन और बेतवा नदियाँ

  • उद्गम: दोनों नदियों का उद्गम मध्य प्रदेश से होता है।
    • केन नदी मध्य प्रदेश के जबलपुर में कैमूर रेंज के उत्तर-पश्चिमी ढलान से प्रवाहित होती है और उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में यमुना नदी से मिलती है।
    • बेतवा नदी मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के पास विंध्य रेंज से निकलती है, बुंदेलखंड से होकर बहती है और उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में यमुना नदी में मिल जाती है।

  • सहायक नदियाँ: दोनों नदियाँ यमुना नदी की सहायक नदियाँ हैं।
  • बेतवा नदी पर बाँध: राजघाट, पारीछा और माताटीला बाँध बेतवा नदी पर स्थित हैं।
  • केन नदी पन्ना टाइगर रिजर्व से होकर गुजरती है।

नदी जोड़ो परियोजनाओं के बारे में

  • नदी जोड़ो परियोजनाओं में नहरों एवं बाँधों का निर्माण शामिल है, ताकि जल की अधिकता वाले नदी बेसिन से जल की कमी वाले बेसिन में जल पहुँचाया जा सके।
    • ऐसा प्रायः जल की कमी को दूर करने, सिंचाई में सुधार करने और जलविद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है।
  • उदाहरण
    • रूस में वोल्गा-डॉन नहर: कैस्पियन और काला सागर को जोड़ने वाली यह नहर दो प्रमुख नदी घाटियों के बीच नौवहन और जल हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

नदियों को जोड़ने की अवधारणा सर्वप्रथम 130 वर्ष पहले सर आर्थर कॉटन द्वारा प्रस्तावित की गई थी; उन्होंने गोदावरी और कृष्णा नदी घाटियों में सिंचाई बाँधों का डिजाइन तैयार किया था।

  • वर्ष 1972: डॉ. के.एल. राव ने गंगा और कावेरी नदियों को जोड़ने के लिए राष्ट्रीय जल ग्रिड का सुझाव दिया, लेकिन उच्च लागत के लिए उनकी आलोचना की गई।
  • वर्ष 1977: कैप्टन दस्तूर ने हिमालय और प्रायद्वीपीय नदियों को जोड़ने के लिए गारलैंड नहर का प्रस्ताव रखा, लेकिन तकनीकी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
  • वर्ष 1980: राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) शुरू की गई, जिसमें जल हस्तांतरण के लिए 30 नदी लिंक (14 हिमालयी, 16 प्रायद्वीपीय) की पहचान की गई।
  • वर्ष 1982: व्यवहार्यता अध्ययन करने के लिए राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) की स्थापना की गई।
  • वर्ष 2002: उच्चतम न्यायालय ने एक जनहित याचिका के माध्यम से सरकार को इंटरलिंकिंग परियोजनाओं में तेजी लाने का निर्देश दिया।

राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) 

  • भारत सरकार ने वर्ष 1980 में नदियों को आपस में जोड़ने के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National Perspective Plan-NPP) तैयार की।
  • राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA), NPP के तहत नदियों को आपस में जोड़ने के कार्य को संचालित करने के लिए जिम्मेदार है।
  • NPP में दो घटक शामिल हैं:
    • हिमालयी नदियाँ विकास घटक।
    • प्रायद्वीपीय नदियाँ विकास घटक।
  • NPP के तहत कुल 30 लिंक परियोजनाओं की पहचान की गई है।
    • 14 हिमालयी और 16 प्रायद्वीपीय लिंक।
  • केन-बेतवा लिंक परियोजना (KBLP), NPP के तहत नदियों को जोड़ने की पहली परियोजना है और वर्तमान में कार्यान्वयन के अधीन है।

राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) 

  • NWDA जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग (DoWR, RD&GR), जल शक्ति मंत्रालय (MoJS) के तहत एक पंजीकृत सोसायटी है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1982 में जल संसाधन विकास के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (NPP) से संबंधित विस्तृत अध्ययन, सर्वेक्षण और जाँच करने के लिए सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत की गई थी।
  • इसका एक प्रमुख कार्य प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) के तहत परियोजनाओं को शुरू करना, निर्माण करना, मरम्मत करना, जीर्णोद्धार करना, पुनर्वास और लागू करना है।

भारत में नदी जोड़ो की आवश्यकता 

  • जल की कमी: जून 2018 में नीति आयोग द्वारा प्रकाशित ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक’ (Composite Water Management Index-CWMI) नामक एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था कि लगभग 600 मिलियन लोग उच्च से लेकर चरम जल संकट का सामना कर रहे थे।
    • लिंक परियोजना से ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों से अधिशेष जल राजस्थान और बुंदेलखंड जैसे सूखाग्रस्त क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जा सकता है।
  • असमान जल वितरण: भारत का 80% जल प्रवाह मानसून के दौरान होता है, जिससे कुछ क्षेत्रों में बाढ़ आती है और अन्य में सूखा पड़ता है।
    • गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिन में बाढ़ आती है, जबकि प्रायद्वीपीय नदियाँ जल की कमी का सामना करती हैं।
  • कृषि संबंधी आवश्यकताएँ: भारत की कृषि मानसूनी वर्षा पर निर्भर करती है, जो अनियमित और अप्रत्याशित होती है।
    • लिंक परियोजनाएँ 35 मिलियन हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि की सिंचाई कर सकती हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा में वृद्धि हो सकती है।
  • बाढ़ और सूखा प्रबंधन: SBI की शोध रिपोर्ट, इकोरैप (Ecowrap) के अनुसार, बाढ़ से होने वाले आर्थिक नुकसान का अनुमान 10,000-15,000 करोड़ रुपये के बीच है।
    • अतिरिक्त जल को जल की कमी वाले क्षेत्रों में भेजने से इन चरम स्थितियों को कम करने में मदद मिलती है।
  • शहरी और औद्योगिक जल माँग: तेजी से शहरीकरण और औद्योगिक विकास ने जल की माँग को बढ़ा दिया है।
    • दमनगंगा-पिंजल लिंक जैसी परियोजनाओं का उद्देश्य मुंबई जैसे शहरों को जल की आपूर्ति करना है।
  • जलविद्युत क्षमता: भारत में जलविद्युत क्षमता का दोहन नहीं हुआ है; नदी जोड़ो परियोजना 34,000 मेगावाट स्वच्छ ऊर्जा उत्पन्न कर सकता है।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ: समान जल वितरण प्रदान करके राज्यों के बीच जल विवादों को हल करता है।
    • उदाहरण के लिए, कावेरी विवाद को हल करने के लिए तमिलनाडु और कर्नाटक में नदियों को जोड़ना।
  • जलवायु परिवर्तन लचीलापन: जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित वर्षा जल संसाधनों को प्रभावित करती है।
    • यह लिंक परियोजनाओं से संबंधित क्षेत्रों में जल संसाधनों को पुनर्वितरित करके एक बफर प्रदान करता है।

नदी जोड़ो परियोजनाओं (ILR) के लाभ

  • सिंचाई सुविधाओं में सुधार: ILR का उद्देश्य अतिरिक्त जल को स्थानांतरित करके सूखाग्रस्त क्षेत्रों की सिंचाई करना है।
    • केन-बेतवा लिंक बुंदेलखंड में 1.07 मिलियन हेक्टेयर भूमि को सिंचाई हेतु जल  प्रदान करेगा, जिससे कृषि उत्पादकता में सुधार होगा।
  • बढ़ी हुई जल आपूर्ति: पेयजल, औद्योगिक और कृषि उपयोग के लिए निरंतर जल उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
    • दमनगंगा-पिंजल लिंक को शहरी जल की कमी को दूर करते हुए मुंबई को पेयजल उपलब्ध कराने के लिए डिजाइन किया गया है।
  • बाढ़ नियंत्रण: ILR बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों से अतिरिक्त जल को कमी वाले क्षेत्रों में पुनर्वितरित करता है, जिससे बाढ़ से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
    • ब्रह्मपुत्र बेसिन से जल को मोड़ने से असम में आने वाली बाढ़ को रोका जा सकता है जबकि राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों को लाभ मिल सकता है।
  • जलविद्युत उत्पादन: ILR परियोजनाएँ ऊर्जा की माँग को पूरा करने के लिए जलविद्युत संयंत्रों को एकीकृत करती हैं।
    • दौधन बाँध (केन-बेतवा परियोजना) से 103 मेगावाट जलविद्युत उत्पादन होने की उम्मीद है।
  • आर्थिक विकास: विश्वसनीय जल आपूर्ति उद्योगों, कृषि और रोजगार सृजन का समर्थन करती है।
    • आंध्र प्रदेश में पोलावरम परियोजना कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देती है और औद्योगिक निवेश को आकर्षित करती है।
  • भूजल पुनर्भरण: जल के पुनर्वितरण से शुष्क क्षेत्रों में भूजल स्तर में सुधार होता है, जिससे दीर्घकालिक जल स्थिरता सुनिश्चित होती है।
    • पार-तापी-नर्मदा लिंक से जल की कमी वाले गुजरात में भूजल में वृद्धि होने की उम्मीद है।
  • क्षेत्रीय असंतुलन को कम करना: क्षेत्रीय जल उपलब्धता असमानताओं को संबोधित करना, अंतरराज्यीय संघर्षों को कम करना।
    • तमिलनाडु और कर्नाटक में नदियों को जोड़ने से जल-बँटवारे के विवादों का समाधान हो सकता है और सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है।
  • अंतर्देशीय जलमार्ग: नदियों को जोड़ने से नदी घाटियों में एक सतत् नौगम्य नेटवर्क बनाकर अंतर्देशीय जलमार्गों को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाने की क्षमता है।

नदी जोड़ो की पर्यावरणीय चुनौतियाँ

  • जैव विविधता का नुकसान: नदियों को आपस में जोड़ने से प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होता है, जिससे जलीय और स्थलीय प्रजातियों को खतरा होता है।
    • उदाहरण: केन-बेतवा लिंक पन्ना टाइगर रिजर्व में वन्यजीवों को खतरे में डालता है।
  • सामान्य मानसून पैटर्न: अधिकांश नदियों में आमतौर पर मानसून के दौरान अतिरिक्त जल होता है और शुष्क मौसम के दौरान कमी का अनुभव होता है।
    • उदाहरण: गंगा, ब्रह्मपुत्र और गोदावरी जैसी प्रायद्वीपीय नदियाँ मानसून के दौरान उफान पर रहती हैं, लेकिन गर्मियों में कम प्रवाह का सामना करती हैं।
  • डेल्टा पारिस्थितिकी तंत्र का विघटन: डेल्टा में तलछट के प्रवाह में कमी से लवणता की मात्रा बढ़ सकती है और उपजाऊ भूमि का नुकसान हो सकता है।
    • उदाहरण: सिंधु और नर्मदा डेल्टा नदी के मोड़ के बाद इसी तरह के क्षरण का सामना करते हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र का विखंडन: नदियों के बीच प्राकृतिक संपर्क को बाधित कर सकता है, जिससे प्रवासी प्रजातियाँ और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्त्वपूर्ण तलछट प्रवाह प्रभावित हो सकता है।
  • लवणता अतिक्रमण: मीठे जल के प्रवाह में कमी से डेल्टा में समुद्री जल का प्रवेश बढ़ जाता है, जिससे भूमि की उर्वरता कम हो जाती है।
    • सिंधु डेल्टा में लवणता, भूमि क्षरण, तथा ऊपरी धारा मोड़ से ताजे जल के प्रवाह में कमी के कारण मत्स्यपालन में हानि का सामना करना पड़ा।
  • प्रदूषण और आक्रामक प्रजातियाँ: अंतर-बेसिन जल स्थानांतरण से प्रदूषक और आक्रामक प्रजातियों का प्रसार होता है, जिससे जलीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है।

नदी जोड़ो परियोजना की सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ

  • समुदायों का विस्थापन: गाँवों और कृषि भूमि के बड़े पैमाने पर जलमग्न होने से हजारों लोगों को विस्थापित होना पड़ रहा है।
    • केन-बेतवा नदी जोड़ो परियोजना (KBLP) के कारण अपर्याप्त पुनर्वास उपायों के कारण 6,628 परिवारों के विस्थापित होने की आशंका है।
  • आजीविका का नुकसान: प्राकृतिक नदी पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर मत्स्याखेट, कृषि और संबद्ध गतिविधियाँ बाधित होती हैं।
    • डेल्टा में मीठे पानी के प्रवाह में कमी से सिंधु डेल्टा जैसे क्षेत्रों में मछली पकड़ने वाले समुदाय प्रभावित होते हैं।
  • उच्च वित्तीय बोझ: राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना (NRLP) के लिए अनुमानित ₹5.5 लाख करोड़, अन्य महत्त्वपूर्ण सामाजिक कल्याण परियोजनाओं से धन हटाना।

नदी जोड़ो की अन्य चुनौतियाँ

  • अंतरराज्यीय जल विवाद: जल का पुनर्वितरण जल-बँटवारे के अधिकारों को लेकर राज्यों के बीच संघर्ष को बढ़ा सकता है।
    • कावेरी जल विवाद जैसे लंबे समय से चले आ रहे विवाद अंतरराज्यीय परियोजनाओं में संभावित मुद्दों को उजागर करते हैं।
  • कानूनी और नीतिगत ढाँचा: एक व्यापक केंद्रीय नियामक ढाँचे की कमी अंतरराज्यीय सहयोग और विवाद समाधान को जटिल बनाती है।

जल के स्थानांतरण संबंधी विफलता के वैश्विक उदाहरण

  • फ्लोरिडा में किस्सिम्मी (Kissimmee) नदी को चैनलाइजेशन के कारण व्यापक रूप से आर्द्रभूमि का नुकसान हुआ, जिसके लिए महंगे पुनर्स्थापन प्रयासों की आवश्यकता थी।
  • अरल सागर (Aral Sea), जो कभी एक बड़ी झील थी, सोवियत सिंचाई परियोजनाओं के लिए नदियों के जोड़ने के बाद रेगिस्तान बन गई।

    • जल-बँटवारा समझौते प्रायः अलग-अलग राज्य प्राथमिकताओं के कारण रुक जाते हैं, जैसा कि केन-बेतवा परियोजना में देखा गया है।
  • जलवायु परिवर्तन अनिश्चितता: जलवायु परिवर्तन के कारण अनियमित वर्षा पैटर्न और नदी प्रवाह की परिवर्तित गतिशीलता जल हस्तांतरण की विश्वसनीयता को कम कर सकती है।
    • ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों को भविष्य के दशकों में कम प्रवाह का सामना करना पड़ सकता है।
  • परिचालन चुनौतियाँ: बाँधों और नहरों सहित विशाल अवसंरचना के रखरखाव के लिए निरंतर वित्तपोषण और तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
  • अंतरराष्ट्रीय निहितार्थ: हिमालयी नदियों से जुड़ी परियोजनाओं के लिए नेपाल और भूटान जैसे पड़ोसी देशों के साथ सहयोग की आवश्यकता होती है, जिससे बातचीत जटिल हो जाती है।
    • उदाहरण: सप्तकोसी-सुन कोसी लिंक जैसी हिमालयी नदी को जोड़ने वाली परियोजनाओं के लिए भारत-नेपाल सहयोग आवश्यक है, लेकिन जलमग्नता और लाभ-साझाकरण की चिंताएँ प्रगति में बाधा डालती हैं।
  • सांस्कृतिक एवं वैचारिक संघर्ष: नदी जोड़ो परियोजना धार्मिक विचारधारा के विपरीत है, जो नदियों को पवित्र मानती है।

नदी जोड़ो से संबंधित केस स्टडी

  • टेनेसी वैली अथॉरिटी (संयुक्त राज्य अमेरिका): एक व्यापक नदी बेसिन प्रबंधन परियोजना जिसने नेविगेशन, बाढ़ नियंत्रण और जल विद्युत के लिए नदियों को आपस में जोड़ा।
    • कृषि, उद्योग और रोजगार को बढ़ावा देकर क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को सफलतापूर्वक पुनर्जीवित किया।
  • मेकांग नदी बेसिन (दक्षिण पूर्व एशिया): अंतर-बेसिन जल हस्तांतरण ने लाओस, वियतनाम और कंबोडिया में कृषि और ऊर्जा उत्पादन को सुविधाजनक बनाया।
    • देशों के बीच जल-साझाकरण आवश्यकताओं को संतुलित करते हुए क्षेत्रीय सहयोग बनाया।

भारत में नदी जोड़ो परियोजनाओं के लिए आगे की राह

  • व्यापक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA): पारिस्थितिकी क्षति, जैव विविधता हानि और लवणता अतिक्रमण का आकलन करने और उसे कम करने के लिए विस्तृत EIA का विश्लेषण करना।
    • पर्यावरण प्रबंधन योजनाओं (EMP) और पुनर्स्थापन पहलों का कार्यान्वयन सुनिश्चित करना।
  • समान जल साझाकरण तंत्र: अंतरराज्यीय विवादों को संबोधित करने और जल संसाधनों का उचित वितरण सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत कानूनी ढाँचा विकसित करना।
    • सुव्यवस्थित निर्णय लेने के लिए अनुसूची 7 (संविधान) की संघ सूची की प्रविष्टि 56 के तहत एक केंद्रीय प्राधिकरण की स्थापना करना।
  • स्थायी विकल्पों पर ध्यान देना: नदी को जोड़ने के पूरक के रूप में वाटरशेड प्रबंधन, वर्षा जल संचयन और सूक्ष्म सिंचाई जैसे स्थानीय समाधानों को प्राथमिकता देना।
    • ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी उच्च दक्षता वाली सिंचाई प्रणालियों को बढ़ावा देना।
    • आभासी जल व्यापार (Virtual Water Trade-VWT): व्यापार के माध्यम से जल की कमी को दूर करके व्यापक अंतर-संयोजन बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता को कम करता है।
  • पुनर्वास और पुनर्स्थापन (Rehabilitation and Resettlement-R&R) नीतियों में सुधार: विस्थापित समुदायों के लिए पर्याप्त मुआवजा, रोजगार के अवसर और सामाजिक सहायता प्रदान करना।
    • प्रभावित आबादी को उनकी चिंताओं को दूर करने के लिए नियोजन प्रक्रिया में शामिल करना।
  • आधुनिक तकनीक का लाभ उठाना: नदी जोड़ो परियोजनाओं की सटीक योजना और निगरानी के लिए उपग्रह इमेजरी और GIS उपकरणों का उपयोग करना।
    • दक्षता सुनिश्चित करने और अपव्यय को कम करने के लिए वास्तविक समय जल प्रवाह प्रबंधन प्रणालियों को लागू करना।
  • जलवायु लचीलापन योजना: वर्षा परिवर्तनशीलता का पूर्वानुमान लगाने और जल हस्तांतरण की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए जलवायु परिवर्तन मॉडल को शामिल करना।
    • अधिशेष जल वाली नदियों में कथित ‘अतिरिक्त’ जल पर अत्यधिक निर्भरता से बचना।
  • चरणबद्ध कार्यान्वयन और पायलट परियोजनाएँ: व्यवहार्यता को प्रदर्शित करने और आगे बढ़ने से पहले सबक सीखने के लिए छोटे, क्षेत्र-विशिष्ट लिंक से शुरुआत करना।
    • केन-बेतवा और पार-तापी-नर्मदा जैसे प्राथमिकता वाले लिंक पर कार्य में तेजी लाना।

निष्कर्ष 

नदियाँ महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएँ प्रदान करती हैं, जिसमें डेल्टा निर्माण के लिए अवसाद का परिवहन, जैव विविधता के लिए समर्थन, भूमि की उर्वरता में वृद्धि और भूजल पुनर्भरण शामिल हैं। नीति निर्माताओं को देश के दीर्घकालिक पारिस्थितिक और सामाजिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरणीय स्थिरता के साथ तकनीकी हस्तक्षेप को संतुलित करना चाहिए। प्राकृतिक प्रणालियों को अपरिवर्तनीय क्षति से बचने के लिए नदी जोड़ परियोजनाओं को जलवायु परिवर्तन शमन रणनीतियों के साथ संरेखित करना चाहिए।

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