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मधिका भाषा (Madhika language)

Samsul Ansari January 23, 2024 02:43 361 0

संदर्भ

केरल में केवल दो लोगों द्वारा बोली जाने वाली मधिका (MADHIKA) भाषा, जिसकी कोई लिपि नहीं है, विलुप्त होने की कगार पर है।

मधिका भाषा 

  • मधिका चकलिया (CHAKALIYA) समुदाय द्वारा बोली जाने वाली भाषा है, यह तेलुगु, तुलु, कन्नड़ और मलयालम का मिश्रण है।
  • विलुप्त होने का कारण: युवा पीढ़ी द्वारा मलयालम भाषा अपनाने के कारण यह तेजी से विलुप्त हो रही है।

चकलिया समुदाय 

  • यह समुदाय खानाबदोश था तथा थिरुवेंकटरमण एवं मरियम्मा के उपासक थे।
  • पहले इसे अनुसूचित जनजाति के रूप में मान्यता दी गई थी, बाद में इसे केरल में अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया।
  • इस समुदाय को अछूत माना जाता था।

भारत में संकटग्रस्त (Endangered) भाषाओं की वर्तमान स्थिति

  • यूनेस्को द्वारा प्रकाशित वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 42 भाषाएँ विलुप्त होने के कगार पर हैं। भारत की अधिकांश संकटग्रस्त भाषाएँ स्थानीय जनजातीय समूहों द्वारा बोली जाती हैं।
  • यूनेस्को के मानदंडों के अनुसार, केवल 10,000 लोगों द्वारा बोली जाने वाली कोई भी भाषा विशेष रूप से खतरे में है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना: जनगणना में भी केवल उन भाषायों को दर्ज किया जाता है जिनके बोलने वालों की संख्या 10,000 से अधिक हो।
    • वर्ष 2011 की जनगणना में दर्ज की गई 99 गैर-अनुसूचित भाषाओं में से 22 भाषायों के बोलने वालों की संख्या एक दशक पहले की तुलना में कम हुई है। उन भाषाओं में 13 पूर्वोत्तर भारत में बोली जाती हैं।

यूनेस्को द्वारा संकटग्रस्त भाषाओं का वर्गीकरण

  • विलुप्त: जब भाषा को बोलने वाला एक भी व्यक्ति जीवित नहीं हो तो भाषा को विलुप्त मान लिया जाता है।
  • गंभीर रूप से संकटग्रस्त (Critically Endangered): जब उस भाषा को पुरानी पीढ़ी (दादा-दादी) द्वारा बोला जाता हो और वे भी इस भाषा को कभी-कभार ही बोलते हों।
  • अति-संकटग्रस्त (Severely Endangered): यह भाषा दादा-दादी तथा पुरानी पीढ़ियों के लोगों द्वारा बोली जाती है। हालाँकि माता-पिता की पीढ़ी इस भाषा को समझते हैं किंतु इसका प्रयोग नहीं करते हैं। 
  • निश्चित रूप से लुप्तप्राय (Definitely Endangered): अब इन भाषाओं को बच्चे मातृभाषा के रूप में नहीं सीख रहे हैं।
  • असुरक्षित (Vulnerable): अधिकांश बच्चे इन भाषाओं को बोलते हैं किंतु इन्हें कुछ विशेष क्षेत्रों या परिस्थितियों (जैसे घर) में ही बोली जाती है।
  • सुरक्षित/संकटग्रस्त नहीं: इसके अंतर्गत उन भाषाओं को रखा गया है, जो समाज में सभी पीढ़ियों द्वारा बोली जाती है तथा अंतर-पीढ़ीगत संचार का माध्यम हो। 

भाषा के लुप्त होने के प्रभाव

  • जब कोई भाषा लुप्त होती है तो भाषा की ज्ञान प्रणाली भी खत्म हो जाती है। इस प्रकार दुनिया को देखने का एक अनोखा नजरिया भी खो जाता है।
  • भाषा को बोलने वाले लोग अलग-अलग भाषाओं और क्षेत्रों की ओर पलायन करने लगते हैं, जिस वजह से भाषा लुप्त हो जाती है।

संकटग्रस्त भाषाओं के संरक्षण के लिए सरकारी पहल

  • लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण योजना (SPPEL)
    • इसे वर्ष 2013 में शिक्षा मंत्रालय द्वारा देश की उन भाषाओं के दस्तावेजीकरण और संरक्षित करने के लिए स्थापित किया गया था जो संकटग्रस्त हैं या लुप्त होने के कगार पर हैं।
    • इस योजना की निगरानी कर्नाटक के मैसूरु में स्थित केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (CIIL) द्वारा की जाती है।
  • केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (CIIL)
    • इसकी स्थापना वर्ष 1969 में हुई थी तथा यह शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।
  • उद्देश्य 
    • यह भाषा के मामलों में केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देता है।
    • यह संस्था संकटग्रस्त भाषा, अल्पसंख्यक तथा जनजातीय समूहों की भाषाओं की सुरक्षा एवं दस्तावेजीकरण भी करती है।
  • नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय अनुबंध (ICCPR 1976): इसमें कहा गया है कि उन क्षेत्रों में जहाँ जातीय, धार्मिक या भाषायी अल्पसंख्यक मौजूद हैं, ऐसे अल्पसंख्यकों को उनके अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा। दूसरे शब्दों में, समुदाय अपनी भाषा, संस्कृति, धर्म आदि के उपयोग के लिए स्वतंत्र होंगे।

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