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‘काकोरी ट्रेन एक्शन’

Lokesh Pal August 12, 2025 03:46 9 0

संदर्भ

9 अगस्त, 2025 को प्रधानमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’  की 100वीं वर्षगाँठ पर क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि अर्पित की।

संबंधित तथ्य

  • उत्तर प्रदेश सरकार ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास की  एक महत्त्वपूर्ण घटना ‘काकोरी कांड’ का नाम बदलकर ‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ कर दिया है।

‘काकोरी ट्रेन एक्शन’ के बारे में

  • काकोरी ट्रेन एक्शन, जिसे काकोरी ट्रेन डकैती के नाम से भी जाना जाता है, भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसे 9 अगस्त, 1925 को ब्रिटिश शोषण को चुनौती देने और क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन एकत्रित करने हेतु अंजाम दिया गया था।
  • घटना: हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के दस क्रांतिकारी काकोरी स्टेशन के पास सहारनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन में सवार हुए, उसे बाजनगर में रोका और ₹4,679 रूपये एक आना और छह पैसे की सरकारी संपत्ति जब्त कर ली।
    • यह कार्य प्रतीकात्मक था, जिसका लक्ष्य भारतीय संसाधनों के औपनिवेशिक शोषण को सामने लाना था।
    • हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) की स्थापना सचींद्रनाथ सान्याल, राम प्रसाद बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारियों ने अक्टूबर 1924 में संगठित और सशस्त्र क्रांति के माध्यम से एक स्वतंत्र भारत की स्थापना के उद्देश्य से की थी।
  • मुख्य प्रतिभागी
    • राम प्रसाद बिस्मिल: डकैती के  मुख्य योजनाकार
    • अशफाकउल्ला खान: प्रारंभ में भाग निकले, लेकिन बाद में पकड़े गए।
    • चंद्रशेखर आजाद: वर्ष 1931 में अपनी मृत्यु तक गिरफ्तारी से बचते रहे।
    • अन्य सक्रिय प्रतिभागी: राजेंद्र लाहिड़ी, रोशन सिंह, सचिंद्र नाथ बख्शी, केशव चक्रवर्ती, मनमथनाथ गुप्त, मुरारी शर्मा, मुकुंदी लाल, बनवारी लाल
      • एक यात्री, अहमद अली की बंदूक से गोली चलने से दुर्घटनावश मृत्यु हो गई।

प्रतिभागियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही

  • कानूनी लड़ाई: यह मुकदमा न्यायमूर्ति आर्चीबाल्ड हैमिल्टन की अध्यक्षता में विशेष सत्र न्यायालय में चला।
    • उन्नीस व्यक्तियों को षड्यंत्र, हत्या और डकैती के आरोपों में दोषी ठहराया गया।
  • भारतीय प्रतिनिधि
    • बचाव पक्ष के वकील: गोविंद बल्लभ पंत और चंद्र भानु गुप्त (दोनों बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने)।
    • अभियोजन पक्ष: जगत नारायण मुल्ला, एक प्रमुख वकील और राजनीतिक व्यक्ति, द्वारा नेतृत्व, उनके पुत्र आनंद नारायण मुल्ला द्वारा सहायता प्रदान की गई।
  • परिणाम 
    • मृत्युदंड: राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को दिसंबर 1927 में फाँसी दी गई।
    • आजीवन और दीर्घकालिक कारावास: कई अन्य को कठोर कारावास की सजा सुनाई गई या पोर्ट ब्लेयर की सेलुलर जेल में निर्वासित कर दिया गया।
    • चंद्रशेखर आजाद: वर्ष 1931 में इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के अल्फ्रेड पार्क में अपनी अंतिम मुठभेड़ तक भूमिगत रहे, जहाँ उन्होंने अंग्रेजों की गोली से बचने के लिए स्वयं को गोली मार ली।

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