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इजरायल-ईरान संघर्ष: भारत के लिए निहितार्थ

Lokesh Pal June 16, 2025 03:17 8 0

संदर्भ

इजरायल ने ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकने के लिए उसके परमाणु प्रतिष्ठानों और मिसाइल ठिकानों को निशाना बनाकर ‘ऑपरेशन राइजिंग लायन’ शुरू किया है।

संबंधित तथ्य

  • इस ऑपरेशन में होसैन सलामी (ईरान के IRGC प्रमुख) और दो शीर्ष परमाणु वैज्ञानिकों की मृत्यु हो गई।
  • इजरायली हमले के बाद ईरान ने ‘ऑपरेशन ट्रू प्रॉमिस 3’ प्रारंभ किया।

ईरान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में

  • IAEA ने चेतावनी दी है कि ईरान अब ‘एकमात्र गैर-परमाणु-हथियार वाला देश है जो ऐसी सामग्री का उत्पादन कर रहा है’, और इसे ‘गंभीर चिंताजनक’ बताया है।
  • IAEA की रिपोर्ट पुष्टि करती है कि ईरान ने तीन स्थानों (लाविसन-शियान; वरामिन; तुर्कजाबाद) पर परमाणु सामग्री और गतिविधियों की घोषणा नहीं की है।
  • ये स्थान 2000 के दशक की शुरुआत तक एक सक्रिय अघोषित परमाणु कार्यक्रम का हिस्सा थे।
  • यह रिपोर्ट संभावित परमाणु समझौते पर चल रही यू.एस.-ईरान वार्ता के बीच आई है।

यूरेनियम संवर्द्धन 

  • यूरेनियम संवर्द्धन प्राकृतिक यूरेनियम में यूरेनियम-235 (U-235) समस्थानिक की सांद्रता बढ़ाने की प्रक्रिया है।
  • यूरेनियम संवर्द्धन यूरेनियम को परमाणु रिएक्टरों में ईंधन के रूप में या उच्च संवर्द्धन स्तर पर परमाणु हथियारों में उपयोग के लिए उपयुक्त बनाने के लिए किया जाता है।
  • प्राकृतिक यूरेनियम संरचना: प्राकृतिक यूरेनियम में अधिकतर U-238 (99.3%) और केवल 0.7% U-235 होता है।
    • U-235 विखंडनीय है, जिसका अर्थ है कि यह परमाणु श्रृंखला अभिक्रिया को बनाए रख सकता है, जबकि U-238 ऐसा नहीं है।
  • संवर्द्धन स्तर
    • कम समृद्ध यूरेनियम (Low-enriched uranium-LEU): 3-5% U-235 (अधिकांश परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों में उपयोग किया जाता है)।
    • हथियार-ग्रेड यूरेनियम: 90% या उससे अधिक U-235 (परमाणु बमों में उपयोग किया जाता है)।
  • अप्रसार संबंधी चिंताएँ: यूरेनियम संवर्द्धन पर कड़ी निगरानी रखी जाती है, क्योंकि इसका उपयोग शांतिपूर्ण (ऊर्जा) और सैन्य (हथियार) दोनों उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।

ईरान-इजरायल संबंध: पृष्ठभूमि और समयरेखा

चरण I: रणनीतिक सहयोग (1948-1979)

  • वर्ष 1948: ईरान ने आधिकारिक तौर पर इजरायल को मान्यता नहीं दी थी, लेकिन अरब-इजरायल युद्धों में शामिल नहीं हुआ था।
  • 1950 का दशक: बेन-गुरियन के ‘पेरिफेरी डाॅक्ट्रिन’ (Periphery Doctrine) के तहत ईरान ने इजरायल के साथ गठबंधन किया एवं अरब शत्रुता का मुकाबला करने के लिए गैर-अरब राष्ट्रों (ईरान, तुर्किए, इथियोपिया) के साथ भी गठबंधन किया।

  • वर्ष 1958: ‘ट्राइडेंट’ खुफिया संधि (ईरान-इजरायल-तुर्किए) का गठन; बाथिस्ट इराक के खिलाफ संयुक्त अभियान।
  • वर्ष 1967 के बाद का युद्ध: इस्लामी जगत में बढ़ती आलोचना के बावजूद, ईरान के शाह ने इजरायल के साथ संबंध बनाए रखे।
  • 1970 का दशक: गुप्त ऊर्जा और सैन्य सहयोग चरम पर था:-
    • तेल पाइपलाइन परियोजनाएँ (इलाट-अश्कलोन)।
    • प्रोजेक्ट फ्लावर: संयुक्त मिसाइल अनुसंधान एवं विकास पहल।
    • हथियारों की बिक्री और इजरायली तकनीकी सहायता में वृद्धि हुई।

चरण II: वैचारिक संघर्ष (वर्ष 1979 के बाद)

  • वर्ष 1979 की इस्लामी क्रांति: ईरान में शाह मोहम्मद रजा पहलवी को सत्ता से हटा दिया गया और अयातुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में इस्लामी गणतंत्र ईरान की स्थापना की गई।
    • ईरान ने इजरायल के साथ सभी संबंध समाप्त कर दिए और तेहरान में अपना दूतावास फिलिस्तीन लिबरेशन संगठन (PLO) को सौंप दिया।
    • इजरायल को ‘लिटिल सटन’ (Little Satan) और अमेरिका को ‘ग्रेट सटन’ (Great Satan) करार दिया गया।
  • 1980 का दशक: विरोधाभासी संबंध: शत्रुता के बावजूद, इजरायल ने ईरान-इराक युद्ध के दौरान ईरान को हथियार दिए।
  • ईरान-कॉन्ट्रा मामला (1985-86): बंधकों के लिए अमेरिका-इजरायल-ईरान के बीच गुप्त हथियार समझौता हुआ।
    • दोनों देशों ने सद्दाम हुसैन का विरोध किया और इराक को एक बड़ा खतरा माना।

चरण III: छाया युद्ध (शैडो वॉर) और परमाणु तनाव (1990–2020)

  • ईरान हिजबुल्लाह (लेबनान) और हमास (गाजा) का प्रमुख समर्थक बनकर उभरा, दोनों इजरायल विरोधी उग्रवादी समूह थे।
  • ईरान पर परमाणु हथियार विकसित करने का संदेह था। इजरायल ने इसे अपने अस्तित्व के लिए खतरा माना।
  • साइबर युद्ध का युग: इजरायल और अमेरिका ने ईरान की नतांज सुविधा (वर्ष 2010) पर स्टक्सनेट वायरस लॉन्च किया।
  • गोपनीय ऑपरेशन: कई ईरानी परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या कर दी (उदाहरण के लिए, मोहसेन फखरीजादेह, 2020) गई।

चरण IV: वृद्धि और खुला संघर्ष (वर्ष 2020– वर्ष 2025)

  • वर्ष 2021– वर्ष 2023: छद्म वृद्धि: गाजा संघर्ष के बाद ईरान समर्थित प्रॉक्सियों जैसे हूती और हिज्बुल्लाह ने क्षेत्र में हमले तेज कर दिए।
    • इजरायल ने लेबनान तथा सीरिया में लक्षित हत्याओं के साथ उत्तर दिया।
  • अप्रैल 2024: ईरान ने दमिश्क में अपने वाणिज्य दूतावास पर बमबारी के बाद इजरायल पर 300 ड्रोन और मिसाइलें दागीं।
    • इजरायल ने ईरानी विमान-रोधी प्रणालियों और IRGC सुविधाओं पर हमले करके जवाबी कार्रवाई की।
  • जून 2025: ऑपरेशन राइजिंग लायन
    • इजरायल ने ईरान पर खुलेआम सैन्य हमले किए, जिनमें निम्नलिखित को लक्ष्य बनाया गया:-
      • नतांज परमाणु स्थल
      • IRGC कमांड चेन
      • परमाणु वैज्ञानिक
    • ईरान ने मिसाइल और ड्रोन से जवाबी हमला किया, लेकिन इजरायली सेना के बड़े पैमाने पर हताहत होने की खबर नहीं है।
    • IAEA ने गोपनीय संवर्द्धन के लिए ईरान की निंदा की; ईरान ने NPT से हटने की धमकी दी।

अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के बारे में

  • स्थापना एवं उद्देश्य: परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने और हथियारों के लिए इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए वर्ष 1957 में स्थापित किया गया था।
    • परमाणु अप्रसार के लिए वैश्विक निगरानी संस्था के रूप में कार्य करती है।
  • मुख्यालय: ऑस्ट्रिया के वियना में स्थित है।
  • कुल सदस्य: 180 (15 नवंबर 2024 तक)
    • भारत वर्ष 1957 में अपनी स्थापना के बाद से IAEA का सदस्य रहा है।
  • कार्य
    • परमाणु गतिविधियों की निगरानी के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी समझौतों को लागू करता है।
    • परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के अनुपालन को सत्यापित करने के लिए निरीक्षण करता है।
    • परमाणु सुरक्षा (जैसे- विद्युत् संयंत्र, विकिरण सुरक्षा) के लिए वैश्विक मानक निर्धारित करता है।
    • रेडियोधर्मी सामग्रियों को सुरक्षित करके परमाणु आतंकवाद को रोकने में मदद करता है। 
  • पुरस्कार: परमाणु सैन्य उपयोग को रोकने के प्रयासों के लिए वर्ष 2005 का नोबेल शांति पुरस्कार जीता।
  • प्रमुख संधियाँ: अप्रसार संधि (NPT) और व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि (CTBT)।

अप्रसार संधि (Non-Proliferation Treaty- NPT)

  • यह एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसका उद्देश्य है:-
    • परमाणु हथियारों और हथियार प्रौद्योगिकी के प्रसार को रोकना।
    • परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना।
    • वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण को आगे बढ़ाना।
  • NPT पर हस्ताक्षर वर्ष 1968 में किए गए थे और यह वर्ष 1970 में लागू हुआ।
  • NPT पाँच आधिकारिक परमाणु हथियार संपन्न देशों को मान्यता देता है: संयुक्त राज्य अमेरिका; रूस (पूर्व में USSR); यूनाइटेड किंगडम; फ्राँस; चीन।
    • इन देशों ने 1 जनवरी 1967 से पहले परमाणु हथियार निर्मित किए और उनका परीक्षण किया था।
  • भारत, पाकिस्तान और इजरायल ने कभी भी इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए और उनके पास परमाणु हथियार हैं।
  • उत्तर कोरिया वर्ष 2003 में NTP से हट गया और कथित तौर पर उसने परमाणु हथियार विकसित कर लिए हैं।

इजरायल ने ईरान पर हमला क्यों किया?

  • ईरान को परमाणु हथियार प्राप्त करने से रोकना
    • अस्तित्वगत खतरा: ईरान की बार-बार की धमकियों (जैसे- ‘इजरायल को नक्शे से मिटा देना’) को देखते हुए, इजरायल परमाणु-सशस्त्र ईरान को अस्तित्वगत खतरे के रूप में देखता है।
    • संवर्द्धन में वृद्धि: ईरान ने यूरेनियम को 60% शुद्धता (हथियार-ग्रेड 90% के करीब) तक समृद्ध किया था।
    • कूटनीति की विफलता: ईरान द्वारा संवर्द्धन रोकने से इनकार करने के कारण अमेरिका-ईरान वार्ता (ओमान द्वारा मध्यस्थता) रुकी हुई है।
  • ईरान की कमजोर क्षेत्रीय स्थिति का लाभ उठाना
    • प्रॉक्सी युद्ध: इजरायल के गाजा युद्ध (वर्ष 2023-25) और सीरिया के शासन के पतन (वर्ष 2024) के बाद ईरान के सहयोगी (हमास, हिजबुल्लाह, हूति) कमजोर हो गए।
    • कम होती हुई प्रतिरोधक क्षमता: अक्टूबर 2024 में इजरायली हमलों ने ईरान की हवाई सुरक्षा को कमजोर कर दिया।
      • IRGC/Quds फोर्स के नेताओं की हत्याओं से ईरान की जवाबी कार्रवाई की क्षमता कम हो गई।
  • तात्कालिक कारण: IAEA का गैर-अनुपालन समाधान
    • 12 जून, 2025 को, IAEA बोर्ड ने ईरान को अपने परमाणु सुरक्षा उपायों का उल्लंघन करने वाला घोषित किया, यह 20 वर्षों में ऐसा पहला प्रतिबंध है।
      • प्रस्ताव में ईरान पर तीन स्थलों (लाविसन-शियान, वरामिन, तुर्कजाबाद) पर परमाणु गतिविधियों को छिपाने का आरोप लगाया गया।
    • इजरायल ने इसे ‘स्नैपबैक’ प्रतिबंधों (अक्टूबर 2025 को समाप्त होने वाले) से पहले सैन्य कार्रवाई की शुरुआत के रूप में देखा।
  • इजरायल में घरेलू राजनीति
    • नेतन्याहू का अस्तित्व: भ्रष्टाचार के आरोपों और गठबंधन की अस्थिरता का सामना करते हुए, नेतन्याहू ने इस हमले को इजरायल की सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण बताया।
    • जनता का समर्थन: विपक्षी नेताओं (जैसे- यायर लैपिड) ने हमलों का समर्थन किया, जिससे राजनीतिक उथल-पुथल के बीच इजरायलियों को एकजुट किया गया।
  • व्यापक रणनीतिक लक्ष्य
    • ईरान के परमाणु कार्यक्रम को ध्वस्त करना: वैज्ञानिकों, सेंट्रीफ्यूज और संवर्द्धन स्थलों (नतांज, फोर्डो) को निशाना बनाना।
    • भविष्य के हमलों को रोकना: ईरान के अंदर तक हमला करने की इजरायल की क्षमता को प्रदर्शित करना।
  • क्षेत्रीय एवं रणनीतिक गणना
    • ईरान का प्रॉक्सी नेटवर्क: ईरान ने हिजबुल्लाह, हमास, हूतियों को प्रशिक्षित और सशस्त्र किया है, जो सभी इजरायल के खिलाफ सक्रिय हैं।
    • अमेरिकी संयम का पतन: अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की चेतावनी के बावजूद कि वे तनाव को बढ़ने से रोकने, उन्होंने बाद में इजरायल का समर्थन किया और ईरान को चेतावनी दी कि ‘कुछ भी न बचे, उससे पहले ही समझौता कर लें’।
    • गोपनीय युद्ध से प्रत्यक्ष युद्ध की ओर परिवर्तन: पिछले अभियानों (स्टक्सनेट, हत्याएँ) के विपरीत, यह एक खुला सैन्य अभियान था, जो सैद्धांतिक वृद्धि का संकेत देता है।

हिज्बुल्लाह के बारे में

  • हिज्बुल्लाह, जिसका अर्थ है ‘अल्लाह की पार्टी’, लेबनान में स्थित एक शिया इस्लामी आतंकवादी संगठन है।
  • नृजातीय और धार्मिक तनावों के बीच लेबनानी गृहयुद्ध (वर्ष 1975- वर्ष 1990) के दौरान स्थापित किया गया।
  • ईरानी इस्लामी क्रांति (वर्ष 1979) से प्रेरित और ईरान के धन एवं प्रशिक्षण द्वारा समर्थित है।
  • मुख्य लक्ष्यों में इजरायल का विरोध, पश्चिम एशिया में पश्चिमी प्रभाव और गृहयुद्ध के दौरान सीरियाई सरकार का समर्थन करना शामिल है।

हमास के बारे में

  • यह सबसे बड़ा फिलिस्तीनी उग्रवादी इस्लामी समूह और क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक दल है।
  • गठन: 1980 के दशक के अंत में, इजरायल के अधिकार के विरुद्ध पहले फिलिस्तीनी इंतिफादा (विद्रोह) के दौरान हमास की स्थापना हुई। यह संगठन फिलिस्तीनी ‘मुस्लिम ब्रदरहुड’ से उभरा।

हूतियों के बारे में

  • हूति आंदोलन, जिसे अंसारल्लाह (अल्लाह के समर्थक) के नाम से भी जाना जाता है, यमन गृहयुद्ध का एक पक्ष है जो 1990 के दशक में इसके नेता हुसैन अल-हूति के नेतृत्व में उभरा था।
  • विचारधारा: अल-हूति ने ‘विश्वासी युवा’ नामक धार्मिक पुनरुत्थान आंदोलन शुरू किया, जो शिया इस्लाम के सदियों पुराने उप-संप्रदाय जैदवाद से संबंधित था।
    • अल-हूति के अनुयायियों को ‘हूति’ कहा जाता है।
  • बाह्य प्रभाव: हूति लेबनान के शिया राजनीतिक और सैन्य संगठन हिज्बुल्लाह से बहुत प्रभावित हैं, और उन्होंने संयुक्त राज्य अमेरिका, इजरायल और यहूदियों के खिलाफ अपना आधिकारिक नारा अपनाया।

ईरान पर इजरायल के हमलों के भू-राजनीतिक निहितार्थ

  • पश्चिम एशिया में क्षेत्रीय अस्थिरता का बढ़ना: इजरायल के हमलों से हिज्बुल्लाह (लेबनान) और हूति (यमन) जैसे ईरान द्वारा समर्थित समूह को शामिल करते हुए व्यापक संघर्ष शुरू होने का जोखिम है, जिससे संभावित रूप से बहु-मोर्चा आधारित युद्ध परिदृश्यों को बढ़ावा मिल सकता है।
  • ईरान परमाणु कूटनीति का पतन: हमले IAEA के प्रस्ताव के बाद किए गए, जिसमें ईरान को अपने NPT दायित्वों का पालन न करने की घोषणा की गई। इजरायल ने मस्कट में आगामी परमाणु वार्ता को विफल करते हुए, पहले से ही कार्रवाई की।
    • मस्कट में आयोजित छठे दौर की वार्ता रद्द कर दी गई और ईरान ने NPT से हटने की धमकी दी, जिससे उसके परमाणु कार्यक्रम पर वैश्विक निगरानी समाप्त हो गई।
  • होर्मुज जलडमरूमध्य के माध्यम से वैश्विक तेल आपूर्ति के लिए खतरा: ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को अवरुद्ध करके करके आर्थिक रूप से जवाबी कार्रवाई कर सकता है, जिसके माध्यम से वैश्विक तेल का 20% परिवहित होता है।
    • वर्ष 2019 और वर्ष 2022 में, ईरान समर्थित समूहों ने पहले खाड़ी में तेल टैंकरों को निशाना बनाया था। यदि ऐसा दोबारा होता है तो कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर जा सकती हैं, जिससे वैश्विक मुद्रास्फीति प्रभावित होगी। 
    • ईरान की कुल रिफाइनिंग क्षमता 2.8 मिलियन बैरल प्रति दिन (b/d) है (2.2 मिलियन क्रूड + 0.6 मिलियन कंडेनसेट), मई में 4 मिलियन b/d का उत्पादन हुआ, लेकिन निर्यात 1.5 मिलियन b/d से नीचे गिर सकता है।
  • अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और निवारण ढाँचों का क्षरण: संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों के बाहर इजरायल के एकतरफा हमले परमाणु अप्रसार ढाँचे को चुनौती देते हैं, तथा IAEA, JCPOA और यहाँ तक कि UNSC की भूमिका को भी कमजोर करते हैं।
    • इजरायल के वर्ष 1981 के ओसिराक (इराक) हमले को बिगिन सिद्धांत (Begin Doctrine) द्वारा उचित ठहराया गया था। वर्ष 2025 में, इसने वैश्विक सहमति के बिना नातान्ज के विरुद्ध भी यही तर्क प्रयोग किया।
  • अमेरिकी रणनीतिक अस्पष्टता एवं परिणाम: शुरुआती विरोध के बावजूद, राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान को हमले के बाद धमकियाँ जारी कीं, जिससे अमेरिका का मौन समर्थन और पश्चिम एशिया में गहरी जटिलता संबंधी जोखिम उत्पन्न हो गया।
    • ट्रंप ने ईरान को चेतावनी दी: ‘समझौता करो या कुछ नहीं बचेगा।’ यह कूटनीति से दबाव की ओर बदलाव का संकेत है।
  • मध्यस्थ के रूप में चीन की स्थिति और भूमिका जोखिम में: चीन ने वर्ष 2023 में ईरान-सऊदी शांति समझौते में मध्यस्थता की। लंबे समय तक चलने वाला इजरायल-ईरान युद्ध एक तटस्थ शांति-मध्यस्थ के रूप में इसकी विश्वसनीयता को कमजोर करता है और BRI तेल गलियारों तक पहुँच को बाधित करता है।
    • चीन ईरान का शीर्ष तेल आयातक है; इसका 25% तेल अस्थिर पश्चिम एशियाई समुद्री मार्गों से होकर गुजरता है।
  • प्रॉक्सी नेटवर्क के माध्यम से मल्टी-थिएटर युद्ध का जोखिम: ईरान साइबर हमलों, ड्रोन युद्ध और हत्याओं सहित जवाबी कार्रवाई के लिए निष्क्रिय मोर्चों को सक्रिय कर सकता है, जिससे यह क्षेत्र कम तीव्रता वाले संघर्षों में बदल सकता है।
    • वर्ष 2021 से वर्ष 2023 के बीच इजरायल-हमास-हिज्बुल्लाह गतिरोध के परिणामस्वरूप 72 घंटों के भीतर 100 से अधिक रॉकेट हमले हुए, जबकि कोई प्रत्यक्ष युद्ध नहीं था।

इजरायल-ईरान संघर्ष में परमाणु आपदा का खतरा

  • ईरान का संवर्द्धन उल्लंघन और NPT का टूटना: ईरान वर्ष 2025 की शुरुआत तक 60% शुद्धता तक यूरेनियम का संवर्द्धन कर रहा था, और IAEA निंदा प्रस्ताव (12 जून, 2025) ने इजरायल के पूर्व-प्रतिरोधी हमले को गति दी।
    • ईरान ने NPT से हटने की धमकी देकर जवाबी कार्रवाई की, जिससे अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा उपायों के बिना परमाणु हथियार विकसित करने का जोखिम बढ़ गया।
  • इजरायल द्वारा ईरान के परमाणु बुनियादी ढाँचे को निशाना बनाना: इजरायल ने नतांज और फोर्डो सहित प्रमुख परमाणु स्थलों पर बमबारी की, दोनों में उन्नत सेंट्रीफ्यूज हैं।
    • इन हमलों से परमाणु दुर्घटनाओं, विकिरण रिसाव और संभावित क्षेत्रीय आपदा का गंभीर जोखिम मौजूद है।
  • स्टक्सनेट और तोड़फोड़ संबंधी जोखिम: स्टक्सनेट (2010) एक अत्याधुनिक साइबर हथियार था, जिसे इजरायल और अमेरिका द्वारा संयुक्त रूप से विकसित और तैनात किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य ईरान के नतांज यूरेनियम संवर्द्धन संयंत्र के सेंट्रीफ्यूजों को निशाना बनाना था।
  • पूर्व-प्रतिरोधक सिद्धांतों की श्रृंखला प्रतिक्रिया: दोनों देश अब पूर्व-प्रतिरोधक सिद्धांतों के तहत कार्य करते हैं: 
    • इजरायल का आरंभ सिद्धांत परमाणु दुश्मनों के खिलाफ पहले हमलों को उचित ठहराता है।
    • ईरान अब हमला होने पर परमाणु हमले के लिए आत्मरक्षा को तर्क देता है।
  • निरोधक संरचना का टूटना: IAEA की विश्वसनीयता का क्षरण, अवरुद्ध कूटनीति और JCPOA जैसी सीमा की अनुपस्थिति का अर्थ है कि कोई सत्यापन या सीमा रेखा नहीं बची हैं, जिससे गलत अनुमान लगाने की संभावना बढ़ जाती है।
  • वैश्विक नतीजे और क्षेत्रीय हथियारों की दौड़: सऊदी अरब, तुर्किए और मिस्र अब परमाणु ईरान या क्षेत्र-व्यापी युद्ध के डर से परमाणु हथियार विकल्पों पर पुनर्विचार कर सकते हैं।
    • एक भी दुर्घटना या विकिरण रिसाव पश्चिम एशिया में चर्नोबिल-स्तर की तबाही का कारण बन सकता है।

भारत के लिए इजरायल का महत्त्व

  • प्रमुख रक्षा साझेदार: इजरायल भारत के शीर्ष तीन हथियार आपूर्तिकर्ताओं में से एक है।
    • प्रमुख निर्यातों में शामिल हैं: SPICE बम, हेरॉन ड्रोन, निगरानी प्रणाली और मिसाइल रक्षा प्रणाली।
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार सहयोगी: मातृभूमि की सुरक्षा, साइबर सुरक्षा और कृषि प्रौद्योगिकियों में मजबूत सहयोग।
    • AI, जल प्रबंधन और इलेक्ट्रॉनिक्स में इजरायल के विशिष्ट नवाचारों को भारतीय प्रणालियों में एकीकृत किया जा रहा है।
  • संतुलित द्विपक्षीय व्यापार: वर्ष 2021- 2022 में रक्षा क्षेत्र को छोड़कर अन्य वस्तुओं में कुल द्विपक्षीय व्यापार $6.35 बिलियन से अधिक था।
    • व्यापार में हीरे, रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स और कृषि उत्पाद शामिल हैं।
  • गोपनीय जानकारी और आतंकवाद विरोधी सहायता: इजरायल भारत को आतंकवाद विरोधी अभियानों, सीमा निगरानी और खुफिया जानकारी जुटाने में महत्त्वपूर्ण सहायता प्रदान करता है।
  • पश्चिम एशिया में रणनीतिक अभिसरण: भारत इजरायल को भारत-अब्राहमिक कूटनीति (भारत-इजरायल-यू.ए.ई.) में भागीदार के रूप में देखता है।
    • ईरान और उसके बाहर क्षेत्रीय अस्थिरता से दोनों को समान खतरे की धारणाएँ हैं।

भारत के लिए ईरान का महत्त्व

  • चाबहार बंदरगाह: रणनीतिक पहुँच बिंदु: ईरान चाबहार बंदरगाह की मेजबानी करता है, जो भारत को पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक सीधी पहुँच प्रदान करता है।
    • भारत ने मई 2024 में 10 वर्षीय चाबहार बंदरगाह संचालन समझौते पर हस्ताक्षर किए, जो भारत के ‘यूरेशियन आउटरीच’ के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • INSTC के माध्यम से कनेक्टिविटी: ईरान अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (North–South Transport Corridor- INSTC) का केंद्र है, जो यूरोप के लिए माल ढुलाई लागत और शिपिंग समय को कम करता है।
    • INSTC को भारत के सबसे महत्त्वाकांक्षी ‘ओवरलैंड यूरेशियन कनेक्टिविटी रूट’ के रूप में वर्णित किया गया है।
  • ऊर्जा सुरक्षा भागीदार (प्रतिबंधों से पहले): ईरान कच्चे तेल का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता था, जो वर्ष 2019 में अमेरिकी प्रतिबंधों द्वारा आयात को बाधित करने तक रुपये-आधारित व्यापार और छूट की पेशकश करता था।
    • यह दर्शाता है कि ऊर्जा संबंधों की बहाली अमेरिका द्वारा द्वितीयक प्रतिबंधों को हटाने पर निर्भर करती है।
  • चीन के लिए रणनीतिक प्रतिसंतुलन: ईरान में भारत की उपस्थिति 25 वर्षीय ईरान-चीन रणनीतिक समझौते के बाद बढ़ते चीनी प्रभाव को संतुलित करती है।
    • चाबहार को ग्वादर से जोड़ने में चीन की रूचि; ईरान के साथ भारत का जुड़ाव इसे रोकने में मदद करता है।
  • इस्लामिक दुनिया में कूटनीतिक लाभ: मतभेदों (जैसे- कश्मीर पर ईरान का रुख) के बावजूद, ईरान इस्लामिक दुनिया में भारत की सभ्यतागत और क्षेत्रीय कूटनीति रणनीति का हिस्सा है।
    • ईरान को ‘भारत की पश्चिम एशियाई कूटनीति में एक सांस्कृतिक पुल’ के रूप में वर्णित किया गया है, जो विशेष रूप से गाजा जैसे संकटों के दौरान उपयोगी है।

अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण व्यापार गलियारे (International North-South Trade Corridor- INSTC) के बारे में

  • INSTC की शुरुआत वर्ष 2000 में रूस, भारत और ईरान द्वारा की गई थी। यह एक मल्टी-मॉडल परिवहन मार्ग है जो हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान के माध्यम से कैस्पियन सागर से जोड़ता है, और रूस में सेंट पीटर्सबर्ग के माध्यम से उत्तरी यूरोप तक जाता है।
  • INSTC में समुद्री मार्ग, रेल संपर्क और सड़क संपर्क शामिल हैं जो भारत में मुंबई को रूस के सेंट पीटर्सबर्ग से जोड़ते हैं, जो चाबहार से होकर गुजरते हैं।
  • सदस्य देश: इसे 13 देशों अर्थात् अजरबैजान, बेलारूस, बुल्गारिया, आर्मेनिया, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ओमान, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्किए और यूक्रेन द्वारा अनुमोदित किया गया है।
  • इस गलियारे की कई शाखाएँ 
    • कैस्पियन सागर के पश्चिमी किनारे पर यह अजरबैजान के माध्यम से रूस को ईरान से जोड़ेगा।
    • पूर्वी शाखा कैस्पियन सागर के पूर्वी तट के साथ समानांतर है और मुख्य गलियारे को तुर्कमेनिस्तान और कजाकिस्तान जैसे मध्य एशियाई देशों के विभिन्न सड़क और रेल नेटवर्क से जोड़ती है।

भारत के लिए निहितार्थ एवं चुनौतियाँ

  • दो प्रतिद्वंद्वियों के बीच तनावपूर्ण रणनीतिक संतुलन: इजरायल के साथ भारत के गहरे रक्षा और प्रौद्योगिकी संबंध (6.5 बिलियन डॉलर से अधिक व्यापार) ईरान (चाबहार बंदरगाह, INSTC) में इसके ऊर्जा और संपर्क हितों के साथ टकराते हैं।
    • खुली शत्रुता भारत को एक कूटनीतिक रूप से कठिन स्थिति में धकेल रही है, जहाँ इजरायल और इस्लामी दुनिया, विशेषकर OIC (इस्लामिक सहयोग संगठन) की आलोचनात्मक निगरानी और NAM (गुटनिरपेक्ष आंदोलन) की बदलती गतिशीलता के बीच, भारत के अलग-थलग पड़ने का जोखिम बढ़ रहा है।
  • चाबहार और INSTC विजन को झटका: क्षेत्रीय अस्थिरता के कारण भारत का 10-वर्षीय चाबहार बंदरगाह संचालन समझौता (मई 2024) खतरे में पड़ सकता है।
    • व्यापक अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC), जो पाकिस्तान को दरकिनार कर मध्य एशिया और रूस तक पहुँचने के लिए आवश्यक है, को सैन्य और सुरक्षा संबंधी जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है।
  • तेल आपूर्ति में व्यवधान और आयात बिल में वृद्धि: होर्मुज जलडमरूमध्य में युद्ध के कारण होने वाला व्यवधान भारत की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
    • 80% से अधिक तेल आयात किए जाने के कारण, कच्चे तेल की कीमत में 10 डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि भी भारत के आयात बिल को 15 बिलियन डॉलर तक बढ़ा सकती है, जिससे मुद्रास्फीति, चालू खाता घाटा की स्थिति और भी खराब हो सकती है।
    • होर्मुज जलडमरूमध्य कतर के LNG निर्यात के लिए एक महत्त्वपूर्ण अवरोध बिंदु है, जो भारत का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है।
  • भारतीय प्रवासियों और व्यापार मार्गों के लिए खतरा: पश्चिम एशिया में भारत के लगभग 9 मिलियन प्रवासी क्षेत्रीय संघर्ष के प्रति संवेदनशील हैं।
    • मिसाइल हमले या नाकेबंदी से धन प्रेषण, शिपिंग लेन बाधित हो सकती है और आपातकालीन निकासी की आवश्यकता हो सकती है, जैसा कि ऑपरेशन कावेरी (2023) और कोविड प्रत्यावर्तन के दौरान देखा गया था।
  • रुपया-रियाल व्यापार और बुनियादी ढाँचे के निवेश में व्यवधान: प्रतिबंध और युद्ध भारत-ईरान के 2.11 बिलियन डॉलर के व्यापार गलियारे को कमजोर कर देंगे और लंबे समय से लंबित रेलवे और बंदरगाह अवसंरचना परियोजनाओं को ठप कर सकते हैं।
    • भारत की गैर-डॉलर तेल खरीद और क्षेत्रीय उपस्थिति बढ़ती अस्थिरता के बीच कम होने का जोखिम है।
  • समझौता पश्चिम एशिया कूटनीति और भू-राजनीतिक भूमिका: इजरायल और इस्लामी दुनिया के बीच एक तटस्थ शांति-दूत के रूप में उभरने की भारत की आकांक्षाओं को गंभीर रूप से नुकसान पहुँच रहा है।
    • भारत-इजरायल-यू.ए.ई धुरी का सुदृढ़ीकरण ईरान को अलग-थलग करेगा, जबकि तटस्थता इजराइल और अमेरिका की नाराजगी का कारण बन सकती है।
  • रक्षा आयात और रणनीतिक मुद्रा को पुनः मापने का दबाव: लंबे समय तक संघर्ष के कारण आपूर्ति श्रृंखला जोखिम हेरॉन ड्रोन कार्यक्रम और LRSAM सिस्टम जैसी भारत-इजरायल सह-विकास परियोजनाओं को बाधित कर सकते हैं।
    • भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत को गति देनी चाहिए और अगर अमेरिका-ईरान दुश्मनी तेज होती है या अगर चीन ग्वादर-चाबहार गलियारों के माध्यम से ईरान में अपनी उपस्थिति को मजबूत करता है, तो पुनर्संरेखण के लिए तैयार रहना चाहिए।

इजरायल-ईरान संघर्ष के बीच भारत के लिए आगे की राह

  • संतुलित, तटस्थ कूटनीतिक रुख अपनाना: भारत को न तो इजरायली हमलों का समर्थन करना चाहिए और न ही ईरानी जवाबी कार्रवाई की निंदा करनी चाहिए, बल्कि तनाव कम करने और सैद्धांतिक तटस्थता बनाए रखने का आह्वान करना चाहिए।
    • भारत ‘किसी भी खेमे के साथ बहुत अधिक निकटता से जुड़ने’ से बचता है और इसके स्थान पर एक बहु-संरेखण रणनीति बनाए रखता है जो कनेक्टिविटी और रक्षा संबंधों दोनों की रक्षा करती है।
  • क्षेत्रीय संवाद के लिए रणनीतिक मंचों का उपयोग करना: भारत को SCO, BRICS, तथा I2U2  (भारत-इजरायल-यूएई–अमेरिका) समूह में अपनी भूमिका का लाभ उठाना चाहिए ताकि एक मध्यस्थ शक्ति के रूप में कार्य किया जा सके और कूटनीतिक समाधान के लिए दबाव डाला जा सके।
    • भारत द्वारा समर्थित ईरान की हाल ही में ब्रिक्स सदस्यता भारत के लिए तेहरान से रचनात्मक रूप से जुड़ने के लिए नए मंच का निर्माण करती है।
  • चाबहार और INSTC परिचालन में तेजी लाना: तनाव के बावजूद, भारत को अपने 10 वर्षीय चाबहार बंदरगाह समझौते के साथ आगे बढ़ना चाहिए और ईरान में अपने आर्थिक पदचिह्न को स्थापित करने के लिए INSTC शिपमेंट में तेजी लानी चाहिए।
    • क्षेत्रीय संकटों के दौरान चाबहार पर परिचालन नियंत्रण बनाए रखना भारत की भू-राजनीतिक विश्वसनीयता को बढ़ाता है।
  • ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाना और छूट के लिए दबाव डालना: भारत को ईरान से सीमित तेल आयात को फिर से शुरू करने के लिए अमेरिका के नेतृत्व वाली प्रतिबंधों में छूट के लिए पैरवी करनी चाहिए, साथ ही साथ निर्भरता को कम करने के लिए आपूर्तिकर्ताओं में विविधता लानी चाहिए।
    • ‘ऊर्जा क्षेत्र की सुरक्षा करने और कच्चे तेल की प्रतिस्पर्द्धी कीमत सुनिश्चित करने’ के लिए रचनात्मक कूटनीति में संलग्न होना।
  • इजरायल के साथ स्वदेशी रक्षा और तकनीकी सहयोग को मजबूत करना: इजरायल के साथ रक्षा क्षेत्र में मिसाइल प्रणालियों (जैसे- बराक-8), ड्रोन और AI का सह-विकास जारी रखना, लेकिन भू-राजनीतिक आपूर्ति जोखिमों को कम करने के लिए उत्पादन को स्थानीयकृत करना।
    • रक्षा अनुसंधान और विकास में आत्मनिर्भरता में सुधार करते हुए तकनीकी साझेदारी का विस्तार करना।
  • निकासी और व्यापार मार्ग संबंधी आकस्मिक योजनाएँ तैयार करना: भारत को पश्चिम एशिया में अपने प्रवासियों के लिए आपातकालीन निकासी प्रोटोकॉल के साथ तैयार रहना चाहिए और खाड़ी में तनाव बढ़ने की स्थिति में वैकल्पिक समुद्री गलियारों की पहले से पहचान करनी चाहिए।
    • ईरानी जवाबी कार्रवाई से खाड़ी शिपिंग मार्ग बाधित हो सकते हैं, जिसके लिए भारत को कच्चे तेल और कंटेनर मार्गों के लिए विकल्प तैयार करने की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष 

इजरायल-ईरान संघर्ष भारत के लिए महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है, जिससे ऊर्जा सुरक्षा, प्रवासी सुरक्षा और चाबहार बंदरगाह जैसे रणनीतिक हितों को खतरा है। भारत को इस अस्थिर भू-राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए एक तटस्थ कूटनीतिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, ऊर्जा स्रोतों में विविधता लानी चाहिए और स्वदेशी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करना चाहिए।

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