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Lokesh Pal
August 19, 2025 03:47
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राज्य विधानसभाओं द्वारा प्रस्तुत विधेयकों पर कार्रवाई करने के लिए राष्ट्रपति एवं राज्यपालों के लिए समयसीमा तय करने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का विरोध करते हुए, केंद्र सरकार ने कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण को रेखांकित किया है, और कहा है कि इस निर्णय से ‘राज्य के अंगों के बीच संवैधानिक संतुलन अस्थिर’ होने की संभावना है।
केंद्र की दलीलें न्यायिक नवाचार और संवैधानिक निष्ठा के बीच संघर्ष को उजागर करती हैं। शक्तियों के पृथक्करण और मूल संरचना सिद्धांत का हवाला देकर, सरकार इस बात पर बल देती है कि केवल संसद ही (न कि न्यायालय), अनुच्छेद 200-201 के तहत राष्ट्रपति एवं राज्यपालों की शक्तियों को नियंत्रित करने वाले संवेदनशील ढाँचे में परिवर्तन कर सकती हैं।
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