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EPI को ‘टीकाकरण हेतु आवश्यक कार्यक्रम’ बनाना

Lokesh Pal May 03, 2024 06:19 214 0

संदर्भ 

वर्ष 2024 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम (EPI) के शुभारंभ के 50 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया जा रहा है, ज्ञात हो कि इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 1974 में हुई थी।

टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम (Expanded Programme on Immunization- EPI)

  • परिचय: EPI को वर्ष 1974 में प्रारंभ किया गया था, जिस दौरान चेचक के लिए उन्मूलन कार्यक्रम चलाया जा रहा था तथा उपलब्ध टीकों का विस्तार करने के लिए टीकाकरण हेतु बुनियादी ढाँचा और एक प्रशिक्षित कार्यबल की आवश्यकता थी।
  • भारत ने वर्ष 1974 में EPI में शुरुआत की, जिसका नामकरण वर्ष 1985 में सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (Universal Immunization Programme- UIP) कर दिया गया।

टीकाकरण (Immunization)

इस प्रक्रिया के तहत, आमतौर पर एक टीके के माध्यम से किसी व्यक्ति में रोग प्रतिरोधी क्षमता का विकास किया जाता है।

टीकाकरण से संबंधित पहल

  • वैश्विक
    • टीकाकरण एजेंडा 2030 (IA2030): यह 2021-2030 दशक के बीच टीकों और टीकाकरण के लिए महत्त्वाकांक्षी, व्यापक और वैश्विक रणनीति है।
    • विश्व टीकाकरण सप्ताह: इसका आयोजन प्रत्येक वर्ष अप्रैल के आखिरी सप्ताह में किया जाता है।
  • भारत
    • सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (Universal Immunization Programme- UIP): यह कार्यक्रम टीके से रोकथाम-योग्य 12 रोगों के विरुद्ध मुफ्त टीकाकरण प्रदान करता है।
    • मिशन इंद्रधनुष (Mission Indradhanush- MI): इसे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare- MOHFW) द्वारा वर्ष 2014 में UIP के अंतर्गत टीकाकरण करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था, जिसके अंतर्गत सभी प्रकार के टीकाकरण से वंचित और आंशिक रूप से टीकाकरण हुए बच्चों को शामिल किया गया था।
    • अन्य सहायक उपाय
      • इलेक्ट्रॉनिक वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (eVIN)
      • राष्ट्रीय शीत चेन प्रबंधन सूचना प्रणाली (National Cold Chain Management Information System- NCCMIS)

  • महत्त्वपूर्ण प्रगति: विश्व स्तर पर और भारत में टीकाकरण और टीकों की प्रभावशीलता में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है।
    • पिछले कुछ वर्षों में भारत में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर टीकाकरण की दर में वृद्धि हुई है।
    • वर्ष 1974 में छह रोगों को रोकने के लिए टीके उपलब्ध थे, किंतु अब 13 रोगों के विरुद्ध टीके मौजूद हैं, जिसे सार्वभौमिक रूप से अनुशंसित किया गया है तथा 17 अतिरिक्त बीमारियों के लिए कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में इन टीकों को अनुशंसित किया गया है।
    • 13 सार्वभौमिक रूप से अनुशंसित टीकों में बैसिलस कैलमेट-गुएरिन (Bacillus Calmette-Guerin- BCG), डिप्थीरिया (Diphtheria), काली खाँसी (Pertussis), टेटनस (Tetanus), हीमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी (Haemophilus influenzae type B- HiB), हेपेटाइटिस बी (Hepatitis B), पोलियो (Polio), खसरा (Measles), रूबेला (Rubella), न्यूमोकोकल रोग (Pneumococcal Disease- PNC), रोटावायरस (Rota), ह्यूमन पेपिलोमावायरस (Human Papillomavirus- HPV) और COVID-19 (वयस्कों के लिए) शामिल है।

टीकाकरण पर विस्तारित कार्यक्रम (Expanded Programme on Immunization) का महत्त्व और उपलब्धि

  • DPT: DPT की तीन खुराक लेने वाले बच्चों की संख्या बढ़ रही है।
    • 1970 के दशक की शुरुआत में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में लगभग 5% बच्चों को DPT की तीन खुराकें दी गईं थीं, जो वैश्विक स्तर पर वर्ष 2022 में बढ़कर 84% हो गई है।
  • रोगों का उन्मूलन: चेचक का उन्मूलन पूरी तरह से हो चुका है। दो देशों को छोड़कर सभी देशों से पोलियो का उन्मूलन हो गया है तथा टीके से रोकी जाने वाली कई बीमारियाँ का उन्मूलन लगभग किया जा चुका है।
  • उच्च आवृत्त क्षेत्र (High Coverage): EPI की शुरुआत के बाद, अध्ययनों से पता चला है कि टीकों ने लाखों लोगों की जान बचाई है।
    • भारत सहित लगभग सभी निम्न और मध्यम आय वाले देशों में टीकाकरण कार्यक्रम सफल हुआ है तथा किसी भी अन्य स्वास्थ्य कार्यक्रम की तुलना में यह कार्यक्रम अधिक लोगों तक पहुँचा है।
    • भारत में निरंतर टीकाकरण से संबंधित आवृत क्षेत्र में वृद्धि हुई है तथा वर्ष 2019-21 के बीच 76% बच्चों का प्रमाणित टीकाकरण किया गया है।
  • लागत प्रभावी: आर्थिक विश्लेषणों के आधार पर अनुमान लगाया गया है कि टीके अत्यधिक लागत प्रभावी होते हैं तथा टीकाकरण कार्यक्रमों पर होने वाला खर्च सात से ग्यारह गुना लाभ सुनिश्चित करता है।
  • बेहतर उपयोग: सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों द्वारा सेवाएँ प्रदान करने वाली मिश्रित स्वास्थ्य प्रणालियों में टीकाकरण सामान्य तौर पर सरकारी क्षेत्र से अधिक उपयोगी सिद्ध होता है।
    • उदाहरण के लिए, भारत में समग्र स्वास्थ्य सेवाओं में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग दो-तिहाई है, हालाँकि सभी टीकों का लगभग 85% से 90% सरकारी सुविधाओं द्वारा वितरित किया जाता है।
  • संकेतक: आम तौर पर, विशेषज्ञों का तर्क है कि टीकाकरण की पहुँच स्वास्थ सुविधाओं के उच्चतम पहुँच का संकेतक है, जिसे सरकारी पहल द्वारा सुनिश्चित किया जा सकता है।

टीका का विकास और पृष्ठभूमि

  • 1798: वर्ष 1798 में चेचक के लिए प्रथम टीके का आविष्कार किया था।
  • नब्बे के दशक का उत्तरार्द्ध: 1880 से 1890 के दशक के मध्य में रेबीज, हैजा और टाइफाइड के टीके का विकास मुख्य रूप से वयस्कों के लिए किया गया था।
  • 1897: दुनिया में प्लेग के खिलाफ पहला टीका का विकास वर्ष 1897 में भारत में हुआ था।
  • 1951: BCG टीका (तपेदिक के खिलाफ) पहली बार वर्ष 1951 में राष्ट्रव्यापी अभियान के रूप में प्रारंभ किया गया था।
  • 2023: वर्ष 2023 के अंत में भारत ने ‘टीबी उन्मूलन’ करने के प्रयासों के तहत वयस्क BCG टीकाकरण की प्राथमिक पहल की शुरुआत की है। वयस्क नागरिकों के कोविड-19 टीकाकरण ने जनता को वयस्क टीकाकरण की आवश्यकता और लाभों के प्रति संवेदनशील बनाया है।
  • सभी आयु वर्गों के लिए उपलब्धता
    • वर्ष 1798 से वयस्कों सहित सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों के लिए टीके उपलब्ध हैं।
    • प्लेग का टीका सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों हेतु उपलब्ध था।
    • वयस्क आबादी को BCG का टीका भी लगाया गया था।
    • इन्फ्लूएंजा के टीके हमेशा वयस्कों और बच्चों को समान रूप से लगाए जाते रहे हैं।
    • बच्चों के लिए प्राथमिकता
      • बच्चे टीके से बचाव योग्य रोगों से सबसे अधिक असुरक्षित हैं, इसलिए उन्हें टीकाकरण में प्राथमिकता दी गई है।
      • इसके अलावा, कुछ दशक पहले तक टीकों की आपूर्ति सीमित थी तथा सरकारों के पास वित्तीय संसाधन और प्रशिक्षित मानव संसाधन की कमी थी। इस कारण, टीकों को उन जन-समूहों तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया था जिन्हें टीकों की सर्वाधिक आवश्यकता थी, उदाहरण के लिए बच्चे।

बढ़ती चुनौतियाँ

  • यूनिसेफ रिपोर्ट (UNICEF Report): वर्ष 2023 की शुरुआत में यूनिसेफ द्वारा प्रकाशित ‘द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन’ रिपोर्ट में चिंताजनक खुलासा हुआ है कि पिछले दशक से अब तक में पहली बार वर्ष 2021 में बच्चों के टीकाकरण में गिरावट आई है।
  • शून्य खुराक: वर्ष 2022 में विश्व स्तर पर अनुमानित 14.3 मिलियन बच्चों को एक भी खुराक नहीं दी गई (कोई अनुशंसित टीका नहीं मिला) है, जबकि अन्य 6.2 मिलियन बच्चों का आंशिक रूप से टीकाकरण किया गया है।
  • कारण: भौगोलिक, सामाजिक-आर्थिक स्तर और अन्य मापदंडों के आधार पर लोगों तक पहुँच में लगातार असमानताएँ रहीं हैं, जिसे तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है।

आगे की राह 

  • नीति और तकनीकी चर्चाएँ: वंचित जनसंख्या तक टीकाकरण की पहुँच के संबंध में कुछ प्रारंभिक नीति और तकनीकी चर्चाएँ आवश्यक हैं।
  • पहुँच में विस्तार: भारत सरकार को वयस्कों और बुजुर्ग जनसंख्या के व्यापक वर्ग के लिए अनुशंसित टीके उपलब्ध कराने पर विचार करने की आवश्यकता है।
    • किशोर लड़कियों के लिए HPV टीकों पर हालिया पहल अच्छी शुरुआत है।
    • राष्ट्रीय कार्यक्रमों में नए टीकों की शुरुआत के कारण मौजूदा टीकाकरण की पहुँच में लाभ होता है। इसलिए संभावना है कि वयस्कों और बुजुर्गों तक टीकों की पहुँच का विस्तार करने से बच्चों के टीकाकरण में सुधार होगा।
  • लागत प्रभावी: सामान्यतः टीके लागत प्रभावी होते हैं तथा टीकाकरण के संबंध में राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (National Technical Advisory Group on Immunization- NTAGI) द्वारा सिफारिश किया जाता है, जिसके बाद सभी आयु वर्गों के लिए टीके सरकार द्वारा मुफ्त उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
  • टीके के उपयोग संबंधी सिफारिशें: भारत में टीकों के उपयोग संबंधी सिफारिशें NTAGI द्वारा की जाती है, इस संस्था को वयस्कों और बुजुर्गों के लिए टीकाकरण संबंधी दिशा-निर्देश अलग-अलग जारी करना चाहिए।
    • किसी टीके की सिफारिश कम-से-कम एक बार सरकारी निकाय द्वारा की जानी चाहिए, ताकि सरकार टीकों तक लोगों की पहुँच बेहतर तरीके से सुनिश्चित कर सके तथा लोगों का रवैया सकारात्मक हो।
  • टीके के प्रति झिझक को संबोधित करना: कई बार टीके के संबंध में मिथक और गलत धारणाएँ फैला दी जाती हैं, जिसे सक्रिय रूप से संबोधित किया जाना चाहिए।
    • सरकार को अफवाहों और मिथकों से निपटने के लिए संचार संस्थाओं की मदद पर विचार करना चाहिए।
    • इसके लिए नागरिकों को विश्वसनीय स्रोतों से इन टीकों के बारे में जानने और शिक्षित करने की भी आवश्यकता है।
  • जागरूकता बढ़ाना: चिकित्सा क्षेत्र के विभिन्न संघों (सामुदायिक चिकित्सा विशेषज्ञ, पारिवारिक चिकित्सक और बाल रोग विशेषज्ञ) को वयस्कों और बुजुर्गों के बीच टीकों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्य करना चाहिए।
    • किसी भी रोग से पीड़ित मरीजों का उपचार करने वाले चिकित्सकों को इस अवसर का उपयोग उन्हें टीकों के बारे में जागरूक करने हेतु करना चाहिए।
  • साक्ष्य-संग्रह: चिकित्सा विद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों को भारत में वयस्क आबादी में होने वाले रोगों पर साक्ष्य जमा करना चाहिए।
  • केंद्रित नीतियाँ: सरकारी नीतियों द्वारा वयस्कों और बुजुर्गों के टीकाकरण पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, जैसा कि अन्य कई देशों में यह प्रक्रिया प्रभावी रूप से चल रही है।

निष्कर्ष

भारत का EPI स्वास्थ्य क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति का कारण है तथा निश्चित रूप से भारत में UIP की राष्ट्रीय स्तर पर समीक्षा की आवश्यकता है, जिसमें प्रमुख साझेदारों और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा। शून्य खुराक वाले बच्चों पर ध्यान केंद्रित करने, टीके तक पहुँच में असमानताओं को दूर करने तथा भारत में वयस्कों और बुजुर्गों हेतु टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया जाएगा। वर्तमान समय में EPI को ‘टीकाकरण हेतु आवश्यक कार्यक्रम’ बना देना चाहिए।

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