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लद्दाख को विशेष दर्जा प्रदान करने से संबंधित मुद्दा

Lokesh Pal October 04, 2024 02:50 30 0

संदर्भ

हाल ही में जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को दिल्ली सीमा पर हिरासत में लिया गया था, क्योंकि वह लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार से माँग के संबंध में प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे थे।

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2019 में अनुच्छेद-370 को निरस्त कर तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य को प्रदत्त विशेष दर्जा निरस्त कर दिया गया और लद्दाख को बिना विधायिका के केंद्रशासित प्रदेश के रूप में स्थापित किया गया।

असममित संघवाद (Asymmetrical Federalism) 

  • परिभाषा: असममित संघवाद से तात्पर्य एक ऐसी प्रणाली से है, जिसमें कुछ राज्यों या क्षेत्रों में एक ही देश के अन्य राज्यों अथवा क्षेत्रों की तुलना में स्वायत्तता एवं शक्तियों का स्तर भिन्न-भिन्न होता है।
  • भारतीय संदर्भ: भारतीय संविधान ‘असममित’ संघवाद का अनुसरण करता है।
    • यह कुछ राज्यों और क्षेत्रों को अलग-अलग स्तर की स्वायत्तता प्रदान करता है।
    • भारत में कुछ राज्य/क्षेत्र ऐसे हैं, जिन्हें अन्य की तुलना में अधिक स्वायत्तता प्राप्त है या संविधान के तहत विशेष प्रावधान प्राप्त हैं।
    • उदाहरण
      • संविधान के भाग XXI में अनुच्छेद-371A से 371H पूर्वोत्तर राज्यों के लिए विशेष प्रावधान प्रदान करते हैं।
      • भारतीय संविधान की पाँचवी और छठी अनुसूचियाँ असममित संघवाद के उदाहरण हैं।

लद्दाख के लिए प्रमुख माँगे

  • लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा और विधायिका की माँग: लद्दाख के निवासी, विशेषकर लेह जिले के निवासी, पूर्ण राज्य के दर्जे की माँग कर रहे हैं।
  • छठी अनुसूची में शामिल करने के पीछे तर्क
    • लद्दाख की 97% से अधिक आबादी आदिवासी है, इसलिए यह छठी अनुसूची का दर्जा पाने के लिए मजबूत आधार है।
    • संसाधनों का संरक्षण: लद्दाख के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र को शोषण से बचाने के लिए छठी अनुसूची के प्रावधानों का उपयोग करना आवश्यक है।
    • राजनीतिक प्रतिनिधित्व: सीमित विधायी शक्तियों के साथ केंद्रशासित प्रदेश के रूप में लद्दाख की वर्तमान स्थिति स्थानीय निर्णय लेने पर अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और नियंत्रण के बारे में चिंताएँ उत्पन्न करती है।
      • छठी अनुसूची इस चिंता का समाधान करने की गारंटी देती है।
  • अलग लोकसभा सीटें: कार्यकर्ता लोकसभा सीटों की संख्या एक से बढ़ाकर दो करने की माँग कर रहे हैं, ताकि वर्ष 2019 में केंद्रशासित प्रदेश के रूप में अलग होने के बाद लेह और कारगिल दोनों जिलों के लिए बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके।
  • स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण: आरक्षण का उद्देश्य लद्दाखियों के लिए अधिक रोजगार के अवसर उत्पन्न करना, स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना और बाहरी संसाधनों पर निर्भरता कम करना है।

भारतीय संविधान की पाँचवीं और छठी अनुसूची का इतिहास

  • जनजातीय स्वायत्तता पर ब्रिटिश शासन का प्रभाव: ब्रिटिश वन नीतियों के कारण जनजातियों में असंतोष उत्पन्न हुआ, जिसके परिणामस्वरूप कई विद्रोह हुए जैसे- कोल विद्रोह (1831-32), संथाल विद्रोह (1885), मुंडा विद्रोह (1899-1900) और बस्तर विद्रोह (1911) आदि।
  • अलगाव की ब्रिटिश नीति: जनजातीय अशांति के जवाब में, अंग्रेजों ने अलगाव की नीति अपनाई, जिसके तहत भारत शासन अधिनियम, 1935 के तहत ‘बहिष्कृत’ और ‘आंशिक रूप से बहिष्कृत’ क्षेत्रों का निर्माण किया गया।
  • पाँचवीं और छठी अनुसूचियों का गठन: पाँचवीं और छठी अनुसूचियाँ  भारत शासन अधिनियम, 1935 से ‘आंशिक रूप से बहिष्कृत’ और ‘बहिष्कृत’ क्षेत्रों के प्रावधानों पर आधारित हैं।
  • पाँचवीं अनुसूची
    • राष्ट्रपति द्वारा घोषित ‘अनुसूचित क्षेत्रों’ पर लागू।
    • भारतीय संविधान की पाँचवीं अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम को छोड़कर पूरे भारत के राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन तथा शासन से संबंधित है।

संविधान की छठी अनुसूची

  • भारतीय संविधान की छठी अनुसूची कुछ पूर्वोत्तर राज्यों अर्थात् असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है।
    • असम: उत्तरी कछार पहाड़ियाँ, कार्बी आंगलोंग, बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र
    • मेघालय: खासी पहाड़ियाँ, जयंतिया पहाड़ियाँ, गारो पहाड़ियाँ
    • त्रिपुरा: त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र
    • मिजोरम: चकमा जिला, मारा जिला, लाई जिला।
  • छठी अनुसूची के प्रावधान
    • अनुच्छेद-244(2): असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्र प्रशासन पर लागू होता है।
    • स्वायत्त जिला परिषद (ADC) की स्थापना की जाती है, जिसमें 30 सदस्य (बहुमत से निर्वाचित) होते हैं।
      • ADC के पास भूमि उपयोग, सामाजिक रीति-रिवाजों और स्थानीय शासन पर विधायी शक्तियाँ प्राप्त हैं।
      • ADC स्थानीय बुनियादी ढाँचे का प्रबंधन करते हैं, राजस्व एकत्र करते हैं और अनुसूचित जनजातियों से जुड़े विवादों के लिए न्यायालय स्थापित कर सकते हैं।
    • कानून बनाने की शक्तियाँ: परिषदें भूमि प्रबंधन, उत्तराधिकार और गैर-आदिवासी व्यक्तियों द्वारा व्यापार के विनियमन जैसे मामलों पर राज्यपाल की सहमति के अधीन कानून बना सकती हैं।
    • न्यायिक प्राधिकार: परिषदें अनुसूचित जनजातियों से जुड़े विवादों के लिए ग्राम और जिला परिषद न्यायालयों की स्थापना कर सकती हैं, जिसमें मृत्युदंड या लंबे कारावास से दंडनीय गंभीर अपराध शामिल नहीं हैं। 
    • संसदीय छूट: संसद या राज्य विधानसभाओं के अधिनियम बिना संशोधन के स्वायत्त जिलों पर लागू नहीं होते। 
    • राज्यपाल द्वारा आयोग का गठन: राज्यपाल स्वायत्त जिलों से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक आयोग नियुक्त कर सकते हैं।

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