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भारत में अंतरलिंगी अधिकार

Lokesh Pal December 20, 2025 02:20 51 0

संदर्भ

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका (PIL) को तीन न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया, जो कि अंतरलिंगी व्यक्तियों के अधिकारों की गहन संवैधानिक जाँच की आवश्यकता पर बल देता है।

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के निर्णय पर आधारित कानूनी ढाँचा

  • NALSA की मूलभूत भूमिका: भारत में लैंगिक विविधता को नियंत्रित करने वाला कानूनी ढाँचा मुख्य रूप से वर्ष 2014 के NALSA बनाम भारत संघ मामले के निर्णय से प्रभावित है।
  • लैंगिकता का परस्पर उपयोग: इस निर्णय में ‘सेक्स’ और ‘जेंडर’ को एक दूसरे के पर्यायवाची अवधारणाओं के रूप में माना गया।
  • ‘नॉन-बाइनरी’ पहचानों का समूहीकरण: परिणामस्वरूप, सभी ‘नॉन-बाइनरी’ पहचानों को ‘ट्रांसजेंडर’ या ‘थर्ड जेंडर’ की श्रेणी में रखा गया।

अंतरलिंगी व्यक्तियों (Intersex Persons) के बारे में

  • यौन लक्षणों की प्रकृति: अंतरलिंगी व्यक्ति जननांगों, जननग्रंथि या गुणसूत्र पैटर्न जैसे यौन लक्षणों के साथ पैदा होते हैं, जो पुरुष या महिला शरीर की सामान्य ‘बाइनरी’ धारणाओं के अनुरूप नहीं होते हैं।
  • जैविक विविधता: ये भिन्नताएँ प्राकृतिक जैविक विविधता से उत्पन्न होती हैं और अपने आप में रोग संबंधी नहीं हैं।
  • यौन अभिविन्यास से अंतर: अंतरलिंगी होना यौन अभिविन्यास से असंबंधित है।
  • कानूनी मान्यता: माल्टा, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश अंतरलिंगी व्यक्तियों को कानूनी रूप से मान्यता देते हैं और उन पर बिना सहमति के चिकित्सा, शल्य चिकित्सा पर रोक लगाते हैं।

अंतरलिंगी और उभयलिंगी (ट्रांसजेंडर) के बीच अंतर

  • ट्रांसजेंडर पहचान:ट्रांसजेंडर’ शब्द लैंगिक पहचान से संबंधित है, जो किसी व्यक्ति की आंतरिक आत्म-पहचान होती है।
  • जीवन अनुभव में अंतर: हालाँकि ट्रांसजेंडर व्यक्ति जन्म के समय निर्धारित लिंग से भिन्न लिंग के साथ अपनी पहचान बना सकते हैं, वहीं अंतरलिंगी व्यक्ति ऐसे जैविक लक्षणों के साथ पैदा होते हैं, जो विशेष रूप से पुरुष या महिला नहीं होते हैं।

जनहित याचिका में उल्लिखित प्रमुख मुद्दे

  • याचिकाकर्ता की पहचान: यह जनहित याचिका वर्ष 2024 में राष्ट्रीय उभयलिंगी व्यक्ति परिषद (National Council for Transgender Persons- NCTP) के पहले खुले तौर पर अंतरलिंगी सदस्य गोपी शंकर एम द्वारा दायर की गई थी।
    • राष्ट्रीय उभयलिंगी व्यक्ति परिषद (NCTP) भारत में उभयलिंगी व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए उभयलिंगी व्यक्ति (अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
  • श्रेणी त्रुटि: जनहित याचिका भारतीय कानून में अक्सर अनदेखी की जाने वाली एक मूलभूत भिन्नता को उजागर करती है:-
    • ‘सेक्स’ और ‘जेंडर’ के बीच का अंतर, और उन लोगों के सामने आने वाली शारीरिक और कानूनी अनिश्चितता जो पुरुष या महिला की द्विआधारी श्रेणियों में स्पष्ट रूप से फिट नहीं होते हैं।
  • आवश्यक सुरक्षा का विशिष्ट स्वरूप: इसमें तर्क दिया गया है कि अंतरलिंगी व्यक्तियों को उनकी शारीरिक विशेषताओं के आधार पर सुरक्षा की आवश्यकता होती है, जो स्वयं द्वारा पहचाने गए ‘जेंडर’ से जुड़ी सुरक्षा से भिन्न है।
  • ‘सुधारात्मक’ सर्जरी का संकट: इस जनहित याचिका में अस्पष्ट जननांग वाले शिशुओं पर की जाने वाली लिंग-चयनात्मक या लिंग-निर्धारण सर्जरी की प्रथा को उजागर किया गया है।
    • इन प्रक्रियाओं का उद्देश्य कॉस्मेटिक रूप से शरीर को मानक पुरुष या महिला रूपों के अनुरूप बनाना है।
  • सूचित सहमति का अभाव: ये सुधारात्मक सर्जरी अक्सर बच्चों के सूचित सहमति देने में सक्षम होने से बहुत पहले ही कर ली जाती हैं।
  • सामाजिक दबाव की भूमिका: बच्चों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत करने के दबाव के कारण, माता-पिता और डॉक्टर इस तरह की प्रक्रियाओं का विकल्प चुन सकते हैं।
    • जनहित याचिका में कहा गया है कि ये हस्तक्षेप अपरिवर्तनीय, चिकित्सकीय रूप से अनावश्यक और शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक रूप से हानिकारक हैं।
  • आरोप: इस प्रकार की सर्जरी की व्यापकता पर कोई समेकित राष्ट्रीय डेटा उपलब्ध नहीं है।
    • हालाँकि, जनहित याचिका में आरोप लगाया गया है कि वर्ष 2022 और वर्ष 2023 के दौरान मदुरै के सरकारी राजाजी अस्पताल में 40 अंतरलिंगी नवजात शिशुओं और बच्चों की इस प्रकार की सर्जरी की गई।

न्यायिक और राज्य हस्तक्षेप

  • अरुण कुमार बनाम पंजीकरण महानिरीक्षक (2019): मद्रास उच्च न्यायालय ने अंतरलिंगी शिशुओं और बच्चों पर लैंगिक-चयनात्मक सर्जरी पर प्रभावी रूप से प्रतिबंध लगा दिया।
  • सरकारी आदेश जारी करना: न्यायालय के निर्देश के बाद, तमिलनाडु सरकार ने अगस्त 2019 में एक सरकारी आदेश जारी किया।
    • इस आदेश में जीवन-घातक स्थितियों को छोड़कर अंतरलिंगी शिशुओं एवं बच्चों पर लिंग परिवर्तन सर्जरी पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
    • तमिलनाडु भारत का पहला राज्य बन गया, जिसने अंतरलिंगी नाबालिगों को इस तरह के हस्तक्षेप से कानूनी रूप से सुरक्षा प्रदान की।
  • बाल अधिकार आयोग की सिफारिश: वर्ष 2021 में, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने चिकित्सकीय रूप से अनावश्यक लिंग-चयनात्मक सर्जरी पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्देश: वर्ष 2022 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को इस सिफारिश पर निर्णय लेने का निर्देश दिया। दिल्ली सरकार ने अभी तक इस तरह के प्रतिबंध को लागू नहीं किया है।

भारत में अंतरलिंगी व्यक्तियों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ

  • आधिकारिक जनगणना का अभाव: भारत में अंतरलिंगी आबादी की कोई आधिकारिक गणना नहीं है।
  • मान्यता न देना: अंतरलिंगी व्यक्तियों को आधिकारिक आँकड़ों में कभी भी एक अलग श्रेणी के रूप में मान्यता नहीं दी गई है।
  • जनगणना में गलत वर्गीकरण: वर्ष 2011 की जनगणना में अंतरलिंगी व्यक्तियों को लिंग कॉलम में ‘उभयलिंगी’ श्रेणी के अंतर्गत दर्ज किया गया था।
    • यह ‘सेक्स’ और ‘जेंडर’ के गलत मिश्रण को दर्शाता है।
  • जन्म के समय जबरन गलत पहचान: जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969, पुरुष-महिला के कठोर द्विभाजन का पालन करता है।
    • परिणामस्वरूप, माता-पिता अंतरलिंगी बच्चों को या तो पुरुष अथवा महिला के रूप में पंजीकृत करने के लिए बाध्य हैं।
    • इस तरह की गलत पहचान से स्थायी कानूनी और प्रशासनिक कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं।

केस स्टडी: शांति सुंदराजन

  • पृष्ठभूमि: भारतीय एथलीट शांति सुंदराजन से वर्ष 2006 एशियाई खेलों में प्राप्त रजत पदक लिंग सत्यापन परीक्षण के बाद वापस ले लिया गया था।
  • कानूनी शून्यता: उनका मामला उन व्यक्तियों की समस्या को उजागर करता है, जिनके शरीर मानक जैविक परिभाषाओं के अनुरूप नहीं होते और जिनके अस्तित्व को मान्यता देने वाला कोई कानूनी ढाँचा मौजूद नहीं है।

जनहित याचिका की प्रमुख माँगें

  • विधायी विनियमन: जनहित याचिका की प्रमुख माँग, सरकार को चिकित्सा हस्तक्षेपों को विनियमित करने के लिए एक विधायी तंत्र बनाने का निर्देश देना है, जिससे देशभर में नाबालिगों पर बिना सहमति के लैंगिक निर्धारण सर्जरी पर प्रतिबंध लगाया जा सके।
  • अलग जनगणना: जनगणना में ‘अंतरलिंगी’ को एक अलग श्रेणी के रूप में शामिल करना।
  • पहचान दस्तावेजों में सुधार: इसमें बायोलॉजिकल ‘सेक्स’ और ‘लैंगिक पहचान’ के लिए अलग-अलग कॉलम बनाने की भी माँग की गई है, ताकि व्यक्ति अपनी वास्तविक जीवन की परिस्थितियों को प्रतिबिंबित कर सकें।
  • नियामक आयोग: अंतरलिंगी व्यक्तियों के संरक्षण के लिए एक केंद्रीय नियामक आयोग की स्थापना की माँग की गई।
  • आरक्षण लाभ: यह अंतरलिंगी समुदाय को आरक्षण लाभ प्रदान करने की माँग करता है, उन्हें एक हाशिए पर स्थित वर्ग के रूप में मान्यता देता है. जो ऐतिहासिक रूप से शिक्षा और रोजगार से वंचित रहा है।

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