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जलियाँवाला बाग हत्याकांड

Lokesh Pal April 15, 2025 03:16 10 0

संदर्भ

13 अप्रैल, 2025 को भारतीय प्रधानमंत्री ने जलियाँवाला बाग हत्याकांड के शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।

  • उन्होंने इस नरसंहार को भारत के इतिहास का एक काला अध्याय बताया और इस बात पर जोर दिया कि उनका बलिदान भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बारे में

  • 13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के त्योहार के दौरान अमृतसर के जलियाँवाला बाग में लगभग 20,000 लोग एकत्र हुए थे।
    • पंजाबी सत्याग्रह आंदोलन से जुड़े दो प्रमुख नेताओं डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल की गिरफ्तारी और ‘रॉलेट एक्ट’ के विरुद्ध विरोध करने के लिए एकत्र हुए लोगों को ब्रिटिश अधिकारियों ने बिना किसी औपचारिक आरोप के जबरन निर्वासित कर दिया था।
  • पंजाब में तैनात ब्रिटिश कमांडर जनरल डायर ने 50 सैनिकों को महिलाओं और बच्चों सहित सभी नागरिकों पर अंधाधुंध गोलीबारी करने का आदेश दिया।
    • उसने बिना किसी पूर्व चेतावनी के गोलीबारी का आदेश दिया तथा गोलियाँ चलवाईं।
  • मानवीय क्षति: इस नरसंहार में कम-से-कम 379 लोगों की मौत हो गई और 1,500 से अधिक लोग घायल हो गए।
    • इस क्रूर अत्याचार ने राष्ट्रवादी आंदोलन को गति दी और इसकी व्यापक रूप से अंतरराष्ट्रीय निंदा हुई।

जलियाँवाला बाग हत्याकांड की पृष्ठभूमि

  • रॉलेट एक्ट की स्वीकृति: वर्ष 1918 के अंत में, इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ने रॉलेट एक्ट को मंजूरी दे दी, जिससे पूरे भारत में व्यापक आक्रोश फैल गया।
  • सत्याग्रह आंदोलन की शुरुआत: 24 फरवरी, 1919 को महात्मा गांधी ने अहमदाबाद में सत्याग्रह की शपथ ली, जिसमें रॉलेट एक्ट के निरस्त होने तक चुनिंदा कानूनों की अवज्ञा करने की प्रतिबद्धता जताई गई।
  • राष्ट्रव्यापी हड़ताल: 6 अप्रैल, 1919 को राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया गया, जिसे पूरे देश में व्यापक समर्थन मिला।
  • अमृतसर प्रशासन का सैन्य शासन के सामने आत्मसमर्पण: पंजाब के लेफ्टिनेंट गवर्नर ‘माइकल ओ डायर’ ने जनरल डायर के अधीन अमृतसर का नियंत्रण सेना को सौंप दिया।

नरसंहार पर प्रतिक्रिया

  • रबींद्रनाथ टैगोर का विरोध: उन्होंने जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में अपनी ‘नाइटहुड’ की उपाधि त्याग दी।
  • महात्मा गांधी की प्रतिक्रिया: 18 फरवरी, 1920 को यंग इंडिया में प्रकाशित अपने लेख ‘जलियाँवाला बाग’ में महात्मा गांधी ने इस हत्याकांड को ‘प्रथम श्रेणी के राष्ट्रीय महत्त्व की त्रासदी’ बताया।
  • उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा उन्हें दी गई ‘कैसर-ए-हिंद’ की उपाधि त्याग दी।
    • नरसंहार के बाद, गांधी ने ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए असहयोग आंदोलन शुरू किया।
  • जवाहरलाल नेहरू की निंदा: जवाहरलाल नेहरू ने इस नरसंहार की निंदा करते हुए इसे निर्दोष नागरिकों के विरुद्ध एक ‘भयावह अपराध’ बताया।
  • इतिहासकार का दृष्टिकोण: इतिहासकार ‘किम वैगनर’ ने उल्लेख किया कि अंग्रेजों ने स्थानीय अशांति को विद्रोह के रूप में देखा, जिसने राष्ट्रवादी आंदोलन को प्रमुख राजनीतिक संकटों में परिवर्तित कर दिया।

नरसंहार के बाद ब्रिटिश दमन

  • गांधीजी की आवाजाही पर प्रतिबंध: ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी को पंजाब में प्रवेश करने से रोक दिया और उन्हें बंबई भेज दिया।

हंटर आयोग का गठन

  • वर्ष 1919 में स्कॉटलैंड के पूर्व सॉलिसिटर-जनरल लॉर्ड विलियम हंटर ने इस घटना की जाँच के लिए हंटर आयोग की अध्यक्षता की।
  • वर्ष 1919 की हंटर समिति का आधिकारिक नाम ‘डिसऑर्डर्स इंक्वायरी कमेटी’ था।
  • जनरल डायर और हंटर आयोग के बीच वार्ता को निगेल कोलेट की वर्ष 2006 की किताब, ‘द बुचर ऑफ अमृतसर: जनरल रेजिनॉल्ड डायर’ में दर्ज किया गया है।

आयोजन का महत्त्व 

  • इतिहास में निर्णायक क्षण: इतिहासकार जलियाँवाला बाग हत्याकांड को भारतीयों और उनके ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के बीच संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ मानते हैं।
  • इस त्रासदी ने भारत के स्वतंत्रता की ओर बढ़ने की प्रक्रिया तथा राष्ट्रवादी भावनाओं को और तीव्र कर दिया।
  • अंग्रेजों का वैश्विक स्तर पर आलोचना: वैश्विक स्तर पर, इस हत्याकांड ने एक “सभ्य” शक्ति के रूप में ब्रिटेन की नैतिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचाया, जिससे ब्रिटिश संसद और प्रेस में इसकी आलोचना हुई (उदाहरण के लिए, विंस्टन चर्चिल ने इसे “राक्षसी” कहा)।
  • ब्रिटेन में, डायर के साथ नरम व्यवहार (कर्तव्य से मुक्त लेकिन मुकदमा नहीं चलाया गया) और हंटर आयोग की अल्प कार्रवाई ने भारतीयों के अविश्वास को और गहरा कर दिया, जिससे यह सिद्ध हुआ कि ब्रिटिश न्याय पक्षपातपूर्ण था।

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