हाल ही में मदुरै में तीन दिवसीय जल्लीकट्टू कार्यक्रम के दौरान एक बैल प्रशिक्षक की मौत हो गई और 75 प्रतिभागी घायल हो गए।
पोंगल फसल उत्सव के अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में 1,100 बैलों और 900 पशुपालकों ने भाग लिया।
जल्लीकट्टू
परिभाषा: एरुथाझुवुथल के नाम से प्रसिद्ध जल्लीकट्टू तमिलनाडु में पोंगल उत्सव के दौरान आयोजित होने वाला एक पारंपरिक बैलों के नियंत्रण का खेल है।
विविधताएँ: वादी मंजुविरत्तु, वेली विरत्तु, वटम मंजुविरत्तु इस खेल के विभिन्न रूप हैं।
उद्देश्य: प्रतियोगी पुरस्कार जीतने के लिए बैल को वश में करने का प्रयास करते हैं।
सांस्कृतिक महत्त्व: प्रकृति का जश्न मनाता है, भरपूर फसल के लिए आभार व्यक्त करता है और इसमें मवेशियों की पूजा शामिल है।
क्षेत्र: मदुरै, तिरुचिरापल्ली, थेनी, पुदुक्कोट्टई और डिंडीगुल जैसे जिलों में लोकप्रिय।
प्रयुक्त नस्ल: शिवगंगई जिले के मूल निवासी पुलिकुलम का उपयोग आमतौर पर जल्लीकट्टू में किया जाता है।
प्राचीन उत्पत्ति: मोहनजोदड़ो (2,500-1,800 ईसा पूर्व) की एक मुहर में बैल को नियंत्रित करने का संदर्भ मिलता है।
तमिल साहित्य: जल्लीकट्टू का उल्लेख संगम युग के तमिल महाकाव्य इलांगो द्वारा रचित शिलप्पादिकारम् में मिलता है।
भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम ए. नागराज मामला (2014)
संदर्भ: इस मामले में तमिलनाडु में जल्लीकट्टू (बैल को नियंत्रित करने का खेल) की वैधता को चुनौती दी गई थी, जिसमें पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत पशु क्रूरता का हवाला दिया गया था।
न्यायालय का निर्णय
सर्वोच्च न्यायालय ने पशु अधिकारों के उल्लंघन और बैलों के प्रति क्रूरता का हवाला देते हुए जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया।
अनुच्छेद-21 (जीवन का अधिकार) के तहत पशुओं के सम्मान के साथ जीने और अनावश्यक दर्द से मुक्ति के अधिकार को मान्यता दी।
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के सख्त क्रियान्वयन का निर्देश दिया।
पशु कल्याण को बढ़ाने के लिए संशोधनों को प्रोत्साहित किया और जीवित प्राणियों की रक्षा के लिए अनुच्छेद-51A(G) के तहत संवैधानिक कर्तव्य को बरकरार रखा।
पशु और संस्कृति से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
अनुच्छेद-48A: राज्यों को पशु कल्याण में सुधार करना चाहिए, वन्यजीवों की सुरक्षा करनी चाहिए और पशु जनसंख्या वृद्धि सुनिश्चित करनी चाहिए।
अनुच्छेद-51A(G): पशुओं के प्रति दया का भाव और वन्यजीवों की रक्षा करना नागरिकों का मौलिक कर्तव्य है।
अनुच्छेद-21: जीवन के अधिकार में पशु जीवन शामिल है, जिसमें सम्मान और निष्पक्ष व्यवहार पर जोर दिया गया है।
अनुच्छेद-29(1): जल्लीकट्टू जैसी पारंपरिक प्रथाओं सहित नागरिकों के सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करता है।
प्रविष्टि 17, सूची III: केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को पशुओं के प्रति क्रूरता को रोकने के लिए कानून बनाने की अनुमति देता है।
नवीन गतिविधियाँ
कानूनी ढाँचा: जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया गया था (2014-2016) लेकिन तमिलनाडु सरकार ने वर्ष 2017 में पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में संशोधन के माध्यम से इसे फिर से लागू कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय (2023): जल्लीकट्टू की सांस्कृतिक महत्ता का हवाला देते हुए तमिलनाडु के कानून को बरकरार रखा।
जल्लीकट्टू के पक्ष और विपक्ष में तर्क
जल्लीकट्टू के पक्ष में तर्क
जल्लीकट्टू के विपक्ष में तर्क
सांस्कृतिक महत्त्व: यह तमिलनाडु की विरासत का अभिन्न अंग है और पोंगल फसल उत्सव के दौरान मनाया जाता है।
पशु क्रूरता: बैलों को अनावश्यक दर्द, पीड़ा और तनाव पहुँचाना, पशु कल्याण कानूनों का उल्लंघन करना।
सामुदायिक भागीदारी: सामुदायिक भावना को बढ़ावा देता है, ग्रामीण भागीदारी को बढ़ाता है और परंपराओं को मजबूत करता है।
सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: आयोजन के दौरान मानव जीवन को खतरा तथा प्रशिक्षकों एवं दर्शकों दोनों को चोट लगने का खतरा।
आर्थिक भूमिका: पुलिकुलम जैसी देशी मवेशी नस्लों को बनाए रखकर ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समर्थन प्रदान करना।
अधिकारों का उल्लंघन: अनुच्छेद-21 के अनुसार पशुओं के सम्मान और क्रूरता से मुक्ति के अधिकारों का उल्लंघन।
नस्ल संरक्षण: स्वदेशी नस्लों की रक्षा करना, उनके अस्तित्व और कृषि उपयोगिता को सुनिश्चित करना।
वैश्विक आलोचना: अमानवीय प्रथाओं का हवाला देते हुए पशु कल्याण समूहों से विरोध का सामना करना पड़ा।
कानूनी समर्थन: तमिलनाडु ने संवैधानिक प्रावधानों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कानूनों में संशोधन किया।
नैतिक चिंताएँ: मनोरंजन और खेल के लिए पशु शोषण के औचित्य पर सवाल उठाती हैं।
पशुओं से संबंधित समान खेल और त्योहार
खेल संबंधी त्योहार
राज्य
विवरण
अवसर
कंबाला
कर्नाटक
जल से भरे धान के खेतों में आयोजित पारंपरिक भैंसा दौड़।
फसल उत्सव
बैलगाड़ी दौड़
महाराष्ट्र, पंजाब
ग्रामीण मेलों और त्योहारों में बैलगाड़ियाँ एक दूसरे से दौड़ती हैं।
ग्रामीण मेले और त्योहार
मुर्गों की लड़ाई
आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु
त्यौहारों के दौरान आयोजित पारंपरिक मुर्गों की लड़ाई।
संक्रांति
ऊँट दौड़
राजस्थान
प्रायः सांस्कृतिक मेलों के दौरान ऊँट दौड़ में गति और सहनशक्ति का प्रदर्शन किया जाता है।
पुष्कर मेला एवं अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम
धीरियो (Dhirio)
गोवा
ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजित पारंपरिक बैल की लड़ाई का खेल।
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