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अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस

Lokesh Pal December 19, 2025 02:14 71 0

संदर्भ

18 दिसंबर, 2025 को, वैश्विक समुदाय अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस मना रहा है, ऐसे समय में जब मानव गतिशीलता वैश्वीकरण, विकास और सामाजिक परिवर्तन की एक प्रमुख विशेषता बन गई है।

अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस 2025 और समकालीन प्रवासन परिदृश्य के बारे में

  • स्थापना एवं पालन: अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस प्रतिवर्ष 18 दिसंबर को मनाया जाता है। इसकी घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा वर्ष 2000 में की गई थी, जो सभी प्रवासी कामगारों और उनके परिवारों के अधिकारों की सुरक्षा पर वर्ष 1990 के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की स्मृति में की गई थी।
  • विषय और दृष्टिकोण में परिवर्तन (2025): ‘माय ग्रेट स्टोरी: कल्चर्स एंड डेवलपमेंट’  (My Great Story: Cultures and Development)।
    • इसका उद्देश्य प्रवासियों को केवल श्रम इकाई के रूप में देखने के बजाय, उन्हें अधिकार संपन्न व्यक्तियों, सांस्कृतिक आदान-प्रदान के माध्यम और समावेशी विकास में योगदानकर्ताओं के रूप में मान्यता देकर वैश्विक विमर्श को परिवर्तित करना है।
  • प्रवासन का आर्थिक और सामाजिक महत्त्व: आज प्रवासन वैश्विक विकास का एक महत्त्वपूर्ण चालक है, जो कौशल, पूँजी और ज्ञान के हस्तांतरण को सक्षम बनाता है, साथ ही गंतव्य समाजों में सामाजिक अनुकूलन और सांस्कृतिक विविधता को बढ़ावा देता है।

प्रवासन डेटा की संस्थागत आधारशिला

  • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) वर्ष 1950 से बड़े पैमाने पर सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण करता आ रहा है, जो भारत के आधिकारिक आँकड़ों का आधार है।
  • साक्ष्य-आधारित नीति के लिए आगामी प्रवासन सर्वेक्षण: NSO प्रवासन सर्वेक्षण (2026-27) का उद्देश्य प्रवासन दर, कारणों, अल्पकालिक और चक्रीय प्रवासन तथा पुनः प्रवासन पर अद्यतन अनुमान प्राप्त करना है।
  • प्रवासन डेटा संग्रह का ऐतिहासिक विकास: NSS के 9वें दौर (1955) से प्रवासन पर नजर रखी जा रही है, जिसमें वर्ष 1963-64 और वर्ष 2007-08 में समर्पित सर्वेक्षण शामिल हैं, जो राज्य की दीर्घकालिक भागीदारी को दर्शाते हैं।

प्रवासियों के बारे में

  • परिभाषा: प्रवासी वह व्यक्ति है, जो अपने स्थायी निवास स्थान से दूर चला जाता है, चाहे वह देश के भीतर हो या अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार।
    • अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) एक व्यापक परिभाषा अपनाता है, जो कानूनी स्थिति के प्रति तटस्थ है और स्वैच्छिक और जबरन दोनों प्रकार के प्रवास को शामिल करती है।
  • आवागमन का दायरा और अवधि: प्रवास में आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय गतिशीलता शामिल है।
    • संयुक्त राष्ट्र दीर्घकालिक प्रवासी को ऐसे व्यक्ति के रूप में वर्गीकृत करता है, जो कम-से-कम 12 महीने तक किसी दूसरे देश में रहता है, जो प्रवास के समय संबंधी आयाम को उजागर करता है।
  • प्रवासियों का वर्गीकरण: प्रवासी एक व्यापक श्रेणी बनाते हैं, जिसमें श्रमिक प्रवासी, छात्र, पारिवारिक प्रवासी और संघर्ष या आपदाओं से विस्थापित लोग शामिल हैं।
    • लगभग दो-तिहाई अंतरराष्ट्रीय प्रवासी श्रमिक प्रवासी हैं, जो वैश्विक जनसांख्यिकीय और कार्यबल परिवर्तनों को दर्शाते हैं।
  • जबरन और जलवायु-प्रेरित प्रवास: समकालीन प्रवास ढाँचे संघर्ष, प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु तनाव के कारण विस्थापन को तेजी से मान्यता दे रहे हैं।
    • यद्यपि ऐसे व्यक्तियों को कानूनी रूप से शरणार्थी या आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति (IDP) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, फिर भी वे वैश्विक प्रवासन चुनौती के केंद्र में बने हुए हैं, जिसके कारण वर्ष 2024 तक विश्व स्तर पर 123 मिलियन जबरन विस्थापित व्यक्ति होंगे।
  • कानूनी स्थिति तटस्थता: प्रवासन को दस्तावेजीकरण से स्वतंत्र रूप से परिभाषित किया जाता है।
    • नियमित और अनियमित दोनों प्रकार के प्रवासी इसके दायरे में आते हैं, जो स्थिति-आधारित शासन के बजाय अधिकार-आधारित शासन की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
  • जनसांख्यिकीय प्रोफाइल और भारत की स्थिति: प्रवासी मुख्य रूप से कामकाजी आयु वर्ग (20-64 वर्ष) के हैं।

प्रवासन की स्थिति

  • पैमाना और भू-राजनीतिक महत्त्व: वैश्विक स्तर पर अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों की संख्या 304 मिलियन तक पहुँचने के साथ, प्रवासन वैश्विक भू-राजनीति और आर्थिक स्थिरता का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ बन गया है।
    • प्रवासी अब विश्व की जनसंख्या का लगभग 3.7% हिस्सा हैं, जो निरंतर बढ़ती हुई संख्या को दर्शाता है।
  • वैश्विक प्रवासन में भारत की केंद्रीय स्थिति: भारत, विश्व का सबसे बड़ा मूल देश बना हुआ है, जहाँ वर्ष 2025 तक लगभग 18.5 मिलियन नागरिक विदेशों में रह रहे हैं और इसकी लगभग 38% जनसंख्या आंतरिक प्रवास में लगी हुई है।
    • वर्ष 2025 तक, संयुक्त राज्य अमेरिका (5.7 मिलियन), संयुक्त अरब अमीरात (3.9 मिलियन) और कनाडा (3.6 मिलियन) भारतीय प्रवासियों के लिए शीर्ष गंतव्य बने हुए हैं, जिनके बाद सऊदी अरब, मलेशिया और यूनाइटेड किंगडम का स्थान आता है।
    • यह लगभग 135 बिलियन डॉलर (वित्त वर्ष 2025) अनुमानित प्रेषण का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता भी है, जो चालू खाता घाटे (CAD) के विरुद्ध एक महत्त्वपूर्ण सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
  • भारत में अंतरराज्यीय प्रवासन का पैमाना: वर्ष 2011 की जनगणना में 41 मिलियन से अधिक अंतरराज्यीय प्रवासियों को दर्ज किया गया, जो आंतरिक गतिशीलता के व्यापक पैमाने को रेखांकित करता है।

आंतरिक प्रवासन का वर्गीकरण

किसी देश के भीतर, प्रवासन को पार की गई प्रशासनिक सीमाओं के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:

  • अंतरराज्यीय प्रवासन: एक ही राज्य के भीतर आवागमन, जैसे गाँवों से शहरी केंद्रों की ओर या शहरों के बीच आवागमन।
    • भौगोलिक और सांस्कृतिक निकटता के कारण यह अक्सर आवागमन का सबसे सामान्य रूप होता है।
  • अंतरराज्यीय प्रवासन: एक ही देश के भीतर राज्यों की सीमाओं के पार आवागमन।
    • यह आमतौर पर अधिक जटिल होता है क्योंकि प्रवासियों को अक्सर अपने गृह राज्य और मेजबान राज्य के बीच भाषा, संस्कृति और आर्थिक स्थितियों में अंतर का सामना करना पड़ता है।

प्रवासन के प्रेरक कारक 

प्रवासन शायद ही कभी किसी एक कारक के कारण होता है। यह उन कारकों के परस्पर प्रभाव का परिणाम है, जो लोगों को अपने क्षेत्र को छोड़ने के लिए विवश करते हैं और उन्हें गंतव्य क्षेत्रों की ओर आकर्षित करते हैं।

  • आर्थिक कारक (समृद्धि की खोज): आय असमानता, बेरोजगारी और कम वेतन प्रवास को बढ़ावा देते हैं, जबकि अधिक आय और श्रम की कमी श्रमिकों को गंतव्य अर्थव्यवस्थाओं की ओर आकर्षित करती है, विशेषकर स्वास्थ्य सेवा, निर्माण और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में।
    • उदाहरण: लगभग दो-तिहाई अंतरराष्ट्रीय प्रवासी श्रम प्रवासी हैं (IOM विश्व प्रवास रिपोर्ट 2024)।
  • ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन: वर्ष 2020-21 की प्रवास रिपोर्ट के अनुसार, कुल प्रवास दर 28.9% है, जिसमें से 26.5% ग्रामीण क्षेत्रों से है।
    • लगभग 10.8% लोग मुख्य रूप से रोजगार के लिए पलायन करते हैं।
  • पर्यावरणीय और जलवायु कारक: जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएँ, समुद्र स्तर में वृद्धि और संसाधनों का क्षरण लोगों को उन क्षेत्रों को छोड़ने के लिए मजबूर कर रहे हैं, जो रहने योग्य नहीं हैं, विशेषकर तटीय और कृषि क्षेत्र।
    • उदाहरण: विश्व बैंक की ग्राउंडस्वेल रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक जलवायु परिवर्तन के कारण आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या 21.6 करोड़ हो जाएगी।
    • भारत में, सुंदरबन और बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापन बढ़ रहा है।
  • राजनीतिक और सुरक्षा कारक: सशस्त्र संघर्ष, राजनीतिक अस्थिरता, मानवाधिकार उल्लंघन और उत्पीड़न ऐसे प्रबल कारक हैं, जो लोगों को शरणार्थी या शरण चाहने वाले के रूप में पलायन करने के लिए मजबूर करते हैं।
    • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UNHCR) ने वर्ष 2024 के अंत तक वैश्विक स्तर पर 123.2 करोड़ जबरन विस्थापित व्यक्तियों की रिपोर्ट दी है, जो अब तक का सबसे अधिक आँकड़ा है।
  • सामाजिक और जनसांख्यिकीय कारक: प्रवासन परिवार के पुनर्मिलन, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच और सामाजिक उन्नति की आकांक्षाओं से प्रेरित होता है। वृद्धावस्था से ग्रस्त समाजों और युवा अर्थव्यवस्थाओं के बीच जनसांख्यिकीय असंतुलन संरचनात्मक श्रम माँग को जन्म देता है।
    • उदाहरण: वर्ष 2030 तक, यूरोप की 25% से अधिक आबादी 65 वर्ष से अधिक आयु की होगी, जबकि भारत की औसत आयु लगभग 28 वर्ष है। वर्ष 2024 में 13 लाख से अधिक भारतीय छात्र विदेश में अध्ययन कर रहे थे।
  • तकनीकी और डिजिटल कारक: डिजिटल कनेक्टिविटी, दूरस्थ कार्य और प्रवासी नेटवर्क सूचना और गतिशीलता लागत को कम करते हैं, जिससे डिजिटल कैद और कुशल गतिशीलता जैसे प्रवासन के नए रूप संभव हो पाते हैं।
    • उदाहरण: कई देश अब डिजिटल वीजा प्रदान करते हैं, जबकि ऑनलाइन भर्ती प्लेटफॉर्म और प्रवासी नेटवर्क प्रवासन प्रवाह को तेजी से आकार दे रहे हैं।

भारत में विवाह प्रवास

जहाँ वैश्विक प्रवासन के वृत्तांतों में आर्थिक और जलवायु कारक हावी हैं, वहीं भारत के आंतरिक प्रवासन का एक विशिष्ट सामाजिक प्रेरक है- विवाह।

  • महिला प्रवास का सबसे बड़ा कारण: भारत में महिलाओं के प्रवास का सबसे बड़ा कारण विवाह है, जो वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, लगभग 69-70% महिला प्रवास के लिए जिम्मेदार है।
    • भारत के आंतरिक प्रवासियों में लगभग दो-तिहाई (लगभग 66%) महिलाएँ हैं, जिसका मुख्य कारण पितृसत्तात्मक विवाह प्रथा है, जिसमें दुल्हन पति के निवास स्थान पर स्थानांतरित हो जाती है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभुत्व: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) और आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), 2020-21 के आँकड़ों से पता चलता है कि लगभग 87% ग्रामीण महिलाएँ और 71% शहरी महिलाएँ मुख्य रूप से विवाह के कारण प्रवास करती हैं।
    • इस प्रकार का अधिकांश प्रवास ग्रामीण से ग्रामीण क्षेत्रों में होता है, इसके बाद ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में प्रवास होता है।
  • अंतरराज्यीय विवाह के उभरते पैटर्न: अंतरराज्यीय विवाह प्रवास (उदाहरण के लिए, बिहार या केरल से हरियाणा या पंजाब में महिलाओं का प्रवास) बढ़ रहा है, जिसका आंशिक कारण लिंग अनुपात में असंतुलन है, हालाँकि अंतरराज्यीय विवाह प्रवास की तुलना में यह अभी भी कम है।
  • पुरुष प्रवासन से तुलना: इसके विपरीत, पुरुष मुख्य रूप से रोजगार के लिए प्रवास करते हैं और लगभग 70-80% पुरुष प्रवासन आर्थिक कारणों से प्रेरित होता है।
    • महिलाओं के प्रवासन को अक्सर सामाजिक या पारिवारिक प्रवासन के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, जिससे गंतव्य क्षेत्रों में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी की गणना व्यवस्थित रूप से कम की जाती है।
  • विकासात्मक और सामाजिक महत्त्व: विवाह प्रवासन सामाजिक गतिशीलता, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और परिवार एवं रिश्तेदारी नेटवर्क के विस्तार को सुगम बनाता है।
    • ये वास्तविक अनुभव अनुकूलन और लचीलेपन की रोजमर्रा की कहानियों को दर्शाते हैं, जो अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस 2025 के विषय: ‘मेरी महान कहानी: संस्कृति और विकास’ से निकटता से मेल खाते हैं।
  • प्रमुख कमजोरियाँ और जोखिम: विवाह प्रवासी महिलाओं को अक्सर सीमित निर्णय लेने की शक्ति, सामाजिक अलगाव, घरेलू हिंसा और मानव तस्करी के जोखिम का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में, जहाँ दुल्हन की खरीद-फरोख्त होती है।
    • कई महिलाएँ विवाह के बाद अपने पैतृक संपत्ति अधिकारों से भी वंचित हो जाती हैं और शिक्षा या कार्यबल में पुनः प्रवेश करने में बाधाओं का सामना करती हैं।
  • नीतिगत खामियाँ: विदेशी गतिशीलता (सुविधा और कल्याण) विधेयक, 2025 जैसे श्रम-केंद्रित ढाँचों में विवाह-प्रेरित प्रवासन काफी हद तक अनदेखा बना हुआ है।
    • यद्यपि एक राष्ट्र एक राशन कार्ड (ONORC) और ई-श्रम पोर्टल जैसी योजनाएँ कल्याणकारी योजनाओं की सुगमता में सुधार करती हैं, फिर भी पहचान दस्तावेजीकरण, मतदाता पंजीकरण, सामाजिक सुरक्षा तक पहुँच और लिंग-संवेदनशील शहरी नियोजन जैसे क्षेत्रों में लक्षित समर्थन की स्पष्ट आवश्यकता है।

प्रवासन का प्रभाव

आयाम स्रोत क्षेत्रों पर प्रभाव गंतव्य क्षेत्रों पर प्रभाव
आर्थिक प्रभाव

प्रेषण से परिवारों की आय बढ़ती है और गरीबी कम होती है, लेकिन प्रवास की उच्च लागत कर्ज के जाल में फँसने का कारण बन सकती है। भारत को वित्त वर्ष 2025 में लगभग 135 अरब अमेरिकी डॉलर प्राप्त हुए।

श्रम आपूर्ति, विकास को बढ़ावा देती है और स्वास्थ्य सेवा, निर्माण और सेवाओं में कमी को पूरा करती है; प्रवासी जीडीपी में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

श्रम बाजार कुशल क्षेत्रों में प्रतिभा पलायन हो रहा है, लेकिन वापसी प्रवास और प्रवासी निवेश के माध्यम से प्रतिभा लाभ हो रहा है।

प्रवासी कम और उच्च कौशल वाले कर्मचारियों की कमी को पूरा करते हैं; विश्व स्तर पर हर 8 नर्सों में से 1 प्रवासी है (WHO)।

सामाजिक प्रभाव

परिवार का अलगाव और सामाजिक लागतें, लेकिन नए मानदंडों के संपर्क में आने से शिक्षा और लैंगिक समानता के परिणाम बेहतर हो सकते हैं।

सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक गतिशीलता; साथ ही सामाजिक टकराव और विदेशियों के प्रति नफरत का खतरा।

शहरी एवं विकासात्मक प्रभाव

स्रोत क्षेत्रों में ग्रामीण आबादी का पलायन और बढ़ती आयु; प्रेषण से आवास और स्वास्थ्य का वित्तपोषण होता है।

तीव्र शहरीकरण, अनौपचारिक बस्तियों का विकास और आवास, परिवहन और सेवाओं पर बढ़ता दबाव।

राजनीतिक प्रभाव

आंतरिक प्रवासियों का राजनीतिक बहिष्कार; मतदाता पंजीकरण और प्रतिनिधित्व में चुनौतियाँ।

स्वदेशी राजनीति का उदय, आप्रवासन, नागरिकता और कल्याणकारी अधिकारों पर बहस।

मानवाधिकार आयाम

भर्ती के दौरान प्रवासियों को शोषण और मानव तस्करी सहित कई जोखिमों का सामना करना पड़ता है।

प्रवासी अक्सर असुरक्षित काम, कल्याणकारी योजनाओं से वंचित रहने और न्याय तक सीमित पहुँच जैसी समस्याओं का सामना करते हैं।

मैक्रोइकोनॉमिक स्थिरता प्रेषण से विदेशी मुद्रा भंडार और चालू खाता घाटा (CAD) स्थिर होता है।

प्रवासी वृद्धजनित समाजों में आर्थिक लचीलापन और जनसांख्यिकीय स्थिरता को बढ़ाते हैं।

प्रवासन से उत्पन्न चुनौतियाँ और कमजोरियाँ

  • लैंगिक शोषण और देखभाल क्षेत्र के जोखिम: प्रवासी महिलाओं को घरेलू कैद, शोषण और वेतन चोरी का असमान रूप से अधिक जोखिम होता है, विशेष रूप से अनौपचारिक देखभाल और घरेलू क्षेत्रों में।
    • संयुक्त राष्ट्र महिला (2025) के अनुसार, घरेलू कैद की शिकार 87% महिलाएँ और लड़कियां हैं, जो कमजोर श्रम और कानूनी सुरक्षा को दर्शाती हैं।
  • उच्च भर्ती लागत और अनौपचारिक मध्यस्थ: प्रवासन अधिनियम, 1983 के तहत वैधानिक सीमा के बावजूद, प्रवासी श्रमिक, अक्सर अनियमित नेटवर्क के कारण अनुमत भर्ती लागत से चार से पाँच गुना अधिक भुगतान करते हैं, जिससे ऋण बंधन, अपर्याप्त दस्तावेजीकरण और सीमित शिकायत निवारण जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • डिजिटल और संगठित शोषण के रूप: व्हाट्सऐप आधारित धोखाधड़ी सहित डिजिटल भर्ती घोटालों ने आधुनिक समस्याओं के नए रूप उत्पन्न किए हैं, जो प्रवासियों को दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों में साइबर अपराध केंद्रों की ओर आकर्षित करते हैं, जहाँ पारंपरिक श्रम कानून लागू नहीं होते।
  • कौशलहीन होना: प्रवासन चक्र के दौरान कौशल प्राप्त करने के प्रति दृष्टिकोण का अभाव (जिसमें प्रस्थान-पूर्व प्रशिक्षण, विदेश में कौशल का उपयोग और वापसी के बाद पुनर्एकीकरण शामिल हैं) प्रवासियों के विदेशी अनुभव की अनदेखी और कौशलहीनता का कारण बनता है।
  • राजनीतिक, नागरिक और कानूनी बहिष्कार: उच्च गतिशीलता के कारण निवास-आधारित मतदान प्रणालियों की वजह से आंतरिक प्रवासियों का संरचनात्मक मताधिकार हनन होता है; रिमोट वोटिंग मशीन (RVM) पायलट परियोजनाओं के सीमित कार्यान्वयन से लाखों लोग राजनीतिक रूप से अनदेखे रह जाते हैं, जबकि जलवायु प्रवासी अंतरराष्ट्रीय शरणार्थी कानून के तहत औपचारिक सुरक्षा से वंचित रहते हैं।
  • शहरी अनौपचारिकता और नियोजन संबंधी कमियाँ: प्रवासी, भारत की अनौपचारिक शहरी अर्थव्यवस्था को बनाए रखते हैं, फिर भी प्रवासन-संवेदनशील शहरी नियोजन की कमी उन्हें आवास, बुनियादी सेवाओं और सामाजिक सुरक्षा से वंचित रखती है।
    • नीति आयोग इसे क्षमता की कमी के बजाय शासन की विफलता के रूप में पहचानता है।
  • डेटा, निगरानी और शासन संबंधी कमियां: प्रवासन शासन पुराने डेटा, जो आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2020-21 और बहु-संकेतक सर्वेक्षण 2020-21 पर निर्भर है, से ग्रस्त है जबकि अनिवार्य डिजिटल प्लेटफॉर्म, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 के साथ मिलकर, निगरानी, ​​सहमति और जवाबदेही को लेकर चिंताएँ उत्पन्न करते हैं।

अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) के बारे में

  • वर्ष 1951 में स्थापित और वर्ष 2016 से संयुक्त राष्ट्र प्रणाली का हिस्सा, IOM मानवीय, व्यवस्थित और नियमित प्रवासन को बढ़ावा देने वाला प्रमुख अंतर-सरकारी निकाय है।

भारत और अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM)

  • रणनीतिक सदस्यता और वैश्विक संरेखण: भारत वर्ष 2008 में IOM का सदस्य बना, जिससे दुनिया के सबसे बड़े प्रवासी समुदाय के प्रबंधन के लिए इसकी प्रवासन शासन व्यवस्था वैश्विक मानदंडों के अनुरूप हो गई।
  • सुरक्षित प्रवासन के लिए परिचालन सहायता: IOM भारत द्वारा वैश्विक प्रवासन समझौते (GCM) के कार्यान्वयन में सहयोग करता है और विदेश मंत्रालय (MEA) के साथ नैतिक भर्ती, प्रस्थान-पूर्व मार्गदर्शन और प्रवासी समुदाय के कल्याण, विशेष रूप से खाड़ी और यूरोपीय क्षेत्रों में, पर कार्य करता है।
  • डेटा, संकट और पुनर्एकीकरण सहयोग: भारत प्रवासन डेटा प्रणालियों (NSO प्रवासन सर्वेक्षण 2026-27 के लिए समर्थन सहित), संकटकालीन निकासी और संघर्षों या आर्थिक झटकों से प्रभावित प्रवासियों की वापसी और पुनर्एकीकरण पर IOM के साथ साझेदारी करता है।

प्रवासन शासन – अंतरराष्ट्रीय ढाँचे और भारत की नीतिगत प्रतिक्रिया

  • अंतरराष्ट्रीय कानूनी और संस्थागत ढाँचे
    • सुरक्षित, व्यवस्थित और नियमित प्रवासन के लिए वैश्विक समझौता (GCM), 2018: अधिकार-आधारित, सहयोगात्मक प्रवासन शासन को बढ़ावा देने वाला एक गैर-बाध्यकारी अंतर-सरकारी ढाँचा हैं।
    • भारत अंतरराष्ट्रीय प्रवासन समीक्षा मंच (IMRF) में सक्रिय रूप से भाग लेता है, राष्ट्रीय नीतिगत स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए सुरक्षित आवागमन की वकालत करता है।
    • प्रवासी कामगारों के अधिकारों की सुरक्षा पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (1990): यह सम्मेलन प्रवासी कामगारों के अधिकारों के लिए न्यूनतम मानक स्थापित करता है, जिसमें समान व्यवहार और शोषण से सुरक्षा शामिल है। वैश्विक स्तर पर सीमित अनुसमर्थन के बावजूद, यह प्रवासी अधिकारों की वकालत के लिए एक मानक संदर्भ बिंदु बना हुआ है।
      • भारत ने इस सम्मेलन पर न तो हस्ताक्षर किए हैं और न ही इसका अनुसमर्थन किया है।
    • शरणार्थियों और प्रवासियों के स्वास्थ्य पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की वैश्विक कार्य योजना (2023-2030): इसका उद्देश्य प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, मानसिक स्वास्थ्य, मातृ देखभाल और स्वास्थ्य प्रणाली की मजबूती पर जोर देते हुए प्रवासियों को सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) में शामिल करना है।
    • UNHCR संरक्षण ढाँचा: शरणार्थियों पर केंद्रित होने के बावजूद, UNHCR के परिचालन दिशा-निर्देश कार्यकारी और न्यायिक तंत्रों के माध्यम से भारत जैसे गैर-हस्ताक्षरकर्ता राज्यों सहित विस्थापित आबादी के मानवीय संरक्षण को प्रभावित करते हैं।
    • अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के सम्मेलन: C97 (रोजगार के लिए प्रवासन) और C143 (प्रवासी श्रमिक) जैसे सम्मेलन निष्पक्ष भर्ती, समान वेतन और सम्मानजनक कार्य को बढ़ावा देते हैं और वैश्विक श्रम गतिशीलता मानदंडों को आकार देते हैं।
  • भारत की नीति और संस्थागत प्रतिक्रिया
    • कानूनी और संस्थागत सुधार: विदेशी गतिशीलता (सुविधा और कल्याण) विधेयक, 2025, उत्प्रवास अधिनियम, 1983 का स्थान लेता है, जो नियंत्रण-केंद्रित विनियमन से सुविधा और कल्याण-आधारित शासन की ओर एक परिवर्तन का प्रतीक है।
      • इसमें एक विदेशी गतिशीलता और कल्याण परिषद, क्षेत्र-विशिष्ट गतिशीलता ढाँचे और डिजिटल निगरानी का प्रस्ताव है, हालाँकि श्रमिक शिकायत निवारण और भर्तीकर्ताओं की जवाबदेही में अभी भी कमियाँ हैं।
    • द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय संरक्षण: भारत ने कई देशों के साथ द्विपक्षीय श्रम समझौते और सामाजिक सुरक्षा समझौते (SSA) पर हस्ताक्षर किए हैं।
      • इनका उद्देश्य विदेशों में भारतीय प्रवासी श्रमिकों के वेतन, कार्य स्थितियों और सामाजिक सुरक्षा अधिकारों की रक्षा करना है।
    • डिजिटल प्रवासन शासन: विदेश मंत्रालय द्वारा संचालित ई-माइग्रेट 2.0 जैसे प्लेटफॉर्म उत्प्रवासन मंजूरी को स्वचालित करते हैं और भर्ती एजेंटों को विनियमित करते हैं।
      • ये विदेशी श्रमिकों के कल्याण की निगरानी भी करते हैं, जिससे पारदर्शिता में सुधार होता है, लेकिन डेटा सुरक्षा संबंधी चिंताएँ भी उत्पन्न होती हैं।
    • आंतरिक प्रवासियों के लिए कल्याणकारी योजना की सुगमता: ई-श्रम पोर्टल (2021) और ई-श्रम वन-स्टॉप सॉल्यूशन (2024) ने असंगठित श्रमिकों का एक एकीकृत राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार किया है।
      • इसके साथ ही, वन नेशन वन राशन कार्ड (ONORC) 8 करोड़ से अधिक आंतरिक प्रवासियों के लिए राष्ट्रव्यापी खाद्य सुरक्षा सुगमता सुनिश्चित करता है।
    • संकटकालीन प्रतिक्रिया और प्रवासी संरक्षण: वंदे भारत मिशन ने कोविड-19 संकट के दौरान बड़े पैमाने पर निकासी और प्रवासी संरक्षण के लिए भारत की क्षमता का प्रदर्शन किया। इसने विदेशों में निवास करने वाले नागरिकों के प्रति राज्य की जिम्मेदारी के लिए एक मानक स्थापित किया।
    • बीमा और उप-राष्ट्रीय नवाचार: प्रवासी भारतीय बीमा योजना (PBBY) कम कुशल विदेशी श्रमिकों को अनिवार्य बीमा कवरेज प्रदान करती है।
      • केरल के NORKA और ओडिशा के प्रवासी कल्याण बोर्ड जैसी राज्य पहल प्रवासन शासन में संघीय नवाचार को दर्शाती हैं।
    • ये सभी पहलें मिलकर तदर्थ प्रवासन प्रबंधन से संस्थागत और अधिकार-जागरूक शासन की ओर क्रमिक परिवर्तन का संकेत देती हैं, हालाँकि कानूनी निश्चितता, अधिकारों की सुवाह्यता और प्रवर्तन में अभी भी कमियाँ बनी हुई हैं।

अंतरराष्ट्रीय प्रवासी दिवस: संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों और भारतीय संवैधानिक मूल्यों के साथ सामंजस्य

आयाम वैश्विक ढाँचा (संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य) भारतीय संवैधानिक मूल्य
मूल सिद्धांत SDG 10.7 – सुरक्षित, व्यवस्थित और नियमित प्रवासन। अनुच्छेद-14 – कानून के समक्ष समानता।
मानव गरिमा SDG 16 – न्याय तक पहुंच और समावेशी संस्थाएँ अनुच्छेद-21 – गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार।
आर्थिक न्याय SDG 8 –उचित कार्य और श्रम सुरक्षा अनुच्छेद-38 और 39 – सामाजिक और आर्थिक न्याय।
लैंगिक संरक्षण SDG 5– लैंगिक समानता और मानव तस्करी विरोधी उपाय अनुच्छेद-23 – मानव तस्करी और जबरन श्रम पर प्रतिबंध।
स्वास्थ्य एवं कल्याण SDG 3– सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) अनुच्छेद-21– गरिमा के अंग के रूप में स्वास्थ्य का अधिकार।
शहरी समावेशन SDG 11 – समावेशी और टिकाऊ शहर राज्य के नीति निदेशकीय सिद्धांत (DPSP)– कल्याणकारी राज्य।
गतिशीलता अधिकार SDG 10 – असमानताओं में कमी अनुच्छेद 19(1)(d) & (e) – आवागमन और निवास की स्वतंत्रता।
मानक लोकाचार किसी को पीछे न छोड़ें

  • प्रवासन सतत् विकास लक्ष्यों के लिए एक “ट्रिपल-विन” इंजन है, क्योंकि यह प्रवासियों की आय को बढ़ाता है (लक्ष्य 1), मेजबान देशों को श्रम प्रदान करता है, जो मुद्रास्फीति को कम करता है (IMF 2024), और गृह देशों को प्रेषण प्रदान करता है, जो स्वास्थ्य और शिक्षा को वित्तपोषित करता है (लक्ष्य 3 और लक्ष्य 4), जिससे गरीबी में काफी कमी आती है।
वसुधैव कुटुंबकम्- विश्व एक परिवार है।

आगे की राह

  • अधिकार-आधारित प्रवासन शासन की ओर बदलाव: प्रवासन नीति को नियंत्रण से हटाकर अधिकारों, गरिमा और न्याय तक पहुँच पर केंद्रित करना, जिसमें प्रवासियों के लिए कानूनी सहायता और शिकायत निवारण शामिल हैं।
  • कानूनी और भर्ती ढाँचे में सुधार: श्रमिकों के नेतृत्व वाले उपायों को सुनिश्चित करने, भर्तीकर्ताओं की जवाबदेही लागू करने और ऋण बंधन को समाप्त करने के लिए नियोक्ता-भुगतान भर्ती मॉडल अपनाने हेतु विदेश गतिशीलता (सुविधा और कल्याण) विधेयक, 2025 में संशोधन करना।
  • अधिकारों की सुवाह्यता और राजनीतिक समावेशन सुनिश्चित करना: सुबाह्यता को खाद्य सुरक्षा से आगे बढ़ाकर स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक सुरक्षा, शिक्षा और मतदान के अधिकारों तक विस्तारित करें, जिसमें आंतरिक प्रवासियों के लिए दूरस्थ मतदान तंत्र को बढ़ाना शामिल है।
  • अंतरराज्यीय और शहरी प्रवासन शासन को सुदृढ़ करना: वित्तीय और कल्याणकारी जिम्मेदारियों को संरेखित करने के लिए नीति आयोग द्वारा अनुशंसित एक वैधानिक अंतरराज्यीय प्रवासन परिषद की स्थापना करना और प्रवासन-संवेदनशील शहरी नियोजन को बढ़ावा देना।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली गतिशीलता को पहचानना और उसके लिए तैयारी करना: जलवायु प्रवासन के लिए एक राष्ट्रीय ढाँचा विकसित करना, जिसमें पूर्व चेतावनी प्रणाली, आजीविका परिवर्तन और वैश्विक प्रवासन समझौते (GCM) के सिद्धांतों को एकीकृत किया जाए।
  • कौशल, शिक्षा और श्रम बाजार की सुगमता को बढ़ावा देना: कौशलों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता दिलाना, सूचना प्रौद्योगिकी संस्थानों को उन्नत करना और राष्ट्रीय सुगमता तंत्र के माध्यम से प्रवासी बच्चों की शिक्षा की निरंतरता सुनिश्चित करना।
  • मजबूत सुरक्षा उपायों के साथ प्रौद्योगिकी का उपयोग करना: पारदर्शिता और कल्याण के लिए ई-माइग्रेट 2.0 जैसे प्लेटफॉर्मों का लाभ उठाना, साथ ही DPDP अधिनियम, 2023 के तहत डेटा सुरक्षा, सहमति और जवाबदेही को लागू करना।

निष्कर्ष

प्रवासन कोई संकट नहीं है, जिसे ‘नियंत्रित’ किया जा सके, बल्कि यह एक मानवीय यात्रा है, जिसे गरिमापूर्ण ढंग से संचालित किया जाना चाहिए। वसुधैव कुटुंबकम् (विश्व एक परिवार है) के भारतीय आदर्श का सम्मान करते हुए, हमारी नीतियों को केवल श्रम सुविधा प्रदान करने से आगे बढ़कर मानवाधिकारों को सुदृढ़ करने की दिशा में अग्रसर होना चाहिए। प्रत्येक प्रवासी की ‘महान गाथा’ की रक्षा करके, हम यह सुनिश्चित करते हैं कि वैश्विक विकास वास्तव में समावेशी और लचीला बना रहे।

अभ्यास प्रश्न  चर्चा कीजिए कि वैश्वीकरण ने समकालीन अंतरराष्ट्रीय प्रवासन के स्वरूपों को किस प्रकार आकार दिया है और सामाजिक परिवर्तन तथा सांस्कृतिक विविधता पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए। (250 शब्द)

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