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महात्मा गांधी

Lokesh Pal October 04, 2025 02:56 35 0

संदर्भ

2 अक्टूबर को देशभर में गांधी जयंती मनाई गई। वर्ष 2025 में, भारत ने उनकी 156वीं जयंती मनाई।

संबंधित तथ्य

  • गांधी जयंती भारत में एक राष्ट्रीय अवकाश है और इसे दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में भी मान्यता प्राप्त है।
  • यह दिन गांधी जी के सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों का स्मरण कराता है और भारत तथा विश्व पर उनके स्थायी प्रभाव को दर्शाता है।

महात्मा गांधी के बारे में

  • जन्म और प्रारंभिक जीवन: 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में जन्मे महात्मा गांधी एक बैरिस्टर, समाज सुधारक और राजनीतिक नेता थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन से भारत के स्वतंत्रता संग्राम में केंद्रीय भूमिका निभाई।
  • राष्ट्रपिता और सत्याग्रह: राष्ट्रपिता के रूप में विख्यात, गांधी जी ने सत्याग्रह को अपनाया, जो अहिंसक प्रतिरोध की एक पद्धति थी, जो औपनिवेशिक उत्पीड़न के विरुद्ध एक शक्तिशाली हथियार बन गई।
  • दर्शन और विश्वास: गांधी जी के दर्शन में सत्य, अहिंसा, स्वराज, ग्रामीण विकास, सामाजिक समानता और जीवन में सादगी पर जोर दिया गया।
  • आंदोलनों में नेतृत्व: उन्होंने चंपारण और खेड़ा आंदोलन, असहयोग आंदोलन, नमक मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलनों का नेतृत्व किया। साथ ही हाशिए पर स्थित समुदायों के उत्थान, सांप्रदायिक सद्भाव और आर्थिक आत्मनिर्भरता का भी समर्थन किया।
  • विरासत और वैश्विक प्रभाव: उनके सिद्धांत वैश्विक शांति और न्याय आंदोलनों को प्रेरित करते रहते हैं, और उनकी शिक्षाओं की समकालीन प्रासंगिकता को पुष्ट करते हैं।

गांधी के दर्शन का ऐतिहासिक संदर्भ और उद्भव

  • दक्षिण अफ्रीकी अनुभव (1893-1915): दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव के साथ गांधी का संघर्ष निर्णायक था।
    • अन्याय का सामना करने के अलावा, उन्होंने एक राजनीतिक रणनीति और जन-आंदोलन तकनीक विकसित की, जो बाद में सत्याग्रह का आधार बनी।
  • आदर्शवादी से व्यावहारिक तक: गांधी के अनुभवों ने उनके व्यावहारिक दृष्टिकोण को आकार दिया—जिसमें नैतिकता, अहिंसा और राजनीतिक कार्रवाई का संयोजन था।
    • उनके प्रारंभिक कार्यों ने उन्हें सिखाया कि सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए अनुशासन, नेतृत्व और जन सहभागिता आवश्यक है।
  • भारतीय समाज पर प्रभाव: गांधी के आंदोलनों ने पहली बार महिलाओं, किसानों और निचली जातियों सहित आम नागरिकों का राजनीतीकरण किया, जिससे भागीदारी, स्व-सहयोग और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा मिला।
    • असहयोग, सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो जैसे आंदोलनों ने भारत की सामाजिक और राजनीतिक चेतना को आकार दिया।
  • गांधी की विचारधारा पर प्रभाव: गांधी के विचारों को लियो टॉलस्यटॉय, जॉन रस्किन जैसे विचारकों और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे भारतीय नेताओं ने आकार दिया।

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21वीं सदी के डिजिटल विश्व में महात्मा गांधी के दर्शन की प्रासंगिकता

  • आज के डिजिटल युग में, ऐतिहासिक हस्तियों को प्रायः मीम्स, इन्फोग्राफिक्स और साउंडबाइट्स तक सीमित कर दिया जाता है। गांधी ऐसे सरलीकरण का विरोध करते हैं; शांति, सत्य और अहिंसा के उनके विचार जटिल और अत्यंत प्रासंगिक बने हुए हैं।
  • विरासत का विरोधाभास
    • हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान स्मारकों और मुद्रा जैसे स्थायी रूपों में अमर रहती है, लेकिन डिजिटल दुनिया में प्रायः उसका महत्व या सम्मान कमतर हो जाता है।
    • एल्गोरिदम-चालित विश्व आक्रोश और जुड़ाव को प्राथमिकता देती है, जो गांधी के चिंतनशील और धैर्यपूर्ण दृष्टिकोण के विपरीत है।
  • सतह से परे गांधी को समझना
    • स्वराज को आत्म-नियंत्रण के रूप में: सच्चे स्वशासन में केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही नहीं, बल्कि अपने आवेगों और नैतिक आचरण पर नियंत्रण भी शामिल है।
    • क्रांति-उत्तर नैतिकता: केवल शासकों को बदलने से आगे बढ़कर, समावेशी समाज और मानवीय गरिमा पर केंद्रित।
  • डिजिटल दुनिया बनाम गांधीवादी मूल्य
    • एल्गोरिदम बनाम अहिंसा: ऑनलाइन ध्रुवीकरण गांधी की सक्रिय अहिंसा और नैतिक विराम के बीच विरोधाभास दर्शाता है।
    • उत्तर-सत्य युग में सत्य: गांधी द्वारा सत्य की वस्तुनिष्ठ खोज, व्यक्तिपरकमेरा सत्य” आख्यानों से टकराती है।
    • मानवीय भेद्यता: गांधी का आत्म-सुधार और विनम्रता आज कमजोरी के रूप में देखी जा सकती है, लेकिन नैतिक नेतृत्व के लिए वे केंद्रीय थे।
  • आज के मुख्य सबक
    • गाँधी का दर्शन समावेशी राजनीति, नैतिक शासन और शांतिपूर्ण संघर्ष समाधान के लिए एक ढाँचा प्रदान करता है।
    • उनके विचारों से पूरी तरह जुड़ना, सरलीकृत डिजिटल बाइनरी के विरुद्ध एक शांत प्रतिरोध का कार्य है।

निष्कर्ष

तीव्र गति वाली डिजिटल दुनिया में भी, चिंतन, नैतिक साहस, सत्य और समावेशिता पर गांधी का जोर नैतिक कार्रवाई और सामाजिक सामंजस्य का मार्गदर्शन करता रहता है।

मूल दर्शन:

  • राजनीतिक दर्शन
    • स्वराज: गांधी जी का स्वराज का दृष्टिकोण राजनीतिक स्वतंत्रता से आगे बढ़कर व्यक्ति, परिवार और ग्राम स्तर पर स्वशासन पर जोर देता था।
      • उनका मॉडल पश्चिमी उदार-लोकतांत्रिक प्रणालियों से अलग है, जो नैतिक उत्तरदायित्व और सामुदायिक भागीदारी पर जोर देता है।
    • सत्याग्रह: अहिंसक प्रतिरोध, या सत्याग्रह, सत्य, साहस और सविनय अवज्ञा का मिश्रण था।
      • गांधी जी ने नैतिक उच्चता और नैतिक विरोध पर जोर देते हुए कहा कि साध्य, साधनों को उचित नहीं ठहराते।
  • आर्थिक दर्शन
    • स्वदेशी और ट्रस्टीशिप: गांधी जी ने स्थानीय उत्पादन और उपभोग (स्वदेशी) और ट्रस्टीशिप की अवधारणा को बढ़ावा दिया, जिसमें धन-संपत्ति धारक समाज के संसाधनों के रखवाले के रूप में कार्य करते हैं।
      • यह दर्शन आधुनिक कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility [CSR]) का पूर्वाभास देता है।
    • ग्राम-केंद्रित मॉडल बनाम औद्योगीकरण: गांधी जी के ग्राम स्वराज के दृष्टिकोण में आत्मनिर्भर गाँवों पर जोर दिया गया था, जो नेहरू के औद्योगीकरण के दृष्टिकोण के विपरीत था।
      • उनका आर्थिक चिंतन स्थिरता, स्थानीय रोजगार और संसाधनों के समान वितरण को प्राथमिकता देता है।
  • सामाजिक सुधार
    • अस्पृश्यता उन्मूलन: गांधी जी के हरिजन अभियान का उद्देश्य उत्पीड़ित जातियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करना था।
      • वे बी.आर. अंबेडकर से अलग थे, उन्होंने पृथक निर्वाचन को अस्वीकार कर दिया और राजनीतिक अलगाव की बजाय सामाजिक एकता में आस्था दर्शाई।

उनका नैतिक और शारीरिक साहस

  • जोहान्सबर्ग प्लेग (1904): गांधी जी अनुशासन और नैतिक जिम्मेदारी से ओत-प्रोत साहस का परिचय देते हुए, अपनी जान जोखिम में डालकर, परित्यक्त प्लेग रोगियों का उपचार करने के लिए स्वेच्छा से आगे आए।
  • सिद्धांतों को प्राथमिकता: कस्तूरबा की बीमारी के दौरान भी गांधी जी ने प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जारी रखी और सिद्धांतों को आवश्यकता से अधिक प्राथमिकता दी।
  • अहिंसा के प्रति प्रतिबद्धता: चौरी-चौरा की घटना (5 फरवरी, 1922) में 22 पुलिसकर्मी मारे गए, जिसके बाद गांधी जी ने आंदोलन की लोकप्रियता के बावजूद उसे वापस ले लिया।
  • आश्रम में सामाजिक सुधार: गांधी जी ने आर्थिक सहायता का जोखिम उठाकर भी एक अछूत” परिवार को अहमदाबाद आश्रम में प्रवेश दिलाया और सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने में नैतिक साहस का उदाहरण प्रस्तुत किया।
  • अनुशासन: गांधी जी ने आश्रम के नियमों का कड़ाई से पालन किया, यहाँ तक कि अपने परिवार के सदस्यों पर भी अनुशासन लागू किया, व्यक्तिगत स्नेह की बजाय सिद्धांतों को महत्त्व दिया।
  • नोआखली मिशन (1946): वे बिना किसी सुरक्षा के, दंगा प्रभावित गाँवों में नंगे पैर गए और शांति, मेल-मिलाप तथा सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा दिया।
  • हत्या की धमकियों का सामना: गांधी जी पर कई बार जानलेवा हमले किए गए, फिर भी उन्होंने पुलिस सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया और अपने सिद्धांतों के प्रति निडर प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया।

प्रमुख घटनाओं की समयरेखा

वर्ष आयोजन                                            
1869 2 अक्टूबर को पोरबंदर, गुजरात में जन्म
1883 कस्तूरबा से विवाह
1888 कानून की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए
1891 कानून की पढ़ाई पूरी की; भारत लौटे
1893 दक्षिण अफ्रीका गए
1894 नेटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की
1906 दक्षिण अफ्रीका में पहला सत्याग्रह अभियान
1915 भारत लौट आए
1917 चंपारण आंदोलन का नेतृत्व किया
1919 रौलेट एक्ट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन
1920–1922 असहयोग आंदोलन
1930 नमक मार्च; सविनय अवज्ञा आंदोलन
1942 भारत छोड़ो आंदोलन
1947 भारत की स्वतंत्रता
1948 30 जनवरी को हत्या कर दी गई

महात्मा गांधी के नेतृत्व में प्रमुख आंदोलन और प्रमुख घटनाएँ

आयोजन वर्ष महत्त्व
चंपारण सत्याग्रह (Champaran Satyagraha) 1917 भारत में गांधी जी का पहला बड़ा सविनय अवज्ञा आंदोलन; उत्पीड़ित नील किसानों को शोषक ब्रिटिश जमींदारों का विरोध करने में मदद की।
खेड़ा सत्याग्रह (Kheda Satyagraha) 1918 फसल विफलता के बाद एक सफल कर विद्रोह का नेतृत्व किया, भारतीय किसानों को सशक्त बनाया और गांधी जी को ग्रामीण भारत के रक्षक के रूप में स्थापित किया।
अहमदाबाद मिल हड़ताल (Ahmedabad Mill Strike) 1918 मिल श्रमिकों और मालिकों के बीच विवाद में हस्तक्षेप किया, तथा अहिंसक वार्ता उपकरण के रूप में भूख हड़ताल का उपयोग करते हुए श्रमिकों के अधिकारों की वकालत की।
रौलट सत्याग्रह (Rowlatt Satyagraha) 1919 दमनकारी कानूनों के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन के परिणामस्वरूप जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ, जिससे ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारतीयों का गुस्सा और बढ़ गया।
असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement) 1920–1922 ब्रिटिश वस्तुओं और संस्थाओं के बहिष्कार के साथ बड़े पैमाने पर अहिंसक आंदोलन; हिंसक घटनाओं के कारण निलंबन से पहले एकीकृत प्रतिरोध की शक्ति का प्रदर्शन किया।
गोलमेज सम्मेलन (Round Table Conferences) 1930–1932 गांधी जी ने भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा करने के लिए लंदन में द्वितीय गोलमेज सम्मेलन (1931) में भाग लिया।
नमक मार्च (दांडी मार्च) (Salt March [Dandi March]) 1930 ब्रिटिश नमक एकाधिकार का विरोध किया; सविनय अवज्ञा आंदोलन में राष्ट्रव्यापी भागीदारी को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement) 1930–1934 अंग्रेजों के साथ व्यापक असहयोग, जिसमें बहिष्कार और अन्यायपूर्ण कानूनों को मानने से इनकार करना शामिल था, ने स्वतंत्रता संग्राम में जन भागीदारी को मजबूत किया।
पूना समझौता (Poona Pact) 1932 डॉ. अंबेडकर के साथ ऐतिहासिक समझौता, एकीकृत हिंदू मतदाता को बनाए रखते हुए दलितों के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना।

गांधी जी का साहित्यिक योगदान

  • विपुल लेखक: गांधी जी ने अंग्रेजी, गुजराती और हिंदी में व्यापक रूप से लेखन किया और अपने दर्शन, सामाजिक विचारों और राजनीतिक रणनीतियों को समझाने के लिए पुस्तकों, निबंधों, पत्रों और लेखों का उपयोग किया।
  • प्रमुख रचनाएँ
    • हिंद स्वराज (1909): स्व-शासन (स्वराज) के अपने दृष्टिकोण को रेखांकित किया, औद्योगिक सभ्यता की आलोचना की और नैतिक राजनीति एवं अहिंसा पर जोर दिया।
    • आत्मकथा – “सत्य के साथ मेरे प्रयोग”, ने उनकी व्यक्तिगत यात्रा, नैतिक संघर्षों और सत्याग्रह के विकास को साझा किया, जिससे वैश्विक नेताओं और कार्यकर्ताओं को प्रेरणा मिली।
    • रचनात्मक कार्यक्रम लेखन: ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वच्छता, महिला सशक्तीकरण और सामाजिक सुधार के लिए व्यावहारिक विचारों का दस्तावेजीकरण।
  • पत्रकारिता के प्रयास: इंडियन ओपिनियन (दक्षिण अफ्रीका), यंग इंडिया और नवजीवन जैसे समाचार-पत्रों की स्थापना की, नागरिक अधिकारों, सामाजिक सुधार और भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बारे में जागरूकता बढ़ाई।
    • पत्रकारिता का उपयोग जनमत को संगठित करने, कांग्रेस की नीतियों को समझाने और अहिंसक प्रतिरोध को प्रोत्साहित करने के लिए किया।
  • लेखन का प्रभाव: गांधी जी के लेखन ने वैचारिक मार्गदर्शन और व्यावहारिक निर्देश प्रदान किए, जिससे भारत के स्वतंत्रता संग्राम को आकार मिला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर एवं नेल्सन मंडेला जैसे वैश्विक नेताओं पर प्रभाव पड़ा।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress [INC]) में उनकी भूमिका

  • कांग्रेस में शामिल होना: वर्ष 1915 में दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद गांधी जी औपचारिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) में शामिल हो गए और एक नैतिक और राजनीतिक एकीकरणकारी नेता के रूप में उभरे।
  • नेतृत्व शैली: किसानों, महिलाओं और हाशिए के समुदायों को शामिल करते हुए जन-आधारित राजनीति की वकालत की।
    • अहिंसक विरोध (सत्याग्रह) और रचनात्मक कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया, जिससे कांग्रेस एक नैतिक और सामाजिक आंदोलन में बदल गई।
  • पहला कार्यकाल (1924, बेलगाम): कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने पर, गांधी जी ने अहिंसक जन-आंदोलन और रचनात्मक कार्यक्रमों – ग्रामीण विकास, शिक्षा और सामाजिक सुधार – पर जोर दिया।
  • बाद का प्रभाव: बार-बार राष्ट्रपति पद पर न रहते हुए भी, गांधी जी के नैतिक अधिकार ने कांग्रेस की नीतियों को निर्देशित किया और सत्याग्रह, अहिंसा और नैतिक राजनीति के प्रति प्रतिबद्धता सुनिश्चित की।
  • कांग्रेस का रूपांतरण: उनके नेतृत्व में, कांग्रेस एक कुलीन निकाय से एक जन-आधारित आंदोलन में विकसित हुई, जिसमें किसानों, महिलाओं और हाशिए पर स्थित समुदायों को शामिल किया गया और यह स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधार का मुख्य माध्यम बन गया।
  • प्रमुख योगदान
    • चंपारण और खेड़ा आंदोलन (1917-1918): किसानों की शिकायतों का समाधान किया और व्यापक समर्थन प्राप्त किया।
    • असहयोग आंदोलन (1920-22): खादी प्रचार और ग्राम स्वशासन पर जोर देते हुए लाखों लोगों को कांग्रेस के नेतृत्व में संगठित किया।
    • सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34): अहिंसा को बनाए रखते हुए राष्ट्रव्यापी भागीदारी सुनिश्चित की।
    • रचनात्मक कार्यक्रम: कांग्रेस के नेतृत्व वाली पहलों के माध्यम से उन्नत ग्रामीण विकास, स्वच्छता, शिक्षा, मद्य निषेध और अस्पृश्यता उन्मूलन
  • नैतिक आधार: गांधी जी ने कांग्रेस को नैतिक अधिकार प्रदान किया और यह सुनिश्चित किया कि राजनीतिक कार्रवाई सत्य और अहिंसा पर आधारित हो।
  • विरासत: कांग्रेस को एक कुलीन राष्ट्रवादी संस्था से एक जन-आधारित, नैतिक रूप से प्रेरित आंदोलन में परिवर्तित किया, जिसने राजनीतिक संघर्ष को सामाजिक सुधार से जोड़ा और भारत की स्वतंत्रता में निर्णायक योगदान दिया।

उनके रचनात्मक कार्यक्रम, राष्ट्रवाद और सामाजिक सुधार

  • राष्ट्रवादी आंदोलन और रचनात्मक कार्यक्रम
    • असहयोग आंदोलन (1920-22): खादी, ब्रिटिश वस्तुओं के बहिष्कार और ग्रामोद्योग को बढ़ावा दिया गया, राष्ट्रवाद को ग्रामीण विकास, शिक्षा, स्वच्छता और सामाजिक सुधार के साथ जोड़ा गया।
    • सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-34): ग्रामीण उत्थान, वयस्क साक्षरता, महिला सशक्तीकरण और आर्थिक आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित किया गया, राष्ट्रवादी संघर्ष को सामाजिक प्रगति से जोड़ा गया।
  • राष्ट्रवाद के एक साधन के रूप में शिक्षा
    • नई तालीम: उत्पादक कार्य के माध्यम से सीखने को प्रोत्साहित करना, नागरिक उत्तरदायित्व, नैतिक मूल्यों और राष्ट्रीय चेतना को बढ़ावा देना।
  • सामाजिक सुधार और जन-आंदोलन
    • अस्पृश्यता उन्मूलन: गांधी जी के हरिजन उत्थान अभियानों ने हाशिए पर पड़ी जातियों को समाज में एकीकृत किया।
    • महिलाओं की भागीदारी: विरोध प्रदर्शनों और सामाजिक पहलों में महिलाओं के नेतृत्व को प्रोत्साहित किया।
    • शिक्षा और जागरूकता: साक्षरता और नैतिक शिक्षा को बढ़ावा दिया, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और आश्रमों में।
    • जन-आंदोलन: किसानों, श्रमिकों और हाशिए पर पड़े समुदायों को शामिल किया, उन्हें राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तन में सक्रिय भागीदार बनाया।

प्रमुख भाषण और उद्धरण

भाषण/उद्धरण

प्रमुख बिंदु

भारत छोड़ो (1942)
  • “करो या मरो। या तो हम भारत को आजाद कराएँगे या इस कोशिश में मर जाएँगे।”
गोलमेज सम्मेलन (1931)
  • स्वशासन के लिए शांतिपूर्ण बातचीत की वकालत की
सत्य और अहिंसा पर
  • “मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है।”
प्रेरणादायक उद्धरण
  • “दुनिया में वह बदलाव स्वयं बनें जिसे आप देखना चाहते हैं।”
  • “आँख के बदले आँख का मतलब पूरी दुनिया को अंधा बनाना है।”
  • “कमजोर कभी माफ नहीं कर सकता। माफी मजबूत लोगों का गुण है।”
  • “एक सौम्य तरीके से, आप दुनिया को हिला सकते हैं।”
आत्मनिर्भरता और नैतिकता पर
  • “दुनिया में मनुष्य की जरूरतों के लिए तो पर्याप्तता है, लेकिन मनुष्य के लालच के लिए नहीं।”

महात्मा गांधी के पुरस्कार और सम्मान

  • कैसर-ए-हिंद स्वर्ण पदक (1915): यह पदक उन्हें वर्ष 1915 में ब्रिटिश सरकार द्वारा दक्षिण अफ्रीका में उनकी मानवीय सेवाओं के लिए, विशेष रूप से बोअर युद्ध (1899-1902) और जुलु विद्रोह (1906) के दौरान ब्रिटिश सैनिकों को चिकित्सा सहायता प्रदान करने वाली इंडियन एम्बुलेंस कोर के आयोजन के लिए प्रदान किया गया था।
    • हालाँकि, इसे वर्ष 1920 में जलियाँवाला बाग हत्याकांड के विरोध में लौटा दिया, जो अन्याय के विरुद्ध उनके सैद्धांतिक रुख का प्रतीक है।
  • अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस: संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2007 में 2 अक्टूबर (गाँधी जयंती) को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में घोषित किया, जिससे दुनिया भर में उनके अहिंसा और सत्य के दर्शन पर प्रकाश डाला गया।
  • नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित: गांधी जी को उनके अहिंसक प्रतिरोध और वैश्विक प्रभाव के सम्मान में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए पाँच बार (1937, 1938, 1939, 1947, 1948) नामांकित किया गया था, हालाँकि उन्हें यह पुरस्कार कभी नहीं मिला।
  • दुनिया भर में मूर्तियाँ और स्मारक: ब्रिटेन, अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका, जापान और इजराइल जैसे देशों में गांधी को समर्पित मूर्तियाँ, पार्क और स्मारक मौजूद हैं, जो शांति, न्याय और अहिंसा की उनकी विरासत का जश्न मनाते हैं।
  • गांधी शांति पुरस्कार: विभिन्न संस्थाओं ने अहिंसा, सामाजिक न्याय और सामुदायिक विकास को बढ़ावा देने वाले व्यक्तियों और संगठनों को सम्मानित करने के लिए गांधी शांति पुरस्कारों की स्थापना की है।

नीतियों पर उनकी समकालीन प्रासंगिकता और प्रभाव:

  • नैतिक और सामाजिक नेतृत्व: गांधी जी के अहिंसा, सत्य, सादगी और स्वराज के सिद्धांत आधुनिक समाज में संघर्ष समाधान, सामुदायिक सेवा और सतत जीवन शैली का मार्गदर्शन करते रहते हैं।
  • शिक्षा और सामाजिक सुधार: शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से हाशिए पर स्थित समूहों को सशक्त बनाना महत्त्वपूर्ण बना हुआ है।
  • समावेशी सामाजिक सुधार: गांधी जी का दृष्टिकोण जाति-आधारित असमानता, लैंगिक असमानता और सामाजिक हाशिए पर होने की समस्या को दूर करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सामाजिक प्रगति समतापूर्ण और सहभागी हो।
  • व्यापक सामाजिक न्याय आदर्शों के साथ एकीकरण: गांधी जी ने सामाजिक न्याय को राजनीतिक स्वतंत्रता के साथ एकीकृत करने पर जोर दिया, जो समकालीन सुधारवादी धाराओं के अनुरूप था।
    • गांधी जी ने सामाजिक न्याय और राजनीतिक स्वतंत्रता के बीच अंतर्संबंध पर जोर दिया तथा समानता, सकारात्मक कार्रवाई और जमीनी स्तर पर सशक्तीकरण पर बहस को प्रेरित किया।
  • भारतीय सरकार की नीतियों पर प्रभाव
    • आर्थिक आत्मनिर्भरता: स्वदेशी और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने से स्वतंत्रता के बाद उद्यमिता और ग्रामीण विकास प्रभावित हुआ।
    • राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत: अनुच्छेद-39, 40, 43, 46, 47 सामाजिक कल्याण, ग्रामीण उत्थान और समावेशी विकास के गांधीवादी आदर्शों को दर्शाते हैं।
      • अनुच्छेद-39: सभी नागरिकों के लिए संसाधनों का समान वितरण और समान अवसर सुनिश्चित करता है।
      • अनुच्छेद-40: स्थानीय स्तर पर स्वशासन को सक्षम बनाने के लिए ग्राम पंचायतों के संगठन को बढ़ावा देता है।
      • अनुच्छेद-43: श्रमिकों के लिए जीविका मजदूरी, सभ्य कार्य परिस्थितियाँ और आर्थिक न्याय की वकालत करता है।
      • अनुच्छेद-46: कमजोर वर्गों, विशेषकर अनुसूचित जातियों और जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों के संरक्षण और संवर्द्धन को प्रोत्साहित करता है।
      • अनुच्छेद-47: राज्य को पोषण और जीवन स्तर को बढ़ाने तथा सामुदायिक कल्याण पर बल देते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने का निर्देश देता है।
    • पंचायती राज व्यवस्था: स्थानीय स्वशासन को सशक्त बनाने के लिए संस्थागत ग्राम स्वराज।
    • अहिंसक राजनीतिक उपकरण: सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा से प्रेरित शासन पद्धतियाँ, जो नैतिक कार्रवाई और सहभागी लोकतंत्र पर जोर देती हैं।
  • वैश्विक प्रभाव: गांधी जी ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे नेताओं को प्रेरित किया और आधुनिक शांति एवं न्याय आंदोलनों को आकार देना जारी रखा। संयुक्त राष्ट्र 2 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाता है, जो उनके विश्वव्यापी प्रभाव को दर्शाता है।
  • भविष्य के लिए विरासत और मार्गदर्शक सिद्धांत
    • समकालीन चुनौतियों का समाधान: गांधी जी की शिक्षाएँ सामाजिक असमानता, पर्यावरणीय संकटों और वैश्विक संघर्षों से निपटने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।
    • नीति निर्माताओं के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत: शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, नैतिक शासन, सामुदायिक सहभागिता और सतत् विकास पर जोर देते हैं।
    • कार्यवाही के लिए समग्र ढाँचा: शिक्षा, रचनात्मक कार्यक्रमों, राष्ट्रवाद और नैतिक साहस का एकीकरण 21वीं सदी की सामाजिक और राजनीतिक कार्रवाई के लिए एक रोडमैप प्रस्तुत करता है।
    • वैश्विक और स्थानीय प्रासंगिकता: एक वैश्वीकृत दुनिया में, स्थानीय आत्मनिर्भरता, समावेशिता और अहिंसा पर गांधी जी का जोर न्याय, समानता और सद्भाव को बढ़ावा देने वाली राष्ट्रीय नीतियों और अंतरराष्ट्रीय पहलों को प्रेरित करता है।

निष्कर्ष

आज के संघर्षों, जलवायु चुनौतियों और सामाजिक असमानता से भरे विश्व में, गांधी जयंती हमें गांधी जी के शाश्वत दर्शन की याद दिलाती है। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, नैतिक शासन, सतत् जीवन, समावेशिता, अहिंसा और सत्य पर उनकी शिक्षाएँ राष्ट्रों तथा व्यक्तियों को न्याय, सद्भाव एवं नैतिक प्रगति की ओर अग्रसर करती रहती हैं।

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