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बिहार में आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएँ

Lokesh Pal April 14, 2025 03:36 13 0

संदर्भ 

बिहार में आँधी-तूफान और आकाशीय बिजली गिरने से 72 घंटों में 80 लोगों की मौत हो गई।

संबंधित तथ्य

  • आवर्ती पैटर्न: बिहार में प्राकृतिक आपदाओं का एक आवर्ती पैटर्न देखा गया है, जून 2020 में इसी तरह की घटना में 90 से अधिक मौतें हुई थीं।
  • प्री-मानसून घटना: बिहार जैसे क्षेत्रों में, प्री-मानसून और शुरुआती मानसून महीनों (अप्रैल से जून) के दौरान गरज के साथ वर्षा होना सामान्य है, परंतु आकाशीय बिजली और तेज हवाओं के साथ होने पर यह विशेष रूप से घातक हो सकता है।
  • ‘राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो’ डेटा: आकाशीय बिजली गिरने से होने वाली मौतों के मामले में बिहार देश में दूसरे स्थान पर है, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, भारत भर में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मौतों में से लगभग 39% मौतें बिजली गिरने से होती हैं।
    • राज्य में प्रत्येक वर्ष औसतन लगभग 250 प्राकृतिक आपदा से संबंधित मृत्यु दर्ज की जाती हैं।

आकाशीय बिजली के बारे में

  • आकाशीय बिजली चक्रवात के दौरान एक प्राकृतिक विद्युत निर्वहन है, जो तब होता है, जब वायुमंडल में आवेशित कण एकत्रित होकर ऊर्जा उत्सर्जित करते हैं।
    • इस उत्सर्जन से प्रकाश की चमक (आकाशीय बिजली) उत्पन्न होती है और तेजी से संपीडित होती वायु के कारण उसमे गड़गड़ाहट उत्पन्न होती है।

  • आकाशीय बिजली तब उत्पन्न होती है, जब वायुमंडल में या बादलों के भीतर धनात्मक और ऋणात्मक आवेशित कण असंतुलन उत्पन्न करते हैं। 
    • जब यह असंतुलन काफी बढ़ जाता है, तो आवेश का निर्वहन होता है।

  • प्रकार: सबसे सामान्य प्रकार आकाश-से-सतह, आकाश-से-आकाश और आकाश के भीतर आकाशीय  बिजली का उत्पन्न होना है।
  • प्रभाव: आकाशीय बिजली से आग लग सकती है, विद्युत संचलन बाधित हो सकता है, संरचनात्मक क्षति हो सकती है और मनुष्य एवं जीवों की मृत्यु हो सकती है।
  • आकाशीय बिजली गिरने संबंधी केंद्र सरकार का दृष्टिकोण: आकाशीय बिजली प्राकृतिक आपदा के रूप में वर्गीकृत नहीं है।

बिहार में आकाशीय बिजली की उच्च संभावना के लिए उत्तरदायी कारक

  • जलवायु और भू-भाग: बिहार की आर्द्र उपोष्णकटिबंधीय जलवायु, जो उच्च तापमान और मानसूनी वर्षा से चिह्नित है, गरज के साथ बादल बनने को बढ़ावा देती है।
    • इसके समतल मैदान और हिमालय से निकटता चक्रवाती गतिविधियों को बढ़ावा देती है, क्योंकि ठंडी पर्वतीय हवाएँ निचले इलाकों से आने वाली गर्म, आर्द्र हवा से टकराती हैं।
  • ग्रामीण जोखिम: चूँकि ग्रामीण आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि पर निर्भर है, इसलिए कई लोग चक्रवात के दौरान खुले खेतों में कार्य करते समय जोखिम में पड़ जाते हैं।
  • सुरक्षा का अभाव: गाँवों में अक्सर ऊँची इमारतों, लाइटनिंग कंडक्टर या पर्याप्त सुरक्षा उपायों की कमी होती है, जिससे जोखिम बढ़ जाता है।
  • कम जागरूकता: बड़े पैमाने पर अलर्ट सिस्टम (12 करोड़ SMS अलर्ट भेजे गए) के बावजूद ग्रामीण अक्सर आधिकारिक चेतावनियों को अनदेखा करते हैं।
  • नम मृदा और जल निकाय: नदियों और आर्द्रभूमियों की प्रचुरता बिहार की मृदा को नम रखती है, जो विद्युत चालकता को बढ़ाती है और आकाशीय बिजली की घटनाओं की संभावना को बढ़ाती है।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: मौसम के बदलते पैटर्न, बढ़ते तापमान और अनियमित वायु प्रवाह के कारण आकाशीय बिजली सहित गंभीर मौसम संबंधी घटनाओं में वृद्धि हुई है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) दिशा-निर्देश: मुख्य बिंदु

  • प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली: NDMA टीवी, रेडियो, SMS और मोबाइल ऐप जैसे कई प्लेटफॉर्मों के माध्यम से स्थानीय भाषाओं में समय पर, सटीक प्रारंभिक चेतावनियों पर जोर देता है। 
  • निर्देश का संचार: प्रत्येक आपदा प्रकार के लिए जनता को स्पष्ट, सरल और सुलभ निर्देश प्रसारित किए जाने चाहिए। 
  • खतरे का मानचित्रण और रोकथाम: NDMA आपदा जोखिमों को कम करने के लिए विस्तृत जोखिम सुभेद्यता मानचित्रण और प्रारंभिक निवारक कार्रवाई की सिफारिश करता है। 
  • आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचा: यह विशेष रूप से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में आपदा प्रतिरोधी भवन कोड और बुनियादी ढाँचे की योजना को अपनाने को प्रोत्साहित करता है।
  • भूमिगत केबलिंग: घने शहरी और संवेदनशील क्षेत्रों में, जोखिम को कम करने के लिए भूमिगत विद्युत और संचार केबल डालने की सलाह दी जाती है। 
  • सामुदायिक आपदा प्रबंधन: विकेंद्रीकृत प्रतिक्रिया के लिए सामुदायिक स्तर के आपदा प्रबंधन समूहों का गठन और प्रशिक्षण महत्त्वपूर्ण है। 
  • चिकित्सालयों में आपातकालीन तैयारी: चिकित्सालयों को बड़े पैमाने पर आपातकालीन किट, SOP और निर्दिष्ट सुविधाओं से सुसज्जित होना चाहिए।

भारत में आकाशीय बिजली से होने वाली मौतों को रोकने के लिए उठाए गए कदम

  • पूर्व चेतावनी प्रणाली: भारत ने एक उन्नत आकाशीय बिजली पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित की है।
    • पूर्वानुमान 3 से 5 दिन पहले उपलब्ध होते हैं, जिससे समय पर अलर्ट मिलना संभव हो जाता है।
    • भारत वैश्विक स्तर पर ऐसी क्षमता वाले केवल पाँच देशों में से एक है।
  • लाइटनिंग लोकेशन नेटवर्क: भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM), पुणे ने देश में 83 स्थानों पर रणनीतिक रूप से लाइटनिंग लोकेशन नेटवर्क स्थापित किया है, ताकि अत्यंत सटीकता के साथ आकाशीय बिजली के प्रभाव का पता लगाया जा सके।
  • दामिनी ऐप: दामिनी ऐप GPS और उपयोगकर्ता स्थान के आधार पर वास्तविक समय में आकाशीय बिजली अलर्ट प्रदान करता है।
    • यह उपयोगकर्ताओं को चेतावनी देता है, जब आकाशीय बिजली उनके स्थान से 20-40 किमी. के भीतर होती है।
    • यह आकाशीय बिजली की आशंका वाले क्षेत्रों के लिए सुरक्षा निर्देशों के साथ-साथ 40 मिनट की अग्रिम चेतावनी भी देता है।
  • राज्य बिजली कार्य योजनाएँ: राज्यों को आकाशीय बिजली कार्य योजनाएँ बनाने और उन्हें लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
  • लाइटनिंग रेसिलिएंट इंडिया अभियान: क्लाइमेट रेजिलिएंट ऑब्जर्विंग सिस्टम प्रमोशन काउंसिल (CROPC) द्वारा शुरू किया गया एक समुदाय-केंद्रित आउटरीच कार्यक्रम है।
    • इसे राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA), भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD), पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय और भारतीय मौसम विज्ञान सोसायटी जैसे प्रमुख हितधारकों द्वारा समर्थन प्राप्त है।
  • जन जागरूकता और शिक्षा: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) TV (दूरदर्शन) और रेडियो (ऑल इंडिया रेडियो) के माध्यम से ‘आँधी और आकाशीय बिजली’ के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ने के लिए अभियान चलाता है।
    • उदाहरण: सरल व्यवहार परिवर्तन, जैसे कि तूफान के दौरान खुले मैदानों से बचना, को प्रोत्साहित किया जाता है।

आगे की राह

  • प्राकृतिक आपदा के रूप में आधिकारिक मान्यता: आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के अंतर्गत आकाशीय बिजली को प्राकृतिक आपदा के रूप में वर्गीकृत करने से बेहतर वित्तपोषण, तैयारी और प्रतिक्रिया तंत्र सुनिश्चित हो सकता है।
  • संचार तंत्र को मजबूत करना: स्थानीय शासन निकायों, पंचायतों और सामुदायिक नेटवर्क का लाभ उठाकर ताकि किसान, मछुआरे, कर्मचारी आदि सिंगल अलर्ट पर कार्रवाई करने में सक्षम हों।
  • लाइटनिंग एटलस और हॉटस्पॉट मैपिंग: हॉटस्पॉट मैपिंग के साथ लाइटनिंग एटलस विकसित करने से उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों की पहचान करने, लक्षित जागरूकता कार्यक्रमों को सक्षम करने, बेहतर संसाधन आवंटन और बुनियादी ढाँचे को लचीला बनाने में सहायता मिलेगी।

निष्कर्ष

जागरूकता अभियान, सुदृढ़ बुनियादी ढाँचा और वास्तविक समय में स्थानीय अलर्ट की व्यवस्था को मजबूत करना जीवन बचाने के लिए महत्त्वपूर्ण है। हालाँकि मानसून के बाद बिजली गिरने की घटनाएँ कम हो सकती हैं, लेकिन बदलते मौसम में सक्रिय दीर्घकालिक योजना बनाना आवश्यक है।

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