भीमराव रामजी अंबेडकर की पुण्य तिथि प्रत्येक वर्ष 6 दिसंबर को महापरिनिर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है।
परिनिर्वाण
परिनिर्वाण बौद्ध धर्म में एक मौलिक अवधारणा का प्रतिनिधित्व करता है, जो किसी के जीवनकाल के दौरान और मृत्यु के बाद भी निर्वाण या मुक्ति की प्राप्ति को दर्शाता है।
संस्कृत में मरणोपरांत निर्वाण प्राप्त करना या मृत्यु के बाद आत्मा को शरीर से मुक्त करना परिनिर्वाण कहलाता है।
प्रेरणादायक उद्धरण
मैं किसी समुदाय की प्रगति को महिलाओं द्वारा हासिल की गई प्रगति से मापता हूं।
मुझे वह धर्म पसंद है जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है।
यदि आप सम्मानजनक जीवन जीने में विश्वास करते हैं, तो आप स्व-सहायता में विश्वास करते हैं, जो सबसे अच्छी मदद है।
जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते, तब तक कानून जो भी स्वतंत्रता प्रदान करता है, वह आपके लिए किसी काम की नहीं है।
जीवन लम्बा नहीं बल्कि महान होना चाहिए
डॉ. बीआर अंबेडकर के बारे में
जन्म: 14 अप्रैल, 1891, महू, मध्य प्रदेश में
भारतीय संविधान के जनक: वह मसौदा समिति के अध्यक्ष थे और उन्हें भारतीय संविधान के जनक के रूप में याद किया जाता है।
साहित्यिक योगदान: ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’, ;द प्रॉब्लम ऑफ रूपी: इट्स ओरिजिन एंड सोल्यूशन”, “भाषाई राज्यों पर विचार”, “बुद्ध और उनका धम्म”।
वर्ष 1916 में उन्होंने अपनी थीसिस ‘भारत के लिए राष्ट्रीय लाभांश – एक ऐतिहासिक और विश्लेषणात्मक अध्ययन’ लिखी और अपनी पीएच.डी. डिग्री प्राप्त की।
आर्थिक योगदान: केंद्रीय बैंक का गठन बाबासाहेब द्वारा हिल्टन यंग कमीशन को प्रस्तुत अवधारणा के आधार पर किया गया था।
संबद्ध संगठन:
बहिष्कृत हितकारिणी सभा (बहिष्कृत कल्याण संघ) (1923)।
इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी (1936)
अनुसूचित जाति संघ (1942)
सामाजिक: उन्होंने अछूतों के लिए राजनीतिक सुरक्षा उपाय करने की दिशा में कार्य किया, जिनमें से पहला कार्य साउथबोरो समिति के सामने उनकी प्रस्तुति थी जो भारत सरकार अधिनियम, 1919 तैयार कर रही थी।
उन्होंने ‘पिछड़े वर्गों’ के लिए अलग निर्वाचिका हेतु उत्साहपूर्वक तर्क दिया,
वर्ष 1927 में रायगढ़ ज़िले में स्थित महाड में एक दलित वर्ग सम्मेलन का आयोजन किया गया था।
उन्होंने हिंदू व्यक्तिगत कानूनों में सुधार के लिए हिंदू कोड बिल पारित करने का प्रयास किया, जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे मामलों को निर्धारित करता था।
संविधान सभा की सदस्यता: वर्ष 1942 में उन्हें श्रम सदस्य के रूप में भारत के गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में नियुक्त किया गया, वर्ष 1946 में वे बंगाल से संविधान सभा के लिए चुने गए।
संसदीय जीवन: अम्बेडकर 1926-34 तक बॉम्बे विधान परिषद के मनोनीत सदस्य भी रहे।
वर्ष 1947 में अम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के पहले विधि मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था।
वर्ष 1951 में उन्होंने कश्मीर मुद्दे, भारत की विदेश नीति और हिंदू कोड बिल के प्रति नेहरू की नीति पर अपने मतभेद व्यक्त करते हुए अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
उन्होंने तीनों गोलमेज़ सम्मेलनों में भाग लिया।
सम्मान: डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर को 1954 में काठमांडू, नेपाल में “जगतिक बौद्ध धर्म परिषद” में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा “बोधिसत्व” की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
वी.पी. सिंह सरकार के तहत, डॉ. बी.आर. अम्बेडकर को वर्ष 1990 में सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था।
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