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फोन-टैपिंग पर कानून

Lokesh Pal July 11, 2025 02:07 6 0

संदर्भ 

हाल ही में दो उच्च न्यायालयों ने रिश्वतखोरी के मामलों में सरकार द्वारा आदेशित फोन टैपिंग पर अलग-अलग निर्णय सुनाया।

संबंधित  तथ्य

  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने जहाँ सार्वजनिक सुरक्षा का हवाला देते हुए इस आदेश को वैध ठहराया, वहीं मद्रास उच्च न्यायालय ने प्रक्रियात्मक खामियों और ‘सार्वजनिक आपातकाल’ की संकीर्ण व्याख्या के आधार पर इसे असंवैधानिक करार देते हुए खारिज कर दिया।

फोन टैपिंग

  • इसमें किसी तीसरे पक्ष द्वारा फोन पर बातचीत की निगरानी या रिकॉर्डिंग शामिल है, आमतौर पर संबंधित व्यक्ति को सूचित किए बिना या उसकी सहमति लिए बिना।
  • ऐसी गतिविधियाँ आमतौर पर सरकारी एजेंसियों द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा, खुफिया जानकारी जुटाने या कानून प्रवर्तन से संबंधित उद्देश्यों के लिए की जाती हैं।

फोन टैप कौन कर सकता है?

राज्य स्तर

  • राज्य पुलिस (प्राधिकरण सहित)

केंद्रीय स्तर

  • इंटेलीजेंस ब्यूरो (IB)
  • केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI)
  • प्रवर्तन निदेशालय (ED)
  • नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB)
  • केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT)
  • राजस्व आसूचना निदेशालय (DRI)
  • राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (NIA)
  • अनुसंधान एवं विश्लेषण विंग (RAW)
  • सिग्नल खुफिया निदेशालय (सशस्त्र बलों के लिए)
  • दिल्ली पुलिस आयुक्त (दिल्ली में)।

भारत में फोन टैपिंग संबंधी कानून

  • भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885: ध्वनि कॉल अवरोधन को नियंत्रित करता है।
    • धारा 5(2) केवल सार्वजनिक आपातकाल के दौरान या विशिष्ट आधारों पर सार्वजनिक सुरक्षा के हित में अवरोधन की अनुमति देती है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: धारा 69, सरकार को इंटरनेट-आधारित कॉल, ईमेल, व्हाट्सऐप और VoIP सहित इलेक्ट्रॉनिक संचार को इंटरसेप्ट, मॉनिटर या डिक्रिप्ट करने का अधिकार देती है।
  • भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898: डाक संचार के इंटरसेप्शन पर लागू होता है।
  • भारतीय टेलीग्राफ नियम, 1951 – नियम 419A
    • नियम 419A – फोन कॉल इंटरसेप्शन के लिए केंद्र या राज्य स्तर पर गृह सचिव द्वारा अनुमति प्रदान करना आवश्यक है।
    • अत्यावश्यक मामलों में, संयुक्त सचिव स्तर से नीचे का कोई अधिकारी अनुमोदन प्रदान नहीं कर सकता।
    • समीक्षा समिति को दो महीने के भीतर आदेश का मूल्यांकन करना होगा।
    • प्रारंभिक प्राधिकरण 60 दिनों के लिए वैध है और इसे 180 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
  • प्रेस के लिए अपवाद: मान्यता प्राप्त प्रेस संवाददाताओं द्वारा प्रकाशन के लिए भेजे गए संदेशों को, जब तक कि विशेष रूप से प्रतिबंधित न किया गया हो, अवरोधन या रोक से छूट प्राप्त है।
    • यह अपवाद प्रेस की स्वतंत्रता के महत्त्व को रेखांकित करता है और पत्रकारों के संचार पर निगरानी को प्रतिबंधित करता है।

संवैधानिक समर्थन

  • किसी भी निगरानी को अनुच्छेद-19(2) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध) और अनुच्छेद-21 (निजता का अधिकार, पुट्टास्वामी निर्णय के बाद) का पालन करना होगा।
  • अनुमेय आधारों में शामिल हैं:-
    • भारत की संप्रभुता या अखंडता
    • राज्य की सुरक्षा
    • लोक व्यवस्था
    • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध।
    • किसी अपराध के लिए उकसावे को रोकना।

दिल्ली और मद्रास उच्च न्यायालय क दृष्टिकोण

दिल्ली उच्च न्यायालय ने फोन टैप को बरकरार रखा

  • संदर्भ: एक व्यवसायी पर ₹2,149 करोड़ का पुनर्विकास ठेका हासिल करने के लिए अधिकारियों को रिश्वत देने का आरोप लगाया गया था।
  • टैप करने का कारण: किसी अपराध (भ्रष्टाचार) के लिए उकसावे को रोकना।
  • न्यायालय का विचार
    • इस पैमाने पर भ्रष्टाचार आर्थिक सुरक्षा के लिए खतरा है, जो सार्वजनिक सुरक्षा के अंतर्गत आता है।
    • यह आदेश टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5(2) के तहत उचित ठहराया गया।

मद्रास उच्च न्यायालय- फोन टैप प्रक्रिया को रद्द कर दिया

  • संदर्भ: एक व्यक्ति पर एक कर अधिकारी को ₹50 लाख की रिश्वत देने की कोशिश करने का आरोप लगाया गया था।
  • टैप करने का कारण: किसी अपराध के लिए उकसावे को रोकना।
  • न्यायालय का विचार
    • कर चोरी का मामला सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा से जुड़ा नहीं है।
    • यह आदेश सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित प्रक्रियात्मक मानकों के अनुरूप नहीं था।
    • इसमें वर्ष 2011 के एक सरकारी प्रेस नोट का भी हवाला दिया गया जिसमें स्पष्ट किया गया था कि केवल कर चोरी ही फोन टैपिंग का वैध कारण नहीं है।

सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णय

PUCL बनाम भारत संघ (1997)

सर्वोच्च न्यायालय ने फोन टैपिंग के लिए प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपाय स्थापित किए:

  • टैपिंग गृह सचिव (केंद्र या राज्य) द्वारा लिखित आदेश द्वारा अधिकृत होनी चाहिए।
  • आदेशों की समीक्षा एक निर्दिष्ट समिति द्वारा 7 दिनों के भीतर की जानी चाहिए।
  • निगरानी की अवधि 60 दिनों तक सीमित है, जिसे अधिकतम 180 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है।
  • इंटरसेप्शन की वैधता की निगरानी और सुनिश्चित करने के लिए एक समीक्षा समिति की आवश्यकता होती है।

के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017)

न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना।

  • इसने कहा कि कोई भी अनधिकृत या अनुपातहीन निगरानी संवैधानिक सुरक्षा का उल्लंघन है।

अवरोधन शक्तियों के दुरुपयोग के विरुद्ध जाँच

  • अंतिम उपाय खंड: अवरोधन की अनुमति केवल तभी दी जाती है, जब आवश्यक जानकारी प्राप्त करने के लिए कोई वैकल्पिक तरीका उपलब्ध न हो।
  • समय-सीमा: आदेश 60 दिनों तक वैध रहते हैं और इन्हें बढ़ाया जा सकता है, लेकिन कुल मिलाकर 180 दिनों से अधिक नहीं।
  • लिखित औचित्य: प्रत्येक आदेश में अवरोधन के स्पष्ट कारण बताए जाने चाहिए और इसे 7 कार्य दिवसों के भीतर समीक्षा समिति को भेजा जाना चाहिए।
  • समीक्षा तंत्र
    • केंद्रीय स्तर पर: कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में; सदस्यों में विधि और दूरसंचार सचिव शामिल हैं।
    • राज्य स्तर पर: मुख्य सचिव की अध्यक्षता में; सदस्यों में विधि और गृह सचिव शामिल हैं।
  • नियमित निरीक्षण: समीक्षा समिति को सभी इंटरसेप्शन अनुमोदनों की वैधता और आवश्यकता की जाँच करने के लिए प्रयेक दो महीने में कम-से-कम एक बार बैठक करनी होगी।
  • रिकॉर्ड विनाश: इंटरसेप्शन रिकॉर्ड को प्रत्येक छह महीने में नष्ट किया जाना चाहिए, जब तक कि कार्यात्मक उद्देश्यों के लिए आवश्यक न हो।

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