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कासमपट्टी पवित्र उपवन

Lokesh Pal April 01, 2025 03:43 29 0

संदर्भ

कासमपट्टी पवित्र उपवन को जैव विविधता अधिनियम, 2002 के तहत तमिलनाडु के दूसरे जैव विविधता विरासत स्थल (BHS) के रूप में आधिकारिक तौर पर अधिसूचित किया गया है।

जैव विविधता विरासत स्थल (BHS) के बारे में

  • जैव विविधता विरासत स्थल (BHS) पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्र हैं, जिनमें समृद्ध जैव विविधता, उच्च स्थानिकता एवं सांस्कृतिक महत्त्व होता है।
  • इन क्षेत्रों को प्रायः स्थानीय समुदायों द्वारा संरक्षित किया जाता है एवं ये पारिस्थितिकी संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • BHS घोषित करने का उद्देश्य: जैव विविधता विरासत स्थल घोषित करने का प्राथमिक उद्देश्य पारिस्थितिकी एवं सांस्कृतिक रूप से महत्त्वपूर्ण स्थलों के संरक्षण के माध्यम से स्थानीय समुदायों के लिए जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाना है।
  • भारत का पहला जैव विविधता विरासत स्थल: भारत का पहला जैव विविधता विरासत स्थल (BHS) कर्नाटक के बंगलूरू में नल्लूर इमली उपवन (Nallur Tamarind Grove) था, जिसे वर्ष 2007 में घोषित किया गया था।

जैव विविधता विरासत स्थलों की घोषणा के लिए मानदंड

  • किसी स्थल को जैव विविधता विरासत स्थल के रूप में घोषित करने पर विचार किया जाता है यदि वह निम्नलिखित मानदंडों में से एक या अधिक को पूरा करता है:-
    • जंगली एवं पालतू प्रजातियों की समृद्ध विविधता।
    • स्थानिकता का उच्च स्तर या दुर्लभ प्रजातियों की उपस्थिति।
    • सांस्कृतिक या पवित्र महत्त्व, जैसे- पवित्र उपवन।
    • पारिस्थितिकी गलियारे या आवास, जो खतरे में पड़ी प्रजातियों का समर्थन करते हैं।

जैव विविधता विरासत स्थलों का कानूनी ढाँचा एवं कार्यान्वयन

  • जैव विविधता विरासत स्थलों को जैव विविधता अधिनियम, 2002 की धारा 37 के तहत घोषित किया जाता है।
  • राज्य जैव विविधता बोर्ड (SBBs) पंचायतों या जैव विविधता प्रबंधन समितियों (BMCs) के माध्यम से सुझाव आमंत्रित करते हैं।
    • स्थानीय समुदायों के परामर्श से पारिस्थितिकी एवं सांस्कृतिक अध्ययन किए जाते हैं।
    • सार्वजनिक परामर्श के बाद राज्य द्वारा एक सरकारी राजपत्र अधिसूचना जारी की जाती है।
  • राज्य सरकार, केंद्र सरकार के परामर्श से, इन स्थलों के प्रबंधन एवं संरक्षण के लिए नियम बना सकती है।
  • स्थानीय निकाय संरक्षण प्रयासों को लागू करते हैं, जबकि राज्य जैव विविधता बोर्ड (SBBs) उनकी निगरानी करते हैं।

कासमपट्टी पवित्र उपवन (वीरा कोविल उपवन) के बारे में

  • स्थान: कासमपट्टी पवित्र उपवन तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले में अलागरमलाई रिजर्व फॉरेस्ट के पास कासमपट्टी गाँव में स्थित है।
  • महत्त्व: यह बागान एक पारिस्थितिकी कारक के रूप में कार्य करता है, जो आस-पास के आम के बागानों में परागण एवं मृदा की उर्वरता का समर्थन करता है। 
    • यह स्थानीय जलवायु स्थिरता एवं वन्यजीव संपर्क को भी बढ़ाता है। 
  • धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्त्व: स्थानीय लोग बागान के भीतर वीरा कोविल मंदिर में देवता ‘वीरनन’ की पूजा करते हैं।
    • रेड्डीयापट्टी पंचायत परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव के बाद इस उपवन को संरक्षित किया गया है, जो समुदाय के नेतृत्व वाले संरक्षण के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

पवित्र उपवन क्या हैं?

  • पवित्र उपवन समुदाय द्वारा संरक्षित वन क्षेत्र हैं, जिनका सांस्कृतिक एवं पारिस्थितिकी महत्त्व दोनों है।
  • इन उपवनों को पारंपरिक रीति-रिवाजों एवं धार्मिक मान्यताओं के माध्यम से संरक्षित किया जाता है तथा ये जैव विविधता हॉटस्पॉट एवं जल पुनर्भरण क्षेत्र के रूप में कार्य करते हैं।

पवित्र उपवनों के लिए कानूनी संरक्षण

  • पवित्र उपवनों को वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 में ‘सामुदायिक रिजर्व’ के तहत कानूनी रूप से संरक्षित किया गया है।
  • सामुदायिक रिजर्व प्राकृतिक संसाधनों एवं वन्यजीवों को संरक्षित करने के लिए स्थानीय समुदायों की प्रत्यक्ष भागीदारी के साथ संरक्षण के लिए नामित क्षेत्र हैं।

पवित्र उपवनों पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

  • टी. एन. गोदावर्मन बनाम भारत संघ (1996): इस मामले ने स्थापित किया कि वन विशेषताओं वाली किसी भी भूमि को वन भूमि माना जाना चाहिए।
  • विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट (राजस्थान, 2004): राजस्थान में एक विशेषज्ञ समिति ने पवित्र उपवनों को वन के रूप में तभी पहचाना, जब वे विशिष्ट मानदंडों को पूरा करते हों:- न्यूनतम 5 हेक्टेयर, जिसमें प्रति हेक्टेयर कम-से-कम 200 पेड़ हों।
  • सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय (2024): सर्वोच्च न्यायालय ने पहले के मानदंडों को खारिज कर दिया एवं निर्देश दिया कि सभी पवित्र उपवनों का मानचित्रण किया जाए, उन्हें वनों के रूप में वर्गीकृत किया जाए तथा सामुदायिक रिजर्व घोषित किया जाए।
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WLPA) एवं वन अधिकार अधिनियम (FRA) के बीच संघर्ष: वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006, ग्राम सभाओं के अधीन सामुदायिक वन संसाधनों को मान्यता प्रदान करता है।
    • हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पवित्र उपवनों को सरकारी नियंत्रण में रखते हैं, जिससे सामुदायिक अधिकारों एवं राज्य प्रबंधन के बीच विधिक संघर्ष होता है।

भारत में पवित्र वनों का वितरण

  • पवित्र वन सभी भारतीय राज्यों में पाए जाते हैं, जिनमें से कुछ विशेष क्षेत्रों में इनकी अधिकता है:-
    • पश्चिमी घाट एवं मध्य पठार: केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़।
    • पूर्वोत्तर राज्य: मेघालय, असम, अरुणाचल प्रदेश।
    • आदिवासी क्षेत्र: ओडिशा, झारखंड, मध्य प्रदेश।

  

  • अनुमानतः भारत में 1,00,000 से 1,50,000 पवित्र वन हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक संख्या है।
  • महाराष्ट्र में लगभग 3,000 पवित्र वन हैं, जिनके बारे में प्रमाणिक जानकारी दी गई है।
  • मेघालय का लिविंग रूट ब्रिज [जिंगकिएंग ज्री (Jingkieng Jri)], एक पवित्र वन है, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की भारत की संभावित सूची का हिस्सा है।

निष्कर्ष

इन स्थलों को मान्यता देकर एवं उनकी सुरक्षा करके, भारत अपनी समृद्ध जैव विविधता तथा सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के साथ-साथ संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदायों का समर्थन भी कर रहा है।

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