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लद्दाख में विरोध प्रदर्शन

Lokesh Pal September 26, 2025 04:23 19 0

संदर्भ 

हाल ही में लद्दाख में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं, प्रदर्शनकारी पूर्ण राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की माँग कर रहे हैं।

  • जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने युवाओं से पाँच वर्ष से चल रहे स्वायत्तता के आंदोलन में शांति बनाए रखने की अपील करने के बाद अपना 15 दिन का अनशन समाप्त कर दिया।

मामले का पृष्ठभूमि

  • वर्ष 2019 का पुनर्गठन: अनुच्छेद-370 को समाप्त करने के बाद, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम ने पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया – जम्मू-कश्मीर (विधानसभा सहित) और लद्दाख (विधानसभा रहित)।
  • प्रारंभिक प्रतिक्रिया: जम्मू-कश्मीर के विपरीत, जहाँ अशांति देखी गई, लद्दाख ने प्रारंभ में केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा प्राप्त करने का स्वागत किया तथा जम्मू-कश्मीर से प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व एवं अधिक स्वायत्तता की उम्मीद की।

लद्दाख विरोध की मुख्य माँगें

  • राज्य का दर्जा: लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देकर विधायी शक्तियाँ बहाल करना और स्व-शासन सुनिश्चित करना।
  • छठी अनुसूची: जनजातीय पहचान और अधिकारों की रक्षा के लिए छठी अनुसूची में शामिल करना।
    • लद्दाख की 90% से अधिक आबादी अनुसूचित जनजाति से संबंधित है।

रोजगार: बढ़ती बेरोजगारी से निपटने के लिए एक अलग लोक सेवा आयोग की स्थापना की माँग।

  • प्रतिनिधित्व: वर्तमान में लद्दाख में लोकसभा की केवल 1 सीट है।
    • केंद्र में अपनी बात मजबूती से रखने के लिए दो लोकसभा सीटें (लेह और कारगिल अलग-अलग) और एक राज्यसभा सीट की माँग।

प्रदर्शन के मुख्य कारक

  • स्वायत्तता का ह्रास: पहाड़ी विकास परिषदों की स्वायत्तता में कमी, प्रत्यक्ष केंद्रीय प्रशासन के तहत निर्णय लेने की शक्तियों में कटौती कर दी गई।
    • प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि मौजूदा पहाड़ी विकास परिषदें उपराज्यपाल के अधीन हैं और उनमें वास्तविक स्वायत्तता का अभाव है।
  • पर्यावरणीय दबाव: पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील घाटियों में अंधाधुंध खनन और औद्योगीकरण का डर।
  • सीमा सुरक्षा: वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी उपस्थिति और पश्मीना चरवाहों के लिए चरागाह भूमि तक सीमित पहुँच होना।
  • विकेंद्रीकरण का अभाव: सीधे केंद्र सरकार के प्रशासन के तहत विधानमंडल के बिना केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा, शासन में स्थानीय भागीदारी को कम करता है।
  • रोजगार की कमी: जम्मू-कश्मीर के भर्ती बोर्ड से अलग होने के बाद रोजगार के अवसरों की कमी।
    • एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार, लद्दाख में 26.5% स्नातक बेरोजगार हैं, जो अंडमान और निकोबार (33%) के बाद पूरे भारत में दूसरा सबसे अधिक प्रतिशत है।

छठी अनुसूची के बारे में: 

छठी अनुसूची (अनुच्छेद 244) स्वायत्त जिला परिषदों (ADC) को भूमि, वन, कृषि, जल, स्वास्थ्य और स्थानीय पुलिस जैसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार देती है।

छठी अनुसूची के प्रावधान

  • अनुच्छेद-244(2): यह असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन पर लागू होता है।
  • स्वायत्त जिले और स्वायत्त क्षेत्र
    • चार राज्यों के आदिवासी क्षेत्र स्वायत्त जिलों के रूप में प्रशासित होते हैं।
    • यदि किसी जिले में कई अनुसूचित जनजाति समुदाय रहते हैं, तो राज्यपाल उसे स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित कर सकते हैं।
    • राज्यपाल के पास जिलों का पुनर्गठन करने, सीमाओं में बदलाव करने या उनका नाम बदलने का अधिकार है।
  • परिषदों का गठन
    • जिला परिषद: प्रत्येक स्वायत्त जिले के लिए एक, अधिकतम 30 सदस्य (गवर्नर द्वारा नामित अधिकतम 4 सदस्य, बाकी वयस्क मताधिकार द्वारा चुने गए)।
    • क्षेत्रीय परिषद: प्रत्येक स्वायत्त क्षेत्र के लिए अलग परिषद।
  • परिषद की विधायी शक्तियाँ
    • भूमि, वन प्रबंधन (सुरक्षित वन क्षेत्र को छोड़कर), वसीयत और स्थानीय व्यापार नियमों जैसे विषयों पर कानून बना सकती है।
    • जनजातीय क्षेत्रों में गैर-जनजातीय लोगों द्वारा धन उधार देने या व्यापार करने को नियंत्रित करने वाले कानून।
    • सभी कानूनों को राज्यपाल की सहमति की आवश्यकता होती है।
  • राजस्व और कर
    • परिषदें भूमि राजस्व का आकलन और संग्रह कर सकती हैं और व्यवसाय, व्यापार, पशु, वाहन आदि पर कर लगा सकती हैं।
    • वे अपने अधिकार क्षेत्र में खनिज उत्खनन के लिए लाइसेंस या लीज जारी करने का अधिकार रखती हैं।
  • न्याय प्रशासन
    • परिषदें केवल अनुसूचित जनजाति के सदस्यों से संबंधित विवादों के लिए ग्राम और जिला परिषद न्यायालय स्थापित कर सकती हैं।
    • राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट मामलों पर उच्च न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र बना रहता है।
    • परिषद न्यायालय मृत्युदंड या पाँच वर्ष से अधिक की सजा वाले मामलों की सुनवाई नहीं कर सकते हैं।
  • विकास संबंधी शक्तियाँ: परिषदें प्राथमिक स्कूल, डिस्पेंसरी, बाजार, पशुपालकों के लिए तालाब, मत्स्यपालन, सड़कें, परिवहन और जलमार्ग स्थापित या प्रबंधित कर सकती हैं।
  • कानूनों का लागू होना: संसद या राज्य विधानमंडल के कानून स्वायत्त जिलों/क्षेत्रों में सीधे लागू नहीं होते या उनमें संशोधन/अपवाद के साथ लागू होते हैं।
  • राज्यपाल की शक्तियाँ: स्वायत्त जिलों या क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित मुद्दों की जाँच के लिए आयोग नियुक्त कर सकते हैं।

व्यापक निहितार्थ

  • संघवाद और क्षेत्रीय आकांक्षाएँ: यह सामरिक सुरक्षा की आवश्यकताओं और स्वायत्तता के लोकतांत्रिक माँगों के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती पर प्रकाश डालता है।
  • लेह और कारगिल की एकता: लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के माध्यम से बौद्ध-मुस्लिम एकता का दुर्लभ उदाहरण, जो माँगों की गंभीरता को दर्शाता है।
  • आंतरिक सुरक्षा: शांतिपूर्ण आंदोलन का हिंसक रूप लेना एक सामरिक सीमा क्षेत्र में अस्थिरता का खतरा उत्पन्न कर सकता है।

सरकार का जवाब

  • राज्य का दर्जा: केंद्र सरकार का कहना है कि लद्दाख को पहले ही केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा मिल चुका है, जो उनकी पुरानी माँग थी।
  • छठी अनुसूची: सरकार हिल डेवलपमेंट काउंसिल के तहत मौजूदा सुरक्षा उपायों की बात करती है, जबकि प्रदर्शनकारी इसे पर्याप्त नहीं मानते हैं।
  • रणनीतिक चिंताएँ
    • चीन के साथ विवादित LAC पर लद्दाख की भौगोलिक स्थिति के कारण केंद्र सरकार पूर्ण रूप से शक्तियाँ सौंपने से बच रही है। 
    • राज्य का दर्जा मिलने से सैनिकों की आवाजाही, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं और सीमा सुरक्षा में मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

आगे की राह

  • पहाड़ी विकास परिषद की शक्तियों में विस्तार: लेह और कारगिल पहाड़ी विकास परिषद  को अधिक विधायी और वित्तीय स्वायत्तता देकर उन्हें मजबूत करना।
  • रोजगार और भूमि की सुरक्षा: जनजातीय लोगों की आजीविका की सुरक्षा और भूमि पर कब्जा रोकने के लिए विशेष आरक्षण और कानूनी सुरक्षा लागू करना।
  • स्वायत्तता में धीरे-धीरे वृद्धि: राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं और स्थानीय आकांक्षाओं के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए, पूर्ण राज्य का दर्जा न देकर, दिल्ली मॉडल की तरह, केंद्रशासित प्रदेश के बेहतर दर्जे के मॉडल पर विचार किया जा सकता है।
  • संवाद और विश्वास-निर्माण: लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के साथ व्यवस्थित बातचीत पुनः प्रारंभ करना, ताकि लेह और कारगिल दोनों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो।
  • लंबे समय का समझौता: केंद्र रणनीतिक कारणों से लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश के रूप में बरकरार रख सकता है, लेकिन शासन, नौकरियों और भूमि पर रियायतें दे सकता है, जो कि राज्य का दर्जा और यथास्थिति के बीच का एक मध्य मार्ग है।

निष्कर्ष 

लद्दाख विरोध प्रदर्शन स्वायत्तता, प्रतिनिधित्व और सुरक्षा उपायों की स्थानीय आकांक्षाओं को दर्शाता है। स्थिरता बनाए रखने के लिए रचनात्मक संवाद और संस्थागत सुधार अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

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