भारत के लोकपाल का स्थापना दिवस पहली बार 16 जनवरी को मानेकशॉ सेंटर, नई दिल्ली में आयोजित किया गया।
संबंधित तथ्य
भारत के लोकपाल की स्थापना लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 द्वारा 16 जनवरी, 2014 को की गई थी।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री संजीव खन्ना थे।
लोकपाल
लोकपाल एक राष्ट्रीय स्तर की भ्रष्टाचार विरोधी संस्था है, जिसकी स्थापना सरकारी अधिकारियों से जुड़े भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच और उन पर अभियोग चलाने के लिए की गई है।
यह मंत्रियों तथा सरकारी कर्मचारियों के मध्य जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र निकाय के रूप में कार्य करता है।
यह बिना किसी संवैधानिक दर्जे के एक वैधानिक निकाय है।
स्थापना: वर्ष 2013 में पारित लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम वर्ष 2014 में लागू हुआ।
हालाँकि, पहले लोकपाल, न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष को लगभग पाँच वर्षों की देरी के बाद वर्ष 2019 में ही नियुक्त किया गया था।
अधिनियम में राज्य स्तर पर लोकायुक्तों की स्थापना का भी प्रावधान है।
लोकपाल की स्थापना की समय-सीमा
वर्ष 1966
प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने लोक शिकायतों के निवारण के लिए लोकपाल और लोकायुक्तों वाली दो स्तरीय व्यवस्था के गठन की सिफारिश की थी।
वर्ष 1968
लोकपाल तथा लोकायुक्त विधेयक पहली बार चौथी लोकसभा में पेश किया गया था।
वर्ष 2002
संविधान के कार्यकरण की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग ने लोकपाल तथा लोकायुक्तों की नियुक्ति के लिए संवैधानिक प्रावधानों की सिफारिश की।
वर्ष 2005
वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली दूसरी ARC ने सिफारिश की कि लोकपाल का कार्यालय अविलंब स्थापित किया जाए।
वर्ष 2011
भ्रष्टाचार से निपटने के उपाय सुझाने तथा लोकपाल विधेयक के प्रस्ताव की जाँच करने के लिए प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में एक मंत्रिसमूह का गठन किया गया था।
वर्ष 2011
भारत ने अनुसमर्थन दस्तावेज जमा करके भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (United Nations Convention Against Corruption- UNCAC) का अनुसमर्थन किया।
वर्ष 2011
लोकपाल विधेयक पहली बार इस रूप में लोकसभा में पेश किया गया।
वर्ष 2013
लोकपाल एवं लोकायुक्त विधेयक, 2013 संसद के दोनों सदनों में पारित हो गया।
1 जनवरी 2014
विधेयक को भारत के राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो गई।
16 जनवरी 2014
लोकपाल अधिनियम अंततः लागू हो गया।
वर्ष 2016
लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में संशोधन किया गया।
लोकपाल की आवश्यकता
भारत में भ्रष्टाचार की व्यापकता: भारत लंबे समय से राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर भ्रष्टाचार से जूझ रहा है।
वर्ष 2023 में भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक में भारत 180 देशों में से 93वें स्थान पर होगा।
प्रभावी जाँच और अभियोजन का अभाव: CBI तथा CVC जैसी मौजूदा व्यवस्थाओं पर प्रायः अकुशलता और राजनीतिक हस्तक्षेप का आरोप लगता रहा है।
अतीत में भी भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा CBI को ‘पिंजरे में बंद तोता (Caged Parrot)’ तथा ‘अपने मालिक की आवाज (Its Master’s Voice)’ कहा गया है।
भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियों में आंतरिक पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव: CBI तथा CVC जैसी एजेंसियों पर नियंत्रण रखने के लिए कोई प्रभावी और अलग तंत्र नहीं है।
लोकपाल तथा लोकायुक्त की एक स्वतंत्र संस्था के रूप में स्थापना एक ऐतिहासिक कदम है, जो भ्रष्टाचार के कभी न समाप्त होने से संबंधित खतरे का समाधान प्रस्तुत कर सकती है।
ये संस्थाएँ सरकार के सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार का मुकाबला करने के लिए एक शक्तिशाली और प्रभावी उपाय प्रदान करती हैं।
लोकपाल अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
संघटन
लोकपाल में एक अध्यक्ष तथा अधिकतम आठ सदस्य होते हैं, जिनमें से आधे न्यायिक सदस्य होते हैं।
कम-से-कम आधे सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिलाओं से संबंधित होने चाहिए।
चयन समिति: चयन समिति में अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता (या लोकसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता), भारत के मुख्य न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित न्यायाधीश तथा राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होते हैं।
लोकपाल और लोकायुक्त (संशोधन) अधिनियम, 2016
इस अधिनियम ने लोक सेवकों द्वारा परिसंपत्तियों तथा देनदारियों की घोषणा के संबंध में लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में संशोधन किया।
इसके तहत लोक सेवक को अपनी तथा अपने जीवनसाथी तथा आश्रित बच्चों की परिसंपत्तियों तथा देनदारियों की घोषणा करनी होगी।
ऐसी घोषणाएँ पदभार ग्रहण करने के 30 दिनों के भीतर सक्षम प्राधिकारी के समक्ष की जानी चाहिए।
क्षेत्राधिकार
प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों, संसद सदस्यों और समूह A, B, C तथा D के अधिकारियों और केंद्र सरकार के अधिकारियों पर।
अधीक्षण: इसके पास अधीक्षण की शक्ति है और यह लोकपाल द्वारा संदर्भित मामलों के लिए केंद्रीय जाँच ब्यूरो, केंद्रीय और केंद्रीय सतर्कता आयोग सहित किसी भी जाँच एजेंसी को निर्देश देता है।
संपूर्ण विश्व में लोकपाल की स्थिति
स्वीडन
आधुनिक विश्व में सबसे पहला लोकपाल वर्ष 1809 में स्वीडन में सरकारी प्रशासन की देख-रेख के लिए स्थापित किया गया था।
फिनलैंड
फिनलैंड में प्रमुख लोकपाल संस्था वर्ष 1920 से अस्तित्व में है।
यह अधिकारियों द्वारा की गई कार्रवाई की वैधता की निगरानी करती है, मुख्य रूप से प्राप्त शिकायतों की जाँच करके, शिकायतकर्ता को कोई लागत दिए बिना।
डेनमार्क
फोल्केटिंगेट्स ओम्बुड्समैन, या डेनिश संसदीय ओम्बुड्समैन की स्थापना पहली बार वर्ष 1955 में सार्वजनिक प्रशासन के बारे में शिकायतों की जाँच करने के लिए की गई थी।
नॉर्वे
नॉर्वे के संसदीय लोकपाल को वहाँ की संसद स्टॉर्टिंग द्वारा व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने तथा यातना तथा अमानवीय व्यवहार को रोकने के लिए नियुक्त किया जाता है।
नीदरलैंड
नीदरलैंड के संविधान में वर्ष 1981 से नेशनल ओम्बुड्समैन की नियुक्ति अनिवार्य है।
यह सरकारी कदाचार के विरुद्ध प्राप्त शिकायतों को संदर्भित करता है, मध्यस्थता करता है या जाँच करता है।
न्यूजीलैंड
वर्ष 1962 से, न्यूजीलैंड के लोकपाल कार्यालय ने एक स्वतंत्र प्राधिकरण के रूप में कार्य किया है, जो सरकारी एजेंसियों के साथ सहयोग करता है।
यह विकलांग समुदाय, मुखबिरों, हिरासत में लिए गए व्यक्तियों आदि जैसे व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने में संलग्न है।
लोकपाल की शक्तियाँ एवं कार्य
क्षेत्राधिकार
प्रधानमंत्री: लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में प्रधानमंत्री शामिल हैं, सिवाय निम्नलिखित मामलों के
अंतरराष्ट्रीय संबंध, राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष।
मंत्री और संसद सदस्य (सांसद): लोकपाल भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच कर सकता है, लेकिन संसद में की गई कार्रवाई या बयान या सांसदों द्वारा डाले गए वोटों की जाँच नहीं कर सकता।
समूह A, B, C तथा D के अधिकारी और केंद्र सरकार के अधिकारी।
अधीक्षण एवं निरीक्षण शक्तियाँ
केंद्रीय जाँच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) पर नियंत्रण
लोकपाल को CBI द्वारा भेजे गए मामलों पर अधीक्षण का अधिकार है।
ऐसे मामलों में CBI जाँच अधिकारी को लोकपाल की मंजूरी के बिना स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।
जाँच विंग: लोकपाल की जाँच विंग को सिविल कोर्ट की शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
जब्ती शक्तियाँ: लोकपाल विशेष परिस्थितियों में भ्रष्ट तरीकों से प्राप्त संपत्ति, आय या लाभ को जब्त करने का आदेश दे सकता है।
कार्यवाही की अखंडता सुनिश्चित करने की शक्तियाँ
भ्रष्टाचार के आरोपों में शामिल लोक सेवकों के स्थानांतरण या निलंबन की सिफारिश कर सकता है।
प्रारंभिक जाँच के दौरान अभिलेखों को नष्ट होने से रोकने के लिए निर्देश देने का अधिकार।
संपत्ति का खुलासा: लोकपाल अधिनियम सार्वजनिक अधिकारियों को अपनी और अपने आश्रितों की संपत्ति और देनदारियों का खुलासा करने का आदेश देता है।
सलाहकार और निवारक भूमिका: लोकपाल भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के उपायों की सिफारिश कर सकता है और बेहतर शासन के लिए प्रशासनिक सुधारों का सुझाव दे सकता है।
लोकपाल से जुड़ी चुनौतियाँ तथा मुद्दे
विलंबित नियुक्ति: पहला लोकपाल, अधिनियम के क्रियान्वयन के पाँच वर्ष बाद नियुक्त किया गया था।
अधिनियम 2013 में पारित होने के बावजूद, पहले लोकपाल अध्यक्ष न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष को वर्ष 2019 में नियुक्त किया गया था।
अध्यक्ष का पद भी मई 2022 से मार्च 2024 तक रिक्त रहा।
राजनीतिक हस्तक्षेप: लोकपाल की चयन प्रक्रिया में प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता जैसे राजनीतिक व्यक्ति शामिल होते हैं।
न्यायालयीय सीमाएँ
प्रधानमंत्री लोकपाल के दायरे में रहते हुए भी राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेशी मामलों और परमाणु ऊर्जा से संबंधित मामलों में जाँच से सुरक्षित हैं।
लोकपाल राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार की जाँच नहीं कर सकता, जिससे राज्य प्रशासन में भ्रष्टाचार को संबोधित करने में महत्त्वपूर्ण कमी उजागर होती है।
गुमनाम शिकायतों की अनुमति नहीं: लोकपाल अधिनियम गुमनाम शिकायतों की अनुमति नहीं देता है, जो संभावित मुखबिरों को आगे आने से रोक सकता है।
कार्रवाई के बिना निपटान की उच्च दर: संसदीय पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, लोकपाल ने बिना किसी कार्रवाई के लोकसेवकों के विरुद्ध 68% भ्रष्टाचार की शिकायतों का निपटारा किया।
कार्रवाई लागू करने की सीमित शक्ति: लोकपाल के पास कोई प्रत्यक्ष जाँच शक्ति नहीं है। यह जाँच तथा कार्रवाई के लिए CBI तथा CVC पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
वर्ष 2019- वर्ष 2023 के बीच प्राप्त 8,703 शिकायतों में से केवल तीन की पूरी तरह से जाँच की गई।
शिकायत प्रक्रिया में सीमाएँ
पिछले पाँच वर्षों में लगभग 90% शिकायतें गलत प्रारूप में प्रस्तुत किए जाने के कारण खारिज कर दी गई हैं।
शिकायत कथित अपराध के सात वर्षो के भीतर दर्ज की जानी चाहिए, जिससे जाँच का दायरा और सीमित हो जाता है।
लोकपाल की कम उत्पादकता: इसकी स्थापना के बाद से केवल 24 जाँचों का आदेश दिया गया और छह अभियोजन स्वीकृतियाँ दी गईं।
संसाधन की कमी: लोकपाल को कम कर्मचारियों और अपर्याप्त संसाधनों से संबंधित मुद्दों का सामना करना पड़ा है, जो मामलों की उच्च मात्रा को सँभालने की इसकी क्षमता को प्रभावित करता है।
अपर्याप्त पारदर्शिता: लोकपाल की कार्यप्रणाली की आलोचना इसकी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता की कमी के लिए की गई है।
कमजोर व्हिसलब्लोअर सुरक्षा: लोकपाल अधिनियम व्हिसलब्लोअर के लिए सुरक्षा निर्धारित करता है, लेकिन व्यवहार में, सुरक्षा तंत्र में महत्त्वपूर्ण खामियाँ हैं।
आगे की राह
लोकपाल और सदस्यों की समय पर नियुक्ति: चयन समिति के गठन और अंतिम नियुक्तियों के लिए स्पष्ट समय-सीमाएँ लागू करने के लिए लोकपाल अधिनियम में संशोधन करना।
राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करना: लोकपाल सदस्यों की नियुक्ति में राजनीतिक प्रभाव को कम करने के लिए तंत्र लागू करना, जैसे चयन समिति में न्यायिक तथा स्वतंत्र सदस्यों का महत्त्व बढ़ाना।
अधिकार क्षेत्र का विस्तार करना: प्रधानमंत्री की जाँच की सीमाओं का पुनर्मूल्यांकन करना, जवाबदेही को कम किए बिना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करना।
जाँच शक्तियों को बढ़ाना: CBI तथा CVC जैसी एजेंसियों पर निर्भरता कम करने के लिए लोकपाल को प्रत्यक्ष जाँच शक्तियाँ प्रदान करना।
संसाधनों और बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना: पर्याप्त स्टाफिंग, तकनीक और बुनियादी ढाँचा सुनिश्चित करने के लिए लोकपाल के लिए बजटीय आवंटन बढ़ाना।
पारदर्शिता में सुधार करना: वार्षिक रिपोर्ट, चल रही जाँचों का विवरण तथा हल किए गए मामलों की स्थिति प्रकाशित करके लोकपाल की प्रक्रियाओं को और अधिक पारदर्शी बनाना।
व्हिसलब्लोअर सुरक्षा को मजबूत करना: लोकपाल अधिनियम में संशोधन करके व्हिसलब्लोअर को गोपनीय तथा कानूनी सुरक्षा सहित अधिक सुरक्षा प्रदान की जाए।
लोकायुक्त
लोकपाल की तरह, लोकायुक्त भी राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल है।
यह मुख्यमंत्री, राज्य के मंत्रियों और अन्य राज्य-स्तरीय लोक सेवकों सहित राज्य सरकार के अधिकारियों से जुड़े भ्रष्टाचार तथा कदाचार की जाँच करता है।
लोकायुक्त की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है।
लोकायुक्त से संबंधित मुद्दे
कोई स्पष्ट कानून नहीं
लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम 2013 में लोकायुक्त पर केवल एक धारा है, जिसके अनुसार राज्यों को एक वर्ष के भीतर लोकायुक्त अधिनियम पारित करना होगा।
लोकायुक्त की संरचना, शक्तियों या अन्य कार्यों के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
वित्तपोषण: लोकायुक्त वित्त पोषण और बुनियादी ढाँचे के लिए राज्य सरकार पर निर्भर है।
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