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आपदा रोधी अवसंरचना पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (ICDRI) 2025

Lokesh Pal June 10, 2025 03:07 48 0

संदर्भ

भारतीय प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए आपदा रोधी अवसंरचना पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (2025) को संबोधित किया।

आपदा रोधी अवसंरचना (Disaster Resilient Infrastructure-DRI) के बारे में

  • DRI का तात्पर्य बुनियादी ढाँचे की प्रणालियों (भवन, सड़कें, विद्युत ग्रिड, आदि) से है, जो प्राकृतिक और मानव निर्मित आपदाओं (जैसे- चक्रवात, भूकंप, बाढ़) का सामना करने, उनसे अनुकूलन करने और उनसे जल्दी उबरने के लिए डिजाइन की गई हैं।
  • आपदा जोखिम बुनियादी ढाँचे पर वैश्विक पहल
    • आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना गठबंधन (Coalition for Disaster Resilient Infrastructure-CDRI): भारत द्वारा वर्ष 2019 प्रारंभ किया गया।
    • संयुक्त राष्ट्र की ‘सभी के लिए प्रारंभिक चेतावनी’: वर्ष 2027 तक प्रत्येक व्यक्ति की सुरक्षा का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
    • OECD की प्रतिरोधी अवसंरचना नीति: अनुकूली परिवहन नेटवर्क पर G20 देशों का मार्गदर्शन करती है।
    • आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030)

आपदा रोधी अवसंरचना पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (International Conference on Disaster Resilient Infrastructure-ICDRI) 2025 

  • ICDRI आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) का प्रमुख वार्षिक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन है।
  • यह नीति निर्माताओं, विशेषज्ञों, चिकित्सकों और हितधारकों के लिए आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना पर ज्ञान और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए एक वैश्विक मंच के रूप में कार्य करता है।
  • यह अनुसंधान, क्षमता निर्माण और तकनीकी सहायता के माध्यम से मजबूत अवसंरचना प्रणालियों के निर्माण में देशों का समर्थन करता है।
  • वर्ष 2025 में ICDRI का 7वाँ संस्करण था, जिसे पहली बार फ्राँस सरकार के सहयोग से यूरोप (नाइस, फ्राँस) में आयोजित किया गया था।
  • थीम: ‘तटीय क्षेत्रों के लिए एक लचीले भविष्य को आकार देना’ (Shaping a Resilient Future for Coastal Regions)- जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील लघु द्वीपीय विकासशील राष्ट्रों (Small Island Developing States-SIDS) और तटीय समुदायों पर ध्यान केंद्रित करना।

भारत की पाँच प्रमुख प्राथमिकताएँ

  • शिक्षा: कुशल कार्यबल निर्माण के लिए उच्च शिक्षा में आपदा लचीलापन एकीकृत करना।
  • ग्लोबल डिजिटल रिपॉजिटरी: आपदा के बाद पुनर्निर्माण के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं का दस्तावेजीकरण करना।
  • नवाचारपूर्ण वित्तपोषण: सुनिश्चित करना कि विकासशील राष्ट्र लचीले बुनियादी ढाँचे के लिए धन तक पहुँच प्राप्त कर सकें।
  • ‘बड़े महासागरीय देशों’ के रूप में SIDS: उनकी समस्याओं पर विशेष ध्यान देना।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली: आपदा प्रतिक्रिया के लिए समय पर समन्वय को मजबूत करना।

आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (CDRI) के बारे में

  • वर्ष 2019 में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन, न्यूयॉर्क में लॉन्च किया गया।
  • यह एक बहु-हितधारक वैश्विक साझेदारी है जिसका उद्देश्य जलवायु एवं आपदा जोखिमों के लिए बुनियादी ढाँचे की प्रणालियों के लचीलेपन को बढ़ावा देना है।
  • मुख्यालय: CDRI सचिवालय का मुख्यालय नई दिल्ली, भारत में है।
  • सदस्य: 46 सदस्य देश और 8 भागीदार संगठन।
  • कार्य
    • यह आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030) के अनुरूप है।
    • SDG 9 (उद्योग, नवाचार और अवसंरचना) और SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) को प्राप्त करने में योगदान देता है।
    • विकासशील और जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण अवसंरचना की भेद्यता को संबोधित करता है।
  • CDRI की पहल
    • IRIS कार्यक्रम: CDRI के इंफ्रास्ट्रक्चर फॉर रेसिलिएंट आइलैंड स्टेट्स (Infrastructure for Resilient Island States-IRIS) कार्यक्रम को COP26, ग्लासगो, 2021 में लॉन्च किया गया था, ताकि लघु द्वीपीय विकासशील राष्ट्रों (SIDs) में बुनियादी ढाँचा प्रणालियों के लचीलापन को बढ़ाया जा सके।
    • ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर रेसिलिएंस इंडेक्स (Global Infrastructure Resilience Index-GIRI): विद्युत और ऊर्जा, परिवहन, दूरसंचार और जल जैसे प्रमुख बुनियादी ढाँचे के क्षेत्रों में लचीलापन मापता है।
    • इंफ्रास्ट्रक्चर रेसिलिएंस एक्सेलेरेटर फंड (Infrastructure Resilience Accelerator Fund-IRAF): सदस्य देशों में तकनीकी सहायता और क्षमता निर्माण का समर्थन करने के लिए वर्ष 2022 में लॉन्च किया गया।
    • आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (International Conference on Disaster Resilient Infrastructure-ICDRI): यह वार्षिक प्रमुख कार्यक्रम है। यह नीति निर्माताओं, इंजीनियरों, शोधकर्ताओं के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान के लिए एक मंच है।
    • ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर रेसिलिएंस प्रोग्राम (Global Infrastructure Resilience Program-GIRP): ज्ञान प्रसार के लिए CDRI के तहत तकनीकी कार्यक्रम है।

आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना का महत्त्व

  • मानव जीवन की रक्षा: लचीला बुनियादी ढाँचा (जैसे- भूकंप-रोधी इमारतें, चक्रवात आश्रय) आपदाओं के दौरान होने वाली मौतों को कम करता है।
  • आर्थिक नुकसान को कम करना: आपदाओं के कारण प्रतिवर्ष $2.3 ट्रिलियन का अप्रत्यक्ष नुकसान होता है (जैसे- आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, उत्पादकता में कमी)।
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन: DRI बाढ़ (पारगम्य फुटपाथ), वनाग्नि (अग्नि-रोधी सामग्री) और तूफान जैसे बढ़ते खतरों को संबोधित करता है।
  • तटीय और SIDS भेद्यता: लघु द्वीपीय विकासशील राज्य (SIDS), जिन्हें भारत द्वारा ‘बड़े महासागरीय देश’ (Large Ocean Countries) कहा जाता है, अस्तित्व संबंधी खतरों का सामना करते हैं।
  • सतत् विकास और समानता: लचीला बुनियादी ढाँचा हाशिए पर स्थित समूहों के लिए महत्त्वपूर्ण सेवाओं (स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा) की निरंतरता सुनिश्चित करता है।
    • विकासशील देश, जो आपदाओं के कारण सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 46% की हानि महसूस करते हैं (उत्तरी अमेरिका में यह हानि 0.23% है), DRI वित्तपोषण (जैसे- ग्रीन क्लाइमेट फंड) से लाभान्वित होते हैं।

आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना में भारत सरकार की पहल

  • पीएम गति शक्ति- राष्ट्रीय मास्टर प्लान (2021): 16 मंत्रालयों की बुनियादी ढाँचे की योजना को एकीकृत करने वाला एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है।
    • आपदा और जलवायु तन्यता को मुख्य उद्देश्य मानते हुए समन्वित अवसंरचना विकास को बढ़ावा देता है।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना (National Disaster Management Plan-NDMP), 2016: सेंडाई फ्रेमवर्क के साथ संरेखित पहली राष्ट्रीय योजना है।
    • महत्त्वपूर्ण अवसंरचना क्षेत्रों (ऊर्जा, परिवहन, जल, दूरसंचार) में जोखिम कम करने पर ध्यान केंद्रित करना। आपदा के बाद पुनर्निर्माण में बेहतर निर्माण को बढ़ावा देता है।
  • आपदा प्रतिरोधक क्षमता के लिए BIS मानक: भारतीय मानक ब्यूरो ने संरचनात्मक कोड विकसित किए हैं (जैसे- भूकंप-रोधी डिजाइन के लिए IS 1893)।
    • भूकंपीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में निर्माण के लिए अनिवार्य है। इसमें चक्रवात, भूस्खलन और बाढ़-प्रवण क्षेत्रों के लिए कोड शामिल हैं।
  • अमृत ​​2.0 और स्मार्ट सिटी मिशन: जलवायु जोखिमों (स्टॉर्म वाटर निकासी, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली) के प्रति तन्यता के साथ शहरी बुनियादी ढाँचे को उन्नत किया गया।
    • स्मार्ट सिटी आपदा प्रबंधन प्रणालियों को एकीकृत करती हैं, जैसे कि कमांड और कंट्रोल सेंटर।
  • जल जीवन मिशन और नमामि गंगे: विशेष रूप से सूखा/बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में लचीले जल बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित करना।
    • नदी पुनरुद्धार प्रयासों में आपदा न्यूनीकरण घटक शामिल हैं।
  • आपदा प्रतिरोधी विद्युत प्रणालियाँ: पुनर्निर्मित वितरण क्षेत्र योजना (Revamped Distribution Sector Scheme-RDSS) में आपदा प्रतिरोध के लिए भूमिगत केबलिंग और स्मार्ट मीटर शामिल हैं।
  • NAPCC के तहत जलवायु लचीला बुनियादी ढाँचा: जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (जैसे- सतत् आवास पर राष्ट्रीय मिशन) के तहत मिशन लचीले शहरी नियोजन को बढ़ावा देते हैं।
  • क्षमता निर्माण और जोखिम मूल्यांकन उपकरण: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) प्रशिक्षण और नीति परामर्श आयोजित करता है।
    • जलवायु लचीला अवसंरचना सेवा कार्यक्रम (CRISP) जैसे उपकरण नगर-स्तरीय लचीलापन योजना को बढ़ावा देते हैं।

आपदा-रोधी अवसंरचना (DRI) अपनाने में चुनौतियाँ

  • निर्माण की उच्च लागत: मौजूदा बुनियादी ढाँचे को पुनः तैयार करने या नई लचीली प्रणालियों के निर्माण के लिए पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है।
    • उदाहरण के लिए, बाढ़-रोधी निर्माण की लागत पारंपरिक तरीकों की तुलना में 30-50% अधिक हो सकती है।
  • फंडिंग गैप: विकासशील राष्ट्र और लघु द्वीपीय विकासशील राष्ट्र (SIDS) वित्त प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं। वैश्विक आपदा फंडिंग का केवल 5% आपदा-पूर्व तन्यता के लिए आवंटित किया जाता है।
  • कमजोर विनियामक ढाँचा और प्रवर्तन: कई क्षेत्रों में लचीलेपन के लिए लागू करने योग्य भवन संहिताओं का अभाव है।
    • भारत में, अनधिकृत निर्माण और पुराने नियम जोखिम को बढ़ाते हैं।
  • नीति विखंडन: विभिन्न क्षेत्रों (जैसे- शहरी नियोजन, ऊर्जा, परिवहन) में असंगत नीतियाँ एकजुट DRI कार्यान्वयन में बाधा डालती हैं।
  • तकनीकी और भौतिक सीमाएँ: डायरेक्ट रिड्यूस्ड आयरन (DRI) स्टीलमेकिंग के लिए 67% से अधिक लौह (Fe)-सामग्री वाले लौह अयस्क की आवश्यकता होती है, जो दुर्लभ और महंगा है।
  • सामाजिक और संस्थागत प्रतिरोध: नीति निर्माता और समुदाय प्रायः दीर्घकालिक लचीलेपन की तुलना में अल्पकालिक लाभ को प्राथमिकता देते हैं।
    • मुंबई और दिल्ली में खतरे की आशंका वाले क्षेत्रों में शहरी विस्तार और झुग्गी-झोपड़ियाँ राजनीतिक और आर्थिक दबावों के कारण बनी हुई हैं।
  • जलवायु अनिश्चितता और जोखिम मूल्यांकन: मिश्रित आपदाओं (जैसे- बाढ़ एवं भूस्खलन) की बढ़ती आवृत्ति लचीलापन योजना को जटिल बनाती है।

आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाइ फ्रेमवर्क (2015–2030)

  • आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क (2015-2030) आपदा जोखिमों को कम करने और लचीलापन बढ़ाने के लिए वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाया गया एक 15 वर्षीय वैश्विक समझौता है।
  • इसने ह्योगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन (2005-2015) का स्थान लिया है और पेरिस समझौते एवं सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) जैसे अन्य वैश्विक एजेंडों के साथ संरेखित है।  

सेंडाइ फ्रेमवर्क के प्रमुख घटक

  • कार्रवाई के लिए चार प्राथमिकताएँ निर्धारित की गई हैं; यह रूपरेखा आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRI) प्रयासों के मार्गदर्शन के लिए चार प्राथमिकता क्षेत्रों की पहचान करती है:-
    • आपदा जोखिम को समझना: जोखिम मूल्यांकन पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसमें भेद्यता, जोखिम और जोखिम विश्लेषण शामिल है।
    • आपदा जोखिम शासन को मजबूत करना: नीतियों, कानूनों और बहु-हितधारक सहयोग को बढ़ावा देता है।
    • लचीलेपन के लिए DRR में निवेश करना: संरचनात्मक (जैसे- बाढ़ अवरोध) और गैर-संरचनात्मक (जैसे- प्रारंभिक चेतावनी) उपायों में सार्वजनिक/निजी निवेश को प्रोत्साहित करता है।
    • तैयारी बढ़ाना और ‘बेहतर तरीके से पुनर्निर्माण करना’: प्रतिक्रिया प्रणालियों में सुधार करना और आपदा के बाद की रिकवरी में DRR को एकीकृत करना इसका उद्देश्य है।
  • UNDRR की भूमिका: आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNDRR) ‘सेंडाई फ्रेमवर्क मॉनिटर’ के माध्यम से वैश्विक प्रगति निगरानी का समन्वय करता है।
  • SDG से संबंध: स्पष्ट रूप से SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) और SDG 11 (सतत् शहर) से संबंधित है।

आगे की राह 

  • नीति और शासन ढाँचे को मजबूत करना: DRI अनुपालन को राष्ट्रीय भवन संहिताओं में एकीकृत करना (उदाहरण के लिए, भारत का आपदा प्रबंधन संशोधन अधिनियम 2025 शहरी नियोजन में लचीलापन अनिवार्य करता है)।
  • स्थानीयकृत आपदा प्रबंधन: विकेंद्रीकृत कार्रवाई के लिए जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (District Disaster Management Authorities-DDMA) को सशक्त बनाना।
    • उच्च जोखिम वाले शहरों में शहरी आपदा प्रबंधन प्राधिकरण स्थापित करना (जैसे– मुंबई की बाढ़-रोधी तटीय सड़क परियोजना)।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार का लाभ उठाना: बाढ़, चक्रवात और भूस्खलन को शामिल करने के लिए भारत की सुनामी चेतावनी प्रणाली (जिससे 29 देशों को लाभ होगा) का विस्तार करना।
    • AI-संचालित जोखिम मॉडलिंग का उपयोग करना (उदाहरण के लिए, हैदराबाद के बाढ़ पूर्वानुमान उपकरण)।
  • वित्तपोषण और निवेश को बढ़ावा देना: सार्वजनिक निधियों को निजी पूँजी के साथ जोड़ना (उदाहरण के लिए, लघु द्वीपीय राष्ट्रों के लिए CDRI का $50M फंड)।
    • कम कार्बन वाली DRI प्रौद्योगिकियों को सब्सिडी देना (जैसे– हाइड्रोजन का उपयोग करके भारत के ₹4.55B ग्रीन स्टील पायलट)।
  • उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना: लघु द्वीपीय देशों को ‘बड़े महासागरीय देशों’ के रूप में समझना और उनके लिए अनुकूलित समाधान (जैसे- 25 SIDS के लिए CDRI का IRIS कार्यक्रम) अपनाना।
    • तटीय और द्वीपीय देशों में तूफानी लहरों को कम करने के लिए प्रकृति-आधारित समाधानों (मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियों) में निवेश करना।
  • क्षमता निर्माण और वैश्विक सहयोग: विश्वविद्यालयों में DRI पाठ्यक्रमों को एकीकृत करना। समुदाय के पहले उत्तरदाताओं को प्रशिक्षित करना (जैसे– भारत के आपदा मित्र स्वयंसेवक)।
    • CDRI की सदस्यता (54 से अधिक राष्ट्र) का विस्तार करना ताकि अधिक अफ्रीकी और द्वीपीय देशों को शामिल किया जा सके।

निष्कर्ष

DRI को अपनाने के लिए नीतिगत सुसंगतता, अत्याधुनिक तकनीक, सतत् वित्तपोषण और समावेशी शासन की आवश्यकता है। भारत का CDRI नेतृत्व और वैश्विक भागीदारी विशेषतः कमजोर तटीय और द्वीपीय देशों के लिए एक लचीले भविष्य को आकार दे रही है।

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