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आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ

Lokesh Pal June 23, 2025 02:18 14 0

संदर्भ

वैश्विक व्यापार गतिशीलता और आक्रामक विदेशी प्रजातियों (Invasive Alien Species) में वृद्धि के मध्य संबंध पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित किया गया है।

संबंधित तथ्य

  • उच्च आर्थिक लागत: आक्रामक विदेशी प्रजातियों के कारण भारत को 127.3 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है (विश्व स्तर पर दूसरा सबसे अधिक)।

आक्रामक विदेशी प्रजातियों के बारे में

  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WPA), 1972 (संशोधित 2022) के अनुसार, आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ “पशु या पौधे की ऐसी प्रजातियाँ हैं, जो भारतीय मूल से संबंधित नहीं हैं और जिनके आने या फैलने से वन्यजीव अथवा उनके आवास को खतरा हो सकता है या उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।” 
  • CBD के अनुसार आक्रामक विदेशी प्रजातियों की मुख्य विशेषताएँ:
    • आगमन (मानव/प्राकृतिक परिचय के माध्यम से)
    • जीवित रहना (स्थानीय संसाधनों का उपयोग करना)
    • उत्कृष्ट होना (तेजी से प्रजनन, मूल निवासियों का विस्थापन)

आक्रामक विदेशी प्रजातियों से निपटना चुनौतीपूर्ण

  • सीमाओं/बंदरगाहों पर संरोध और स्क्रीनिंग की कमी आकस्मिक परिचय को सक्षम बनाती है।
  • कमजोर ‘पोस्ट-ट्रेड मॉनिटरिंग’: आयात के बाद प्रजातियों का कोई प्रभाव आकलन या वास्तविक समय पर ट्रैकिंग नहीं।
  • डेटा की कमी: भारत में केवल 3% आक्रामक विदेशी प्रजातियों के लिए आर्थिक प्रभावों की मात्रा निर्धारित की गई है।
  • नीति और संस्थागत अंतराल: मंत्रालयों (पर्यावरण, कृषि, मत्स्य पालन, व्यापार) के मध्य विखंडित समन्वय।
  • जलवायु परिवर्तन और व्यापार में बदलाव: नए व्यापार मार्ग, विशेष रूप से समुद्री और हवाई, यात्रा के समय को कम करते हैं तथा प्रजातियों की उत्तरजीविता को बढ़ाते हैं।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम: एडीज एजिप्टी (पीला बुखार मच्छर) जैसी आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ प्रमुख रोग भार के लिए जिम्मेदार हैं।

भारत में IAS के उदाहरण

प्रजातियाँ

प्रभाव

विशाल अफ्रीकी घोंघा फसलों को प्रभावित करता है, परजीवी फैलाता है।
लॅन्टाना कैमरा 

(Lantana camara)

देशी वनस्पतियों को विस्थापित करता है; जैव विविधता को कम करता है (उदाहरणार्थ- कान्हा टाइगर रिजर्व)
अफ्रीकी कैटफिश 

(African Catfish)

राजस्थान के भरतपुर में प्रवासी पक्षियों का शिकार
पार्थेनियम घास 

(Parthenium grass)

गेहूँ के आयात से फैला विषैला पदार्थ (PL-480), अब सर्वव्यापी
तिलापिया (Tilapia) जलीय कृषि के लिए शुरू की गई, अब देशी मीठे पानी की मछलियों से प्रतिस्पर्द्धा में आगे निकल गई
प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा 

(Prosopis juliflora)

भूमि से अधिकतम जल निकासी के चलते भूजल स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

नीतिगत अनुशंसाएँ

  • ‘एक जैव सुरक्षा’ ढाँचा: ‘एक जैव सुरक्षा’ ढाँचा अपनाने का अर्थ है ऐसा दृष्टिकोण अपनाना, जो पारिस्थितिक, मानवीय और आर्थिक स्वास्थ्य से जुड़े सभी पहलुओं को समग्र जैव सुरक्षा नीति निर्माण में एकीकृत करता है।
  • सीमा जैव सुरक्षा बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: सभी प्रवेश बिंदुओं पर निरीक्षण बढ़ाना और आक्रामक प्रजातियों के लिए वास्तविक समय की निगरानी तथा प्रारंभिक पहचान प्रणाली तैनात करना।
  • एक केंद्रीकृत IAS प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना करना: एकीकृत आक्रामक विदेशी प्रजातियों (IAS) के प्रबंधन के लिए पर्यावरण, कृषि, मत्स्यपालन और स्वास्थ्य के बीच अंतर-मंत्रालयी समन्वय की सुविधा प्रदान करना।
  • अनिवार्य जैविक जोखिम आकलन लागू करना: आयात से पहले सख्त जाँच, व्यापार संरोध उपाय और सभी आयातित प्रजातियों के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अनिवार्य करना।
  • IAS डेटाबेस और निगरानी प्रणाली विकसित करना: एक केंद्रीकृत रिपोर्टिंग पोर्टल लागू करना और तटों, नदियों तथा कृषि क्षेत्रों जैसे व्यापार मार्गों से जुड़े पारिस्थितिकी तंत्रों की नियमित निगरानी करना।
  • सार्वजनिक सहभागिता और अनुसंधान पहल को बढ़ावा देना: आक्रामक प्रजातियों एवं शमन रणनीतियों पर शैक्षणिक और अनुसंधान कार्यक्रमों को वित्तपोषित करने के साथ-साथ लोगों तक पहुँच बनाने के कार्यक्रमों एवं प्रशिक्षण को प्रोत्साहित करना।

आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रबंधन के लिए वैश्विक नियामक ढाँचा

  • संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता अभिसमय, 1992: यह पारिस्थितिकी तंत्र, आवासों या प्रजातियों को खतरा पहुँचाने वाली आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रवेश को रोकने, नियंत्रित करने या उन्मूलन करने की आवश्यकता पर जोर देता है।
  • कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा, 2022: इस पर संयुक्त राष्ट्र CBD के तहत सहमति व्यक्त की गई है और इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रवेश तथा स्थापना की दर को न्यूनतम 50% तक कम करना है।
  • प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय, 1979: इसका उद्देश्य प्रवासी प्रजातियों का संरक्षण करना है और इसमें पहले से मौजूद आक्रामक विदेशी प्रजातियों को नियंत्रित या समाप्त करने के उपाय शामिल हैं।
  • वैश्विक आक्रामक प्रजाति कार्यक्रम: यह दुनिया भर में आक्रामक प्रजातियों के मुद्दों को संबोधित करने के लिए अनुसंधान, क्षमता निर्माण और प्रबंधन रणनीतियों का समर्थन करता है।
  • आक्रामक प्रजाति विशेषज्ञ समूह: आक्रामक प्रजातियों पर वैज्ञानिक और नीति विशेषज्ञों का एक वैश्विक नेटवर्क, जो अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के प्रजाति अस्तित्व आयोग (SSC) के तत्त्वावधान में संगठित है।

भारत में आक्रामक विदेशी प्रजातियों के प्रबंधन के लिए नियामक ढाँचा

  • प्लांट क्वारंटीन (भारत में आयात का विनियमन) आदेश, 2003: इसके तहत, देश में पौधों या बीजों के किसी भी आयात की कीटों के संभावित जोखिम के लिए जाँच की जानी चाहिए।
  • वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन (WPA) विधेयक, 2021: यह भारतीय पर्यावरण विधायी व्यवस्था में आक्रामक विदेशी प्रजातियों के लिए एक नियामक ढाँचा प्रदान करता है।
  • जैविक विविधता अधिनियम 2002 और राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण अधिनियम 2002: आक्रामक प्रजातियों के खतरों के प्रबंधन में जैविक विविधता सहायता के संरक्षण के लिए।
  • आक्रामक विदेशी प्रजातियों पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Invasive Alien Species- NAPINVAS): पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा शुरू की गई, जो आक्रामक प्रजातियों की रोकथाम, प्रारंभिक पहचान, नियंत्रण और प्रबंधन पर केंद्रित है।
  • राष्ट्रीय आक्रामक प्रजाति सूचना केंद्र (National Invasive Species Information Center-NISIC): यह भारत में आक्रामक प्रजातियों पर जानकारी और संसाधन प्रदान करता है।

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