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IPCC रिपोर्ट

Lokesh Pal March 20, 2024 05:42 120 0

संदर्भ 

हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी समिति ने अपनी छठी रिपोर्ट जारी की है, जिसमें नए डेटा का समावेश किया गया है।

संबंधित तथ्य 

वर्तमान में IPCC अपने सातवें मूल्यांकन चक्र (AR7) में है।

IPCC मूल्यांकन रिपोर्ट

  • यह जलवायु परिवर्तन के कारणों, संभावित प्रभावों और समाधान के विकल्पों पर प्रकाशित व्यापक मूल्यांकन रिपोर्ट है।

एकीकृत मूल्यांकन मॉडल (IAMs)

  • एकीकृत मूल्यांकन मॉडल (IAMs): यह जटिल मॉडल है, जो जलवायु नीति का मार्गदर्शन करता है तथा ऊर्जा एवं जलवायु प्रणालियों के भविष्य के साथ-साथ अर्थव्यवस्थाओं की निगरानी करता है।
    • IAMs का उद्देश्य जलवायु कार्रवाई के संबंध में उचित दिशा-निर्देश प्रदान करना है।
  • मॉडल के घटक: इसके अंतर्गत GDP वृद्धि के लिए व्यापक आर्थिक मॉडल, उपभोग के अनुमान के लिए ऊर्जा मॉडल, भूमि-उपयोग परिवर्तन के लिए वनस्पति मॉडल (Vegetation Model) और अर्थ-सिस्टम मॉडल शामिल है।

  • IPCC अनुमान लगाता है कि मॉडल के उपयोग के द्वारा पृथ्वी की सतह के तापमान को सीमित करने के लिए क्या करना होगा।
    • ये तरीके एकीकृत मूल्यांकन मॉडल (IAMs) के उपयोग के माध्यम से तैयार किए गए हैं, जो मानव एवं पृथ्वी प्रणालियों का वर्णन करते हैं।
  • IPCC रिपोर्ट में तीन कार्य समूहों की रिपोर्ट शामिल है-
    • भौतिक विज्ञान
    • जलवायु अनुकूलन
    • शमन कारवाई (Mitigation Action)
      • यह रिपोर्ट तीन कार्य समूह रिपोर्टों के निष्कर्षों को समेकित करती है।
      • छठी संकलन रिपोर्ट: इस रिपोर्ट में छठी मूल्यांकन रिपोर्ट (AR6) के मुख्य निष्कर्षों को तीन कार्य समूहों और विशेष रिपोर्टों के साथ संकलन कर दिया गया है।
  • अन्य रिपोर्टें: प्रत्येक रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक-आर्थिक स्थिति को समझने के लिए जलवायु-संबंधित वैज्ञानिक आकलन करती है।

IPCC द्वारा प्रस्तुत भविष्य के उत्सर्जन परिदृश्यों की मुख्य झलक

  • प्रति व्यक्ति GDP असमानता: रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया (जहाँ दुनिया की 60% आबादी निवास करती है) जैसे क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति GDP वैश्विक औसत से कम रहेगी।

जलवायु परिवर्तन हेतु अंतर-सरकारी समिति 

  • परिचय: यह संयुक्त राष्ट्र का निकाय है, जो जलवायु परिवर्तन संबंधी गतिविधियों पर निगरानी रखता है।
  • स्थापना: इसकी स्थापना विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation- WMO) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) द्वारा संयुक्त रूप से वर्ष 1988 में की गई थी।
  • सचिवालय: जिनेवा, स्विट्जरलैंड।
  • इसकी बैठकों का आयोजन विश्व मौसम विज्ञान संगठन के तत्त्वावधान में किया जाता है।
  • सदस्य देश: IPCC में भारत सहित 195 सदस्य देश हैं।
  • मूल्यांकन अध्ययन: यह जलवायु परिवर्तन से संबंधित वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक-आर्थिक स्थिति, इसके प्रभाव, भविष्य के खतरों और जलवायु परिवर्तन की दर को धीमा करने के विकल्पों का अध्ययन करता है।

  • उपभोग असमानताएँ: वैश्विक उत्तर और दक्षिण के देशों में वस्तुओं, सेवाओं और ऊर्जा के उपभोग का दर असमान रहने की संभावना है।
  • शमन का बोझ (Mitigation Load): विकासशील देशों से कार्बन पृथक्करण, कार्बन कैप्चर और भंडारण प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन का भारी बोझ उठाने की उम्मीद की जाती है, जो आर्थिक रूप से संभव नहीं है।
  • भीषण ग्लोबल वार्मिंग: मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप पृथ्वी का औसत सतह तापमान और CO2 सांद्रता में काफी वृद्धि हुई है। जीवाश्म ईंधन का उपयोग GHG (Greenhouse Gas) उत्सर्जन का प्रमुख घटक बना हुआ है।
  • उत्सर्जन में कटौती: तापमान वृद्धि को 1.5ºC तक सीमित रखने के लिए ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में लगातार कमी करनी होगी।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: कार्बन डाइऑक्साइड निष्कासन (Carbon Dioxide Removal- CDR) जैसी प्रौद्योगिकी के माध्यम से उत्सर्जन में कटौती की जा सकती है, किंतु इसका उपयोग सावधानी से किया जाना चाहिए।
  • जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना: जीवाश्म ईंधन के उपयोग को उल्लेखनीय रूप से कम करने तथा जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को समाप्त करने पर जोर दिया गया है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा: वर्ष 2030 तक वनों की कटाई को रोकने के संकल्प को साकार करने हेतु जैव विविधता नीतियों का तत्काल कार्यान्वयन आवश्यक है क्योंकि वन संरक्षण जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद करता है।
  • माँग में परिवर्तन: ऊर्जा की बचत और खान-पान की आदतों में परिवर्तन के माध्यम से उत्सर्जन में महत्त्वपूर्ण कटौती की जा सकती है, इन परिवर्तनों के कारण खासकर परिवहन और कृषि जैसे उच्च उत्सर्जन वाले क्षेत्रों में उत्सर्जन में कमी आएगी।
  • अनुकूलन गतिविधियाँ: विशेष रूप से कमजोर आबादी के बीच बढ़ते जलवायु जोखिमों का सामना करने के लिए जागरूकता बढ़ानी चाहिए। साथ ही एकीकृत जलवायु विकास मार्ग का उपयोग अनुकूलन कार्यों के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • वित्तीय भूमिका: वित्तपोषण में वृद्धि, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से जलवायु कार्रवाई से संबंधित महत्त्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं।

वर्तमान दृष्टिकोण में कमियाँ

  • समस्या: IAMs कम लागत वाले आकलन पर ध्यान केंद्रित करता है, इसलिए राष्ट्र-विशिष्ट क्षमताओं की निगरानी और आकलन में विफल रहा है।
  • कम-से-कम लागत का आकलन: सामान्यतः IAMs उत्सर्जन को कम करने के लिए लागत प्रभावी रणनीतियों का उपयोग करता है। उदहारण के लिए, सौर संयंत्र या वनीकरण परियोजनाओं की शुरुआत, जिसके कार्यान्वयन का आर्थिक बोझ आमतौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में भारत जैसे देशों में कम है।
  • असमान वितरण: विकासशील देशों से कार्बन-विहीन तकनीकों का उपयोग करने और कार्बन के लिए शमन प्रयासों की अपेक्षा की जाती है, जिसके कारण विकास संबंधी मुद्दे प्रभावित होते हैं तथा सामाजिक-आर्थिक असमानता से जूझ रहे क्षेत्रों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
  • दोषपूर्ण दृष्टिकोण: विभिन्न राष्ट्रों के लिए जलवायु बोझ का असमान वितरण न्यायसंगत नहीं है क्योंकि विकसित राष्ट्रों ने कार्बन-उत्सर्जन में बड़ी भूमिका निभाई है, फलस्वरूप यह अंतरराष्ट्रीय समझौतों में निर्धारित साझा लेकिन विभेदित दायित्वों(Shared but Differentiated Obligations) के प्रावधान को कमजोर करता है।
  • समानता की उपेक्षा (Ignoring Equity): यह रिपोर्ट ग्लोबल नॉर्थ के ऐतिहासिक दायित्वों  के साथ-साथ ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) की ऊर्जा माँगों को संबोधित करने में विफल रहा है।

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