100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

विधायी गिरावट (Legislative decline)

Samsul Ansari December 23, 2023 10:50 178 0

संदर्भ

संसद सदस्यों का हालिया निलंबन, खासकर जब महत्वपूर्ण विधेयक पेश किए गए और सीमित चर्चा के साथ पारित किए गए, विधायी गिरावट के बारे में चिंताएं पैदा करता है।

सम्बंधित तथ्य 

  • सांसदों का निलंबन (Suspension): 143 सांसदों का रिकॉर्ड निलंबन भारत के इतिहास में अब तक का सर्वाधिक प्रतीत होता  है।
    • इनमें से 95 लोकसभा से और 46 राज्यसभा से हैं।
    • पिछला निलंबन 15 मार्च 1989 को हुआ था, जब 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या पर न्यायमूर्ति ठक्कर आयोग की रिपोर्ट को पेश करने के संबंध में विवाद के बाद विपक्षी दलों के 63 लोकसभा सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था।
  • निलंबन का कारण : हाल ही में संसद सुरक्षा उल्लंघन का विरोध करते हुए संसदीय कार्यवाही को बाधित करने के कारण दोनों सदनों के सांसदों को निलंबित कर दिया गया था।
  • विधायी गिरावट (Legislative Decline): सांसदों का निलंबन उन्हें विधायी बहस और चर्चा में भाग लेने के अधिकार से वंचित करता है, जो संसदीय लोकतंत्र की एक मूलभूत विशेषता है।

भारत में विधायी गिरावट पर हालिया रुझान (Legislative Decline in India Recent Trends)

  • बैठक के दिनों की संख्या में कमी (Decrease in Number of Sitting Days): 17वीं लोकसभा अपनी पूरी पांच साल की अवधि के दौरान सिर्फ 230 बैठक दिवस के साथ, वर्ष 1952 के बाद का सबसे कम बैठक वाली लोकसभा है। 
  • बजट पर  विचार-विमर्श में कमी  (Reduced Budget Deliberations): 17वीं लोकसभा का बजट सत्र 1952 के बाद सबसे छोटे सत्रों में से एक था।
    • संसद के बजट सत्र, 2023 को पांच वर्षों में बजट सत्र की सबसे कम उत्पादकता दर्ज करते हुए अनिश्चित काल के लिए स्थगित (sine die) कर दिया गया।
    • वित्तीय मुद्दों को संबोधित करने के लिए कम समय महत्वपूर्ण वित्तीय मुद्दों पर जांच और विचार-विमर्श की गहराई के बारे में चिंताएं पैदा करता है।
  • सार्वजनिक मुद्दों पर सीमित बहस (Limited Debates on Public Issues): 17वीं लोकसभा की अवधि के दौरान लोकसभा में होने वाली बहसों की संख्या कम रही है।
    • केवल 11 अल्पकालिक बहसें (short-term debates) और एक आधे घंटे की चर्चा हुई है, जो जनहित के मुद्दों पर सीमित संसदीय बहस दिखाती है।
    • विपक्ष के विरोध (protests) के बावजूद कृषि कानूनों और श्रम संहिताओं को बिना चर्चा के पारित कर दिया गया।

विधायी गिरावट के पीछे कारण

  • कार्यपालिका का प्रभुत्व (Executive Dominance): कार्यपालिका के बढ़ते प्रभुत्व के साथ, संसदीय कानून पर इसकी अत्यधिक सशक्त भूमिका (overpowering role) हो गई है, जिससे विधायिका के अधिकार में गिरावट आ रही है।
    • सत्ताधारी दल का मजबूत बहुमत अक्सर पर्याप्त बहस या संशोधन के बिना विधेयकों को जल्दबाजी में पारित कर देता है, जिससे नियंत्रण और संतुलन का सिद्धांत कमजोर हो जाता है।
  • पार्टी अनुशासन (Party Discipline): सख्त पार्टी अनुशासन के लिए अक्सर सांसदों (MP) को अपने दल के मत या विचारधारा  के अनुसार मतदान करने की आवश्यकता होती है, जिससे स्वतंत्र निर्णय लेने और कार्यपालिका की प्रभावी ढंग से जांच करने की उनकी क्षमता कम हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए, भारत में दल-बदल विरोधी कानून, जो पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने पर सांसदों को अयोग्य घोषित करता है, की सांसदों की स्वतंत्रता को कमजोर करने के लिए आलोचना की गई है।
  • विधायिका को दरकिनार करना (Bypassing Legislature): कार्यकारी आदेशों, अध्यादेशों और प्रत्यायोजित कानून के बढ़ते उपयोग ने संसदीय प्राधिकरण के पतन में योगदान दिया है।
    • पूर्व- नागरिकता संशोधन अधिनियम ( Citizenship Amendment Act,CAA), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर ( National Register of Citizens,NRC), और कृषि कानून का पारित होना।
  • मर्यादा में गिरावट ( Declining Decorum): संसद में बढ़ते व्यवधान, विरोध और अनियंत्रित व्यवहार से उत्पादक बहस और विचार-विमर्श में बाधा आती है, जिससे इसकी प्रभावशीलता के बारे में जनता की धारणा कम हो जाती है।
  • राजनीति का अपराधीकरण (Criminalization of Politics) : विधायिका में आपराधिक तत्वों की बढ़ती उपस्थिति जनता के विश्वास को कमजोर करती है और प्रभावी कानून बनाने में बाधा उत्पन्न करती है।
    • वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में 159 सांसदों ने अपने खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज होने की घोषणा की थी , जिनमें बलात्कार, हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, महिलाओं के खिलाफ अपराध शामिल थे।
  • विधानमंडलों में अव्यवस्था के अन्य कारण
    • महत्वपूर्ण मामलों को उठाने के लिए सांसदों के पास समय की कमी है
    • सरकार का गैर-जिम्मेदाराना रवैया
    • राजनीतिक या प्रचार उद्देश्यों के लिए पार्टियों द्वारा जानबूझकर व्यवधान
    • संसदीय कार्यवाही में बाधा डालने वाले सांसदों के खिलाफ त्वरित कार्रवाई का अभाव।

विधायी गिरावट से संबंधित चुनौतियाँ

  • संवैधानिक दायित्वों को कमज़ोर करना: संसद की उत्पादकता में गिरावट से संविधान द्वारा उसे सौंपे गए कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से पूरा करने की उसकी क्षमता ख़राब हो जाती है।
    • संविधान संसद को मंत्रालयों के कामकाज की जांच करके सरकार को जवाबदेह बनाए रखने का अधिकार/अधिदेश देता है।
  • असहमति पर अंकुश लगाने के लिए चयनात्मक निलंबन (Selective Suspension to Curb Dissent) : इससे पहले, दो लोकसभाओं (2004-14) के दौरान, विरोधियों सहित सत्तारूढ़ दल के विधायकों को भी उपद्रव के लिए निलंबित कर दिया गया था।
    • अब, केवल विपक्षी सदस्यों को निलंबित किया गया है, जिसमें  वर्ष 2014 के बाद से बहुत कम गंभीर अपराधों के लिए निलंबन शामिल हैं।
  • विधेयकों पर पर्याप्त विचार-विमर्श का अभाव  (Lack of Adequate Deliberations on Bills): एक कार्यशील लोकतंत्र की पहचान विचार-विमर्श है, जिसमें निर्वाचित विधायक सार्वजनिक महत्व के मुद्दों पर बहस करते हैं और नागरिकों को प्रभावित करने वाले मुद्दों के समाधान की तलाश करते हैं।
    • जबकि विधेयकों को संसद में चर्चा के बाद पारित किया जाना होता है, अब उन्हें बिना किसी चर्चा और योग्यता के आधार पर संशोधन के बिना पारित किया जा रहा है।
  • विधान की गुणवत्ता (Quality of Legislation): विधेयकों को संसद स्थायी समितियों को संदर्भित करने में हो रही कमी ने गिरावट प्रस्तावित कानून की पूर्ण जांच और मूल्यांकन के बारे में चिंता पैदा कर दी है।
    • संसदीय समितियों को भेजे गए बिलों का प्रतिशत 15वीं लोकसभा (2009-14) में 71% से घटकर 16वीं लोकसभा (2014-19) में 27% और 2019 के बाद से केवल 13% रह गया है।
    • यहां तक कि अनुच्छेद 370 को रद्द करने वाले विधेयक को भी संसदीय समिति के पास नहीं भेजा गया था। 
  • सीमित संसदीय कार्य (Limited Parliamentary Business): इसके कारण संसद को दरकिनार करने वाले अध्यादेशों का सहारा बढ़ गया है, और कई महत्वपूर्ण पहलों पर संसद को दरकिनार कर दिया गया है।
    • ऐसे कार्यों के कारण, V-Dem संस्था  की एक वैश्विक लोकतंत्र रिपोर्ट ने भारत के लोकतंत्र को “चुनावी निरंकुशता” के रूप में वर्णित किया है।
  • लोकतंत्र का क्षरण (Erosion of Democracy): असहमति को आतंक के समान माना गया है। उदाहरण -प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाने के लिए गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम का उपयोग, जिनमें वे प्रदर्शनकारी भी शामिल हैं जिन्होंने हाल ही में संसद में कनस्तर फेंके और साइन बोर्ड पर अपना विरोध व्यक्त किया था।
    • परिणामस्वरूप, भारत को फ्रीडम हाउस द्वारा “आंशिक रूप से स्वतंत्र” माना गया है, जो नागरिक और राजनीतिक स्वतंत्रता का आकलन करता है।

आगे बढ़ने की राह 

  • विपक्ष की बड़ी  भूमिका (Greater Role for Opposition): सदन के कामकाज के आवंटन में विपक्षी समूहों की अधिक भागीदारी कार्यकारी भूमिका को सीमित करने और सत्तारूढ़ सरकार की अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करने के उपाय के रूप में काम करेगी।
    • विपक्षी सदस्यों के नेतृत्व में चर्चा के लिए प्रति सप्ताह एक दिन समर्पित करने से व्यवधान कम होगा।
  • सांसदों के लिए आचार संहिता (Code of Conduct for Parliamentarians): सदन में व्यवधान को कम करने के लिए लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं और परिषदों के सदस्यों के लिए आचार संहिता की आवश्यकता है।
  • प्रधानमंत्री से प्रश्न पूछना (Questioning the Prime Minister) : भारतीय संसद में, प्रश्नकाल और शून्यकाल अक्सर बहस को बढ़ावा देने के बजाय व्यवधान पैदा करते हैं।
    • UK में, प्रधानमंत्री साप्ताहिक रूप से सांसदों के सवालों का जवाब देते हैं, जिससे कम व्यवधान और अधिक उत्साही बहस होती है।
    • इस प्रकार, लोकसभा और राज्यसभा के नियमों के अंतर्गत प्रधानमंत्री से प्रश्न पूछने की ब्रिटेन की प्रथा को अपनाया जा सकता है।
  • संसदीय व्यवधान सूचकांक (Parliamentary Disruptions Index-PDI): इसका उपयोग UK संसद में प्रचलित मानदंडों के अनुरूप ‘नेमिंग एंड शेमिंग’ (Naming & Shaming) दृष्टिकोण के अनुरूप सांसदों के प्रदर्शन को सार्वजनिक करने के लिए किया जा सकता है। .
  •   उच्चतम PDI  मूल्यों वाले सांसदों के नाम साप्ताहिक रूप से मीडिया में साझा किए जा सकते हैं।
    • ऐसी जानकारी का व्यापक प्रसार सांसदों की सार्वजनिक छवि पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, संभावित रूप से उन्हें आगे के व्यवधानों से रोक सकता है।
  • उत्पादकता मीटर (Productivity Meter): इसे व्यवधानों और स्थगनों पर बर्बाद हुए घंटों की संख्या को ध्यान में रखने और संसद के दोनों सदनों के दिन-प्रतिदिन के कामकाज की उत्पादकता की निगरानी करने के लिए बनाया जाना चाहिए।
  • आंतरिक पार्टी लोकतंत्र (Inner Party Democracy): पार्टियों को विभिन्न कानूनों, नियमों के साथ-साथ अपने स्वयं के संविधान के तहत अपने दायित्वों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, जिसमें पार्टी सदस्यों के निष्कासन की प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय नियमों को शामिल करना भी शामिल है।

निष्कर्ष

  •  विधायी गिरावट न केवल संवैधानिक दायित्वों को कमजोर करती है बल्कि लोकतांत्रिक संरचनाओं और मूल्यों के लिए भी खतरा पैदा करती है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.