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सहायता प्राप्त मृत्यु को वैध बनाना

Lokesh Pal May 30, 2025 03:22 17 0

संदर्भ

फ्राँस की नेशनल असेंबली ने असाध्य बीमारी से पीड़ित वयस्कों के लिए सख्त शर्तों के तहत सहायता प्राप्त मृत्यु (Assisted Dying) को वैध बनाने वाले एंड-ऑफ-लाइफ बिल (End-of-Life Bill) को पारित कर दिया है, जिसे सीनेट की मंजूरी मिलना अभी शेष है।

फ्राँस के ‘एंड-ऑफ-लाइफ बिल’ के प्रमुख प्रावधान

  • सहायता प्राप्त मृत्यु (Assisted Dying): इसे किसी व्यक्ति को घातक दवा स्वयं लेने की अनुमति देने के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • ऐसे मामलों में जहाँ मरीज स्वयं दवा नहीं ले सकते, वहाँ मेडिकल प्रोफेशनल मदद कर सकते हैं।
  • पात्रता मानदंड
    • केवल वयस्क (18+) जो फ्राँसीसी नागरिक या निवासी हैं।
    • किसी लाइलाज बीमारी से पीड़ित होना चाहिए जो कि उन्नत या अंतिम चरण में हो।
    • असहनीय एवं असाध्य शारीरिक दर्द का अनुभव होना चाहिए।
  • असाध्य मानसिक स्थितियों एवं अल्जाइमर जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों वाले रोगियों को इसमें शामिल नहीं किया गया है।
  • प्रक्रिया एवं सुरक्षा उपाय
    • इसके लिए अनुरोध रोगी द्वारा स्वेच्छा से शुरू किया जाना चाहिए।
    • एक अनिवार्य चिंतन अवधि शामिल है।
    • चिकित्सा पेशेवरों की एक टीम को पात्रता की पुष्टि करनी होगी।
    • घातक दवा घर पर, नर्सिंग होम में या स्वास्थ्य सेवा केंद्र में ली जा सकती है।
  • पूरक उपशामक देखभाल विधेयक
    • उपशामक देखभाल को बढ़ाने के लिए एक अलग विधेयक पारित किया गया।
    • इसका उद्देश्य दर्द से राहत दिलाना और रोगी की गरिमा को बनाए रखना है।

इच्छामृत्यु (Euthanasia) और सहायता प्राप्त मृत्यु (Assisted Dying) के बीच तुलना 

पहलू

इच्छामृत्यु (Euthanasia)

सहायता प्राप्त मृत्यु (Assisted Dying) या सहायता प्राप्त आत्महत्या (Assisted Suicide)

परिभाषा इच्छामृत्यु से तात्पर्य किसी डॉक्टर या चिकित्सा पेशेवर द्वारा किसी मरीज को जानबूझ कर घातक दवा देने से है, ताकि उसका जीवन समाप्त हो सके और उसे पीड़ा से मुक्ति मिल सके। सहायता प्राप्त मृत्यु में डॉक्टर द्वारा रोगी को एक घातक दवा निर्धारित किया जाता है, जिसे रोगी स्वेच्छा से अपने जीवन को समाप्त करने के लिए स्वयं ले लेता है।
स्वेच्छाधीनता (Voluntariness) इस कार्य से पहले रोगी की स्पष्ट, सूचित और स्वैच्छिक सहमति आवश्यक है। इसके लिए स्वैच्छिक एवं सूचित सहमति की भी आवश्यकता होती है, लेकिन दवा लेने का कार्य रोगी द्वारा ही किया जाना चाहिए।
चिकित्सा पेशेवर की भूमिका सक्रिय: चिकित्सा पेशेवर सीधे घातक खुराक का प्रबंध करता है। अप्रत्यक्ष: चिकित्सा पेशेवर दवा लिखता है लेकिन उसे प्रशासित नहीं करता है।
प्रशामक देखभाल संदर्भ इस पर तब विचार किया जा सकता है, जब घातक बीमारी में असहनीय पीड़ा से राहत दिलाने वाले उपाय असफल हो जाएँ। इसे उन रोगियों के लिए एक विकल्प के रूप में माना जाता है जो अपरिहार्य मृत्यु का सामना करते समय दीर्घकालिक उपशामक देखभाल को अस्वीकार कर देते हैं।
रोगी की स्वायत्तता रोगी की स्वायत्तता का सम्मान किया जाता है, लेकिन इसे उस चिकित्सक के साथ साझा किया जाता है, जो यह कार्य करता है। इसमें रोगी की पूर्ण स्वायत्तता पर जोर दिया गया है, क्योंकि अंतिम कार्य स्वयं रोगी द्वारा ही किया जाता है।
उदाहरण नीदरलैंड ने वर्ष 2002 में इच्छामृत्यु को वैध बनाया; बेल्जियम सख्त शर्तों के अधीन वयस्कों एवं नाबालिगों दोनों के लिए इच्छामृत्यु की अनुमति देता है। स्विट्जरलैंड 1940 के दशक से ही सहायता प्राप्त आत्महत्या की अनुमति देता है; अमेरिका के ओरेगन राज्य ने वर्ष 1997 में डेथ विद डिग्निटी एक्ट के माध्यम से इसे वैध बनाया।

जीवन समाप्त करने के संबंध में नैतिक और कानूनी चिंताएँ

  • स्वायत्तता एवं मानवीय गरिमा का सम्मान: इच्छामृत्यु को वैध बनाना व्यक्ति के अपने शरीर और जीवन के बारे में स्वायत्त निर्णय लेने के अधिकार का समर्थन करता है।
    • यह मृत्यु में गरिमा के सिद्धांत को मान्यता देता है, विशेष रूप से असाध्य पीड़ा का सामना कर रहे असाध्य रोगियों के लिए।
    • हालाँकि, नैतिक बहस इस बात पर सवाल उठाती है कि क्या भावनात्मक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक कमजोरी की स्थिति में पूर्ण स्वायत्तता हमेशा संभव है।
  • जबरदस्ती एवं शोषण का जोखिम: एक प्रमुख चिंता यह है कि सुभेद्य आबादी जैसे कि बुजुर्ग, दिव्यांग या लंबे समय से बीमार लोग बोझ बनने से बचने के लिए मौत का विकल्प चुनने के लिए दबाव महसूस कर सकते हैं।
    • दबाव सूक्ष्म स्तर पर हो सकता है, सामाजिक, वित्तीय या भावनात्मक गतिशीलता में निहित हो सकती है, जिससे वास्तव में स्वैच्छिक सहमति संदिग्ध हो सकती है।
  • उपशामक देखभाल पर प्रभाव: आलोचकों का तर्क है कि इच्छामृत्यु को वैध बनाने से उपशामक देखभाल में निवेश एवं प्रगति कम हो सकती है।
    • इससे दर्द में रहने वाले मरीजों के लिए दीर्घकालिक देखभाल विकल्पों में सुधार के लिए सामाजिक और संस्थागत प्रतिबद्धता कम हो सकती है।
  • अन्य तर्क: सीमित, गंभीर मामलों के लिए इच्छामृत्यु को वैध बनाना धीरे-धीरे नॉन-टर्मिनल स्थितियों या यहाँ तक ​​कि गैर-स्वैच्छिक इच्छामृत्यु को भी शामिल कर सकता है।
    • कुछ देशों को समय के साथ पात्रता मानदंडों को व्यापक बनाने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है, जिससे नैतिक सीमाओं के बारे में चिंताएँ बढ़ गई हैं।
  • कानूनी सुरक्षा उपाय: समर्थक इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि एक विनियमित इच्छामृत्यु ढाँचा पारदर्शी कानूनी एवं चिकित्सा सुरक्षा उपाय प्रस्तुत करता है, जो रोगियों एवं डॉक्टरों दोनों की सुरक्षा करता है।
  • नैतिक एवं धार्मिक विरोध: अधिकांश प्रमुख धर्म (ईसाई धर्म, इस्लाम, यहूदी धर्म, हिंदू धर्म) इच्छामृत्यु को नैतिक रूप से गलत मानते हैं, क्योंकि यह जीवन की पवित्रता का उल्लंघन करता है।
    • इन परंपराओं का मानना ​​है कि जीवन एवं मृत्यु का निर्णय मनुष्य नहीं करता है और पीड़ा का आध्यात्मिक अर्थ या मूल्य हो सकता है।
    • हालाँकि, संथारा जैसी कुछ धार्मिक प्रथाएँ स्वैच्छिक जीवन के अंत की अवधारणा के साथ जुड़ी हुई हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने स्पष्ट रूप से इच्छामृत्यु का समर्थन नहीं किया है, लेकिन स्वास्थ्य सेवा के लिए अधिकार आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया है, जिसमें गरिमा, स्वायत्तता और गुणवत्तापूर्ण उपशामक देखभाल तक पहुँच पर जोर दिया गया है।

इच्छामृत्यु या सहायता प्राप्त मृत्यु पर भारत का रुख

कानूनी ढाँचा

  • निष्क्रिय इच्छामृत्यु (जीवनरक्षक उपचार को रोकना या वापस लेना) भारत में परिभाषित सुरक्षा उपायों के तहत कानूनी है। यह वैधता कॉमन कॉज बनाम भारत संघ में सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2018 के निर्णय से उत्पन्न हुई है और संविधान के अनुच्छेद-21 (जीवन के अधिकार) के तहत विनियमित है।
  • असाध्य रूप से बीमार रोगियों का चिकित्सा उपचार (रोगियों एवं चिकित्सा व्यवसायियों का संरक्षण) विधेयक, 2006 विधायी स्पष्टता प्रदान करने का एक मसौदा प्रयास था, हालाँकि यह अभी तक कानून नहीं बन पाया है।
  • सक्रिय इच्छामृत्यु, जिसमें किसी व्यक्ति के जीवन को समाप्त करने के लिए जानबूझकर घातक पदार्थों का प्रशासन शामिल है, यह भारत में अवैध है।
    • यह भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 101 या 106 के तहत दंडनीय है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि यह कृत्य हत्या या गैर-इरादतन हत्या के रूप में योग्य है या नहीं।

न्यायिक उदाहरण

  • अरुणा शानबाग केस (2011): सर्वोच्च न्यायालय ने पैरेंस पैट्रिया (संरक्षक के रूप में राज्य) के सिद्धांत के आधार पर उच्च न्यायालय की पीठ से पूर्व अनुमोदन के साथ निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति दी।
  • कॉमन कॉज बनाम भारत संघ (2018): ऐतिहासिक निर्णय ने अनुच्छेद-21 के भाग के रूप में गरिमा के साथ मृत्यु के अधिकार की घोषणा की।
    • निष्क्रिय इच्छामृत्यु को वैध बनाया गया।
    • लिविंग विल/अग्रिम निर्देशों को वैध बनाया गया, जिससे असाध्य रूप से बीमार रोगियों को चिकित्सा उपचार से इनकार करने की अनुमति मिली।
    • जीवन के अंत में देखभाल के निर्णयों में व्यक्तियों की स्वायत्तता, गरिमा और गोपनीयता पर जोर दिया गया।
  • हालिया प्रगति: केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को लागू करने के लिए असाध्य रूप से बीमार मरीजों में जीवन रक्षक प्रणाली हटाने के लिए दिशा-निर्देशों का मसौदा जारी किया।

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