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परिहार नीति (Remission Policy) से संबंधित कानून (Laws related to Remission Policy)

Samsul Ansari January 12, 2024 04:35 217 0

संदर्भ

उच्चतम न्यायालय ने बिलकिस बानो के सामूहिक दुष्कर्म और उसके परिवार की हत्या के लिए 11 दोषियों की सजा माफी को रद्द कर दिया है।

संबंधित तथ्य 

  • अगस्त 2022 में, गुजरात सरकार ने वर्ष 2008 में जघन्य अपराधों के तहत आजीवन कारावास की सजा पाने वाले दोषियों को बची हुई सजा से छूट प्रदान करते हुए उन्हें रिहा करने का आदेश दिया था।
    • मुंबई की एक CBI ट्रायल कोर्ट ने वर्ष 2008 में बिलकिस बानो गैंगरेप और मर्डर केस में दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 
  • दोषियों में से एक, राधेश्याम शाह ने गुजरात राज्य की वर्ष 1992 की ‘परिहार नीति’ के तहत छूट की मांग करते हुए वर्ष 2022 में उच्चतम न्यायालय का रुख किया था।
    • उच्चतम न्यायालय ने सरकार को आवेदन पर विचार करने का आदेश दिया और गोधरा जेल सलाहकार समिति (JAC) ने सर्वसम्मति से परिहार की सिफारिश की।

हालिया उच्चतम न्यायालय का फैसला

  • आदेश को रद्द करना: इसने अगस्त 2022 में गुजरात राज्य द्वारा बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए आजीवन कारावास की सजा पाए 11 लोगों को दिए गए सामूहिक परिहार (Remission) के आदेश को रद्द कर दिया।
  • उपयुक्त सरकार: SC के अनुसार, इस मामले में आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 432(7)(b) के तहत परिहार का आदेश जारी करने हेतु “उचित या सक्षम सरकार” गुजरात नहीं महाराष्ट्र की थी।
  • सूचना का दमन: SC ने कहा कि उच्चतम न्यायालय का पिछला निर्णय, जिसमें गुजरात सरकार को परिहार संबंधी आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया गया था, मामले से संबंधित कुछ तथ्यों को छिपाकर (Suppression) प्राप्त किया गया था।
    • उच्चतम न्यायालय के संज्ञान में यह नहीं लाया गया कि गुजरात उच्च न्यायालय ने दो बार माना था कि महाराष्ट्र इस मामले में सक्षम प्राधिकारी था।
  • जेल वापसी: 11 दोषियों को 2 सप्ताह के अंदर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया गया है। 

परिहार क्या है?

  • परिहार का अर्थ है सजा अवधि को कम करना या रद्द करना, लेकिन सजा का मूल स्वरूप बरकरार रखना।
  • परिहार के परिणामस्वरूप एक निर्दिष्ट रिहाई तिथि होती है, लेकिन किसी भी शर्त का उल्लंघन करने पर पूरी मूल सजा पुनः लागू हो जाती है।
  • यह फरलो और पैरोल से अलग है जहाँ कारावास की सजा से एक सीमित अवधि के लिये अस्थायी विराम प्रदान किया जाता है। 
    • परिहार में सजा अवधि कम हो जाती है लेकिन सजा का स्वरूप वही रहता है।

परिहार पर कानून:

  • संविधान: संविधान के अनुच्छेद 72 और 161 राष्ट्रपति और राज्यपाल को किसी दोषी को क्षमादान, लघुकरण, परिहार, विराम या प्रविलंबन देने का अधिकार प्रदान करते हैं।
  • राज्य सरकार: वर्ष 1973 की दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 432 के तहत संबंधित राज्य सजा को कम कर सकता है, 
    • ध्यातव्य है कि जेल राज्य सूची का एक विषय है।
    • सामान्य तौर पर राज्य स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर अच्छे आचरण वाले कैदियों को रिहा करने के लिए इस शक्ति का उपयोग करता है।
    • राज्यों पर सीमा: आजीवन कारावास के दोषियों के मामले में, परिहार केवल 433A धारा के तहत जेल में 14 वर्ष की अवधि के बाद ही दी जा सकती है।
  • उच्चतम न्यायालय का निर्णय: संगीत बनाम हरियाणा राज्य (2012) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुनाया कि आजीवन कारावास की सजा पाने वाले दोषियों को जेल में 14 वर्ष पूरे होने पर समय से पहले रिहाई का अधिकार नहीं है और परिहार पर केवल मामले-दर-मामले के आधार पर ही विचार किया जाना चाहिए।

माफी के आधार

  • लक्ष्मण नस्कर बनाम भारत संघ (2000) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने पाँच आधार निर्धारित किए हैं जिनके संबंध में परिहार पर विचार किया जाना चाहिए:
    • समाज को प्रभावित करने वाले अपराध की प्रकृति
    • भविष्य में अपराध के दोहराए जाने की संभावना
    • दोषी की आपराधिक क्षमता का समाप्त होना
    • दोषी को जेल में रखने का उद्देश्य
    • दोषी के परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति

परिहार से जुड़े महत्वपूर्ण मामले

राजीव गांधी हत्याकांड (1991) वर्ष 2018 में, तमिलनाडु राज्य मंत्रिमंडल ने अच्छे व्यवहार के आधार पर हत्या के दोषियों में से एक ए.जी. पेरारिवलन को रिहा करने की सिफारिश की।
आईएएस अधिकारी कृष्णैया की हत्या (1994) वर्ष 2023 में, बिहार सरकार ने गोपालगंज के डीएम कृष्णैया की हत्या के दोषी आनंद मोहन सिंह को कारावास के दौरान अच्छे व्यवहार और आचरण के आधार पर रिहा करने का फैसला किया। 
जेसिका लाल हत्याकांड (1999) हत्या के मामले में मनु शर्मा को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। वर्ष 2020 में दिल्ली सरकार ने अच्छे आचरण का हवाला देते हुए शर्मा को समय से पहले रिहा करने की सिफारिश की। 

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