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भारतीय शिक्षा प्रणाली में भाषा संबंधी दुविधा

Lokesh Pal June 02, 2025 02:14 108 0

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (Central Board of Secondary Education-CBSE) ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy-NEP), 2020 के अनुरूप प्राथमिक शिक्षा में शिक्षण के माध्यम के रूप में मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग को अनिवार्य कर दिया है।

  • हालाँकि, व्यावहारिकता, रोजगारपरकता और सामाजिक-आर्थिक आकांक्षाओं को लेकर चिंताएँ हैं।

संवैधानिक एवं कानूनी ढाँचा

  • अनुच्छेद-350A: राज्य को मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने का निर्देश देता है।
  • अनुच्छेद-351: राष्ट्रीय एकीकरण के लिए हिंदी के प्रसार को बढ़ावा देता है।
  • आठवीं अनुसूची: 22 आधिकारिक भाषाओं को मान्यता देती है। हालाँकि, कई आदिवासी और अल्पसंख्यक भाषाओं को शामिल नहीं किया गया है।
  • NEP 2020: कम-से-कम ग्रेड 5 तक तथा अधिमानतः ग्रेड 8 तक मातृभाषा या घरेलू भाषा में प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने का समर्थन करती है।

ऐतिहासिक संदर्भ: भारतीय शिक्षा में भाषा

  • औपनिवेशिक जड़ें (1835-1947): मैकाले का विवरण-पत्र (Macaulay Minute) ने अंग्रेजी को अभिजात वर्ग की शिक्षा की भाषा बना दिया। उच्च शिक्षा और शासन में स्थानीय भाषाओं को हाशिए पर रखा गया।
  • स्वतंत्रता के बाद: संविधान सभा में बहस ने क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने और अंग्रेजी को एक कड़ी तथा आकांक्षात्मक भाषा के रूप में उपयोग करने के बीच तनाव को दर्शाया।
  • त्रि-भाषा फॉर्मूला (1968, NEP 2020 में पुनः पुष्टि की गई): क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक भाषाई आवश्यकताओं को संतुलित करने का प्रयास है।

मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने के लाभ

  • बेहतर समझ और अवधारण: जब बच्चों को उनकी पहली भाषा में पढ़ाया जाता है तो वे अवधारणाओं को अधिक आसानी से समझ लेते हैं और जानकारी को लंबे समय तक बनाए रखते हैं।
    • अध्ययनों से पता चलता है कि जब बच्चों को उनकी पहली भाषा में पढ़ाया जाता है तो वे अवधारणाओं को अधिक तीव्रता से समझ पाते हैं, जिससे ‘ड्रॉपआउट दर’ कम हो जाती है (यूनेस्को, 2016)।
  • सांस्कृतिक संरक्षण: मातृभाषा में सीखने से बच्चे की पहचान, सांस्कृतिक विरासत और मौखिक परंपराओं को संरक्षित करने में मदद मिलती है, जिससे उनमें अपनेपन और निरंतरता की भावना बढ़ती है।
  • बेहतर अधिगम परिणाम: अपनी मातृभाषा में मजबूत आधार वाले बहुभाषी शिक्षार्थी अधिक प्रभावी ढंग से अतिरिक्त भाषाएँ सीखते हैं।
    • यह प्रारंभिक भाषायी आत्मविश्वास सभी विषयों में बेहतर अकादमिक प्रदर्शन में योगदान देता है।
  • समान स्थिति प्रदान करना: ग्रामीण छात्रों को प्रायः अंग्रेजी सीखने में कठिनाई होती है; मातृभाषा में शिक्षा से भागीदारी में सुधार हो सकता है।

भारत में सर्वोत्तम प्रथाएँ

  • ओडिशा: बहुभाषी शिक्षा (Multilingual Education-MLE) कार्यक्रम 21 आदिवासी भाषाओं में पाठ्यपुस्तकें प्रदान करता है।
  • तमिलनाडु: अंग्रेजी को एक महत्त्वाकांक्षी विषय के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
  • नागालैंड और मिजोरम: समृद्ध स्थानीय भाषा साहित्य के बावजूद अंग्रेजी शिक्षा का माध्यम है।

CBSE के मातृभाषा संबंधी अनिवार्यता में चुनौतियाँ

  • भाषायी विविधता: दिल्ली जैसे शहरों में, बच्चे घर पर कई बोलियाँ बोलते हैं, जिससे कक्षा में पढ़ाने के लिए एक ‘मातृभाषा’ को परिभाषित करना मुश्किल हो जाता है।
  • मानकीकृत संसाधनों की कमी: भील या गोंड की कई भाषाओं में लिखित लिपि या मानकीकृत व्याकरण का अभाव है, जिससे पाठ्यपुस्तक का निर्माण करना जटिल हो जाता है।
  • शिक्षकों की कमी और प्रशिक्षण अंतराल: अधिकांश स्कूलों में बहुभाषी शिक्षकों की कमी है; जुलाई 2025 तक सभी को फिर से प्रशिक्षित करना तार्किक रूप से अवास्तविक है।
  • अंग्रेजी के लिए माता-पिता की प्राथमिकता: ‘एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट’ (ASER) द्वारा वर्ष 2022 के सर्वेक्षण में पाया गया कि अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा की माँग बढ़ रही है।
  • रोजगार संबंधी चिंताएँ: मातृभाषा शिक्षा अंग्रेजी के संपर्क को सीमित कर सकती है, जिसे व्यापक रूप से उच्च शिक्षा और रोजगार के अवसरों के लिए आवश्यक माना जाता है।
    • इससे सामाजिक-आर्थिक गतिशीलता के लिए सीमित मार्ग का निर्माण करते हैं।
  • आधारभूत स्तर के आकलन की कमी: CBSE ने क्षेत्रीय भाषा वरीयता अध्ययन नहीं किए हैं। 
    • इस बदलाव को समर्थन देने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों के साथ सहयोग का कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है।
    • शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में इस निर्देश को लागू करने के लिए बुनियादी ढाँचे की कमी है।
  • प्रवासी समावेशिता: भाषा की कठोरता प्रवासी बच्चों को नए भाषायी तंत्र के अनुकूल होने में बाधा डालती है।

शिक्षा में मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक दृष्टिकोण

  • फिनलैंड: फिनिश या स्वीडिश में शिक्षा; अप्रवासी छात्रों को मूल भाषाओं में सहायता दी जाती है।
  • जापान: शिक्षा मुख्य रूप से जापानी भाषा में दी जाती है; अन्य भाषाओं के लिए सहायता सीमित है।
  • फिलीपींस: ग्रेड 1-3 के लिए मातृभाषा-आधारित बहुभाषी शिक्षा (Mother Tongue-Based Multilingual Education-MTB-MLE) क्षेत्रीय भाषाओं में दी जाती है और फिर धीरे-धीरे अंग्रेजी एवं फिलिपिनो में स्थानांतरित हो जाती है।

मातृभाषा में स्कूली शिक्षा प्रदान करने के व्यापक निहितार्थ

  • सामाजिक समानता जोखिम: यह आदेश अभिजात वर्ग के अंग्रेजी माध्यम और कम संसाधन वाले क्षेत्रीय भाषा के स्कूलों के बीच के अंतराल को और गहरा कर सकता है, जिससे गरीब छात्रों के लिए आगे बढ़ने की संभावना सीमित हो सकती है।
  • शैक्षणिक अंतराल: हालाँकि मातृभाषा सीखने से संज्ञानात्मक सहायता मिलती है, लेकिन खराब अनुवाद एवं प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी राष्ट्रीय अनुवाद मिशन की विफलता में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, जो परिणामों को कमजोर करती है।
  • ड्रॉपआउट दर में वृद्धि: सहायता प्रणालियों की अनुपस्थिति में, मातृभाषा में अचानक परिवर्तन छात्रों को अलग-थलग कर सकता है, जिससे ड्रॉपआउट का जोखिम बढ़ सकता है।

बहुभाषी शिक्षा के लिए डिजिटल उपकरण (संक्षिप्त)

  • AI अनुवाद: Google अनुवाद जैसे रियल-टाइम उपकरण कक्षा संचार का समर्थन करते हैं।
  • दीक्षा (DIKSHA): 30 से अधिक भारतीय भाषाओं में पाठ्यक्रम-संरेखित सामग्री प्रदान करता है।
  • ई पाठशाला (ePathshala): NCERT से बहुभाषी पाठ्यपुस्तकें, वीडियो और संसाधन प्रदान करता है।
  • भाषिणी (Bhashini): कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग करके सभी भारतीय भाषाओं में डिजिटल सामग्री को सुलभ बनाता है।

भारत में मातृभाषाओं के प्रयोग को बढ़ाने के लिए पहल

  • क्षेत्रीय भाषा की पाठ्यपुस्तकें (NCERT/SCERTs): प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के लिए स्थानीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों और शिक्षण सामग्री का विकास।
  • ई-विद्या (E-Vidya) और दीक्षा (DIKSHA) प्लेटफॉर्म: क्षेत्रीय शिक्षा का समर्थन करने के लिए कई भारतीय भाषाओं में डिजिटल सामग्री उपलब्ध कराई गई।
  • राष्ट्रीय अनुवाद मिशन (National Translation Mission-NTM): मातृभाषाओं में उच्च शिक्षा तक पहुँच को बढ़ावा देने के लिए ज्ञान संबंधी पाठ्य पुस्तकों का भारतीय भाषाओं में अनुवाद करता है।
  • राज्य की पहल: कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और ओडिशा जैसे राज्यों में स्कूलों और सरकारी कार्यालयों में क्षेत्रीय भाषा के उपयोग को बढ़ावा देने वाली नीतियाँ हैं।
  • उच्च शिक्षा को बढ़ावा: AICTE और UGC क्षेत्रीय भाषाओं में इंजीनियरिंग एवं अन्य पाठ्यक्रमों को प्रोत्साहित करते हैं; NEET और JEE कई भारतीय भाषाओं में प्रस्तुत किए जाते हैं।

आगे की राह

  • लचीली बहुभाषी रणनीति: प्राथमिक कक्षाओं में मातृभाषा शिक्षण के साथ-साथ अंग्रेजी के प्रारंभिक ज्ञान के एकीकरण को संज्ञानात्मक विकास और वैश्विक तत्परता का समर्थन करने के लिए शुरू करना।
    • उच्च-कुशल रोजगार के लिए अंग्रेजी दक्षता महत्त्वपूर्ण बनी हुई है; भारत को चीन और जापान जैसे मॉडल का अनुकरण करना चाहिए, जो स्थानीय भाषा एवं अंग्रेजी शिक्षा को संतुलित करते हैं।
  • अलगाव के बिना आकांक्षा: अंग्रेजी को माध्यम के रूप में बनाए रखना, लेकिन ग्रामीण छात्रों के लिए उपचारात्मक सहायता प्रदान करना।
  • व्यावसायिक पाठ्यक्रम: जहाँ तक संभव हो, क्षेत्रीय भाषाओं में तकनीकी शिक्षा प्रदान करना।
  • शिक्षक प्रशिक्षण में सुधार: CBSE को भाषायी रूप से विविध कक्षाओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए शिक्षकों को तैयार करने के लिए शिक्षक शिक्षा कार्यक्रमों में सुधार करने पर विचार करना चाहिए।
    • राष्ट्रीय अनुवाद मिशन के माध्यम से शिक्षक प्रशिक्षण और उच्च गुणवत्ता वाले अनुवाद तकनीकों में निवेश करना।
  • डिजिटल उपकरणों का लाभ उठाना: क्षेत्रीय भाषा संसाधनों और शिक्षण में अंतराल को दूर करने के लिए AI-संचालित अनुवाद प्लेटफॉर्म तथा ई-लर्निंग सामग्री का उपयोग करना।
  • संदर्भ-विशिष्ट कार्यान्वयन: भाषा नीतियों को लागू करने से पहले क्षेत्रवार मूल्यांकन अनिवार्य करना और स्थानीय भाषायी वास्तविकताओं के अनुरूप लचीले क्रियान्वयन की अनुमति देना।
  • केंद्र-राज्य सहयोग: जनसांख्यिकीय और अवसंरचनात्मक क्षमताओं के आधार पर भाषा नीति को अनुकूलित करने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर कार्य करना।
  • शिक्षा को उद्योग के साथ जोड़ना: मानविकी और सामाजिक विज्ञान में क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देते हुए तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा के लिए अंग्रेजी को माध्यम बनाए रखना।

निष्कर्ष 

हालाँकि मातृभाषा अनिवार्यता अच्छे उद्देश्य के साथ लाई गई है, लेकिन अगर समावेशी योजना और सशक्त समर्थन प्रणालियों द्वारा इसका समर्थन नहीं किया जाता है, तो मौजूदा शैक्षिक अंतराल और  भी अधिक हो सकता है।

  • सार्थक सुधार के लिए समानता और गुणवत्ता पर आधारित एक संतुलित, बहुभाषी दृष्टिकोण आवश्यक है।

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