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अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन परिषद

Lokesh Pal December 01, 2025 02:12 4 0

संदर्भ

भारत को वर्ष 2026–27 के द्विवर्षीय कार्यकाल के लिए अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन परिषद में सर्वाधिक मतों के साथ पुनः निर्वाचित किया गया है।

अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन के बारे में

  • अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन संयुक्त राष्ट्र की एक विशिष्ट संस्था है, जिसका कार्य समुद्री सुरक्षा तथा संरक्षण सुनिश्चित करना एवं जलयानों से होने वाले समुद्री प्रदूषण को रोकना है।
  • यह अंतरराष्ट्रीय नौवहन की सुरक्षा, संरक्षण एवं पर्यावरणीय प्रदर्शन के लिए वैश्विक मानक निर्धारित करता है।
  • स्थापना: इसकी स्थापना वर्ष 1948 में जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के पश्चात् हुई और यह वर्ष 1958 में औपचारिक रूप से अस्तित्व में आया।
  • मुख्यालय: इसका मुख्यालय लंदन में स्थित है तथा इसके 176 सदस्य राष्ट्र और 3 सहयोगी सदस्य हैं।
  • भारत और अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन
    • सदस्यता: भारत, अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन के प्रारंभिक सदस्य देशों में से एक है, जिसने इसका अभिसमय वर्ष 1959 में अनुसमर्थित किया।
    • परिषद में सहभागिता: भारत लगातार परिषद में सेवा देता रहा है, केवल वर्ष 1983–1984 के दो वर्षों को छोड़कर।

अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन की भूमिका

  • नियामक ढाँचा: इसका मुख्य उत्तरदायित्व वैश्विक नौवहन उद्योग के लिए एक न्यायसंगत, प्रभावी, सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य और लागू नियामक ढाँचा तैयार करना है।
  • कानूनी विषय: यह दायित्व एवं प्रतिकर से संबंधित कानूनी मामलों सहित अंतरराष्ट्रीय समुद्री यातायात को सुगम बनाने में भी संलग्न रहता है।
  • विश्व समुद्री दिवस: अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन प्रत्येक वर्ष सितंबर के अंतिम गुरुवार को विश्व समुद्री दिवस मनाता है, ताकि नौवहन एवं समुद्री गतिविधियों के महत्त्व के प्रति जन-जागरूकता बढ़ाई जा सके।

अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन की संरचना

  • महासभा: महासभा इसकी सर्वोच्च शासी इकाई है, जिसमें सभी सदस्य राष्ट्र शामिल होते हैं। यह प्रत्येक दो वर्ष में बैठक कर कार्यक्रम, बजट को अनुमोदित करती है तथा परिषद के लिए सदस्यों का चुनाव करती है।
  • परिषद: परिषद कार्यकारी निकाय है, जो महासभा के सत्रों के बीच संगठन की गतिविधियों की निगरानी करती है।
  • परिषद का गठन: परिषद में 40 सदस्य राष्ट्र होते हैं, जिनका चुनाव महासभा द्वारा प्रत्येक दो वर्ष में किया जाता है।
  • सदस्य राज्यों को समुद्री महत्त्व के आधार पर तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
    • श्रेणी (क): 10 राज्य जिनकी अंतरराष्ट्रीय नौवहन सेवाएँ प्रदान करने में सर्वाधिक रुचि है।
    • श्रेणी (ख): 10 राज्य जिनकी अंतरराष्ट्रीय समुद्री व्यापार में सर्वाधिक रुचि है।
    • श्रेणी (ग): 20 राज्य जो (क) या (ख) में नहीं आते, परंतु जिनकी समुद्री परिवहन या नौवहन में विशेष रुचि है तथा जिनका चयन विश्व के सभी प्रमुख भौगोलिक क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है।
  • मुख्य समितियाँ: अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन में पाँच प्रमुख समितियाँ हैं, जो नीतिगत विकास एवं विनियमन निर्माण के लिए उत्तरदायी हैं। इनमें विशेष रूप से समुद्री पर्यावरण संरक्षण समिति महत्त्वपूर्ण है।
  • समितियाँ एवं उप-समितियाँ: संगठन पाँच मुख्य समितियों तथा विभिन्न उप-समितियों के माध्यम से कार्य करता है, जो अंतरराष्ट्रीय संधियों, संहिताओं, संकल्पों और दिशा-निर्देशों का निर्माण एवं अंगीकरण करती हैं।

अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन की प्रमुख संधियाँ

  • SOLAS (सेफ्टी ऑफ लाइफ एट सी) संधि (वर्ष 1974): जलयान निर्माण, उपकरणों और परिचालन प्रक्रियाओं के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक स्थापित करती है, ताकि जलयानों एवं यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
  • मार्पोल संधि (वर्ष 1973/78): तेल रिसाव, सीवेज एवं खतरनाक माल के अवशेष सहित जलयानों से होने वाले प्रदूषण को कम करने का उद्देश्य रखती है।
  • STCW  (स्टैण्डर्ड ऑफ ट्रेनिंग सर्टिफिकेशन एंड वाचकीपिंग फॉर सीफेयरर्स) संधि (वर्ष 1978): व्यापारिक नाविकों के प्रशिक्षण एवं प्रमाणन के न्यूनतम मानक निर्धारित करती है, ताकि जलयानों का सुरक्षित संचालन सुनिश्चित किया जा सके। ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में कमी हेतु अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन की रणनीति (वर्ष 2023)।
  • वर्ष 2050 तक नेट-जीरो ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन प्राप्त करने का लक्ष्य रखती है।

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