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ISRO का वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण के लिए ऑस्ट्रेलियाई सरकार के साथ समझौता

Lokesh Pal June 28, 2024 01:51 125 0

संदर्भ

हाल ही में ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के साथ 18 मिलियन डॉलर के समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किया है।

  • ISRO की वाणिज्यिक शाखा ‘न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड’ के साथ ऑस्ट्रेलियाई कंपनी स्पेस मशीन ने समझौते किया, जिसके तहत वर्ष 2026 में ISRO के SSLV द्वारा एक उपग्रह प्रक्षेपित किया जाएगा।
  • यह सौदा वर्ष 2020 में निजीकरण के बाद से अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत का पहला विदेशी निवेश है।

न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (New Space India Limited- NSIL)

  • इसकी स्थापना वर्ष 2019 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अनुसंधान और विकास कार्यों का व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल करने के लिए अंतरिक्ष विभाग (DOS) के प्रशासनिक नियंत्रण में की गई थी। 
  • इसे केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (CPSE) के रूप में शामिल किया गया है, जिस पर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व है।

भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र की क्षमता

  • भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) ने भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के लिए दशकीय दृष्टिकोण एवं रणनीति पेश की है।
    • IN-SPACe के अनुमान के अनुसार, भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का मूल्य वर्ष 2033 तक 35,200 करोड़ रुपये (44 बिलियन अमेरिकी डॉलर) तक पहुँच सकता है, जिसकी वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी लगभग 8% होगी।
  • वर्तमान स्थिति: भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का मूल्य लगभग 6,700 करोड़ रुपये (8.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर) है, जिसकी वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी 2% है।
    • भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की निर्यात बाजार में हिस्सेदारी मात्र 2,400 करोड़ रुपये (0.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर) है।
  • उद्देश्य: भारतीय अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की घरेलू हिस्सेदारी को 26,400 करोड़ रुपये (33 बिलियन अमेरिकी डॉलर) तक बढ़ाना तथा निर्यात हिस्सेदारी को 88,000 करोड़ रुपये (11 बिलियन अमेरिकी डॉलर) तक बढ़ाना।
  • अगले 10 वर्षों में इस क्षेत्र में 17,600 करोड़ रुपये (22 बिलियन अमेरिकी डॉलर) के निवेश की परिकल्पना की गई है।

IN-SPACe

  • यह अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत स्वायत्त और नोडल एजेंसी के रूप में स्थापित की गई है। 
  • IN-SPACe और ISRO ने अन्य हितधारकों के साथ मिलकर दशकीय रणनीति विकसित की है।

अंतरिक्ष क्षेत्र का निजीकरण

निजीकरण की दिशा में प्रगति-

  • भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023: इस नीति के तहत, भारत में अंतरिक्ष मिशनों के निजीकरण के लिए औपचारिक रूप से कानून बनाए गए तथा ISRO की वाणिज्यिक शाखा (न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड) एवं भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-Space) के संचालन हेतु स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए गए।
    • इसके बाद, निजी स्टार्टअप उपग्रह संचार सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं, ऑन-ग्राउंड मिशन नियंत्रण केंद्र संचालित कर सकते हैं, अपने स्वयं के उपग्रहों को कक्षा में स्थापित कर सकते हैं, निजी स्वामित्व वाली दूरस्थ उपग्रह सेवाएँ व्यावसायिक रूप से स्थापित कर सकते हैं, अंतरिक्ष सुरक्षा परियोजनाएँ शुरू कर सकते हैं तथा साथ ही “क्षुद्रग्रह संसाधन या अंतरिक्ष संसाधन की व्यावसायिक पुनर्प्राप्ति में भी शामिल हो सकते हैं।”
  • भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में विदेशी निवेश की उपस्थिति: भारत सरकार ने संकेत दिया है कि भारत आधिकारिक अनुमोदन के बिना उपग्रह प्रणालियों के निर्माण में 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देगा।
    • वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में अधिक-से-अधिक हिस्सेदारी के उद्देश्य से प्रक्षेपित यानों के लिए कानूनों को आसान बनाया गया।
    • इससे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र को नवीनतम तकनीकी प्रगति और उचित फंड भी प्राप्त होगा। 
  • SSLV का निजीकरण: निजी निवेशकों की पहचान कर ली गई है, लेकिन इस संबंध में अभी अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। इसके बाद, SSLV का निर्माण और संचालन निजी क्षेत्र द्वारा किया जाएगा।

निजीकरण का लाभ 

  • ISRO के कार्य-बोझ को कम करना: निजी भागीदारी, ISRO को विज्ञान, अनुसंधान और विकास, अंतरगृहीय अन्वेषण और रणनीतिक प्रक्षेपणों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने को बढ़ावा देगी।
    • भारत की निजी अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में आज तक 370 मिलियन डॉलर का निवेश हुआ है, जिसमें हैदराबाद स्थित अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान कंपनी स्काईरूट एयरोस्पेस 95 मिलियन डॉलर के साथ सबसे आगे है।
  • अंतरिक्ष अर्थव्यवस्थाओं में प्रगति: रणनीतिक और नागरिक अंतरिक्ष उद्योगों के बीच का अंतर कम हो रहा है। यह हमारी अंतरिक्ष अर्थव्यवस्थाओं की प्रगति में सहायक होगा।
  • नीतिगत ढाँचा और लक्ष्य: डेलॉइट इंडिया की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, निजी क्षेत्र की भागीदारी भारत को वर्ष 2030 तक वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में अपना हिस्सा लगभग 2 प्रतिशत से बढ़ाकर 9 प्रतिशत करने में सहायता करेगी।
    • ‘भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023’ अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी संस्थाओं की भागीदारी को प्राथमिकता देती है।

भारत के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र में चुनौतियाँ

  • आंतरिक/ घरेलू माँग की कमी
    • भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में केंद्र सरकार और उसकी संस्थाओं की ओर से वाणिज्यिक अंतरिक्ष परियोजनाओं की कमी है।
    • यह सौदा वर्ष 2020 में निजीकरण के बाद से अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत का पहला विदेशी निवेश है।

लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (Small Satellite Launch Vehicle- SSLV)

  • यह त्रि चरणीय प्रक्षेपण यान है। इसमें तीन ठोस प्रणोदन चरणों के अलावा अंतिम चरण के रूप में तरल प्रणोदन आधारित वेलोसिटी ट्रिमिंग मॉड्यूल (Velocity Trimming Module- VTM) होता है।
  • SSLV का व्यास 2 मीटर और लंबाई 34 मीटर है तथा इसका भार लगभग 120 टन होता है।
  • SSLV पृथ्वी की 500 किमी. कक्षा में लगभग 500 किलोग्राम का उपग्रह प्रक्षेपित करने में सक्षम है।
  • SSLV की मुख्य विशेषताएँ: कम लागत, कम टर्न-अराउंड समय, कई उपग्रहों को समायोजित करने में सक्षम, माँग के अनुसार प्रक्षेपण, प्रक्षेपण हेतु न्यूनतम अवसंरचना की आवश्यकता आदि।

  • क्षमता निर्माण का अभाव: ISRO के पास LVM3 सबसे भारी रॉकेट है, लेकिन भविष्य की परियोजनाओं जैसे चंद्रमा की कक्षा में पहुँचना और वापस पृथ्वी पर उतरना आदि के लिए अधिक क्षमता और योग्यता वाले रॉकेट्स की आवश्यकता है।
  • बीमा तक पहुँच: इस क्षेत्र में पर्याप्त और सुरक्षित बीमा की भी कमी है। इसे अंतरिक्ष आधारित प्रौद्योगिकियों की विश्वसनीयता को देखने और परखने में बीमाकर्ताओं की अक्षमता के रूप में देखा जा सकता है।
  • आत्मनिर्भर बाजार बनाने की क्षमता: पिछले वर्षों में आत्मनिर्भर वाणिज्यिक बाजार बनाने में असमर्थता अंतरिक्ष आधारित उद्यमों की व्यावसायिक व्यवहार्यता पर सवाल उठाती है।
    • उदाहरण के लिए, दो दशक पहले वाणिज्यिक उपग्रह उद्योग के स्थापित होने के कुछ वर्षों के अंदर स्वतंत्र होने की उम्मीद थी, लेकिन परियोजनाओं को निष्पादन चरण तक पहुँचाने के लिए आज भी सरकारी भागीदारी की आवश्यकता है।

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