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ईरान-इजरायल संघर्ष और भारत के विकल्प

Lokesh Pal April 16, 2024 05:07 290 0

संदर्भ

हाल ही में ईरान ने 200-300 ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइलों से इजरायल पर हवाई हमला किया।

संबंधित तथ्य

  • ये हमले ईरान के अर्द्ध-सैन्य बल ‘ईरानी रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स’ द्वारा इस महीने की शुरुआत में सीरिया में ईरानी वाणिज्य दूतावास को निशाना बनाने वाले इजरायली युद्ध जेट के जवाब में किए गए थे। 
  • ईरान ने इस हमले को ‘ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस’ (Operation True Promise) नाम दिया है।

जायोनीवाद (Zionism) के बारे में

  • यह एक धार्मिक और राजनीतिक विचारधारा है, जो दुनिया भर से हजारों यहूदियों के लिए मध्य-पूर्व में उनकी प्राचीन भूमि के प्रति आस्था से संबंधित है।
  • इसका मुख्य फोकस इजरायल को यहूदी पहचान के केंद्रीय स्थान के रूप में पुनः स्थापित करना है।

  • यह पहली बार है जब ईरान ने प्रत्यक्ष तौर पर इजरायल पर हमला किया है। इससे पहले इजरायल का हमेशा से आरोप रहा है कि ईरान ने अपने प्रॉक्सी आतंकी संगठन हमास, हिजबुल्लाह और हूती विद्रोहियों के माध्यम से हमला कराया है।
  • ईरानी सरकार ने जायोनी शासन (Zionist Regime) से जुड़े सभी जहाजों पर ओमान सागर (Oman Sea) और फारस की खाड़ी (Persian Gulf) में आवाजाही पर प्रतिबंध लगाने की भी घोषणा की।
  • विश्व की प्रतिक्रिया: दुनिया भर के नेताओं ने ईरानी हमले की निंदा की है और आपसी शत्रुता को तत्काल समाप्त करने का आह्वान किया है।

उभरती चिंताएँ: पूर्ण युद्ध की संभावना

  • इजरायल पर निर्भर: यह इस पर निर्भर करता है कि ईरान के इस प्रत्यक्ष हमले का इजरायल किस तरह से जवाब देता है।
    • इजरायल की एक मजबूत प्रतिक्रिया से दोनों देशों को पूरी तरह से युद्ध में जाने का जोखिम है, संभवतः अमेरिका भी इसमें शामिल हो सकता है।

  • अन्य देशों की भागीदारी: अमेरिका और ब्रिटेन की सेनाएँ पहले से ही इस नवीनतम घटनाक्रम में शामिल हैं। उन्होंने जॉर्डन, सीरिया और इराक के ऊपर ईरानी ड्रोन को मार गिराया है।
    • अमेरिकी राष्ट्रपति ने इजरायल की सुरक्षा के प्रति अपने देश की ‘दृढ़’ प्रतिबद्धता की पुनः पुष्टि की है।
    • शक्ति संतुलन पर प्रभाव: यदि संघर्ष बढ़ता है तो समस्या और भी जटिल हो जाएगी क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका का इस संघर्ष में सीधा प्रवेश अपरिहार्य हो जाएगा।
  • संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रिया: संयुक्त राष्ट्र ने ईरान और इजरायल से संयम बरतने का आह्वान किया है, क्योंकि इन देशों के अलावा भी मध्य पूर्व में पूर्ण पैमाने पर प्रत्यक्ष संघर्ष का खतरा बना हुआ है।
    • पिछले दो हफ्तों में आपसी हवाई हमलों के बाद संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक आपातकालीन बैठक में विरोधियों को चेतावनी दी कि वे आगे से हमले करके इस क्षेत्र में तनाव को और न बढ़ावा दें।
    • हालाँकि, ईरान और इजरायल ने एक-दूसरे पर शांति के लिए खतरा होने का आरोप लगाया है।

वैश्विक स्तर पर प्रभाव

  • आर्थिक निहितार्थ
    • तेल की उच्च कीमतें: तत्काल प्रभाव तेल की उच्च कीमतों के रूप में होगा।
      • कच्चा तेल, जो पहले से ही छह महीने के उच्चतम स्तर पर है, इस क्षेत्र में तनाव बढ़ने पर 100 डॉलर प्रति बैरल की सीमा को पार कर सकता है।
    • आपूर्ति-शृंखला में व्यवधान: संपूर्ण युद्ध की स्थिति से आपूर्ति शृंखला में व्यवधान उत्पन्न होगा क्योंकि ईरान ने स्वेज नहर (Suez Canal) को बंद करने की धमकी दी है। 
    • उच्च मुद्रास्फीति का खतरा: जब विकसित देश ब्याज दरों को कम करने पर विचार कर रहे हैं तो युद्ध की यह स्थिति मुद्रास्फीति को बढ़ा देगी। वैश्विक आर्थिक वृद्धि 3.1% से नीचे गिर सकती है, जिसका अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वर्ष 2024 के लिए अनुमान लगाया है।
  • अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिए चुनौती
    • इस टकराव का असर ईरान परमाणु समझौते की वार्ता पर पड़ सकता है, साथ ही, परमाणु समझौता वार्ता पर ईरान द्वारा लिया गया किसी भी तरह का अग्रिम निर्णय इस क्षेत्र में शांति प्रक्रियाओं में बाधा उत्पन्न कर सकता है, क्योंकि इस क्षेत्र से संबंधित देश राजनयिक समाधानों पर राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को प्राथमिकता दे रहे हैं।
  • वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था पर प्रभाव
    • इजरायल के समर्थन में अमेरिका के शामिल होने से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बदलाव आ सकता है, जैसे रूस और चीन ईरान का समर्थन कर सकते हैं।
  • क्षेत्रीय अस्थिरता
    • इजरायल और ईरान दोनों ही इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं और उनके बीच कोई भी तनाव क्षेत्रीय स्थिरता को असंतुलित कर देगा।
    • सीरिया, लेबनान और सऊदी अरब जैसे अन्य देशों के इस व्यापक संघर्ष में शामिल होने की संभावना बढ़ सकती है।

भारत-इजरायल संबंध 

  • वर्ष 1948 में इजरायल के गठन के बाद ईरान इस क्षेत्र के पहले देशों में से एक था जिसने इजरायल को मान्यता दी थी। किंतु वर्ष 1979 के बाद ही उनके राजनयिक संबंध समाप्त हो गए।
  • वर्ष 1979 से पहले के ईरान-इजरायल संबंध: वर्ष 1948 में, अरब देशों के इजरायल के विरोध के कारण पहला अरब-इजरायल युद्ध हुआ। ईरान उस संघर्ष का हिस्सा नहीं था और इजरायल के जीतने के बाद, उसने इस यहूदी राष्ट्र के साथ संबंध स्थापित किए। तुर्किए के बाद ऐसा करने वाला यह दूसरा मुस्लिम बहुल देश था। 
    • पहलवी राजवंश (Pahlavi Dynasty): शाह मोहम्मद रजा पहलवी के अधीन राजवंश ने तब ईरान पर शासन किया था। इसे अमेरिका का समर्थन प्राप्त था, जैसा कि इजरायल को था और दोनों देशों ने एक-दूसरे के साथ संबंध बनाए रखा, अरब राष्ट्रों द्वारा इसके आर्थिक बहिष्कार के बीच ईरान ने भी इजरायल को तेल बेचा। 
  • वर्ष 1979 की क्रांति: वर्ष 1979 की इस्लामी क्रांति में शाह शासन को उखाड़ फेंकने के बाद ईरान में एक धार्मिक राज्य की स्थापना हुई। इजरायल के प्रति शासन का दृष्टिकोण बदल गया और इसे फिलिस्तीनी भूमि पर कब्जा करने वाले देश के रूप में देखा जाने लगा।
    • ईरान ने भी इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की कोशिश की, दो प्रमुख शक्तियों सऊदी अरब और इजरायल को चुनौती दी, ये दोनों अमेरिकी सहयोगी थे।
    • तत्कालीन ईरानी सर्वोच्च नेता ने इजरायल को ‘छोटा शैतान’ (Little Satan) और संयुक्त राज्य अमेरिका को ‘महान शैतान’ (Great Satan) कहा और दोनों देशों को इस क्षेत्र में हस्तक्षेप करने वाले पक्षों के रूप में देखा।
  • मिस्र के साथ ईरान के संबंध: मिस्र के नेता नासिर ने लंबे समय से इस क्षेत्र में ‘पैन-अरबिज्म’ (Pan-Arabism) के विचार का समर्थन किया था, ताकि अरब राष्ट्रों के बीच सांस्कृतिक समानताओं को बड़ी एकजुटता एवं एकता में तब्दील किया जा सके। इसने ईरान (एक गैर-अरब देश) को इसके साथ खड़ा कर दिया।
    • हालाँकि, वर्ष 1970 में नासिर की मृत्यु के साथ, ईरान के मिस्र जैसे देशों के साथ संबंध जटिल हो गए।
    • ईरान-इराक समझौता, 1975: ईरान ने कुर्द-इराकी अलगाववादियों को समर्थन देना बंद कर दिया, शत्रुता कम कर दी और ईरान के लिए इजरायल के रणनीतिक मूल्य को प्रभावित किया।
  • वर्ष 1979 के बाद: हालाँकि इजरायल और ईरान कभी भी सीधे सैन्य टकराव में शामिल नहीं हुए हैं, दोनों ने छद्म और सीमित रणनीतिक हमलों के माध्यम से एक दूसरे को नुकसान पहुँचाने का प्रयास किया है।
    • इजरायल ने समय-समय पर ईरानी परमाणु सुविधाओं पर हमला किया है। वर्ष 2010 की शुरुआत में, इसने परमाणु हथियार विकसित करने से रोकने के लिए कई सुविधाओं और परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बनाया।
  • स्टक्सनेट साइबर हमला (Stuxnet Cyberattack), 2010: माना जाता है कि अमेरिका और इजरायल ने स्टक्सनेट विकसित किया है, जो एक दुर्भावनापूर्ण कंप्यूटर वायरस है, जिसने ईरान की नटान्ज़ परमाणु सुविधा (Natanz Nuclear Facility) को बाधित कर दिया, जो साइबर युद्ध में एक महत्त्वपूर्ण चरण है।
  • यह ‘औद्योगिक मशीनरी पर पहला सार्वजनिक रूप से ज्ञात साइबर हमला’ (first publicly known cyberattack on industrial machinery) था। 
  • ईरान का प्रॉक्सी समर्थन: ईरान को इस क्षेत्र में कई आतंकवादी समूहों को वित्तपोषण और समर्थन देने के लिए जिम्मेदार माना जाता है, जो इजरायल और अमेरिका विरोधी हैं, जैसे- लेबनान में हिजबुल्लाह और गाजा पट्टी में हमास।

दोनों देशों के साथ भारत के संबंध और स्थिति

  • महत्त्वपूर्ण सहयोगी: भारत के सामने एक बहुत चुनौतीपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो गई हैं क्योंकि ईरान-इजरायल दोनों ही भारत के राष्ट्रीय हितों के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।
  • भारत की स्थिति: भारत चाहता है कि दोनों देशों के मध्य ‘तत्काल तनाव कम हो’ और ‘हिंसा से बचे’ और ‘कूटनीतिक रास्ता अपनाएँ’ जो भारत के राष्ट्रीय हित के लिए महत्त्वपूर्ण है।

भारत-ईरान संबंध

  • ऐतिहासिक संबंध: सिंधु घाटी सभ्यता के प्राचीन काल से संबंध और फारस की खाड़ी तथा अरब सागर के माध्यम से दक्षिणी ईरान एवं भारत के तट के बीच व्यापार।
  • राजनीतिक आयाम: 15 मार्च, 1950 को एक मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए गए। तेहरान घोषणा (Tehran Declaration) पर हस्ताक्षर किए गए, जिसमें ‘न्यायसंगत, बहुलवादी और सहकारी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था’ के लिए एक दृष्टिकोण साझा किया गया।
  • भू-रणनीतिक स्थिति: ईरान की अद्वितीय भौगोलिक स्थिति भारत को मध्य एशिया, अफगानिस्तान और यूरेशिया के बाजारों तक पहुँच प्रदान करती है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: ईरान गैस भंडार के मामले में विश्व स्तर पर दूसरे स्थान पर है, जो वर्ष 2030 तक ईंधन विविधीकरण, डीकार्बोनाइजेशन और भारत के ऊर्जा मिश्रण में गैस की हिस्सेदारी का अवसर प्रस्तुत करता है।
  • आर्थिक संबंध: वर्ष 2022 में द्विपक्षीय व्यापार 2.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो वर्ष 2021 से 48% की वृद्धि दर्शाता है।
    • भारतीय निर्यात: चीनी, मानव निर्मित स्टेपल फाइबर, विद्युत मशीनरी और कृत्रिम आभूषण।
    • भारतीय आयात: सूखे मेवे, रसायन और काँच के बर्तन।
    • ईरान ने भारत को उन देशों की सूची में शामिल किया है, जिनके नागरिकों को यात्रा करने के लिए वीजा की आवश्यकता नहीं होगी।

भारत के लिए ईरान का महत्त्व

  • एक पारंपरिक भागीदार: एक पारंपरिक भागीदार होने के नाते, ईरान का हाल के दिनों में महत्त्व बढ़ गया है, जो भविष्य में भी वैध बना रहेगा।
    • इसलिए इस रिश्ते को बढ़ाने और कायम रखने की आवश्यकता है।
  • तेल आपूर्तिकर्ता: ईरान कच्चे तेल के प्रमुख आपूर्तिकर्ताओं में से एक रहा है, जिसे अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण झटका लगा है।
  • आतंकवाद पर साझा चिंता: इसके अलावा, दोनों देशों ने पाकिस्तान और अफगानिस्तान से उत्पन्न होने वाले आतंकवाद पर साझा चिंताएँ व्यक्त की हैं।
  • चाबहार बंदरगाह: ईरान ने भारत के लिए रणनीतिक महत्त्व प्राप्त कर लिया है, जिसमें भारत ईरान, अफगानिस्तान और भारत के बीच त्रिपक्षीय समझौते के हिस्से के रूप में ईरान के चाबहार बंदरगाह का संचालन कर रहा है।
    • यह अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है, क्योंकि पाकिस्तान भारतीय वस्तुओं को भूमि पारगमन से इनकार करता है।

  • लोगों-से-लोगों के बीच और सांस्कृतिक संबंध: भारतीय सांस्कृतिक केंद्र (Indian Cultural Centre) की स्थापना वर्ष 2013 में की गई थी और वर्ष 2018 में इसका नाम बदलकर स्वामी विवेकानंद सांस्कृतिक केंद्र (Swami Vivekananda Cultural Centre) कर दिया गया और भारत ने हाल ही में नई शिक्षा नीति के तहत फारसी को नौ शास्त्रीय भाषाओं में से एक के रूप में शामिल करने का निर्णय लिया। 

भारत-इजरायल संबंध

  • संबंधों की मजबूती: हाल के वर्षों में भारत-इजरायल संबंध काफी मजबूत हुए हैं। नरेंद्र मोदी इजरायल की यात्रा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने और बेंजामिन नेतन्याहू ने दो बार भारत की यात्रा की।
    • हालाँकि, जब वास्तव में इजरायल की स्थापना हुई, तो चार दशकों से अधिक समय तक संबंधों को कांसुलर स्तर पर बनाए रखा और वर्ष 1992 में संबंधों को राजदूत स्तर पर अपग्रेड किया गया।
  • उग्रवाद के शिकार: भारत और इजरायल दोनों इस्लामी चरमपंथी और आतंकवाद से पीड़ित हैं।
  • सहयोग में वृद्धि: भारत और इजरायल के बीच सुरक्षा और खुफिया सहयोग बढ़ने लगा। धीरे-धीरे राजनीतिक और कूटनीतिक संबंध गहरे होते जा रहे हैं।

भारत के लिए इजरायल का महत्त्व

  • सामरिक महत्त्व: भारत का इजरायल के साथ बहुत गहरा रणनीतिक संबंध है, विशेषकर रक्षा और सुरक्षा साझेदारी के संदर्भ में।
    • दोनों पक्षों को उग्रवाद और आतंकवाद के बारे में गहरी चिंता है, क्योंकि दोनों को 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों के दौरान नुकसान उठाना पड़ा था।
    • इजरायल ने संकट के समय में भारत का समर्थन किया, जिसमें वर्ष 1999 में कारगिल युद्ध भी शामिल था।
  • रक्षा महत्त्व: वर्तमान समय में  भारत-इजरायल के संबंध सबसे अच्छे दौर में हैं, जो रक्षा बलों के लिए उच्च-प्रौद्योगिकी उपकरणों के प्रावधान पर विशेष ध्यान देने के साथ कई डोमेन में सक्रिय हैं।
    • अमेरिका, फ्राँस और रूस के साथ इजरायल भी एक प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है।
    • इजरायल ने रक्षा उपकरणों के लिए एक महत्त्वपूर्ण सहयोगी का गठन किया, विशेषकर तब तक जब तक भारत रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी तरीकों से आत्मनिर्भरता हासिल नहीं कर लेता।
      • इसलिए यह आवश्यक है कि इजरायल ईरान के साथ गहन युद्ध में शामिल न हो क्योंकि वह पहले से ही हमास और हिजबुल्लाह से जूझ रहा है।

    • इजरायल भारत के लिए रक्षा उपकरण और खुफिया सहयोग का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत बन गया।
  • हमास के हमले के दौरान भारत का रुख: इस हमले में भारत, इजरायल के साथ एकजुटता से खड़ा रहा है।
  • समूहीकरण पर भारत के रणनीतिक निर्णय
    • अब्राहम समझौते (Abraham Accords) के साथ जुड़ाव: भारत ने अब्राहम समझौते के बाद मध्य पूर्व की भू-राजनीति के पुनर्निर्देशन के मद्देनजर अपनी भूमिका को पुनर्स्थापित किया है।
      • अब्राहम समझौते: ये इजरायल और कई अरब राष्ट्रों के बीच वर्ष 2020 में हस्ताक्षरित समझौतों की एक शृंखला है, जो मध्य पूर्व में राजनयिक संबंधों में एक ऐतिहासिक बदलाव का प्रतीक है।
    • I2U2: ‘I2U2’ (भारत, इजरायल, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका) में शामिल हो गए।
    • IMEC: हाल ही में भारत ने IMEC (भारत-मध्य पूर्व-यूरोप-आर्थिक गलियारा) की घोषणा की।
      • एक भारत-मध्य पूर्वी आर्थिक सहयोग (India-Middle Eastern Economic Co-operation) पहल, जिसका व्यापारिक मार्ग भारत से सऊदी अरब होते हुए इजरायली बंदरगाह हाइफा (Haifa) तक जाएगा। 
  • हाल ही में की गई कार्रवाइयाँ
    • नेविगेशन की स्वतंत्रता: भारत और इजरायल ने बाब-अल-मंडेब जलडमरूमध्य से गुजरने वाले जहाजों के लिए नेविगेशन की स्वतंत्रता पर चर्चा की, जिसे यमन के हूती विद्रोहियों से खतरा था।
      • बाब-अल-मंडेब जलडमरूमध्य भूमध्य सागर और हिंद महासागर को जोड़ता है और मध्य पूर्व, अफ्रीका और यूरोप के साथ भारत के व्यापार के लिए एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
    • ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन (Operation Prosperity Guardian): यह इजरायल जाने वाले अंतरराष्ट्रीय यातायात के खिलाफ हमलों की बढ़ती संख्या का मुकाबला करने के लिए अमेरिका द्वारा शुरू की गई एक बहुराष्ट्रीय सुरक्षा पहल है।
      • गठबंधन में अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, बहरीन, कनाडा, फ्राँस, इटली, नीदरलैंड, नॉर्वे, स्पेन और सेशेल्स शामिल हैं।

भारत के लिए चुनौतियाँ

  • अप्रभावित रहना: भारत के ईरान और इजरायल दोनों के साथ रणनीतिक संबंध हैं और दशकों से, यह दोनों पक्षों के बीच संतुलन बनाने में सक्षम रहा है लेकिन अगर टकराव बढ़ता है तो उसके लिए दुविधापूर्ण स्थिति बनाए रखना मुश्किल होगा।
  • एक परीक्षा की घड़ी: उभरता हुआ इजरायल-ईरान संघर्ष कई क्षेत्रों में भारतीय लचीलेपन का परीक्षण करेगा, चाहे वह राजनीतिक, राजनयिक, आर्थिक या सुरक्षा हो।
  • परिणामों के संबंध में: दोनों देशों के बीच तनाव का भारत पर प्रत्यक्ष और ठोस परिणाम होता है, मुख्य रूप से तीन कारणों (जन समूह, आर्थिक हित और रणनीतिक जरूरतें) से।
    • लोगों पर प्रभाव: इजरायल में लगभग 18,000 भारतीय और ईरान में लगभग 5,000-10,000 भारतीय हैं, लगभग 90 लाख लोग खाड़ी और पश्चिम एशिया क्षेत्र में रह रहे हैं और काम कर रहे हैं। कोई भी संघर्ष जो फैलता है वह इस क्षेत्र में रहने वाले भारतीय समुदाय के लिए खतरा पैदा कर देगा।
      • उदाहरण: भारत ने अपने नागरिकों से इजरायल और ईरान की यात्रा न करने का निर्देश जारी किया है।
    • सामरिक आवश्यकताओं पर प्रभाव: भारत ने प्रमुख अरब देशों, ईरान और इजरायल के साथ रणनीतिक संबंधों में निवेश किया है। भारत इस क्षेत्र में भारत-मध्य-पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे को आगे बढ़ाने के लिए काम कर रहा है, जिसमें भारत के लिए रणनीतिक और आर्थिक लाभ भी हैं।
      • बढ़ता संघर्ष बनी हुई आम सहमति पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
    • आर्थिक हितों पर प्रभाव: यद्यपि रूस से आयात में वृद्धि हुई है, अरब राष्ट्र भारत की दो-तिहाई तेल आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। तेल की ऊँची कीमतें मुद्रास्फीति को बढ़ाएँगी और सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए महत्त्वपूर्ण ब्याज दरों में कटौती में देरी करेगी। माल निर्यात, जो पहले से ही धीमा है और गिर जाएगा।
      • ईरान-इजरायल संघर्ष बढ़ने के कारण सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट आई, जिससे निवेशक जोखिम लेने से बच रहे हैं।

आगे की राह 

  • संवाद आधारित कूटनीतिक समाधान: भारत ने हमेशा यह दृष्टिकोण अपनाया है। भारत को इजरायल के साथ और अधिक जुड़ने की जरूरत है क्योंकि सीरिया के दमिश्क में एक ईरानी परिसर पर इजरायली हमले के परिणामस्वरूप ईरानी कार्रवाई शुरू की गई है।
  • सक्रिय भागीदारी: अब यह इजरायल की जिम्मेदारी है कि वह ईरान द्वारा शुरू किए गए शुरुआती ड्रोन हमलों को झेले और तब तक संयम बरते जब तक कि ईरान इसे और आगे न बढ़ा दे। यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस संघर्ष पर काबू पाया जाए, भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका, ईरान, रूस और इजरायल के साथ सक्रिय रूप से जुड़ना चाहिए।
    • भारत को हर संभव प्रयास करना होगा ताकि ईरान इजरायल के साथ निरंतर संघर्ष में शामिल न हो क्योंकि इसका मतलब संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ संघर्ष होगा, जो पहले से ही दुनिया के इस क्षेत्र में उभरना शुरू हो गया है।
  • भविष्य की चुनौतियों पर विचार: संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बातचीत आवश्यक है क्योंकि यह रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराइल-हमास युद्ध, लाल सागर में हूती हस्तक्षेप और संभावित ईरान-इजरायल संघर्ष में शामिल है। 
    • इसलिए, अगर चीन ताइवान के एकीकरण या ऐसे अन्य दावों के लिए दक्षिण चीन सागर में संघर्ष बढ़ाता है तो संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करना मुश्किल हो जाएगा।
  • विकास पर ध्यान: भारत को भारत में रक्षा विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित करने के लिए इजरायल के साथ चर्चा करनी होगी जो भारत, इजरायल और अन्य मित्र देशों की आवश्यकताओं को पूरा करेगी। यह इजरायल को अपने रक्षा उद्योग को विकसित करने के लिए अधिक सुरक्षित स्थान प्रदान करेगा।
    • भारत को ईरान में चाबहार बंदरगाह को तेजी से पूरा करना चाहिए, जिसमें पहले ही देरी हो चुकी है। एक बार जब यह पूरा हो जाएगा, चालू हो जाएगा और उपयोग में लाया जाएगा, तो यह ईरान को अपने क्षेत्रीय और विश्व मामलों पर ईरान की राय को आकार देने के लिए अतिरिक्त लाभ प्रदान करेगा।
  • पूर्ण प्रक्रिया निर्धारण: भारत को अपने स्वदेशीकरण अभियान को बढ़ावा देने और नई विश्व व्यवस्था में अपने उभरते दायित्वों के अलावा चीन और पाकिस्तान से खतरे का मुकाबला करने के लिए समग्र रूप से ‘प्रक्रिया निर्धारण’ के साथ आना होगा।

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