हाल ही में रूस और उत्तर कोरिया ने ‘व्यापक रणनीतिक साझेदारी’ पर हस्ताक्षर किए हैं।
संबंधित तथ्य
रूस और उत्तर कोरिया के बीच परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष अन्वेषण, खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, परस्पर सैन्य समर्थन तथा तकनीकी सहायता जैसे कई मुद्दों पर सहयोग हेतु समझौता हुआ।
समझौते का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा ‘पारस्परिक रक्षा प्रावधान’ (Mutual Defence Provisions) है।
ऐतिहासिक संदर्भ
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद: तत्कालीन सोवियत संघ कोरिया में साम्यवादी शासन की स्थापना चाहता था तथा कोरियाई युद्ध के दौरान उत्तर कोरिया के संस्थापक किम इल सुंग को महत्त्वपूर्ण सैन्य सहायता की पेशकश भी की थी।
वर्ष 1961 में दोनों देशों के गठबंधन में मजबूती: रूस-उत्तर कोरिया मैत्री, सहयोग और पारस्परिक सहायता की संधि पर हस्ताक्षर किए गए, जिसमें नवीनतम संधि के रूप में पारस्परिक रक्षा समझौता शामिल था।
वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद: इस ऐतिहासिक घटना के बाद यह संधि रद्द कर दी गई और संबंध अस्थायी रूप से कमजोर हो गए।
वर्तमान संधि
पारस्परिक रक्षा प्रावधान: यदि किसी देश या देशों द्वारा सशस्त्र आक्रमण के कारण दोनों पक्षों में से कोई पक्ष युद्ध की स्थिति में आ जाता है, तो दूसरा पक्ष संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद-51, DPRK और रूसी संघ के कानूनों के अनुसार, बिना किसी देरी के सैन्य और अपने मौजूद सभी साधनों के साथ अन्य सहायता प्रदान करेगा।
यह प्रावधान दोनों देशों के बीच वर्ष 1961 के समझौते को पुनर्जीवित करता है।
संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद-51: यह सदस्य देश को व्यक्तिगत या सामूहिक आत्मरक्षा के लिए सैन्य या अन्य कार्रवाई करने का अधिकार प्रदान करता है।
वैश्विक पृष्ठभूमि पर संधि का महत्त्व
अन्य राष्ट्रों के लिए कथित रूप से सुरक्षा खतरा: इस संधि को दक्षिण कोरिया और जापान के लिए प्रत्यक्ष सुरक्षा खतरे के रूप में माना जा सकता है।
दोनों देश लंबे समय से उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम और सैन्य ताकत को लेकर चिंतित हैं।
निवारण: यह संभवतः दोनों देशों को अपनी सुरक्षा को मजबूत करने और अपनी सुरक्षा नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करेगा।
जापान: जापान ने लंबे समय से चली आ रही अपनी शांतिवादी विदेश नीति को पहले ही त्याग दिया है और अपनी सैन्य शक्ति का निर्माण कर रहा है।
दक्षिण कोरिया: इसने प्रतिक्रिया में अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक बुलाई तथा कहा है कि अब वह यूक्रेन को हथियार भेजने पर विचार करेगा, ज्ञात हो कि दक्षिण कोरिया ने अब तक इसका विरोध किया था।
अमेरिका पर बढ़ती निर्भरता: दक्षिण कोरिया और जापान दोनों ही अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपने गठबंधन को और मजबूत कर सकते हैं।
एशिया में पश्चिम विरोधी दीवार को मजबूती देना: रूस-उत्तर कोरिया समझौता अन्य जगहों पर भी इसी तरह की साझेदारी को प्रोत्साहित कर सकता है, भविष्य में ईरान के साथ ऐसे समझौते की संभावना है।
चीन के लिए दुविधा की संभावना: चीन, उत्तर कोरिया के साथ रूस के बढ़ते सैन्य सहयोग से सावधान रहेगा, जो प्योंगयांग पर उसके विशेष भू-राजनीतिक प्रभाव को कमजोर कर सकता है।
इस घटनाक्रम के परिणामस्वरूप एशिया में पश्चिमी देशों की बढ़ती मौजूदगी के बारे में भी चिंता की जाएगी।
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