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केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो का क्षेत्राधिकार

Lokesh Pal July 16, 2024 03:17 130 0

संदर्भ 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार के उस मुकदमे की स्वीकार्यता को बरकरार रखा, जिसमें केंद्र सरकार पर सामान्य सहमति (General Consent) वापस लेने के बावजूद राज्य में मामलों को पंजीकृत करने और जाँच करने के लिए केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) को नियुक्त करके ‘संवैधानिक अतिक्रमण’ (Constitutional Overreach) करने का आरोप लगाया गया था। 

  • न्यायालय ने निर्णय दिया कि यह मुकदमा, कार्रवाई के वैध कारण को संबोधित करता है और इसकी सुनवाई गुण-दोष के आधार पर की जानी चाहिए। 

निर्णय के बारे में

  • अगस्त 2021 में, पश्चिम बंगाल सरकार ने भारत के संविधान के अनुच्छेद-131 के तहत एक मूल मुकदमा दायर किया जिसमें तर्क दिया गया कि केंद्र सरकार की कार्रवाई और राज्य में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की भागीदारी ने उसकी संप्रभुता का उल्लंघन किया है। 
  • भारत सरकार की जिम्मेदारी: दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (Delhi Special Police Establishment- DSPE) अधिनियम, 1946 के विभिन्न प्रावधानों पर विचार करते हुए, न्यायिक पीठ इस निष्कर्ष पर पहुँची कि “दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना [अधिनियम] की स्थापना, शक्तियों का प्रयोग, अधिकार क्षेत्र का विस्तार, अधीक्षण, सभी भारत सरकार के पास निहित हैं।” 
  • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा 4: इस धारा के तहत, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत अपराधों को छोड़कर, जिसमें अधीक्षण केंद्रीय सतर्कता आयोग के पास होगा, अन्य सभी मामलों में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना का अधीक्षण केंद्र सरकार के पास होगा। 
  • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा 6: न्यायाधीश ने केंद्र को यह भी अवगत कराया कि DSPE अधिनियम की धारा 6 के तहत राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो जाँच के लिए राज्य सरकार की पूर्व सहमति अनिवार्य है। 
  • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की स्वतंत्रता: हालाँकि न्यायालय ने माना कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को हमेशा स्वतंत्र रूप से अपराधों की जाँच करने का अधिकार होगा, उसने इस बात पर जोर दिया कि यह स्वायत्तता उसके प्रशासनिक नियंत्रण और अधीक्षण को कमजोर नहीं करेगी, जो केंद्र के पास है। 

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) के बारे में 

  • भारत सरकार के कार्मिक, पेंशन एवं लोक शिकायत मंत्रालय के कार्मिक विभाग के अधीन कार्यरत केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो भारत की प्रमुख जाँच पुलिस एजेंसी है। 
  • उत्पत्ति: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो की उत्पत्ति विशेष पुलिस स्थापना (Special Police Establishment- SPE) से मानी जाती है, जिसकी स्थापना वर्ष 1941 में भारत सरकार द्वारा की गई थी। 
  • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946: इस अधिनियम ने विशेष पुलिस स्थापना के अधीक्षण को गृह विभाग को हस्तांतरित कर दिया और इसके कार्यों को भारत सरकार के सभी विभागों तक विस्तारित कर दिया गया। 
  • भूमिका: यह एक विशिष्ट बल है, जो सार्वजनिक जीवन में मूल्यों के संरक्षण और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में प्रमुख भूमिका निभाता है। 
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: यह भारत में नोडल पुलिस एजेंसी भी है, जो इंटरपोल सदस्य देशों की ओर से जाँच का समन्वय करती है। 
  • प्रादेशिक क्षेत्राधिकार: विशेष पुलिस प्रतिष्ठान  का क्षेत्राधिकार सभी संघ शासित प्रदेशों तक विस्तारित है तथा संबंधित राज्य सरकार की सहमति से इसे राज्यों तक भी बढ़ाया जा सकता है। 
    • प्रारंभ में: केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित अपराध केवल केंद्र सरकार के कर्मचारियों द्वारा किए गए भ्रष्टाचार से संबंधित थे। 
    • विस्तार: बड़ी संख्या में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की स्थापना के साथ, इन उपक्रमों के कर्मचारियों को भी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के दायरे में लाया गया। 
    • बैंक धोखाधड़ी का कवरेज: वर्ष 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण के साथ, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक और उनके कर्मचारी भी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के दायरे में आ गए। 

सामान्य सहमति (General Consent) के बारे में

  • सामान्य सहमति, आमतौर पर राज्यों द्वारा उनके क्षेत्रों में केंद्रीय सरकार के कर्मचारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की एजेंसी की निर्बाध जाँच की सुविधा के लिए दी जाती है। 
  • सहमति का स्वरूप: राज्य सरकार द्वारा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को दी गई सहमति दो रूपों में हो सकती है, या तो मामला-विशिष्ट, या ‘सामान्य’। 
    • सामान्य सहमति: यह केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को राज्यों के भीतर निर्बाध रूप से कार्य करने की अनुमति देता है। 
    • मामला-विशिष्ट सहमति: इसके विपरीत, यदि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के पास राज्य सरकार की सामान्य सहमति नहीं है, तो उसे मामला-दर-मामला आधार पर सहमति के लिए आवेदन करना होगा और सहमति मिलने से पहले वह कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है। 
  • निरस्तीकरण: वर्ष 2015 से, छत्तीसगढ़, झारखंड, केरल, मिजोरम, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना, मेघालय और पश्चिम बंगाल जैसे कई राज्यों ने अपनी सामान्य सहमति को निरस्त कर दिया है और आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार विपक्ष को अनुचित तरीके से निशाना बनाने के लिए संघीय एजेंसी का दुरुपयोग कर रही है। 
  • वापसी का प्रभाव 
    • नए मामलों पर प्रतिबंध: सामान्य सहमति वापस लेने का अर्थ यह भी है कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो किसी विशेष राज्य में केंद्रीय सरकार के अधिकारियों या निजी व्यक्तियों से संबंधित कोई भी नया मामला उस राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना दर्ज नहीं कर पाएगी। 
    • निरंतर जाँच: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो सामान्य सहमति वापस लेने से पहले किसी राज्य में पंजीकृत मामलों की जाँच जारी रख सकती है। 
  • विधिक उदाहरण: दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम की धारा 6 संघ सूची की प्रविष्टि 80 पर आधारित है, जो एक राज्य के पुलिस बल की शक्तियों और अधिकार क्षेत्र को दूसरे राज्य में विस्तारित करने की अनुमति देती है, लेकिन दूसरे राज्य की सहमति के बिना नहीं। 
    • अवैध कोयला खनन और मवेशी तस्करी से संबंधित एक मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो को किसी अन्य राज्य में केंद्र सरकार के कर्मचारी की जाँच करने से नहीं रोका जा सकता है। 

निष्कर्ष

हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने अभी तक पश्चिम बंगाल के मुकदमे की स्वीकार्यता पर केवल प्रारंभिक आपत्तियों पर ही विचार किया है, लेकिन संवैधानिक विशेषज्ञ ने बताया कि इसके गुण-दोष पर अंतिम निर्णय का अन्य लंबित समान मामलों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा। 

  • शीर्ष न्यायालय की एक अन्य पीठ, अंकित तिवारी के मामले में तमिलनाडु राज्य से संबंधित कानून के एक समान प्रश्न पर विचार कर रही है, जिसने विपक्षी शासित राज्यों में प्रवर्तन निदेशालय जैसी केंद्रीय एजेंसियों और पुलिस के बीच दर्ज आपराधिक मामलों के गतिरोध पर न्यायिक निगरानी की सिफारिश की थी, ताकि निर्दोष लोगों को कष्टदायक अभियोजन से बचाया जा सके। 

अनुच्छेद-131 के बारे में

भारतीय संविधान का अनुच्छेद-131 भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मूल अधिकार क्षेत्र से संबंधित है। 

  • प्रारंभिक अधिकार क्षेत्र: इसका तात्पर्य सर्वोच्च न्यायालय के उस अधिकार से है, जिसके तहत वह कुछ प्रकार के मामलों को निचले न्यायालयों में भेजे बिना सीधे सुनवाई कर उन पर निर्णय दे सकता है। 
    • यह निर्दिष्ट करता है कि सर्वोच्च न्यायालय के पास निम्नलिखित के बीच विवादों पर विशेष मूल अधिकारिता है: 
      • केंद्र सरकार (संघ) और एक या एक से अधिक राज्य
      • एक तरफ संघ और कोई राज्य तथा दूसरी तरफ एक या एक से अधिक अन्य राज्य
      • दो या अधिक राज्य, जब तक विवाद में कोई कानूनी अधिकार शामिल हो (चाहे वह तथ्यों या कानून पर आधारित हो)
  • कर्नाटक राज्य बनाम भारत संघ (1977): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद-131 संघवाद की एक विशेषता है और इच्छित उपाय को आगे बढ़ाने के लिए इसकी “व्यापक और उदारतापूर्वक व्याख्या” की जानी चाहिए। 
  • राजस्थान राज्य एवं अन्य बनाम भारत संघ (1977): सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य के अधिकारों के प्रति बहुत अधिक प्रतिबंधात्मक या अति-तकनीकी दृष्टिकोण अपनाने के प्रति आगाह किया। 

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