हाल ही में विधि आयोग ने ‘महामारी रोगों के प्रबंधन, नियंत्रण और रोकथाम’ पर 286वीं रिपोर्ट प्रकाशित की है।
संबंधित तथ्य
रिपोर्ट में भविष्य की महामारियों से निपटने के लिए मौजूदा कानूनी ढाँचा जैसे ‘महामारी रोग अधिनियम, 1897’ (Epidemic Diseases Act) की सीमाओं पर चर्चा की गई है।
महामारी (Epidemic)
रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (Disease Control and Prevention Centre) द्वारा महामारी को किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में रोग के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि के रूप में वर्णित किया गया है।
एक महामारी रोग का संक्रामक होना जरूरी नहीं है। उदाहरण के लिए, पीला बुखार, चेचक, खसरा और पोलियो आदि।
विधि आयोग (Law Commission)
यह भारत सरकार द्वारा गठित एक गैर-वैधानिक एवं कार्यकारी निकाय है।
उद्देश्य: कानूनी सुधारों के लिए कार्य करना।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: इस निकाय की स्थापना औपनिवेशिक काल में वर्ष 1834 में हुई थी।
विधि आयोग का अधिदेश
भारत में मौजूदा कानूनों की जाँच करना और उनमें सुधार हेतु उपाय सुझाना।
कानून के आधुनिकीकरण के संबंध में सरकार को सलाह देना।
सरकार द्वारा सौंपे गए अन्य मामले पर विचार करना एवं रिपोर्ट देना।
महत्त्वपूर्ण योगदान: हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act), संसोधित भारतीय दंड संहिता अधिनियम, 2013 (Amended Indian Penal Code), समलैंगिकता को अपराधमुक्त करने हेतु रिपोर्ट, 2020 (Decriminalization of Homosexuality report), समान नागरिक संहिता रिपोर्ट, 2021 (Uniform Civil Code report)।
महामारी रोग अधिनियम 1897 (Epidemic Diseases Act 1987)
परिभाषा: इस अधिनियम को औपनिवेशिक काल में लागू किया गया था, जो राज्य सरकारों को महामारी से अपने स्तर से निपटने एवं व्यवस्था को नियंत्रित करने का अधिकार देता है। इस अधिनियम में दंड को भी परिभाषित किया गया है, जिसकी विभिन्न धाराओं के तहत कारवाई की जा सकती है।
उद्देश्य: ‘खतरनाक महामारी रोगों’ के प्रसार को रोकना।
पृष्टभूमि: ब्रिटिश शासनकाल के दौरान मुंबई में बुबोनिक प्लेग (Bubonic Plague) से निपटने के लिए सबसे पहले इस अधिनियम को लागू किया गया था।
महामारी रोग अधिनियम 1897 के प्रावधान: अधिनियम के अंतर्गत चार धाराएँ हैं, जिनका उद्देश्य महामारी रोगों के प्रसार को रोकना है।
अधिनियम का धारा 2 राज्य सरकारों तथा केंद्रशासित प्रदेशों को महामारी रोकने के लिए विशेष उपाय करने और नियम बनाने का अधिकार देती है।
अधिनियम की धारा 3 के तहत, महामारी रोकने के लिए निर्मित किसी भी नियम या दिशा-निर्देश का पालन नहीं करने पर दंड का प्रावधान है, जो भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा 188 के अनुसार तय किए गए हैं।
अधिनियम की धारा 4 के तहत, पारित कानूनों के कार्यान्वयन से संलग्न अधिकारियों को कानूनी सुरक्षा प्रदान की जाती है।
पूर्वकाल में अधिनियम का कार्यान्वयन
वर्ष 2009 में पुणे में स्वाइन फ्लू से निपटने के लिए इसे लागू किया गया था।
वर्ष 2015 में मलेरिया और डेंगू से निपटने के लिए चंडीगढ़ में।
वर्ष 2018 में हैजा के प्रसार को रोकने के लिए गुजरात में।
वर्ष 2020 में इसे पूरे देश में COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिए इस अधिनियम का प्रयोग किया गया था।
महामारी रोग अधिनियम 1897 (Epidemic Diseases Act)की सीमाएँ
शक्तियों का अस्पष्ट बँटवारा: इस अधिनियम में महामारी के दौरान केंद्र, राज्य और स्थानीय अधिकारियों की शक्तियों के बीच कोई स्पष्ट बँटवारा नहीं किया गया है, जिसे नई रिपोर्ट में संबोधित किया गया है तथा इसके निपटान संबंधी उपाय सुझाए गए हैं।
सीमित दायरा: यह अधिनियम मुख्य रूप से रोकथाम और दीर्घकालिक सार्वजनिक स्वास्थ्य में बुनियादी बदलाव के बजाय रोकथाम के उपायों पर केंद्रित है। यह अधिनियम रोगों की निगरानी, अनुसंधान और स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढाँचे को मजबूत करने जैसे महत्त्वपूर्ण पहलुओं को संबोधित नहीं करता है।
अपर्याप्त मुआवजा: अधिनियम में प्रभावित व्यक्तियों या समुदायों को मुआवजा प्रदान करने के लिए स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं।
असंगत प्रावधान: अधिनियम का निर्माण औपनिवेशिक युग में किया गया था, फलस्वरूप इसमें वर्तमान चिकित्सा ज्ञान, नैतिक विचारों और मानवाधिकार मानदंडों को पूरी तरह से शामिल नहीं किया गया है।
सीमित न्यायिक समीक्षा: इस अधिनियम के तहत किए गए कार्यों पर न्यायिक समीक्षा संबंधी कानून बहुत कमजोर है, परिणामस्वरूप यह अधिनियम शक्तियों के मनमाने उपयोग को न्यायिक चुनौती देने की क्षमता को प्रतिबंधित करता है।
दुरुपयोग की संभावना: औपनिवेशिक युग में निर्मित होने के कारण इस अधिनियम में महत्त्वपूर्ण विषयों पर स्पष्ट दिशा-निर्देशों की कमी है, जिसके कारण इसके दुरुपयोग की संभावना बढ़ जाती है।
विधि आयोग की सिफारिशें
महामारी योजना और मानक संचालन प्रक्रिया का निर्माण: केंद्र सरकार संबंधित मंत्रालयों, निजी स्वास्थ्य संस्थानों और अन्य हितधारकों के परामर्श से एक महामारी योजना का निर्माण कर सकती है, जिसमें राज्य सरकारों का सहयोग अपेक्षित है।
तीन चरण में रोकथाम उपाय: आयोग ने संक्रामक रोगों के प्रसार को रोकने के लिए तीन विभिन्न स्तरों पर प्रतिक्रियाओं की सिफारिश की है।
पहला चरण: राज्यों को स्थानीय स्तर पर महामारी योजना के अनुरूप संभावित खतरों से निपटने के लिए ‘पर्याप्त उपाय करने का अधिकार’ दिया जाना चाहिए।
दूसरा चरण: इस चरण का प्रयोग महामारी रोगों के अंतरराज्यीय प्रसार के दौरान किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि केंद्र सरकार के पास महामारी योजना के आधार पर नियम बनाने की शक्ति होनी चाहिए जो राज्य सरकारों पर बाध्यकारी होंगे।
तीसरा चरण: इस चरण का प्रयोग ‘संक्रामक रोग से अत्यधिक खतरा’ बढ़ जाने की स्थिति में किया जाएगा। रिपोर्ट में प्रस्ताव दिया गया है कि यदि राज्य सरकार संक्रमण के प्रसार को रोकने में असमर्थ है तो केंद्र सरकार, केंद्रीय संस्थाओं के माध्यम से रोकथाम उपायों को लागू करने के लिए कदम उठा सकती है।
महामारी योजना का निर्माण: महामारी रोग अधिनियम (EDA) के अंतर्गत ऐसे आवश्यक प्रावधान शामिल करने की आवश्यकता है, जिससे महामारी से निपटने की योजना का निर्माण, कार्यान्वयन और नियमित अंतराल पर संशोधन किया जा सके।
आवश्यक घटक: रिपोर्ट में कहा गया है कि योजना में क्वारंटीन (Quarantine), आइसोलेशन (Isolation) और लॉकडाउन (Lockdown) संबंधी प्रावधान शामिल होने चाहिए, साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन किए बिना इन उपायों को निष्पक्ष रूप से लागू किया जा सके।
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