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कर्नाटक सरकार की मासिक धर्म अवकाश नीति

Lokesh Pal November 08, 2025 04:30 39 0

संदर्भ

कर्नाटक सरकार ने सभी महिला कर्मचारियों के लिए मासिक धर्म अवकाश नीति को स्वीकृति दी है।

नीति के बारे में 

  • इस नीति का उद्देश्य मासिक धर्म स्वास्थ्य को एक वैध कार्यस्थल मुद्दे के रूप में स्वीकार करना और लैंगिक-संवेदनशील रोजगार प्रथाओं को प्रोत्साहित करना है।
  • प्रभाव क्षेत्र: यह नीति सरकारी कार्यालयों, शैक्षणिक संस्थानों, कारखानों और निजी संगठनों की सभी महिला कर्मचारियों पर लागू होगी।
  • अवकाश प्रावधान: प्रति वर्ष 12 दिनों का मासिक धर्म अवकाश (प्रति माह एक दिन)।
  • यह नीति स्त्री रोग विशेषज्ञों, मनोचिकित्सकों, शिक्षकों, नियोक्ताओं, कर्मचारियों, NGO और ट्रेड यूनियनों के साथ विस्तृत परामर्श के बाद तैयार की गई है।

मासिक धर्म अवकाश क्या है?

  • मासिक धर्म अवकाश महिलाओं और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को मासिक धर्म के दौरान शारीरिक व मानसिक असुविधा को ध्यान में रखते हुए दिया जाने वाला सवैतनिक  या अवैतनिक अवकाश है।
  • यह मासिक धर्म को कार्यस्थल और सार्वजनिक स्वास्थ्य के एक वैध मुद्दे के रूप में स्वीकार करता है, न कि किसी वर्जित विषय के रूप में।

भारत में मासिक धर्म अवकाश नीति की आवश्यकता 

  • संवैधानिक आधार 
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद-15(3) (महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान), अनुच्छेद-46 (कमजोर वर्गों को बढ़ावा) और अनुच्छेद-42 (मानवीय कार्य स्थितियाँ) के साथ संरेखित करना।
    • मासिक धर्म को एक वैध स्वास्थ्य चिंता के रूप में मान्यता देकर अनुच्छेद-21 के तहत स्वास्थ्य और सम्मान के अधिकार का समर्थन करता है।
  • स्वास्थ्य और जैविक आवश्यकताओं को संबोधित करना
    • मासिक धर्म के दौरान अक्सर दर्द, थकान, उल्टी, और हार्मोनल परिवर्तन होते हैं।
    • एंडोमेट्रियोसिस, एडिनोमायोसिस और डिसमेनोरिया जैसी स्थितियाँ गंभीर पीड़ा का कारण बन सकती हैं, जिससे कार्यक्षमता प्रभावित होती है।
  • उत्पादकता में सुधार
    • अस्वस्थता के बावजूद काम पर उपस्थित रहना प्रेजेंटिइज्म (Presenteeism) कहलाता है, जिससे कार्यक्षमता घटती है।
    • उचित विश्राम से कार्यस्थल का मनोबल और उत्पादकता दोनों बढ़ते हैं।
  • रूढ़िवादिता और सामाजिक कलंक के चक्र को तोड़ना
    • यह नीति मासिक धर्म पर खुले संवाद और जागरूकता को प्रोत्साहित करती है।
    • यह सदियों पुराने सामाजिक परंपरा को चुनौती देती है, जहाँ मासिक धर्म को ‘अशुद्ध’ या ‘गंदा’ माना जाता था।
    • ऐसी नीतियाँ मासिक धर्म साक्षरता को बढ़ावा देती हैं।

भारत में मासिक धर्म अवकाश नीति की स्थिति

  • राष्ट्रीय स्तर पर 
    • वर्तमान में भारत में कोई राष्ट्रीय कानून मासिक धर्म अवकाश को अनिवार्य नहीं करता है।
    • मसौदा मासिक धर्म स्वच्छता नीति (वर्ष 2023): कार्यस्थलों पर लैंगिक-संवेदनशील वातावरण और कार्य के लचीले विकल्पों की आवश्यकता को स्वीकार करती है।
    • ‘द राइट ऑफ वीमेन टू मेन्स्ट्रुअल लीव एंड फ्री एक्सेस टू मेन्स्ट्रुअल हेल्थ प्रोडक्ट्स बिल, 2022’:  एक निजी विधेयक, जो तीन दिनों के सवैतनिक अवकाश और मासिक धर्म उत्पादों तक निःशुल्क पहुँच का प्रस्ताव रखता है।
  • राज्य स्तर पर
    • बिहार (वर्ष 1992): महिला सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रति माह दो दिन का सवैतनिक अवकाश।
    • केरल (वर्ष 2023): उच्च शिक्षा विभाग के अधीन सभी राज्य विश्वविद्यालयों की महिला छात्रों के लिए मासिक धर्म अवकाश।
  • निजी क्षेत्र की पहलें: जोमैटो, स्विगी, बायजूज, कल्चर मशीन जैसी कंपनियाँ सवैतनिक मासिक धर्म अवकाश प्रदान करती हैं, जो उद्योग के स्व-नियमन का उदाहरण हैं।

मासिक धर्म अवकाश नीति पर वैश्विक पहल

  • जापान (वर्ष 1947): महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश दिया गया है (श्रम मानक अधिनियम, 1938)।
  • दक्षिण कोरिया (वर्ष 2001): मासिक एक दिन का सवेतन ‘अवकाश’; अप्रयुक्त दिनों में लिया जा सकता है।
  • स्पेन (वर्ष 2023): राज्य समर्थित भुगतानयुक्त मासिक धर्म अवकाश प्रदान करने वाला पहला यूरोपीय संघ राष्ट्र है।

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