हाल ही में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में चुन लिया गया है।
कांग्रेस का चुनावी प्रदर्शन
राहुल गांधी अपने परिवार से तीसरे सदस्य हैं, जिन्हें लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है।
चुनाव प्रदर्शन की तुलना: कांग्रेस पार्टी ने वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में अपनी सीटों को लगभग दोगुना कर लिया है। पार्टी ने वर्ष 2019 में 52 सीटों की तुलना में इस वर्ष 99 सीटों पर जीत दर्ज की।
लोकसभा चुनाव 2014 में कांग्रेस पार्टी ने मात्र 44 सीटें जीतीं थीं।
पिछली कमी: लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी नेता प्रतिपक्ष के लिए दावा नहीं कर पाई थी क्योंकि नेता प्रतिपक्ष के लिए न्यूनतम 10% सीटों का होना अनिवार्य है।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष (Leader of the Opposition in Lok Sabha)
लोकसभा में ‘नेता प्रतिपक्ष’ भारत की संसद के निचले सदन का निर्वाचित सदस्य होता है।
नेतृत्व: वह लोकसभा में आधिकारिक विपक्षी दल का नेतृत्व करता है।
सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी: लोकसभा में कुल सीटों का न्यूनतम 10% सीट पाने वाले सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को ‘नेता प्रतिपक्ष’ के रूप में मान्यता दी जाती है।
वैधानिक मान्यता: इस पद को संसद में ‘नेता प्रतिपक्ष के वेतन और भत्ते अधिनियम, 1977’ के तहत मान्यता दी गई है।
यह अधिनियम ‘नेता प्रतिपक्ष’ शब्द को लोकसभा या राज्यसभा के किसी भी सदन के सदस्य के रूप में परिभाषित करता है।
‘नेता प्रतिपक्ष’ सबसे अधिक संख्या वाले विपक्षी दल का नेता होता है।
गैर-संवैधानिक पद: भारतीय संविधान में इस पद का कोई उल्लेख नहीं है।
सदन
कुल सीट
लोकसभा (निम्न सदन)
543
राज्यसभा (उच्च सदन)
243
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का चुनाव
चुनाव की प्रक्रिया
पार्टी द्वारा चयन: सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी अपनी आंतरिक प्रक्रियाओं के माध्यम से एक नेता का चयन करती है, जिसे नेता प्रतिपक्ष के रूप में प्रस्तावित किया जाता है।
प्रस्ताव की अधिसूचना: चयनित नेता का नाम आधिकारिक रूप से लोकसभा अध्यक्ष के सामने रखा जाता है।
अध्यक्ष की औपचारिक मान्यता: लोकसभा के अध्यक्ष औपचारिक रूप से चयनित नेता को नेता प्रतिपक्ष के रूप में स्वीकार करते हैं।
चयनित नेता को आधिकारिक रूप से राज्यसभा के सभापति द्वारा राजसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्यता दी जाती है।
सार्वजनिक घोषणा: नियुक्ति की सार्वजनिक रूप से घोषणा की जाती है और नेता प्रतिपक्ष आधिकारिक रूप से अपनी भूमिका ग्रहण करता है।
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का इतिहास और उसकी मान्यता
वर्ष 1969 से पहले: वर्ष 1969 तक लोकसभा में विपक्षी नेता के लिए कोई औपचारिक मान्यता, स्थिति या विशेषाधिकार नहीं था। नेता प्रतिपक्ष की भूमिका व्यावहारिक तौर पर मौजूद थी, लेकिन अनौपचारिक थी।
आधिकारिक मान्यता के तौर पर 1977 का अधिनियम: इस अधिनियम के तहत नेता प्रतिपक्ष को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई तथा उनके वेतन एवं भत्ते ‘संसद में नेता प्रतिपक्ष के वेतन और भत्ते अधिनियम, 1977’ द्वारा स्थापित किए गए।
नेता प्रतिपक्ष की मान्यता के लिए शर्तें
लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए तीन शर्तें पूरी होनी चाहिए-
सदस्यता: व्यक्ति को लोकसभा का सदस्य होना चाहिए।
विपक्षी दल: उनका संबंध सबसे अधिक संख्या वाले विपक्षी दल से होना चाहिए।
अध्यक्ष की मान्यता: उन्हें लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा मान्यता प्राप्त होनी चाहिए।
नेता प्रतिपक्ष की भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ
समिति की सदस्यता: नेता प्रतिपक्ष प्रमुख संसदीय समितियों का सदस्य होता है-
लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) के अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है।
सार्वजनिक उपक्रम समिति (Public Undertakings Committee)
अनुमान समिति (Estimates Committee)
विभिन्न संयुक्त संसदीय समितियाँ
चयन समितियाँ: प्रमुख वैधानिक निकायों के प्रमुखों की नियुक्ति के लिए जिम्मेवार समितियों में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका होती है, इन निकायों में शामिल है-
केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission)
केंद्रीय सूचना आयोग (Central Information Commission)
केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation)
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission)
लोकपाल
भारत में नेता प्रतिपक्ष (Leader of the Opposition- LoP) का महत्त्व
विपक्ष की आवाज: नेता प्रतिपक्ष यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता की नीतियों से अलग, वैकल्पिक दृष्टिकोण और चिंताओं को सुना जाए तथा उनका समाधान किया जाए।
‘भारतीय संसद’ पर पुस्तिका के अनुसार लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष को ‘छाया मंत्रिमंडल वाला छाया प्रधानमंत्री’ (Shadow Prime Minister with a Shadow Cabinet) माना जाता है।
नियंत्रण और संतुलन: नेता प्रतिपक्ष सरकारी कार्यों और प्रस्तावों की जाँच करता है, ताकि मनमाने ढंग से निर्णय प्रक्रिया को रोका जा सके।
प्रशासनिक प्रोटोकॉल: सत्तारूढ़ सरकार के सदन में इस्तीफा देने या हारने की स्थिति में नेता प्रतिपक्ष प्रशासन को अपने हाथ में ले लेता है।
नीति निर्माण: नेता प्रतिपक्ष रचनात्मक आलोचना और अपने विचार प्रस्तुत कर सकता है, फलस्वरूप नीतियों को समावेशी एवं कारगर बनाया जा सके।
जवाबदेही: नेता प्रतिपक्ष सरकार को उसके कार्यों के लिए जिम्मेदार ठहराता है तथा पारदर्शिता एवं सुशासन को स्थापित करने में सहायक होता है।
Latest Comments