प्रधानमंत्री ने हाल ही में वर्ष 1919 के जलियाँवाला बाग हत्याकांड पीड़ितों को श्रद्धांजलि प्रदान की।
संबंधित तथ्य
राष्ट्रीय स्मारक: नरसंहार स्थल अब एक राष्ट्रीय स्मारक है, जो उपनिवेशवाद की भयावहता और स्वतंत्रता के संघर्ष की याद दिलाता है।
याद-ए-जलियाँ संग्रहालय: नरसंहार का प्रामाणिक विवरण प्रदान करने के लिए मार्च 2019 में एक संग्रहालय भी बनाया गया, जिसे याद-ए-जलियाँ संग्रहालय कहा जाता है।
जलियाँवाला बाग हत्याकांड
परिचय: 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन रॉलेट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियाँवाला बाग में एक बड़ी शांतिपूर्ण सभा हुई थी।
पंजाब में तैनात एक ब्रिटिश कमांडर जनरल डायर ने अमृतसर में 50 से अधिक सैनिकों को महिलाओं और बच्चों सहित नागरिकों पर गोलीबारी शुरू करने का आदेश दिया।
मानव जीवन पर प्रभाव: इस अत्याचार ने कम-से-कम 379 व्यक्तियों की जान ले ली और 1,500 से अधिक घायल हो गए।
इस त्रासदी ने एक राष्ट्रवादी आंदोलन को जन्म दिया, जिसका उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्त करना था और जिसने महत्त्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया।
राष्ट्रवादी नेताओं द्वारा विरोध: जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में रबींद्रनाथ टैगोर ने अपनी नाइटहुड की उपाधि त्याग दी।
जलियाँवाला बाग नरसंहार के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया।
पृष्ठभूमि
रॉलेट एक्ट को मंजूरी: वर्ष 1918 के अंत में, इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा रॉलेट एक्ट को मंजूरी दिए जाने से पूरे देश में आक्रोश फैल गया।
सत्याग्रह प्रतिज्ञा: 24 फरवरी, 1919 को अहमदाबाद में महात्मा गांधी द्वारा सत्याग्रह प्रतिज्ञा का नेतृत्व किया गया था, जिसमें प्रस्तावित रॉलेट कानून को समाप्त किए जाने तक एक ‘समिति’ द्वारा निर्धारित किए जाने वाले विशिष्ट नियमों की अवज्ञा करने का वादा किया गया था।
राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान: 6 अप्रैल को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया, जिसे अद्वितीय सफलता मिली।
ब्रिटिश दमन और नेताओं का निर्वासन: गांधी जी ने अमृतसर की यात्रा करने का प्रयास किया, लेकिन ब्रिटिश सरकार उन्हें वापस बंबई (अब मुंबई) ले गई।
पंजाबी सत्याग्रह के दो नेताओं को जबरन निर्वासित कर दिया गया। घटना के बाद अमृतसर में तुरंत सार्वजनिक आक्रोश फैल गया।
जनरल डायर द्वारा क्रूर कार्रवाई: प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर, सर माइकल ओ’डायर ने ब्रिगेडियर जनरल डायर के नेतृत्व में शहर को सेना के हवाले कर दिया।
13 अप्रैल को लगभग 20,000 लोग उस स्थान पर एकत्र हुए थे। जनरल डायर एक सशस्त्र दल के साथ आया और अपने लोगों को बिना किसी पूर्व चेतावनी के गोली चलाने का आदेश दिया।
हंटर आयोग: स्कॉटलैंड के पूर्व सॉलिसिटर-जनरल और स्कॉटलैंड में कॉलेज ऑफ जस्टिस के सीनेटर लॉर्ड विलियम हंटर ने वर्ष 1919 में गठित हंटर आयोग के नाम से जाने जाने वाले जाँच आयोग की अध्यक्षता की।
आयोग और डायर के बीच संवाद का विवरण ‘निगेल कोलेट’ की वर्ष 2006 की पुस्तक ‘द बुचर ऑफ अमृतसर: जनरल रेजिनाल्ड डायर’ में दिया गया है।
प्रभाव: कई इतिहासकारों के अनुसार, यह ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के साथ भारतीयों के संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था और इस प्रकार भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह एक महत्त्वपूर्ण क्षण था।
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