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भारत के लिए भूस्खलन संवेदी मानचित्र (Landslide Susceptibility Map For India)

Samsul Ansari January 10, 2024 06:36 418 0

संदर्भ

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली ने भारत के लिए पहला हाई-रिजाॅल्यूशन वाला भूस्खलन संवेदी मानचित्र (Landslide Susceptibility Map) तैयार किया है और इस मानचित्र संबंधी  आँकड़े निःशुल्क रूप से उपलब्ध है।

संबंधित तथ्य

  • वर्षं 2023 के अंत में, उत्तर-पूर्व मानसून के दौरान अत्यधिक वर्षा के कारण भारत के कई राज्यों में भारी बाढ़ तथा भूस्खलन हुआ, जिससे जन-धन का नुकसान हुआ।
  • यह मानचित्र भौगोलिक घटनाओं के संबंध में सबसे संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करने एवं शमन रणनीतियों के लिए संसाधनों को बेहतर ढंग से आवंटित करने में मदद करेगा।

 भूस्खलन संवेदी मानचित्र के बारे में

  • यह मानचित्र नवीनतम डेटा और डेटा संग्रह एवं मानचित्रण तकनीकों का उपयोग करता है। 
    • उच्च रिजाॅल्यूशन: यह मानचित्र 100 मीटर के रिजाॅल्यूशन पर संवेदनशीलता को चित्रित कर सकता है।
    • पहचाने गए क्षेत्र: इस मानचित्र में हिमालय की तलहटी के कुछ हिस्सों, असम-मेघालय क्षेत्र और पश्चिमी घाट जैसे कुछ क्षेत्रों में उच्च भूस्खलन संबंधी  संवेदनशीलता  की संभावना को स्वीकार किया गया है।
    • नया दृष्टिकोण: इससे उच्च जोखिम वाले कुछ पूर्व अज्ञात स्थानों (जैसे- पूर्वी घाट में आंध्र प्रदेश के उत्तर में कुछ क्षेत्र) का भी पता चलेगा।
सामूहिक शिक्षा (Ensemble learning)

  • यह एक मशीन लर्निंग तकनीक है जो कई मॉडलों से सूचनाओं को एकत्रित करके पूर्वानुमान में सटीकता एवं लचीलापन बढ़ाती है। 
  • इसका उद्देश्य समूह की सामूहिक बुद्धिमत्ता का लाभ उठाकर व्यक्तिगत मॉडल में मौजूद त्रुटियों या पूर्वाग्रहों को कम करना है।
  • एन्सेम्बल मशीन लर्निंग टेक्नोलॉजी का लाभ उठाना : एन्सेम्बल मशीन लर्निंग तब होता है जब किसी एक मॉडल से बड़े प्रभाव को औसत करने के लिए कई मशीन लर्निंग मॉडल का एक साथ उपयोग किया जाता है।
  • प्रयुक्त कारक: इसके द्वारा मृदा आवरण, भूमि क्षेत्र को कवर करने वाले वृक्षों की संख्या, सड़कों या पहाड़ों से दूरी आदि जैसे कारकों से संबंधित जानकारी एकत्र की गई।
    • इसमें जियो सड़क (Geo Sadak) का उपयोग किया गया है, जो भारत में राष्ट्रीय सड़क नेटवर्क पर डेटा के साथ एक ऑनलाइन प्रणाली है जो शहरों के बाहर स्थित सड़कों से संबंधित डेटा को प्रदर्शित करती है।

भूस्खलन (Landslides) के बारे में

  • भूस्खलन की परिभाषा: चट्टान, मृदा या मलबे के एक भाग का ढलान से नीचे की ओर  खिसकना भूस्खलन (Landslides) कहलाता है।
  • भूस्खलन प्रवण क्षेत्र: जिन क्षेत्रों में पेड़ कम हैं और सड़क-निर्माण गतिविधियाँ हो रही हैं और उन क्षेत्रों का स्थानीय ढलान अधिक हैं, वे अधिक अस्थिर एवं भूस्खलन के प्रति संवेदनशील हैं।

भारत का भूस्खलन मानचित्र (Landslide Atlas of India)

  • भारत का भूस्खलन मानचित्र: यह देश में भूस्खलन हॉटस्पॉट की पहचान करने वाली एक विस्तृत मार्गदर्शिका है।
  • जारीकर्त्ता: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)।
  • ISRO के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (National Remote Sensing Centre- NRSC)  ने  वर्ष 1998-2022 की घटनाओं के आधार पर भारत के भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों का एक डेटाबेस बनाया है।
  • क्षेत्रीय फोकस : डेटाबेस में मुख्य रूप से हिमालय और पश्चिमी घाट के क्षेत्र शामिल हैं।
  • सैटेलाइट इमेजिंग: एरियल इमेज के अलावा, उच्च रिजाॅल्यूशन उपग्रह छवियों का उपयोग करके कैप्चर किया जाता है: 
    • कैमरे: भारतीय रिमोट सेंसिंग (Indian Remote Sensing- IRS-1D) PAN और  IRS LISS-III
    • उपग्रह: रिसोर्ससैट-1&2 (ResourceSat-1 and 2) आदि का उपयोग पिछले 25 वर्षों में भूस्खलन का अध्ययन करने के लिए किया गया था।

  • कारण: मृदा, चट्टान, भू-वैज्ञानिक संरचना, जल निकासी और ढलान की सही स्थितियों को देखते हुए भूस्खलन किसी भी क्षेत्र में हो सकता है।
    • प्राकृतिक कारण: वर्षा, बाढ़ या खुदाई के कारण ढलानों का विकृत होना, भूकंप, बर्फ का पिघलना आदि। 
    • मानवजनित कारण: मवेशियों द्वारा अत्यधिक चराई, भू-भाग को काटना और भरना, अनियंत्रित विकास आदि। 
      • उदाहरण के लिए- भूमि उपयोग परिवर्तन से वनों की कटाई होती है एवं एक प्रमुख रेलवे परियोजना के विकास हेतु ढलानों के कटान से वर्ष 2022 में पश्चिमी मणिपुर में  भूस्खलन की संभावना बढ़ गई है।
  • भूस्खलन संबंधी प्रवाह के प्रकार 
    • मलबा प्रवाह (Debris Flow): यह रैपिड मास मूवमेंट का एक रूप है जिसमें ढीली मिट्टी, चट्टान, कार्बनिक पदार्थ तथा घोल का संयोजन नीचे की ओर प्रवाहित होता है। यह आम तौर पर तीव्र वर्षा या तेजी से बर्फ पिघलने के कारण होता है। 
    • मृदा प्रवाह (Earth Flow): यह जल से संतृप्त बारीक कणों वाली मृदा का ढलान से नीचे की ओर प्रवाह  है इसे चिपचिपा मृदा प्रवाह भी कहा जाता है।
    • कीचड़ प्रवाह (Mud flow): कीचड़ प्रवाह महीन एवं मोटे दाने वाली सामग्री का एक गीला या चिपचिपा तरल पदार्थ है जो जल निकासी चैनलों के साथ तेजी से प्रवाहित  होता है। 
    • सरकना (Creep): यह गुरुत्वाकर्षण के कारण मृदा जैसी सामग्री की धीमी, स्थिर, नीचे की ओर होने वाली गति है जो एक बड़े क्षेत्र में होती है।

भारत में भूस्खलन का अवलोकन

  • भारत में भूस्खलन में वृद्धि: पिछले 50 वर्षों में, मानवीय गतिविधियों के कारण भूस्खलन की तीव्रता और आवृत्ति में वृद्धि हुई है।
    • उदाहरण के लिए- भारत ने राष्ट्रीय भारतमाला परियोजना (‘समृद्धि का मार्ग’) पहल के तहत पहाड़ी राज्यों में अपने सड़क नेटवर्क में सुधार एवं विस्तार किया है। 
    • हालाँकि, कॉपरनिकस संगठन ने ऋषिकेश और जोशीमठ के बीच NH-7 पर प्रति सड़क किलोमीटर एक से अधिक भूस्खलन दर्ज किया।
  • ISRO के भारत के भूस्खलन मानचित्र के निष्कर्ष  
    • भूस्खलन जोखिम में वैश्विक स्थिति: भारत विश्व स्तर पर शीर्ष पाँच भूस्खलन-प्रवण देशों में से एक है, जहाँ एक वर्ष में प्रति 100 वर्ग किमी. में कम-से-कम एक मौत की सूचना प्राप्त होती है।
    • वर्षा परिवर्तनशीलता पैटर्न: वर्षा परिवर्तनशीलता पैटर्न के मद्देनजर हिमालय और पश्चिमी घाट भूस्खलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बने हुए हैं।
    • भूस्खलन संभावित भूमि क्षेत्र: बर्फ से ढके क्षेत्रों को छोड़कर, भारत के भौगोलिक भूमि क्षेत्र का लगभग 12.6%।
    • क्षेत्रीय परिवर्तनशीलता: 66.5% भूस्खलन उत्तर-पश्चिमी हिमालय में, लगभग 18.8% उत्तर-पूर्वी हिमालय में और लगभग 14.7% पश्चिमी घाट में रिपोर्ट किए जाते हैं।
  • हिमालय में भूस्खलन: हिमालय में भूस्खलन की घटनाएँ बार बार होती हैं क्योंकि हिमालय तुलनात्मक रूप से एक युवा पर्वत प्रणाली है किंतु चट्टानी संरचना अभी भी कमजोर एवं नाजुक है। 

भूस्खलन के प्रमुख कारण

बाह्य कारण  

  • नदी के कटाव, उत्खनन, नहरों और सड़कों की खुदाई आदि के कारण पहाड़ी ढलान के निचले हिस्से का कटान होता है
  • इमारतों, जलाशयों, यातायात राजमार्गों, चट्टानों का संकेंद्रण, ढलानों पर जलोढ़ सामग्री का संचय आदि जैसे बाह्य भार में वृद्धि होना।
  • जल की मात्रा बढ़ने के कारण ढलान सामग्री के वजन में वृद्धि होती है जिससे भूस्खलन की संभावना बढ़ जाती है।
  • भूकंप, विस्फोट, यातायात आदि के कारण होने वाले कंपन से अपरूपक प्रतिबल (Shearing Stresses) में वृद्धि होती है।
  • वनों की कटाई के कारण होने वाले मानवजनित परिवर्तन के कारण भूस्खलन की संभावना प्रबल हो जाती है।
  • सुरंग खोदने, भूमिगत गुफाओं के ढहने, जल रिसाव के कारण कटाव आदि के कारण होने वाली क्षति।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (National Disaster Management Authority)

  • NDMA के बारे में: आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अनुसार , राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक वैधानिक एवं शीर्ष निकाय है।
  • अधिदेश: एनडीएमए को समय पर और प्रभावी आपदा प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए आपदा प्रबंधन के लिए नीतियाँ, योजनाएँ और दिशा-निर्देश निर्धारित करने का अधिदेश दिया गया है।

भूस्खलन और हिमस्खलन के प्रबंधन पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन दिशानिर्देश

  • खतरा, संवेदनशीलता और जोखिम का आकलन: भूस्खलन के खतरे वाले क्षेत्रों की पहचान करना तथा जोखिम वाले संसाधनों का आकलन करना।
  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: विभिन्न गतिविधियों तथा समय पर डेटा ट्रांसमिशन की निरंतर निगरानी करना।
  • जोखिम मूल्यांकन के लिए जाँच: व्यापक जोखिम मूल्यांकन के लिए बहु-विषयक जाँच से भूस्खलन के प्रभाव को प्रभावी ढंग से कम करने के लिए मानक तैयार करना।

आंतरिक कारण 

  • रंध्र जल दबाव में वृद्धि होना 
  • प्रगतिशील पार्श्वीकरण (Progressive Lateralization) के कारण एकजुट क्षमता में कमी। 
  • बारी-बारी से प्रसार एवं तनाव से सिकुड़न के कारण  दरारें उत्पन्न होना।
  • भ्रंश, ज्वाइंट, सतही तल, दरार आदि की उपस्थिति एवं उनका अभिविन्यास। 
  • चट्टानों एवं मृदा का जमना और पिघलना।
  • मृदा/चट्टानी सामग्री के भौतिक गुण जैसे संपीड़न शक्ति, अपरूपक प्रतिबल आदि।

भूस्खलन के प्रभाव

  • आर्थिक प्रभाव: भूस्खलन से घरों, सड़कों, इमारतों, जंगलों, वृक्षारोपण और कृषि क्षेत्रों को व्यापक क्षति होती है।
    • हिमाचल सरकार के राजस्व विभाग के अनुसार, वर्ष 2023 में 24 जून से 14 जुलाई तक मानसून के दौरान मूसलाधार वर्षा के कारण हुई व्यापक तबाही के कारण हिमाचल प्रदेश में बाढ़ एवं भूस्खलन से नुकसान की अनुमानित लागत 3738 करोड़ रुपये से अधिक है।
  • सामाजिक प्रभाव: भूकंप या ज्वालामुखी से जुड़े मामलों को छोड़कर भूस्खलन आपदाओं में जनहानि की संख्या अधिक नहीं होती है। परिणामतः मृत्यु दर वहाँ अधिक होती है जहाँ जनसंख्या दबाव के कारण भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में बस्तियाँ अधिक होती हैं। 
    • भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा जारी भारत के जलवायु विवरण वर्ष 2022 के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत में भारी वर्षा, बाढ़ और भूस्खलन से 835 लोगों की जान चली गई। 
    • केरल भूस्खलन 2021: भारी वर्षा  के कारण हुए भूस्खलन और बाढ़ में 20 से अधिक लोगों की मौत हो गई। भारत के राष्ट्रीय आपातकालीन प्रतिक्रिया केंद्र (National Emergency Response Centre- NERC) के अनुसार , 5,223 लोग विस्थापित हो गए हैं और 163 अस्थायी राहत शिविरों में चले गए।
    • मुंबई भूस्खलन 2021 : मुंबई उपनगरों में भारी वर्षा  के कारण हुए भूस्खलन के कारण कई घर ढह जाने से कम-से-कम 30 लोगों की मौत हो गई।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: भूस्खलन के परिणामस्वरूप निवास स्थान का विनाश, मिट्टी का क्षरण एवं  जल प्रदूषण होता है, पारिस्थितिक तंत्र में परिवर्तन होता है तथा जैव विविधता खतरे में पड़ जाती है। मृदा का विस्थापन, मृदा क्षरण को बढ़ाने में योगदान देता है, जिससे जल की गुणवत्ता एवं जलीय जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। 

आगे की राह 

  • भूस्खलन निगरानी में भूमि की हलचल और संभावित भूस्खलन गतिविधियों का पता लगाने के लिए  सेंसर, उपग्रह इमेजरी और भूमि-आधारित उपकरणों को तैनात करना शामिल है।
    • इसके लिए, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिकारी भूस्खलन पर चेतावनी देने के लिए मुन्नार में  कोच्चि-धनुषकोडी राष्ट्रीय राजमार्ग के गैप रोड खंड पर एक भूस्खलन पहचान प्रणाली स्थापित करने की योजना बना रहे हैं।
    • भूस्खलन जाँच प्रणाली: इसे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मंडी  (IIT-Mandi), भारतीय सेना और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (Defence Research and Development Organisation- DRDO) द्वारा विकसित किया गया था। 

केस स्टडी: जोशीमठ में भूस्खलन 

  • जोशीमठ एक पर्वतीय शहर है जो उत्तराखंड के चमोली जिले में ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-7) पर अवस्थित है।
  • यह पुराने भूस्खलन के निक्षेपों पर बसा हुआ है, जो ढलानों में मंद हलचल से भी अस्थिर हो सकता है।
  • यह शहर भूकंप क्षेत्र के जोन V के अंतर्गत आता है जो भारत की भूकंप जोन प्रणाली के अनुसार, सबसे अधिक जोखिम को दर्शाता है।

जोशीमठ में भूस्खलन के कारण

  • अनियोजित निर्माण, तेजी से बढ़ता पर्यटन, सरकार द्वारा वित्त पोषित मेगा बुनियादी ढाँचा और बिजली परियोजनाएँ।
  • अनुचित जल निकासी व्यवस्था।
  • सीमा सड़क संगठन (Border Roads Organisation- BRO) द्वारा बनाया जा रहा 6 किलोमीटर लंबा हेलंग-मारवाड़ी बाईपास (825 किलोमीटर लंबे चार धाम राजमार्ग विस्तार परियोजना का हिस्सा), ढलानों को कमजोर करने और स्थानीय स्थलाकृति को और अस्थिर करने के लिए जाँच के दायरे में है।
  • स्थानीय लोग नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन की तपोवन विष्णुगाड जलविद्युत परियोजना को एक गहरा संकट बताते हैं।

  • उपयोगकर्ता-अनुकूल भूस्खलन जोखिम मानचित्रों का निर्माण: इसमें भारतीय परिदृश्य में भूस्खलन जोनिंग मानचित्रों की विश्वसनीयता और सत्यापन के पहलुओं और मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी), स्थलीय लेजर स्कैनर और बहुत उच्च-रिज़ॉल्यूशन पृथ्वी अवलोकन (EO) डेटा जैसे उन्नत उपकरणों का उपयोग करके भूस्खलन जोनिंग को शामिल किया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं का पालन (ब्राजील का SNAKE सिस्टम): SNAKE सिस्टम भूस्खलन प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (LEWS) है जो डिजिटल निगरानी, ​​पूर्वानुमान और चेतावनी तंत्र में प्रगति का प्रतीक है। 
  • भूस्खलन प्रबंधन के लिए एक विशेष प्रयोजन वाहन (SPV) का निर्माण: राष्ट्रीय स्तर पर एक विशेषज्ञ पेशेवर समूह का गठन किया जाना चाहिए। 
    • भूस्खलन के लिए जोखिम शमन रणनीति का अध्ययन करना और उन पर निर्णय लेना।
    • चिन्हित भूस्खलन हॉटस्पॉट को स्थायी रूप से ठीक करने की अनुशंसा करना। 
  • जागरूकता कार्यक्रम: जागरूकता सृजन और संबंधित आपदा से निपटने हेतु तैयारी जैसी संस्कृति को बढ़ावा देना ताकि समाज में लोग आपातकालीन स्थिति में सतर्क और जागरूक हो जाएं या आपदा आने से पहले निवारक उपाय कर सकें।

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