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महात्मा ज्योतिबा फुले

Lokesh Pal April 12, 2025 02:59 8 0

संदर्भ 

11 अप्रैल, 2025 को देशभर में समाज सुधारक ज्योतिबा फुले की 199वीं जयंती मनायी गई, जिसे व्यापक रूप से ज्योतिबा फुले जयंती के रूप में जाना जाता है।

महात्मा ज्योतिबा फुले के बारे में

  • पूरा नाम: ज्योतिराव गोविंदराव फुले (महात्मा ज्योतिबा फुले के नाम से प्रसिद्ध थे)।
  • जन्म: 11 अप्रैल 1827, पुणे, महाराष्ट्र।
  • विवाह: 13 वर्ष की आयु में सावित्रीबाई फुले से विवाह हुआ, जो बाद में सामाजिक सुधार में उनकी सहयोगी बनीं।
  • शिक्षा एवं जागृति
    • स्कॉटिश मिशन हाई स्कूल, पुणे में अध्ययन किया।
    • थॉमस पेन (एज ऑफ रीजन, द राइट्स ऑफ मैन) और जॉन स्टुअर्ट मिल जैसे पश्चिमी विचारकों के संपर्क में आए, जिन्होंने उनके दृष्टिकोण को गहराई से प्रभावित किया।
    • वर्ष 1848 में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ आया, जब उन्हें एक ब्राह्मण मित्र की शादी में जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा, जिसने उन्हें व्यवस्थागत अन्याय के प्रति जागरूक किया।
    • उन्होंने महिलाओं एवं निम्न जातियों की शिक्षा एवं सशक्तीकरण को भारत में सामाजिक असमानताओं को मिटाने की कुंजी के रूप में देखा।
  • ज्योतिबा फुले की विचारधारा
    • समानता और न्याय: जाति एवं लैंगिक भेदभाव से मुक्त न्यायपूर्ण समाज की वकालत की।
    • तर्कवाद: अंध विश्वास, ब्राह्मणवादी सत्ता और अंधविश्वास को खारिज किया।
    • सामाजिक न्याय: जाति या लैंगिक परवाह किए बिना सभी मनुष्यों की गरिमा को बढ़ावा दिया।
  • महात्मा उपाधि: ज्योतिराव फुले को 11 मई, 1888 को महाराष्ट्रीयन सामाजिक कार्यकर्ता विट्ठलराव कृष्णाजी वंदेकर द्वारा ‘महात्मा’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

प्रमुख सामाजिक योगदान

  • जाति व्यवस्था की आलोचना: वे ब्राह्मणवादी वर्चस्व और जाति आधारित भेदभाव के प्रबल विरोधी थे।
    • उन्होंने शिक्षा और तर्कसंगत विचार के माध्यम से जाति व्यवस्था के उन्मूलन का आह्वान किया।
  • रूढ़िवाद के खिलाफ: फुले का विष्णु शास्त्री चिपलूनकर, बाल गंगाधर तिलक जैसे राष्ट्रवादियों के साथ मतभेद था, इसके बजाय उन्होंने दलितों एवं महिलाओं के उत्थान के लिए अंग्रेजों के साथ कार्य करना चुना।
  • महिला सशक्तीकरण: उन्होंने महिलाओं के अधिकारों, विशेष रूप से लड़कियों की शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह के लिए कार्य किया। उन्होंने लैंगिक असमानता से लड़ने के लिए सावित्रीबाई फुले के साथ अथक प्रयास किया।
  • सितंबर 1873 में सत्यशोधक समाज (सत्य-साधकों का समाज) का गठन: इस संस्था का उद्देश्य ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज और आर्य समाज जैसे बड़े पैमाने पर उच्च जाति के वर्चस्व वाले सुधार आंदोलनों के विकल्प के रूप में कार्य करना था।
  • पहला कन्या विद्यालय (1848): फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई ने भारत में लड़कियों के लिए पहला स्कूल सह-स्थापित किया। स्कूल के पाठ्यक्रम में विज्ञान, गणित, सामाजिक अध्ययन और व्यावहारिक प्रशिक्षण शामिल थे।
  • हाशिये पर पड़े लोगों के लिए स्कूल: उन्होंने दलितों और पिछड़ी जातियों के लिए स्कूल स्थापित किए।
  • रात्रि स्कूल: वर्ष 1855 तक, फुले ने पुणे में रात्रि स्कूल भी खोले थे, जिसका उद्देश्य दिन में व्यस्त रहने वाले श्रमिकों, किसानों और कामकाजी महिलाओं के लिए शिक्षा का केंद्र बनना था।

प्रमुख साहित्यिक योगदान

  • गुलामगिरी (दासता): भारत में जाति आधारित उत्पीड़न की एक सशक्त आलोचना, इसकी तुलना अमेरिका में दासता से की गई है।
  • शेतकर्याचा आसुद (Shetkaryacha Asud), 1881: किसानों की स्थिति पर ध्यान केंद्रित किया और उनके उत्थान के लिए व्यावहारिक सुधारों का सुझाव दिया।
  • सत्सर (सत्य का सार): पाठ की कल्पना एक ब्राह्मण और शूद्र के बीच संवाद के रूप में की गई है।
  • मानव महम्मद (Manav Mahammand) (मुहम्मद एक व्यक्ति): अंधविश्वास और रूढ़िवादिता से लोगों को मुक्ति दिलाने में पैगंबर मुहम्मद की भूमिका की प्रशंसा में एक काव्यात्मक श्रद्धांजलि दी।
  • सार्वजनिक सत्य धर्म पुस्तक: इसे उनका दार्शनिक वसीयतनामा माना जाता है; सार्वभौमिक मानवतावाद, तर्कवाद पर जोर देता है और सांप्रदायिक धर्म की आलोचना करता है।

निष्कर्ष

महात्मा फुले ने जाति उत्पीड़न, धार्मिक रूढ़िवादिता और सामाजिक अन्याय को साहसिक तर्कवाद के साथ चुनौती दी। समानता और मानवीय गरिमा के लिए भारत की लड़ाई में उनके कार्य आधारभूत बने हुए हैं।

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