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भारत में उच्च शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण

Lokesh Pal December 24, 2025 03:41 42 0

संदर्भ

हाल ही में नीति आयोग ने उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण पर एक नीतिगत संक्षिप्त रिपोर्ट जारी की है, जिसमें विदेश जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में हो रही तीव्र वृद्धि की प्रवृत्ति को पलटने तथा भारत की ‘विश्वगुरु’ संबंधी विरासत को पुनर्स्थापित करने हेतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)-2020 के प्रयोग पर बल दिया गया है।

संबंधित तथ्य

  • विकसित भारत 2047 विजन: परिवर्तित भू-राजनीतिक और ज्ञान संबंधी परिदृश्य में भारत की मानव पूँजी और वैश्विक नेतृत्व क्षमता को आकार देने वाली एक निर्णायक शक्ति के रूप में अंतरराष्ट्रीयकरण की पहचान की गई है।
  • वैश्विक अवसर का द्वार: पारंपरिक ‘ग्लोबल नार्थ’ के शिक्षा केंद्रों के प्रभाव में कमी तथा एशिया के एक नए ज्ञान केंद्र के रूप में उभरने के परिप्रेक्ष्य में, भारत के समक्ष अभूतपूर्व प्रगति का अवसर उपस्थित हुआ है।

नीति आयोग की रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ

  • सभ्यतागत निरंतरता और रणनीतिक परिवर्तन: भारत ऐतिहासिक रूप से एक अंतर्देशीय और समावेशी ज्ञान केंद्र रहा है, जिसका उदाहरण नालंदा और तक्षशिला हैं, जो ‘रेशम मार्ग’ के किनारे स्थित विद्वानों को आकर्षित करते थे।
    • रिपोर्ट वर्तमान बहिर्देशीय, बहिष्करणकारी मॉडल के उपयोग न करने की अनुशंसा करती है।

  • गतिशीलता अंतराल और आर्थिक निहितार्थ: लगभग 13.35 लाख भारतीय छात्र विदेश में अध्ययन करते हैं, जबकि भारत में केवल लगभग 50,000 विदेशी छात्र ही हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिभा पलायन और विदेशी मुद्रा की भारी लागत होती है।
  • डेटा-आधारित लक्ष्य और दीर्घकालिक दृष्टिकोण: वैश्विक बेंचमार्किंग मॉडल और अंतरराष्ट्रीयकरण तीव्रता मॉडल का उपयोग करते हुए, रिपोर्ट में वर्ष 2030 तक लगभग 1-1.5 लाख विदेशी छात्रों के आगमन, वर्ष 2035 तक और अधिक विस्तार तथा वर्ष 2047 तक 7.89-11 लाख अंतरराष्ट्रीय छात्रों के आगमन का अनुमान लगाया गया है, जो विकसित भारत के लक्ष्यों के अनुरूप है और गतिशीलता असंतुलन को दूर करता है।

  • भौगोलिक विविधीकरण अनिवार्य: नेपाल से लगभग 30% छात्रों की भागीदारी भारत की अंतरराष्ट्रीय छात्र संरचना में एकाग्रता जोखिम को उजागर करती है, और अफ्रीका, मध्य एशिया, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा वैश्विक दक्षिण के अन्य देशों की ओर विविधीकरण की आवश्यकता पर बल देती है।
  • घरेलू स्तर पर अंतरराष्ट्रीयकरण प्राथमिकता: विशिष्ट विदेशी छात्रों के समूहों के अलावा, 97% घरेलू छात्रों को लाभ पहुँचाने के लिए भारतीय परिसरों में वैश्विक पाठ्यक्रम, मानक और शैक्षणिक सहयोग को शामिल करने पर जोर देती है।
  • व्यापक नीति संरचना: रणनीति, विनियमन, वित्त, ब्रांडिंग, आउटरीच, पाठ्यक्रम और संस्थागत संस्कृति को शामिल करते हुए, 76 कार्य मार्गों और 125 प्रदर्शन संकेतकों के माध्यम से कार्यान्वित किए जाने वाले 22 नीतिगत अनुशंसाओं का प्रस्ताव करती है।
  • संस्थागत और नियामक नवाचार: “कैंपस-विद-इन-कैंपस” मॉडल के माध्यम से ‘ब्राउनफील्ड’ निवेश दृष्टिकोण की अनुशंसा करती है, जो विदेशी विश्वविद्यालयों को 10-वर्षीय ‘सनसेट क्लॉज’ के तहत भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में संचालित करने की अनुमति देता है, जिससे वैश्विक एकीकरण और स्थानीय स्थिरता के बीच संतुलन बना रहता है।
  • वैश्विक सीख और मानकीकरण: चीन, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया से सीख लेते हुए, जिन्होंने आर्थिक विकास और अकादमिक कूटनीति के लिए अंतरराष्ट्रीय शिक्षा का लाभ उठाया है।

नीति आयोग की रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें

  • समग्र सरकारी शासन: शिक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय द्वारा एक अंतर-मंत्रालयी कार्य बल का गठन करना ताकि नीतिगत सामंजस्य, रणनीतिक समन्वय और त्वरित निर्णय प्रक्रिया सुनिश्चित हो सके।
  • नियामक एवं प्रशासनिक सरलीकरण: विदेशी संस्थानों और छात्रों के लिए अनुमोदन में देरी को कम करने, पारदर्शिता बढ़ाने और पूर्वानुमान में सुधार लाने के लिए एक राष्ट्रीय विदेशी डिग्री समतुल्यता पोर्टल का निर्माण करना और ‘सिंगल विंडो’ डिजिटल मंजूरी की सुविधा प्रदान करना।

  • वीजा एवं आवागमन सुधार: छात्र और शोध वीजा व्यवस्थाओं को तर्कसंगत बनाना ‘विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय’ (FRRO) की प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना और भारत को वैश्विक अध्ययन गंतव्य के रूप में अधिक आकर्षक बनाने के लिए अध्ययन-संबंधी इंटर्नशिप को आरंभ करना।
  • नवीन संस्थागत सहयोग मॉडल: 10 वर्ष की समाप्ति अवधि वाले ‘कैंपस-इन-कैंपस’ ढाँचों को प्रोत्साहित करने के साथ-साथ वैश्विक शिक्षा केंद्रों एवं अपतटीय/तटीय परिसरों/कैंपस की स्थापना का प्रावधान किया गया है, जिससे विदेशी विश्वविद्यालयों के चरणबद्ध, विनियमित एवं संरचित प्रवेश को  संभव किया जा सके।
  • अनुसंधान और वैश्विक सहभागिता के लिए वित्तपोषण: प्रवासी भारतीयों की सशक्त भागीदारी का लाभ प्राप्त करते हुए, अग्रणी अनुसंधान, अंतरराष्ट्रीय छात्रवृत्तियों और वैश्विक सहयोगों को वित्तपोषित करने के लिए ‘भारत विद्या कोष’ (10 अरब अमेरिकी डॉलर) को क्रियान्वित करना।

भारत में उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण के बारे में

  • अवधारणा एवं दर्शन: अंतरराष्ट्रीयकरण में राष्ट्रीय प्राथमिकताओं, सांस्कृतिक अखंडता और ज्ञान संप्रभुता की रक्षा करते हुए शिक्षण, अनुसंधान, शासन और कैंपस लाइफ में वैश्विक दृष्टिकोणों का व्यवस्थित एकीकरण शामिल है।
  • भारत-केंद्रित दृष्टिकोण: भारत सांस्कृतिक मिश्रण के बिना वैश्विक जुड़ाव पर बल देता है, और वैश्विक अकादमिक जगत में भारतीय मूल्यों, दार्शनिक परंपराओं और बौद्धिक विरासत को प्रस्तुत करता है।

  • मुख्य साधन: प्रमुख घटकों में छात्र और संकाय गतिशीलता, डबल डिग्री प्रोग्राम, क्रेडिट-स्थानांतरण प्रणाली, अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान सहयोग और वैश्विक बेंचमार्किंग ढाँचे शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अंतर्गत नीतिगत दिशा-निर्देश: राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 घरेलू स्तर पर अंतरराष्ट्रीयकरण को प्राथमिकता देती है और 97% घरेलू क्षत्रों के लिए वैश्विक अनुभव सुनिश्चित करती है, न कि लाभ को केवल विदेशी छात्रों तक सीमित रखती है।

भारत में उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण हेतु  जिम्मेदार कारक

  • वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था और कार्यबल गतिशीलता: सीमापार श्रम बाजारों और ज्ञान-प्रधान उद्योगों के विस्तार के कारण वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी और प्रतिभावान स्नातकों की आवश्यकता बढ़ रही है, जिससे भारतीय उच्च शिक्षा,  अंतरराष्ट्रीय मानकों की ओर अग्रसर हो रही है।
  • बाह्य दबाव, विदेशी मुद्रा की हानि और प्रतिभाओं का स्थानांतरण: विदेश में उच्च नामांकन के परिणामस्वरूप 2.9 लाख करोड़ रुपये का विदेशी मुद्रा बहिर्वाह (2023-24) हुआ है, जिसके वर्ष 2025 तक 6.2 लाख करोड़ रुपये (GDP का लगभग 2%) तक पहुँचने का अनुमान है। इससे प्रतिभा पलायन के स्थान पर प्रतिभा स्थानांतरण और प्रतिभाओं के बेहतर उपयोग की दिशा में रणनीतिक परिवर्तन की आवश्यकता उत्पन्न होती है।
  • अनुसंधान, नवाचार और ज्ञान नेटवर्क: अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान सहयोग से अनुसंधान की गुणवत्ता, उद्धरण और अग्रणी वित्तपोषण तक पहुँच में वृद्धि होती है, जिससे भारत वैश्विक ज्ञान और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है।
  • सॉफ्ट पॉवर और अकादमिक कूटनीति: उच्च शिक्षा अकादमिक कूटनीति के एक साधन के रूप में कार्य करती है, जो विकासशील और उभरती अर्थव्यवस्थाओं, विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण में, भारत की नेतृत्व भूमिका को मजबूत करती है।
  • जनसांख्यिकीय लाभांश और प्रतिभा प्रतिधारण: प्रतिभाओं के निरंतर पलायन से भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश के क्षीण होने का खतरा है, जिससे कौशल प्रतिधारण, मूल्य सृजन और दीर्घकालिक आर्थिक विकास के लिए भारत में  उच्च शिक्षा का घरेलू स्तर पर अंतरराष्ट्रीयकरण आवश्यक हो जाता है।

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली के अंतरराष्ट्रीयकरण हेतु  रणनीतिक औचित्य

  • वृहद् आर्थिक सहयोग और प्रतिभा की अनिवार्यता: देश से बाहर जाने वाले छात्रों का खर्च, सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लगभग 2% तक पहुँच चुका है, ऐसे में प्रतिभा पलायन को प्रतिभा परिसंचरण में हस्तांतरित करने हेतु अंतरराष्ट्रीयकरण,  एक वित्तीय आवश्यकता है।
    • भारत को वैश्विक शिक्षा केंद्र के रूप में स्थापित करने से वर्ष 2025 तक अनुमानित ₹6.2 लाख करोड़ के पूँजी बहिर्वाह को रोका जा सकता है, सेवाओं के व्यापार घाटे को अधिशेष में बदला जा सकता है, शिक्षा के निर्यात को बढ़ाया जा सकता है, प्रतिभा परिसंचरण को मजबूत किया जा सकता है और आर्थिक अनुकूलन को बढ़ाया जा सकता है।
  • संवैधानिक, मानक और वैश्विक प्रतिबद्धताएँ: अंतरराष्ट्रीयकरण संविधान के अनुच्छेद-51 (अंतरराष्ट्रीय सहयोग) और अनुच्छेद-51A (वैश्विक सद्भाव) को बढ़ावा देता है, साथ ही भारत की उच्च शिक्षा रणनीति को सतत् विकास लक्ष्य 4 (गुणवत्तापूर्ण शिक्षा) और सतत् विकास लक्ष्य 17 (वैश्विक भागीदारी) के साथ संरेखित करता है।
  • संस्थागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता और गुणवत्ता आश्वासन: राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) में अंतरराष्ट्रीयकरण मानकों को एकीकृत करने से भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में वैश्विक बेंचमार्किंग, अनुसंधान सहयोग और संस्थागत उत्कृष्टता को प्रोत्साहन मिलता है।
  • समानता, समावेशन और सामाजिक न्याय: देश में अंतरराष्ट्रीयकरण और लक्षित छात्रवृत्तियाँ यह सुनिश्चित करती हैं कि वैश्विक अनुभव अभिजात्य वर्ग तक सीमित न रहे, जिससे अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अश्वेत जाति का समावेशन किया जा सके और भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली के समावेशी स्वरूप को संरक्षित किया जा सके।
  • अनुसंधान एवं ज्ञान आधारित संप्रभुता: राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में वैश्विक सहयोग को आधार बनाकर, भारत स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास क्षमता को मजबूत करता है, तकनीकी निर्भरता को कम करता है और महत्त्वपूर्ण एवं उभरते ज्ञान क्षेत्रों में रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखता है।
  • शिक्षा को ‘सॉफ्ट पॉवर’ और विश्व बंधु कूटनीति के रूप में उपयोग करना: व्यापक स्तर पर और कम लागत पर विश्व स्तरीय शिक्षा प्रदान करके, भारत वैश्विक दक्षिण (अफ्रीका, मध्य एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया) के लिए शिक्षा तक पहुँच को लोकतांत्रिक बनाता है, स्वयं को “किफायती उत्कृष्टता” प्रदाता के रूप में स्थापित करता है, अकादमिक डिप्लोमेसी (Academic Diplomacy) को मजबूत करता है और G20 तथा उसके अतिरिक्त भी अपने नेतृत्व को सुदृढ़ करता है।

भारत में उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण के सामने आने वाली चुनौतियाँ

  • नियामक एवं शासन व्यवस्था का विखंडन: बहुविध स्वीकृतियाँ, सिगंल विडों सिस्टम का अभाव और शिक्षा का समवर्ती सूची में होना, राज्य की क्षमता में असमानता, नीतिगत असंगति और वैश्विक साझेदारियों में विलंब का कारण बनता है।
    • जहाँ विशिष्ट विदेशी परिसर या कैंपस स्वायत्तता की सुविधा होती हैं, वहाँ नियामक विषमता से दोहरी प्रणाली का खतरा उत्पन्न होता है, जबकि सार्वजनिक राज्य विश्वविद्यालयों की संख्या सीमित होती हैं।
  • समानता एवं सामाजिक न्याय संबंधी चिंताएँ: विदेशी शाखा परिसरों में आरक्षण के लिए संवैधानिक जनादेश का अभाव है, जिससे शैक्षिक अभिजात्यवाद का खतरा बढ़ जाता है और जब तक सुरक्षा उपाय नहीं किए जाते, भारतीय उच्च शिक्षा की समावेशी संरचना कमजोर हो जाती है।
  • गुणवत्ता आश्वासन एवं निगरानी में कमियाँ: मजबूत निगरानी के बिना तीव्र विस्तार से फर्जी डिग्री संस्थानों, प्रतिष्ठा में गिरावट और विदेशी परिसरों एवं सहयोगों के लिए जवाबदेही में कमी का अभाव बढ़ता है।
  • प्रशासनिक एवं गतिशीलता संबंधी अवरोध: छात्र और शोध वीजा में देरी, FRRO प्रक्रियाओं में देरी, अंतरराष्ट्रीय छात्र कार्यालय की असमर्थता और छात्रवृत्ति-प्रवेश समन्वय की कमी, छात्रों के अनुभव और अंतर्देशीय गतिशीलता को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है।
  • बुनियादी ढाँचा और छात्र अनुभव की कमी: अंतरराष्ट्रीय छात्रों के नामांकन में दस गुना वृद्धि को प्रबंधित करने के लिए कई उच्च शिक्षा संस्थानों में पर्याप्त छात्रावास, प्रयोगशालाएँ, भाषा सहायता, आवास, प्लेसमेंट सेवाएँ और सांस्कृतिक एकीकरण तंत्र की कमी है।
  • सांस्कृतिक और शैक्षणिक जोखिम: अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा पर अत्यधिक निर्भरता से स्थानीय भाषाओं और भारतीय ज्ञान प्रणालियों (IKS) की उपेक्षा हो सकती है, जिससे सांस्कृतिक एकरूपता का खतरा पैदा हो सकता है।
  • संकाय के अंतरराष्ट्रीयकरण पर बाधाएँ: अस्थायी वित्तपोषण, दीर्घकालिक रणनीतियों का अभाव और कमजोर संस्थागत समर्थन, संकाय की गतिशीलता और निरंतर अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान सहभागिता को सीमित करते हैं।

उच्च शिक्षा के अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए भारत की बहुआयामी रणनीति

  • रणनीतिक और एकीकृत शासन: भारत ने समग्र सरकारी दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए शिक्षा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय और वित्त मंत्रालय को शामिल करते हुए एक अंतर-मंत्रालयी कार्य बल का प्रस्ताव रखा है।
    • विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025, UGC, AICTE, और NCTE जैसे खंडित नियामकों को प्रतिस्थापित करते हुए, विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान (VBSA) की स्थापना करके NEP-2020 के “सरल लेकिन सख्त” नियामक ढाँचे को क्रियान्वित करता है।

  • नियामक संरचना और श्रेणीबद्ध स्वायत्तता: VBSA एक ऐसी नियामक व्यवस्था प्रस्तुत करता है, जिसमें नियामक, प्रत्यायन और मानक तीनों के लिए अलग-अलग परिषदें हैं, साथ ही एक तकनीक-आधारित ‘सिगंल विडो’ प्रणाली भी है, जो बेहतर प्रदर्शन करने वाले संस्थानों को अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए अधिक स्वायत्तता प्रदान करती है।
  • भारतीय उच्च शिक्षा को वैश्विक संस्थानों के लिए खोलना: UGC विनियम, 2023 शीर्ष 500 वैश्विक विश्वविद्यालयों को भारत में परिसर स्थापित करने की अनुमति देते हैं।
    • इसके साथ ही, ‘कैंपस-विद-इन-कैंपस जैसी नवोन्मेषी संस्थागत प्रणालियाँ भी मौजूद हैं, जिनमें 10 वर्षों का सनसेट क्लॉज है, जो चरणबद्ध और जवाबदेही के साथ विदेशी प्रवेश को संभंव बनाता है।
  • वैश्विक शिक्षा क्षेत्र और प्रमुख परिसर: GIFT सिटी, IFSC एक वैश्विक शिक्षा क्षेत्र के रूप में उभरा है, जहाँ डीकिन विश्वविद्यालय और वोलोंगोंग विश्वविद्यालय के विदेशी परिसर या कैंपस स्थित हैं।
    • साथ ही, भारत ने IIT मद्रास (जैंजीबार) और IIT दिल्ली (अबू धाबी) के माध्यम से विदेशों में अपनी शैक्षणिक उपस्थिति का विस्तार किया है।
  • प्रतिभा गतिशीलता और शैक्षणिक आदान-प्रदान: विश्व बंधु छात्रवृत्ति, विश्व बंधु फैलोशिप, स्टडी इन इंडिया, ICCR छात्रवृत्ति और ग्लोबल इनिशिएटिव ऑफ एकेडमिक नेटवर्क्स (GIAN) जैसी पहलों का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय छात्रों और शिक्षकों को आकर्षित करना तथा सतत् शैक्षणिक जुड़ाव को बढ़ावा देना है।
  • डिजिटल और संस्थागत सशक्तीकरण: ‘स्टडी इन इंडिया’ पोर्टल को प्रवेश, वीजा, छात्रवृत्ति और छात्र सहायता को शामिल करने वाले एक एकीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म में रूपांतरित किया जा रहा है।
    • गुणवत्ता-आधारित विस्तार सुनिश्चित करने के लिए शीर्ष 100 NIRF संस्थानों और राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थानों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीयकरण के प्रयास किए जा रहे हैं।
  • पाठ्यक्रम और ज्ञान संप्रभुता: भारतीय संस्थान भारतीय ज्ञान प्रणालियों (IKS), जिसमें संस्कृति, दर्शन, लोकतंत्र, संघवाद और शासन शामिल हैं, को वैश्विक मानकों के अनुरूप पाठ्यक्रमों में एकीकृत कर रहे हैं, जिससे सांस्कृतिक मिश्रण के बिना वैश्विक प्रासंगिकता सुनिश्चित किया जा सके।
  • वैश्विक अनुसंधान नेतृत्व का वित्तपोषण: प्रस्तावित भारत विद्या कोष (10 अरब अमेरिकी डॉलर) को एक राष्ट्रीय अनुसंधान संप्रभु कोष के रूप में परिकल्पित किया गया है, जो 1:1 मॉडल पर आधारित होगा, जिसके अंतर्गत 3.5 करोड़ प्रवासी भारतीयों एवं कल्याणकारी संस्थाओं के योगदान को केंद्र सरकार द्वारा समतुल्य अनुपात किया जाएगा।
  • दक्षिण-दक्षिण शैक्षणिक संरचना: प्रस्तावित टैगोर शैक्षणिक गतिशीलता ढाँचा, इरास्मस+ का एक वैश्विक दक्षिण विकल्प है, जो आसियान, बिम्सटेक और ब्रिक्स के लिए एक बहुपक्षीय ऋण-मान्यता प्रणाली की परिकल्पना करता है, जो भारत को उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक प्रमुख ज्ञान प्रदाता के रूप में स्थापित करता है।

आगे की राह

  • रणनीतिक कार्यान्वयन ढाँचा: नीति आयोग (2025) ने राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीयकरण रणनीति (NEP-2020) के अंतर्गत संस्थागत जवाबदेही, समर्पित निधि और परिणाम-आधारित निगरानी द्वारा समर्थित एक चरणबद्ध, समयबद्ध रोडमैप की सिफारिश की है, ताकि एक सुसंगत राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीयकरण रणनीति को क्रियान्वित किया जा सके।
  • भाषायी और डिजिटल समावेशन: वैश्विक अंग्रेजी मानकों को बनाए रखते हुए, AI संचालित अनुवाद सहायता के साथ भारतीय भाषाओं में तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा सुनिश्चित करना।
    • राज्य विश्वविद्यालयों में डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना को उन्नत करना, ताकि स्वयं प्लस, हाइब्रिड लर्निंग और वैश्विक विदेशी शिक्षा संस्थानों से 40% तक क्रेडिट हस्तांतरण को सक्षम किया जा सके, जिसमें 97% घरेलू छात्र आधार को प्राथमिकता दी जाए।
  • अल्पकालिक प्राथमिकताएं (0-3 वर्ष): राष्ट्रीय विदेशी डिग्री समतुल्यता पोर्टल लॉन्च करना, छात्र और शोध वीजा तथा विदेशी डिग्री हस्तांतरण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना एवं भारत के वैश्विक आकर्षण को तेजी से बढ़ाने के लिए ट्विनिंग, जॉइंट एंड डबल डिग्री प्रोगाम का विस्तार करना।
  • विधायी एवं नियामकीय परिवर्तन: विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान (VBSA) विधेयक, 2025 का त्वरित कार्यान्वयन, “हल्के लेकिन सख्त” नियामकीय व्यवस्था को लागू करना, जिसमें श्रेणीबद्ध स्वायत्तता पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिससे उच्च प्रदर्शन करने वाले संस्थान पूर्व अनुमोदन के बिना अंतरराष्ट्रीय सहयोग, जॉइंट डिग्री प्रोग्राम और संकाय भर्ती कर सकेंगे।
  • मध्यम अवधि की कार्ययोजना (3-7 वर्ष): इसके अंतर्गत भारत की आन (पूर्व छात्र राजदूत नेटवर्क) को संस्थागत रूप प्रदान करना, वैश्विक छात्रवृत्तियों और संकाय विनिमय कार्यक्रमों का विस्तार करना तथा प्रतिभा पलायन को प्रतिभा परिसंचरण में बदलने के लिए इरास्मस जैसे गतिशीलता आधारित ढाँचों को लागू करना।
  • ‘ग्लोबल साउथ’ संरचना को सक्रिय करना: ‘ग्लोबल साउथ’ में प्रतिभाओं के निर्बाध आवागमन को सुगम बनाने और भारत को क्षेत्रीय ज्ञान केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए टैगोर अकादमिक गतिशीलता ढाँचा (आसियान, बिम्सटेक और ब्रिक्स के लिए एक बहुपक्षीय मान्यता प्रणाली) को कार्यान्वित करना।
  • शिक्षा केंद्र विकास: अनुसंधान, नवाचार, कौशल विकास और उद्योग संबंधों को एकीकृत करते हुए भारत को एक पसंदीदा अध्ययन गंतव्य के रूप में स्थापित करने के लिए क्षेत्रीय तथा वैश्विक शिक्षा केंद्र विकसित करना।
  • दीर्घकालिक परिकल्पना (2047): 1:1 के अनुपात में अनुदान तंत्र का उपयोग करते हुए भारत विद्या कोष (10 अरब अमेरिकी डॉलर) को एक संप्रभु अनुसंधान और शिक्षा कोष के रूप में पूर्णतः कार्यान्वित करना।
    • ‘भारत की आन’ के माध्यम से 3.5 करोड़ प्रवासी भारतीयों को संगठित करना अग्रणी अनुसंधान, वैश्विक छात्रवृत्तियों और अकादमिक नेतृत्व के लिए धन एकत्र करने हेतु महत्त्वपूर्ण होगा।
  • वैश्विक विचार नेतृत्व: भारत को वैश्विक ज्ञान शक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए एक सुदृढ़ गुणवत्ता आश्वासन प्रणाली द्वारा समर्थित, भारत विद्या मंथन को एक वार्षिक वैश्विक शिक्षा और अनुसंधान शिखर सम्मेलन के रूप में संस्थागत रूप प्रदान करना।

निष्कर्ष

वैश्विक स्तर पर सक्रिय लेकिन स्थानीय स्तर पर आधारित प्रणाली, भारतीय विश्वविद्यालयों को अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता के केंद्र में परिवर्तित कर सकती है। ज्ञान संप्रभुता, आर्थिक अनुकूलन और सॉफ्ट पॉवर के लिए उच्च शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण अनिवार्य है। NEP 2020, G20 के परिणामों और समावेशी सुधारों को समन्वित करके, भारत पुनः नालंदा की भावना को पुनर्जीवित कर सकता है और वर्ष 2047 तक एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति के रूप स्थापित हो सकता है।

अभ्यास प्रश्न

‘उच्च शिक्षा का अंतरराष्ट्रीयकरण भारत की विश्व गुरु विरासत को पुनः प्राप्त करने की आकांक्षा की कुंजी है।’ इस कथन का विश्लेषण NEP-2020 में अंतरराष्ट्रीयकरण पर दिए गए बल और नीति आयोग के उच्च शिक्षा सुधारों के रोडमैप के संदर्भ में कीजिए।

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