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कुट्टनाड आर्द्रभूमि कृषि प्रणाली

Lokesh Pal December 24, 2025 03:44 10 0

संदर्भ 

केरल के ‘धान के कटोरे’ के रूप में प्रसिद्ध कुट्टनाड में हालिया मृदा परीक्षणों के दौरान धान के खेतों में एल्युमिनियम की अत्यधिक मात्रा पाई गई है, जिसकी जानकारी केरल कीट निगरानी केंद्र (KCPM) ने दी है।

मुख्य निष्कर्ष

  • केरल कीट प्रबंधन केंद्र  (KCPM) द्वारा किए गए परीक्षणों में एल्युमिनियम का स्तर लगभग 77 से 330 ppm के बीच पाया गया।
  • यह धान की खेती के लिए सुरक्षित सीमा 2 ppm से 39 से 165 गुना अधिक है।

कुट्टनाड की मृदाओं में एल्युमिनियम के उच्च स्तर के कारण

  • कुट्टनाड की अम्लीय सल्फेट मृदाओं में मृदा PH प्रायः 5 से नीचे चला जाता है, जिससे एल्युमिनियम की घुलनशीलता और विषाक्तता अत्यधिक बढ़ जाती है।
  • समुद्र तल से नीचे की खेती, लंबे समय तक जलभराव और सीमित निकास व्यवस्था अम्लीय सल्फेट मृदा की स्थिति को और गंभीर बनाती है तथा घुलनशील एल्युमिनियम के मुक्त होने को बढ़ावा देती है।
  • सल्फाइड का ऑक्सीकरण: आर्द्रभूमि मृदाओं के निकास से लौह सल्फाइड (पाइराइट) वायु के संपर्क में आते हैं, जिससे सल्फ्यूरिक अम्ल बनता है और मृदा का Ph मान तीव्र रूप से घटता है।
  • अमोनियम-आधारित उर्वरकों का लंबे समय तक उपयोग मृदा को अधिक अम्लीय बना देता है, जिससे अम्लीय मृदाओं में एल्युमिनियम सक्रिय हो जाता है।
  • हाल के वर्षों में अपर्याप्त या अनियमित चूना-प्रयोग और मृदा निम्नीकरण से अम्लता में वृद्धि हुई है।
  • बाढ़ और अपक्षालन: बार-बार आने वाली बाढ़ कैल्शियम और मैग्नीशियम जैसे क्षारीय पोषक तत्त्वों को बहा ले जाती है, जो सामान्यतः अम्लता को निष्क्रिय करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चरम बाढ़ और लंबे शुष्क काल मृदा अम्लीकरण की प्रक्रिया को और तेज करने की संभावना रखते हैं।

कृषि पर प्रभाव

  • एल्युमिनियम विषाक्तता धान की जड़ों को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त करती है, जिससे जल और पोषक तत्त्वों का अवशोषण बाधित होता है।
  • एल्युमिनियम फॉस्फोरस, कैल्शियम, पोटैशियम और मैग्नीशियम जैसे प्रमुख पोषक तत्त्वों के अवशोषण में हस्तक्षेप करता है, जिससे पोषक तत्त्वों की कमी बढ़ जाती है।
  • द्वितीयक विषाक्तता: कुट्टनाड की अत्यधिक अम्लीय मृदाओं में लौह भी हानिकारक मात्रा में उपस्थित रहता है, जिससे समस्या और गंभीर हो जाती है।
  • जड़ की क्षति और पोषक तत्त्वों के अवरोध का संयुक्त प्रभाव धान की पैदावार में उल्लेखनीय कमी लाता है।
  • विशिष्ट मौसम के लिए खतरा: यह समस्या ‘पुंचा’ फसल के मौसम के लिए खतरा उत्पन्न कर रही है, जो पहले से ही उर्वरक की कमी के दबाव से ग्रसित है।
  • खाद्य सुरक्षा पर जोखिम: केरल के “धान के कटोरे” के रूप में कुट्टनाड की उत्पादकता में दीर्घकालिक गिरावट क्षेत्रीय खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल सकती है।

कुट्टनाड आर्द्रभूमि कृषि प्रणाली

  • अवस्थिति: कुट्टनाड, केरल में स्थित, वेम्बनाद झील के आस-पास अलप्पुझा, कोट्टायम और पथानामथिट्टा जिलों तक विस्तृत है।
  • यह विश्व की उन चुनिंदा कृषि प्रणालियों में से एक है, जो औसत समुद्र तल से लगभग 1–2 मीटर नीचे स्थित है और बाँधों तथा तटबंधों द्वारा संरक्षित है।

  • संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की मान्यता: वर्ष 2013 में इसे वैश्विक रूप से महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली घोषित किया गया।
  • पारंपरिक जल प्रबंधन: पॉल्डर (पाडशेखरम्), मैनुअल स्लूइस संचालन और मौसमी जलनिकास के माध्यम से बाढ़ और लवणता नियंत्रण।
  • फसल प्रणाली: मुख्यतः धान की खेती; समुदाय-आधारित समन्वित कृषि पद्धतियाँ।
  • एकीकृत आजीविका: कृषि, मत्स्यपालन, पशुपालन और आंतरिक जल परिवहन का संयोजन, जिससे अनुकूलन और आय में वृद्धि होती है।
  • पारिस्थितिक महत्त्व: वेम्बनाद आर्द्रभूमि पारितंत्र का हिस्सा, जैव विविधता, पोषक तत्त्व चक्रण और बाढ़ नियंत्रण में सहायक।
  • सामुदायिक संस्थाएँ: कृषक सहकारी समितियों और पाडशेखरम समितियों के माध्यम से सशक्त सामूहिक कार्रवाई।
  • जलवायु प्रासंगिकता: बाढ़, समुद्र-स्तर वृद्धि और लवणता के प्रति अनुकूलन का जीवंत मॉडल।
  • संरक्षण पर ध्यान: सतत् सघनीकरण, पर्यावरण-अनुकूल पद्धतियाँ, आर्द्रभूमि पुनर्स्थापन और नीतिगत समर्थन की आवश्यकता।

वैश्विक रूप से महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणालियाँ

  • GIAHS, संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की एक पहल है, जिसका उद्देश्य सदियों में समुदायों द्वारा विकसित पारंपरिक और सतत् कृषि प्रणालियों को मान्यता देना है।
  • प्रारंभ: कृषि विरासत के संरक्षण के लिए FAO द्वारा वर्ष 2002 में शुरू किया गया।
  • उद्देश्य: कृषि-जैव विविधता, पारंपरिक ज्ञान और सांस्कृतिक परिदृश्यों का संरक्षण तथा सतत् आजीविका और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  • मुख्य विशेषताएँ
    • समृद्ध कृषि-जैव विविधता
    • स्वदेशी ज्ञान प्रणालियाँ
    • जलवायु-सहिष्णु कृषि पद्धतियाँ
    • मानव–प्रकृति के बीच सशक्त अंतःक्रिया।
  • दृष्टिकोण: यह स्थानीय समुदायों के सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ-साथ संरक्षण को संतुलित करने पर केंद्रित है।
  • यूनेस्को स्थलों से अंतर: यह जीवंत और उत्पादक प्रणालियों पर केंद्रित है, जबकि अन्य वैश्विक विरासत स्थल मुख्यतः संरक्षण पर बल देते हैं।

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