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भारत में विधिक सहायता प्रणाली

Lokesh Pal August 01, 2025 02:40 12 0

संदर्भ

अप्रैल 2023 और मार्च 2024 के मध्य, केवल 15.50 लाख लोगों को विधिक सहायता प्राप्त हुई, जो 12.14 लाख (वर्ष 2022- वर्ष 2023) से 28% अधिक है, लेकिन 80% जनसंख्या कवरेज के लिए परिकल्पित पैमाने से बहुत कम है।

विधिक सहायता के बारे में

  • निःशुल्क विधिक सहायता उन गरीब और हाशिए पर स्थित लोगों के लिए दीवानी और फौजदारी मामलों में निःशुल्क विधिक सेवाओं का प्रावधान है, जो किसी भी न्यायालय, न्यायाधिकरण या प्राधिकरण में किसी मामले या विधिक कार्यवाही के संचालन के लिए वकील की सेवाएँ वहन नहीं कर सकते।
  • विधिक सहायता कोई दान या उपहार नहीं है, बल्कि यह राज्य का दायित्व और नागरिकों का अधिकार है।
  • राज्य का मुख्य उद्देश्य ‘सभी के लिए समान न्याय’ होना चाहिए।
  • ये सेवाएँ विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 द्वारा शासित हैं और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority- NALSA) द्वारा संचालित हैं।
  • विधिक सहायता में शामिल हैं
    • न्यायालय में प्रतिनिधित्व: न्यायालयों, न्यायाधिकरणों या अन्य विधिक निकायों के समक्ष निःशुल्क विधिक प्रतिनिधित्व।
    • विधिक सलाह: विभिन्न मामलों पर विधिक परामर्श प्रदान करना।
    • दस्तावेज़ तैयार करना: याचिकाओं और हलफनामों जैसे विधिक दस्तावेजों की तैयारी में सहायता करना।
    • न्यायालय शुल्क में छूट: राज्य पात्र व्यक्तियों के लिए, न्यायालय शुल्क वहन करता है।
  • विधिक सहायता के लिए कौन पात्र है?
    • अनुसूचित जाति (Scheduled Castes- SC) और अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes- ST)।
    • महिलाएँ और बच्चे।
    • मानसिक रूप से बीमार या दिव्यांग व्यक्ति।
    • शोषण का सामना कर रहे व्यक्ति (जैसे- तस्करी के शिकार, भिखारी)।
    • कैदी या हिरासत में लिए गए व्यक्ति।
    • औद्योगिक कामगार और सामूहिक आपदाओं के शिकार।
    • ऐसे व्यक्ति जिनकी वार्षिक आय निर्धारित सीमा से कम है।

विधिक सहायता के लिए संवैधानिक ढाँचा

  • अनुच्छेद-14: कानून के समक्ष समानता और कानूनों के समान संरक्षण की गारंटी देता है, जो विधिक सहायता का आधार बनता है।
  • अनुच्छेद-21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार में न्याय तक पहुँच शामिल है; निष्पक्ष सुनवाई के लिए निःशुल्क विधिक सहायता अंतर्निहित है।
  • अनुच्छेद-22(1): गिरफ्तारी की स्थिति में अपनी पसंद के किसी वकील से परामर्श करने और बचाव का अधिकार।
  • अनुच्छेद-39A: 42वें नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा जोड़ा गया।
    • न्याय के समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए राज्य को निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान करने का आदेश देता है।
    • आर्थिक या अन्य अक्षमताओं के कारण न्याय से वंचित न होने पर बल देता है।

विधिक सहायता के लिए विधायी ढाँचा

  • विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 (वर्ष 1994 और वर्ष 2002 में संशोधित)
    • भारत में विधिक सहायता के लिए वैधानिक ढाँचा प्रदान करता है।
    • राष्ट्रीय, राज्य, जिला, तालुका-स्तरीय प्राधिकरणों और विधिक सहायता क्लीनिकों (NALSA, SLSA आदि) के माध्यम से विधिक सहायता प्रदान करने के लिए एक पदानुक्रमित संरचना स्थापित करता है।
      • ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में, विधिक सहायता क्लीनिक गाँवों के समूहों को सेवाएँ प्रदान करते हैं।
      • इण्डिया जस्टिस रिपोर्ट, 2025 के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर, प्रत्येक 163 गाँवों पर एक विधिक सेवा क्लीनिक है।
    • प्रमुख प्रावधान
      • पात्र व्यक्तियों (जैसे- अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, महिलाएँ, बच्चे, दिव्यांग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) के लिए निःशुल्क विधिक सेवाएँ।
      • इसमें विधिक सलाह, न्यायालय में प्रतिनिधित्व और वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternative Dispute Resolution- ADR) में सहायता शामिल है।
      • विवादों के शीघ्र और सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए लोक अदालतों की स्थापना।
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita- BNSS), 2023
    • धारा 341: उन मामलों में अभियुक्त व्यक्तियों को राज्य के खर्च पर विधिक सहायता प्रदान करने का प्रावधान करती है, जहाँ वे प्रतिनिधित्व का खर्च वहन नहीं कर सकते।

भारत में विधिक सहायता का संस्थागत ढाँचा

राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority- NALSA)

  • NALSA की स्थापना विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के अंतर्गत की गई थी।
    • यह भारत भर में विधिक सहायता कार्यक्रमों के कार्यान्वयन हेतु नीति निर्माण करने और उनकी देख-रेख के लिए उत्तरदायी केंद्रीय निकाय है।
  • भूमिका और कार्य
    • नीति निर्माण: NALSA देश भर में विधिक सहायता के लिए नीतियाँ, सिद्धांत और दिशा-निर्देश निर्धारित करता है।
    • समन्वय: विधिक सहायता सेवाओं के एकसमान कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों (State Legal Services Authorities- SLSA), जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों (District Legal Services Authorities- DLSA) और अन्य विधिक सेवा संस्थानों के साथ समन्वय करता है।
    • निगरानी और मूल्यांकन: NALSA विधिक सहायता कार्यक्रमों की प्रभावशीलता की निगरानी करता है और हाशिए पर स्थित समुदायों (जैसे- उपभोक्ता संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण आदि से संबंधित मुद्दे) की ओर से सामाजिक न्याय का संचालन करता है।
    • जागरूकता अभियान: लोगों को उनके विधिक अधिकारों और विधिक सेवाओं की उपलब्धता के बारे में शिक्षित करने के लिए विधिक साक्षरता कार्यक्रम आयोजित करता है।
    • लोक अदालतें: NALSA विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए लोक अदालतों के आयोजन और प्रचार के लिए जिम्मेदार है।

 राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों (State Legal Services Authorities- SLSA)

  • NALSA द्वारा निर्धारित नीतियों और निर्देशों को लागू करने के लिए प्रत्येक राज्य में राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) की स्थापना की जाती है।
  • अध्यक्ष: संबंधित राज्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
  • कार्य
    • NALSA की नीतियों के अनुसार, राष्ट्रीय विधिक सहायता योजनाओं का क्रियान्वयन।
    • राज्य स्तर पर लोक अदालतें और विधिक जागरूकता अभियान संचालित करना।
    • जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों (District Legal Services Authorities- DLSA) और तालुक विधिक सेवा समितियों के कामकाज की निगरानी और मूल्यांकन करना।
    • सुनिश्चित करना कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पात्र व्यक्तियों को विधिक सहायता सेवाएँ आसानी से उपलब्ध हों।

जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों (District Legal Services Authorities- DLSA)

  • जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) जिला स्तर पर विधिक सहायता सेवाओं के क्रियान्वयन के लिए उत्तरदायी हैं। वे विधिक सहायता चाहने वाले व्यक्तियों के लिए प्रथम संपर्क बिंदु के रूप में कार्य करते हैं।
  • अध्यक्ष: जिला न्यायाधीश।

तालुक विधिक सेवा समितियाँ (Taluk Legal Services Committees- TLSCs)

  • ये समितियाँ तालुक/मंडल स्तर (उप-जिला) पर गठित की जाती हैं ताकि जमीनी स्तर पर लोगों को विधिक सहायता प्रदान की जा सके।
  • अध्यक्ष: तालुके  के वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश।

सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति (Supreme Court Legal Services Committee- SCLSC)

  • भारत के सर्वोच्च न्यायालय में सहायता चाहने वाले व्यक्तियों को विधिक सहायता प्रदान करने के लिए जिम्मेदार।

लोक अदालतें (जनता की अदालतें)

  • लोक अदालतें विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत स्थापित एक वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र है।
    • औपचारिक न्यायिक प्रणाली के बाहर विवादों के सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए एक मंच प्रदान करना।
    • उनके निर्णय सिविल न्यायालयों के आदेश माने जाते हैं, जो अंतिम होते हैं और पक्षों पर बाध्यकारी होते हैं।
  • भूमिका और कार्य
    • लोक अदालतें मुकदमे-पूर्व और मुकदमे-पश्चात्, दोनों चरणों में मामलों का निपटारा करती हैं।
    • ये अदालतें पारिवारिक विवादों, संपत्ति विवादों, वैवाहिक मुद्दों आदि सहित दीवानी, आपराधिक और पारिवारिक मामलों का निपटारा करती हैं।
    • ये अदालतें राष्ट्रीय, राज्य, जिला और तालुक स्तरों सहित विभिन्न स्तरों पर  NALSA, SLSA, DLSA और TLSC द्वारा आयोजित की जाती हैं।

भारत में निःशुल्क विधिक सहायता का महत्त्व

  • न्याय तक समान पहुँच सुनिश्चित करता है: निःशुल्क विधिक सहायता यह सुनिश्चित करती है कि आर्थिक बाधाएँ न्याय तक पहुँच में बाधा न बनें।
    • यह संविधान के अनुच्छेद-14 के अनुरूप है, जो सभी नागरिकों के लिए कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करता है।
  • संवैधानिक अधिकार और कर्तव्य: अनुच्छेद-39A राज्य को समान न्याय के लिए निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान करने का आदेश देता है।
    • यह अनुच्छेद-21 के तहत प्रत्येक नागरिक के लिए निष्पक्ष सुनवाई के संवैधानिक दायित्व को पूरा करता है।
  • हाशिए पर स्थित और कमजोर समूहों को सशक्त बनाता है: विधिक सहायता महिलाओं, अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों और तस्करी के शिकार लोगों जैसे हाशिए पर स्थित समूहों को अपने अधिकारों का दावा करने में सहायता करती है।
    • यह सामाजिक न्याय सुनिश्चित करती है, जिससे ये समूह शोषण और भेदभाव को चुनौती दे पाते हैं।
  • विधिक असमानता को कम करता है: निःशुल्क विधिक सहायता विधिक असमानता को दूर करने में मदद करती है, और उन लोगों को प्रतिनिधित्व प्रदान करती है, जो इसे वहन करने में असमर्थ हैं।
    • भारत की लगभग 40% आबादी विधिक सहायता का खर्च वहन नहीं कर सकती, जो सुलभ न्याय की आवश्यकता को उजागर करता है।
  • विधि के शासन को सुदृढ़ करता है: विधिक सहायता यह सुनिश्चित करके विधि के शासन को बढ़ावा देती है कि धन की परवाह किए बिना सभी को न्याय तक पहुँच प्राप्त हो।
    • यह विधिक व्यवस्था में विश्वास बढ़ाने और न्यायिक प्रक्रियाओं में निष्पक्षता सुनिश्चित करने में मदद करती है।
  • न्यायिक लंबित मामलों का समाधान: लोक अदालतें और वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणालियाँ अदालतों में लंबित मामलों को कम करने में मदद करती हैं।
    • लोक अदालतों के माध्यम से लाखों मामलों का निपटारा किया गया है, जिससे औपचारिक न्यायिक व्यवस्था पर बोझ कम हुआ है।
  • विधिक जागरूकता को बढ़ावा: विधिक सहायता विधिक साक्षरता को बढ़ावा देती है और नागरिकों को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करती है।
    • NALSA और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों द्वारा संचालित किए जा रहे कार्यक्रमों का उद्देश्य जनता को, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, उनके विधिक अधिकारों के बारे में सूचित करना है।

भारत में विधिक सहायता के लिए सरकारी योजनाएँ और पहल

  • विधिक सहायता बचाव अधिवक्ता (Legal Aid Defense Counsel- LADC) योजना: LADC योजना अभियुक्त के लिए समर्पित बचाव पक्ष के वकील प्रदान करती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि जो लोग विधिक प्रतिनिधित्व का खर्च वहन नहीं कर सकते, उन्हें भी गुणवत्तापूर्ण विधिक बचाव उपलब्ध हो।
    • यह योजना भारत भर के 670 जिलों में से 610 में संचालित है और इसे वर्ष 2023- 2024 में ₹200 करोड़ का वित्तपोषण प्राप्त हुआ है, हालाँकि वर्ष 2024-2025 के लिए आवंटन में कमी की गई है।
  • अर्द्ध-विधिक स्वयंसेवक (Para-Legal Volunteers- PLV): PLV जमीनी स्तर की विधिक सहायता प्रणाली के लिए आवश्यक हैं।
    • वे समुदाय-आधारित व्यक्ति होते हैं, जिन्हें विधिक जागरूकता बढ़ाने, बुनियादी विधिक सेवाएँ प्रदान करने और कमजोर व्यक्तियों को औपचारिक विधिक संस्थाओं से जोड़ने में सहायता करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।
    • कार्य
      • समुदाय और विधिक संस्थाओं, जैसे- पुलिस स्टेशन, न्यायालय और विधिक सहायता प्राधिकरण, के बीच की दूरी को पाटना।
      • विधिक दस्तावेज तैयार करने, शिकायत दर्ज करने और लोक अदालतों में मामलों का प्रतिनिधित्व करने में सहायता करना।
      • विधिक सलाह प्रदान करना तथा विवाद समाधान में सहायता करना।
      • PLV विधिक सहायता क्लीनिकों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, और विधिक सहायता के लिए प्रथम संपर्क बिंदु के रूप में कार्य करते हैं।
  • दिशा (न्याय तक समग्र पहुँच के लिए अभिनव समाधान तैयार करना) योजना (2021): दिशा योजना का उद्देश्य मुकदमेबाजी-पूर्व तंत्र को मजबूत करना है, यह सुनिश्चित करना कि व्यक्ति औपचारिक विधिक कार्यवाही में आगे बढ़ने से पहले विवादों को सुलझा सकें।
    • न्याय बंधु (निशुल्क विधिक सेवाएँ) कार्यक्रम: न्याय बंधु कार्यक्रम वकीलों को वंचित वादियों के लिए स्वेच्छा से अपनी सेवाएँ देने के लिए प्रोत्साहित करता है।
      • न्याय बंधु को दिशा योजना के अंतर्गत टेली-लॉ (मुकदमेबाजी-पूर्व सलाह) सेवाओं के साथ एकीकृत किया गया है।
    • टेली-लॉ: टेली-लॉ कार्यक्रम राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों (State Legal Services Authorities- SLSA) में कार्यरत विशेषज्ञ वकीलों के एक पैनल के माध्यम से विधिक सलाह प्रदान करने में सक्षम बनाता है।
      • यह विधिक परामर्श को और अधिक सुलभ बनाता है, खासकर ग्रामीण और हाशिए पर स्थित आबादी के लिए।
    • विधिक साक्षरता और जागरूकता कार्यक्रम: NALSA, SLSA तथा DLSA नागरिकों को उनके विधिक अधिकारों और विधिक सहायता सेवाओं की उपलब्धता के बारे में शिक्षित करने के लिए व्यापक विधिक जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
  • न्याय मित्र कार्यक्रम: न्याय मित्र कार्यक्रम उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों में 10 से 15 वर्षों से लंबित मामलों के शीघ्र निपटारे पर केंद्रित है।
    • उद्देश्य: लंबित मामलों की संख्या को कम करना और वादियों को समय पर न्याय प्रदान करना।
  • वीर परिवार सहायता योजना (2025): NALSA द्वारा जुलाई 2025 में श्रीनगर में सैनिक भवन, गुवाहाटी जैसे क्लीनिकों के माध्यम से शुरू की गई।
    • उद्देश्य: सशस्त्र बलों के कर्मियों, पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों को निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान करना।

भारत में विधिक सहायता प्रणाली से जुड़े मुद्दे और चुनौतियाँ

  • विधिक सहायता निधि का कम उपयोग: निधि में कमी और कम उपयोग प्रणाली की समग्र प्रभावशीलता को बाधित करता है।
    • समग्र विधिक सहायता बजट में वृद्धि के बावजूद, NALSA की निधि ₹207 करोड़ से घटकर ₹169 करोड़ हो गई और उपयोग दर 75% से घटकर 59% हो गई।
  • विधिक सहायता सेवाओं की सीमित पहुँच: पहुँच सीमित बनी हुई है और विधिक सहायता की उपलब्धता केवल उन लोगों तक सीमित है, जिनकी क्लीनिकों और संसाधनों तक पहुँच है।
    • यद्यपि भारत की 80% आबादी मुफ्त विधिक सहायता के लिए पात्र है, वर्ष 2023- वर्ष 2024 में केवल 15.5 लाख लोगों को विधिक सेवाएँ प्राप्त हुईं, जो लक्ष्य से काफी कम है।
  • अर्द्ध-विधिक स्वयंसेवकों की कमी: वर्ष 2019 तथा वर्ष 2024 के बीच अर्द्ध-विधिक स्वयंसेवकों (Para- Legal Volunteers- PLV) की संख्या में 38% की गिरावट आई है।
    • वर्ष 2023- वर्ष 2024 में, 53,000 PLV प्रशिक्षित किए गए, लेकिन केवल 14,000 ही तैनात किए गए, जिसके परिणामस्वरूप जमीनी स्तर पर प्रशिक्षित सामुदायिक संसाधनों की कमी आई।
  • राज्य-स्तरीय आवंटन में असंगतता: कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने अपने बजट में उल्लेखनीय वृद्धि की, जबकि अन्य ने बहुत कम खर्च किया।
    • हरियाणा ने प्रति व्यक्ति ₹16 आवंटित किए, जबकि पश्चिम बंगाल ने केवल ₹2 आवंटित किए, जो राज्यों में धन वितरण में असमानता को दर्शाता है।
  • PLV के लिए कम मानदेय: अधिकांश राज्यों में PLV को न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान किया जाता है, केवल केरल में ₹750 प्रति दिन का भुगतान किया जाता है।
    • अधिकांश राज्य प्रतिदिन ₹250 से ₹500 के बीच भुगतान करते हैं, जो मूलभूत व्यय को पूरा करने के लिए अपर्याप्त है और स्वयंसेवकों के मनोबल को प्रभावित करता है।
  • नई विधिक सहायता बचाव परामर्शदाता (LADC) योजना की चुनौतियाँ: हालाँकि LADC योजना का उद्देश्य अभियुक्तों को गुणवत्तापूर्ण विधिक बचाव प्रदान करना है, लेकिन इसका वित्तपोषण वर्ष 2023- 2024 में ₹200 करोड़ से घटकर वर्ष 2024- वर्ष 2025 में ₹147.9 करोड़ रह गया।
    • यह योजना 610 जिलों में संचालित है, लेकिन इसकी प्रभावशीलता अभी भी अनिश्चित है क्योंकि यह प्रारंभिक चरण में है।
  • असंगत सेवा गुणवत्ता और जवाबदेही संबंधी मुद्दे: विधिक सहायता सेवाएँ असंगत गुणवत्ता और जवाबदेही तंत्र की कमी से ग्रस्त हैं।
    • राज्यों में वित्तपोषण और संसाधनों में सुधार के प्रयासों के बावजूद, यह प्रणाली में विश्वास को कम करता है।

भारत में विधिक सहायता प्रणाली के लिए आगे की राह

  • विधिक सहायता के लिए धनराशि में वृद्धि: देश भर में सेवाओं के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए विधिक सहायता के बजट में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता है।
  • जागरूकता अभियानों का विस्तार: विधिक सहायता के लिए पात्र 80% आबादी तक पहुँचने के लिए, विधिक साक्षरता कार्यक्रमों का व्यापक प्रसार आवश्यक है।
    • विधिक अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए टेली-लॉ और न्याय बंधु कार्यक्रमों का ग्रामीण क्षेत्रों में और विस्तार किया जाना चाहिए।
  • अर्द्ध-विधिक स्वयंसेवकों की तैनाती में वृद्धि: अर्द्ध-विधिक स्वयंसेवकों की कमी को बेहतर प्रशिक्षण और उच्च पारिश्रमिक प्रदान करके दूर किया जाना चाहिए ताकि जमीनी स्तर पर उनकी बेहतर तैनाती सुनिश्चित की जा सके।
  • PLV के लिए संशोधित मानदेय: वर्तमान में अधिकांश राज्यों में पीएलवी को न्यूनतम वेतन से कम भुगतान किया जाता है, केवल केरल में ₹750 प्रतिदिन का मानदेय दिया जाता है।
    • न्यूनतम वेतन मानकों के अनुरूप मानदेय में वृद्धि से स्वयंसेवकों की बेहतर भागीदारी और प्रेरणा सुनिश्चित होगी।
  • विधिक सहायता बचाव परामर्श (Legal Aid Defense Counsel- LADC) योजना को सुदृढ़ करना: अभियुक्त व्यक्तियों को विधिक सहायता प्रदान करने वाली LADC योजना को पूर्ण रूप से वित्तपोषित किया जाना चाहिए और अधिक जिलों को शामिल करने के लिए इसका विस्तार किया जाना चाहिए।
  • विधिक सहायता सेवाओं में जवाबदेही सुनिश्चित करना: असंगत सेवा गुणवत्ता को दूर करने के लिए, स्पष्ट जवाबदेही तंत्र होना चाहिए।
    • NALSA तथा SLSA द्वारा विधिक सहायता सेवाओं की नियमित निगरानी और मूल्यांकन यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक सेवाएँ न्यूनतम मानकों को पूरा करना।
  • विधिक सहायता अवसंरचना की क्षमता में वृद्धि: विधिक सहायता केंद्रों और लोक अदालतों की क्षमता का विस्तार किया जाना चाहिए, विशेष रूप से दूरस्थ और कम सुविधा वाले क्षेत्रों में।
    • विधिक क्लीनिकों की संख्या बढ़ाने और अवसंरचना में सुधार से विधिक सहायता प्रणाली की पहुँच और दक्षता में वृद्धि होगी।

निष्कर्ष: 

भारत में विधिक सहायता प्रणाली, जो NALSA और दिशा व LADC जैसी योजनाओं द्वारा संचालित है, न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है, फिर भी इसकी सीमित पहुँच और वित्तीय बाधाएँ इसकी क्षमता में बाधा डालती हैं। सभी के लिए समान न्याय के संवैधानिक दृष्टिकोण को साकार करने के लिए बुनियादी ढाँचे, जागरूकता और जवाबदेही को मजबूत करना आवश्यक है।

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