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कवच 5.0

Lokesh Pal April 16, 2025 03:56 33 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय रेल मंत्री ने घोषणा की कि स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (Automatic Train Protection-ATP) प्रणालियों की शृंखला में नवीनतम कवच 5.0 प्रणाली को 30 प्रतिशत अधिक ट्रेनों में लागू किया जाएगा।

  • वर्तमान में, कवच 4.0 संस्करण भारतीय रेलवे के विभिन्न भागों में कार्यान्वयनाधीन है।

अनुसंधान डिजाइन एवं मानक संगठन (Research Design & Standards Organization-RDSO)

  • RDSO रेल मंत्रालय की एकमात्र अनुसंधान एवं विकास शाखा है।
  • स्थान: RDSO लखनऊ, उत्तर प्रदेश में स्थित है।
  • कार्य: RDSO रेलवे बोर्ड, क्षेत्रीय रेलवे और अन्य संबंधित संस्थाओं के लिए डिजाइन, मानकीकरण तथा अन्य रेलवे से संबंधित मुद्दों पर तकनीकी सलाहकार एवं परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है।

कवच क्या है?

  • यह ‘अनुसंधान डिजाइन एवं मानक संगठन’ (RDSO) द्वारा विकसित एक स्वदेशी स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (ATP) प्रणाली है।
  • भारत की राष्ट्रीय ATP प्रणाली के रूप में अपनाया गया, जो ट्रेनों के लिए सुरक्षा और टक्कर-रोधी सुविधाएँ सुनिश्चित करता है।
  • सुरक्षा अखंडता स्तर-4 (SIL-4) मानकों का पालन करता है, जो उच्च सुरक्षा मानकों को दर्शाता है।
  • कैब सिग्नलिंग ट्रेन नियंत्रण प्रणाली के रूप में कार्य करता है, ट्रेन की गतिविधियों और सिग्नलिंग स्थितियों की निगरानी करता है।

  • मुख्य विशेषताएँ
    • स्वचालित ब्रेकिंग: यदि लोको पायलट लाल सिग्नल मिस कर देता है तो सक्रिय हो जाता है (सिग्नल पासिंग एट डेंजर (Signal Passing at Danger) – SPAD)।
    • RFID और सेंसर: वास्तविक समय निगरानी के लिए ट्रैक, ट्रेन और स्टेशनों पर रेडियो-फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (Radio-Frequency Identification-RFID) का उपयोग करता है।
    • टक्कर का पता लगाना: यदि कोई अन्य ट्रेन उसी ट्रैक पर है तो अलर्ट प्रदान करता है और ट्रेन को रोकता है।
    • गति नियंत्रण: यह सुनिश्चित करता है कि ट्रेनें निर्धारित गति सीमा के भीतर चलें।
    • मौसम अनूकुल: कोहरे, भारी वर्षा और अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों में प्रभावी ढंग से काम करता है।
  • प्रौद्योगिकी और प्रेरणा
    • हाइब्रिड मॉडल: इसमें निम्नलिखित विशेषताएँ शामिल हैं:
      • यूरोपीय ट्रेन सुरक्षा और चेतावनी प्रणाली (European Train Protection & Warning System-ETPWS)।
      • स्वदेशी टक्कर रोधी उपकरण (Anti-Collision Device-ACD)।
    • कैब सिग्नलिंग: बेहतर जागरूकता के लिए लोको पायलट के केबिन के अंदर सिग्नल की स्थिति प्रदर्शित करता है।

कवच 5.0

  • स्वचालित ट्रेन सुरक्षा (ATP) प्रणालियों की शृंखला में नवीनतम कवच 5.0 को ट्रेनों की संख्या में 30 प्रतिशत की वृद्धि करने के लिए लागू किया जाएगा।
  • इसका उद्देश्य ट्रेनों के बीच अंतराल (ट्रेनों के बीच का अंतर) को 180 सेकंड से घटाकर 30% करना है।
  • मुंबई लोकल सेवाओं में 30% (लगभग 3,500 दैनिक सेवाओं से) वृद्धि की उम्मीद है।
  • पूर्ण होने का लक्ष्य: दिसंबर 2025।

भारतीय रेलवे के लिए कवच का महत्त्व

  • सुरक्षा में वृद्धि
    • टकराव को रोकता है: यदि कोई ट्रेन सिग्नल (SPAD) पार कर जाती है या उसी ट्रैक पर किसी अन्य ट्रेन के पास आती है, तो स्वचालित रूप से ब्रेक लगाता है।
    • मानवीय त्रुटि को कम करता है: लोको पायलट की थकान, ध्यान भटकने या गलत निर्णय से होने वाले जोखिम को कम करता है।
    • मौसमरोधी: कोहरे, भारी वर्षा और कम दृश्यता में प्रभावी ढंग से काम करता है, जिससे मौसम संबंधी दुर्घटनाएँ कम होती हैं।
  • परिचालन दक्षता (Operational Efficiency)
    • ट्रेन की आवृत्ति बढ़ाता है: कवच 5.0 का लक्ष्य हेडवे (ट्रेनों के बीच का अंतर) को 30% तक कम करना है, जिससे एक ही ट्रैक पर अधिक ट्रेनें चल सकेंगी।
      • मुंबई लोकल (3,500+ दैनिक सेवाएँ) जैसे उच्च घनत्व वाले मार्गों के लिए महत्त्वपूर्ण।
    • ट्रैक उपयोग को अनुकूलित करता है: सुरक्षा के साथ उच्च गति सक्षम करता है, समय दक्षता में सुधार करता है।
  • लागत प्रभावी आधुनिकीकरण
    • स्वदेशी और वहनीय: RDSO द्वारा भारतीय उद्योग के साथ मिलकर विकसित, जिससे महँगी विदेशी प्रणालियों पर निर्भरता कम होगी।
    • स्केलेबल: इसे महानगरों, उपनगरीय और लंबी दूरी के नेटवर्क में प्रयोग किया जा सकता है।
  • आपदा लचीलापन (Disaster Resilience)
    • भूकंप और चरम मौसम अनुकूलन: प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों (जैसे- जापान के EEWS) के साथ एकीकृत करने की क्षमता।
    • ‘एंटी-डिरेलमेंट’ सुविधाएँ: भविष्य के उन्नयन में ‘ट्रैक फॉल्ट’ का पता लगाना शामिल हो सकता है।
  • आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा
    • आयात निर्भरता कम करता है: ETCS (यूरोप) या ATC (जापान) के विपरीत, कवच भारत में बनाया जाता है।
    • निर्यात क्षमता: समान रेल नेटवर्क वाले अन्य विकासशील देशों में इसका विपणन किया जा सकता है।
  • वैश्विक मानकों का अनुपालन
    • भारतीय रेलवे सुरक्षा मानक और अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं (जैसे- यूरोपीय संघ के ETCS  स्तर 2) के साथ संरेखित करता है।
    • ‘मिशन जीरो एक्सीडेंट्स’ का समर्थन करता है: रेल मंत्रालय के सुरक्षा लक्ष्यों को प्राप्त करने की कुंजी।

रेल सुरक्षा में वैश्विक सर्वोत्तम अभ्यास

  • यूनाइटेड किंगडम (यूके): सिग्नल अनुपालन और वास्तविक समय ट्रेन प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए ट्रेन सुरक्षा और चेतावनी प्रणाली (Train Protection and Warning System-TPWS) और यूरोपीय ट्रेन नियंत्रण प्रणाली (European Train Control System-ETCS) को लागू करता है।
    • इसके अतिरिक्त, रेल दुर्घटना जाँच शाखा (Rail Accident Investigation Branch-RAIB) सुरक्षा उपायों को बढ़ाने के लिए रेल दुर्घटनाओं की स्वतंत्र जाँच करती है।
  • जापान: सटीक गति विनियमन के लिए स्वचालित ट्रेन नियंत्रण (Automatic Train Control-ATC) का उपयोग करता है, प्रारंभिक दोष पहचान के लिए व्यापक स्वचालित ट्रेन सूचना प्रणाली (Comprehensive Automatic Train Information System-CATIS) का उपयोग करता है।
    • भूकंप प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Earthquake Early Warning System-EEWS), जो पटरी से उतरने से रोकने के लिए भूकंपीय गतिविधियों के दौरान स्वचालित रूप से ट्रेनों को रोक देती है।

कवच कार्यान्वयन में चुनौतियाँ

  • उच्च स्थापना लागत: प्रत्येक लोकोमोटिव और स्टेशन के लिए RFID टैग, सेंसर और ऑनबोर्ड डिवाइस की आवश्यकता होती है।
    • बजट बाधाएँ: ₹1,112 करोड़ आवंटन (2024-25) के बावजूद, पूर्ण पैमाने पर तैनाती के लिए ~₹50,000 करोड़ (अनुमानित) की आवश्यकता है।
    • कवच के स्टेशन उपकरण सहित ट्रैक साइड के प्रावधान की लागत लगभग 50 लाख रुपये/किमी. है और लोकोमोटिव पर कवच उपकरण के प्रावधान की लागत लगभग 80 लाख रुपये/लोको है।
  • संगतता संबंधी मुद्दे: पुरानी ट्रेनों और सिग्नलिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को कवच के साथ एकीकृत करने के लिए अपग्रेड की आवश्यकता है।
  • मिश्रित यातायात: भारतीय रेलवे अलग-अलग गति से यात्री गाड़ियाँ/मालगाड़ियाँ चलाता है, जिससे एक समान संचालन जटिल हो जाता है।
  • तकनीकी और परिचालन बाधाएँ
    • सघन नेटवर्क जटिलता: उच्च आवृत्ति वाले मार्गों (जैसे- मुंबई लोकल) को गलत अलार्म से बचने के लिए सटीक ट्यूनिंग की आवश्यकता होती है।
    • बिजली और कनेक्टिविटी की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में वास्तविक समय डेटा ट्रांसमिशन के लिए निर्बाध बिजली/4G नेटवर्क की कमी है।
  • परिचालन की धीमी गति
    • सीमित कवरेज: वर्तमान में केवल 1,500 किलोमीटर रेल मार्ग (दक्षिण मध्य रेलवे क्षेत्र में) में ही परिचालन हो रहा है। भारतीय रेलवे लगभग 69,000 किलोमीटर की कुल मार्ग लंबाई का प्रबंधन करता है।
    • नौकरशाही देरी: निविदा, खरीद और अनुमोदन निष्पादन को धीमा कर देते हैं।
  • साइबर सुरक्षा चिंताएँ
    • चूँकि कवच वायरलेस संचार पर निर्भर है, इसलिए यदि इसे उचित रूप से सुरक्षित नहीं किया गया तो यह हैकिंग, जैमिंग या साइबर हस्तक्षेप के प्रति संवेदनशील है।

कवच के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए आगे की राह

  • उच्च जोखिम वाले गलियारों को प्राथमिकता देना: सुरक्षा प्रभाव को अधिकतम करने के लिए सबसे पहले दुर्घटना-ग्रस्त मार्गों (जैसे, दिल्ली-हावड़ा, मुंबई-चेन्नई) पर ध्यान केंद्रित करना।
    • मेट्रो और उपनगरीय नेटवर्क (जैसे मुंबई लोकल) उच्च यातायात घनत्व के कारण विशेष रूप से केंद्रित होने चाहिए।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल: तेज स्थापना, रखरखाव और तकनीकी उन्नयन के लिए निजी अभिकर्ताओं को शामिल करना।
    • वित्तीय बोझ को कम करने के लिए हाइब्रिड फंडिंग (सरकारी+निजी निवेश)।
  • अगली पीढ़ी के कवच के लिए त्वरित अनुसंधान और विकास: पूर्वानुमानित टक्कर से बचने और गतिशील गति समायोजन के लिए AI/ML को एकीकृत करना।
    • वैश्विक अनुकूलता के लिए कवच को ETCS/ATC के साथ मिलाकर हाइब्रिड सिस्टम विकसित करना।
  • उन्नत प्रशिक्षण और कार्यबल अनुकूलन: कवच संचालन पर लोको पायलटों के लिए अनिवार्य सिम्युलेटर प्रशिक्षण।
    • स्वचालन के प्रति प्रतिरोध को कम करने के लिए कर्मचारियों को नौकरी की सुरक्षा के बारे में आश्वस्त करना।
  • मजबूत रखरखाव और साइबर सुरक्षा: त्वरित दोष समाधान के लिए समर्पित कवच रखरखाव टीमें।
    • साइबर खतरों (हैकिंग, सिग्नल जैमिंग) के विरुद्ध सिस्टम को सुरक्षित करना।
  • नीति और विनियामक सहायता: कवच से संबंधित निविदाओं और परियोजनाओं के लिए त्वरित स्वीकृति।
    • कार्यान्वयन के लिए सख्त समय सीमाएँ (उदाहरण के लिए, 5 वर्षों में 100% कवरेज)।

निष्कर्ष 

कवच 5.0 भारतीय रेलवे के लिए एक परिवर्तनकारी पहल है, जो स्वदेशी नवाचार के माध्यम से सुरक्षा और दक्षता में वृद्धि करती है। विभिन्न चुनौतियों के बावजूद इसका सफल कार्यान्वयन, वैश्विक मानकों के अनुरूप एक सुरक्षित, आधुनिक रेल नेटवर्क का मार्ग प्रशस्त करेगा और आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देगा।

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