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उचित एंटीबायोटिक दवाओं तक पहुँच का अभाव

Lokesh Pal May 02, 2025 02:22 8 0

संदर्भ

द लैंसेट इन्फेक्शियस डिजीज में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है, कि भारत में दवा रोधी संक्रमण से ग्रसित केवल 7.8% रोगियों को उचित एंटीबायोटिक्स प्राप्त हुए, जबकि आठ निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में यह औसत 6.9% है।

कार्बापेनम-रेसिस्टेंट ग्राम-नेगेटिव (CRGN) के बारे में

  • कार्बापेनम-रेसिस्टेंट ग्राम-नेगेटिव (CRGN) संक्रमण बैक्टीरिया के कारण होता है, जो कार्बापेनम के प्रति प्रतिरोधी होते हैं, जो अंतिम उपाय एंटीबायोटिक दवाओं का एक वर्ग है।
  • इन संक्रमणों का उपचार करना अत्यंत मुश्किल है, जिससे मृत्यु दर बहुत अधिक हो जाती है, अस्पताल में लंबे समय तक रहना पड़ता है और स्वास्थ्य सेवा की लागत बढ़ जाती है।
  • इनका उपचार केवल नई पीढ़ी के एंटीबायोटिक जैसे कि सेफ्टाजिडाइम-एविबैक्टम, कोलिस्टिन, टिगेसाइक्लिन और फॉस्फोमाइसिन का उपयोग करके किया जा सकता है।

संबंधित तथ्य

अध्ययन में भारत, बांग्लादेश, ब्राजील, मिस्र, केन्या, मैक्सिको, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका सहित देशों में ‘कार्बापेनम-रेसिस्टेंट ग्राम-नेगेटिव’ (CRGN) संक्रमण के 1.5 मिलियन मामलों की जाँच की गई।

अध्ययन के मुख्य बिंदु: ‘ग्लोबल एंटीबायोटिक रिसर्च एंड डेवलपमेंट पार्टनरशिप’ (GARDP)

  • उद्देश्य: स्वास्थ्य सुविधा प्रस्तुति से लेकर नैदानिक ​​परीक्षण और प्रभावी उपचार पहुँच तक की बाधाओं की पहचान करना।
    • इसमें लैंसेट के ग्लोबल बर्डन ऑफ AMR (GRAM) अध्ययन और IQVIA, 2019 के डेटा का उपयोग किया गया।
  • डेटा बेस: शोध में आठ कम और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) के डेटा का आकलन किया गया: भारत, बांग्लादेश, ब्राजील, मिस्र, केन्या, मैक्सिको, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका।
  • भारत में उच्च बोझ: वर्ष 2019 में, भारत में लगभग 10 लाख कार्बापेनम-रेसिस्टेंट ग्राम-नेगेटिव (CRGN) संक्रमण के मामले दर्ज किए गए, लेकिन 1 लाख से भी कम रोगियों को उचित उपचार मिला। यह भी पाया गया कि भारत में CRGN संक्रमण वाले केवल 7.8% रोगियों को उचित एंटीबायोटिक्स मिले।
    • अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि इन संक्रमणों के अपर्याप्त उपचार के कारण भारत में लगभग 3.5 लाख मौतें होती हैं।

PW Only IAS विशेष

कार्य समूह 4 (WG4): NMP चार समय-सीमित कार्य समूहों (WG) द्वारा निर्मित है, जो पारदर्शिता, एकजुटता, स्थिरता और नवीन रोगाणुरोधी दवाओं के विषयों का अनुसरण करते हैं।

एंटीबायोटिक दवाओं तक पहुँच से संबंधित चुनौतियाँ

  • विरोधाभासी चुनौती: भारत जैसे देश को एक ओर उच्च-स्तरीय एंटीबायोटिक दवाओं के अतार्किक अति प्रयोग की विरोधाभासी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, तो दूसरी ओर वास्तविक आवश्यकता वाले लोगों के लिए उन तक सीमित पहुँच है।
  • आपूर्ति शृंखला संबंधी समस्याएँ: जब माँग आपूर्ति से अधिक हो जाती है, तो बीच-बीच में कमी के कारण पहुँच में बाधा आती है और विपणन प्राधिकरण धारक (Marketing Authorisation Holder-MAH) आर्थिक कारणों से, विशेष रूप से LMIC में, बाजारों से रोगाणुरोधी दवाओं को वापस ले लेते हैं।
  • बुनियादी ढाँचे की कमी: अविकसित प्रयोगशाला बुनियादी ढाँचे और जागरूकता की कमी के कारण कई रोगियों का ठीक से निदान नहीं हो पाता है, जिसके कारण देरी होती है या उचित उपचार शुरू नहीं हो पाता है।
  • नीतिगत अंतराल: कमजोर एंटीबायोटिक प्रबंधन कार्यक्रम और प्रभावी विनियामक सुरक्षा का अभाव दुरुपयोग और पहुँच संबंधी विफलताओं को बढ़ावा देता है, जिससे रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) बढ़ता है।

एंटीबायोटिक दवाओं तक पहुँच में सुधार के लिए वैश्विक पहल

  • WHO नोवेल मेडिसिन प्लेटफॉर्म (Novel Medicines Platform-NMP): अप्रैल 2024 में लॉन्च किए गए NMP का उद्देश्य नोवेल एंटीबायोटिक्स के सतत् नवाचार को सुनिश्चित करना और मौजूदा एंटीबायोटिक्स तक पहुँच को बढ़ाना है।
  • कार्य समूह 4 (WG4): NMP के WG4 ने विनियामक, वित्तीय और आपूर्ति शृंखला समाधानों पर ध्यान केंद्रित करते हुए एंटीबायोटिक पहुँच में सुधार के लिए बहु-हितधारक प्रस्ताव विकसित करने की योजना बनाई है।
  • सिक्योर ग्लोबल इनिशिएटिव: UNICEF, WHO और GARDP द्वारा विकसित ‘सिक्योर’ का उद्देश्य LMIC के लिए एंटीबायोटिक पहुँच का विस्तार करना है, जिससे एंटीमाइक्रोबियल का तर्कसंगत और न्यायसंगत उपयोग सुनिश्चित हो सके।

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