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प्रत्येक भारतीय के लिए स्वास्थ्य सेवा को सुरक्षित बनाना

Lokesh Pal September 19, 2025 02:28 18 0

संदर्भ

विश्व रोगी सुरक्षा दिवस (17 सितंबर) पर, वैश्विक स्वास्थ्य समुदाय, स्वास्थ्य देखभाल सुरक्षा में लगातार व्याप्त खामियों पर प्रकाश डालता है।

विश्व रोगी सुरक्षा दिवस के बारे में

  • तिथि: प्रतिवर्ष 17 सितंबर को मनाया जाता है।
  • वैश्विक महत्त्व: रोगी सुरक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डालता है और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्रों में नुकसान को कम करने के लिए वैश्विक प्रयासों का आह्वान करता है।
  • भागीदारी: यह दिवस रोगियों, परिवारों, देखभाल करने वालों, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, स्वास्थ्य सेवा नेताओं और नीति-निर्माताओं को सभी के लिए सुरक्षित स्वास्थ्य सेवा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने हेतु सहभागी बनाता है।
  • विश्व स्वास्थ्य सभा संकल्प (WHA 72.6) – रोगी सुरक्षा पर वैश्विक कार्रवाई: विश्व स्वास्थ्य सभा (World Health Assembly- WHA) द्वारा समर्थित यह संकल्प, रोगी सुरक्षा को वैश्विक स्वास्थ्य प्राथमिकता के रूप में नामित करता है।
    • महत्त्व: , दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवा में होने वाली हानि को कम करने पर बल देते हुए विश्व रोगी सुरक्षा दिवस की स्थापना और रोगी सुरक्षा में सुधार के लिए वैश्विक कार्रवाई का समर्थन।

वर्ष 2025 का विषय: ‘प्रत्येक नवजात शिशु और प्रत्येक बच्चे के लिए सुरक्षित देखभाल’

मुख्य फोकस क्षेत्र (2025)

  • नवजात शिशु एवं बाल सुरक्षा: नवजात शिशुओं और बच्चों, जो स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों में सबसे कमजोर समूहों में से हैं, के लिए सुरक्षित स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करने के महत्त्व पर जोर दिया गया है।
    • नवजात शिशु की असुरक्षा को रोकने और गुणवत्तापूर्ण देखभाल सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • सुरक्षित देखभाल तक सार्वभौमिक पहुँच: प्रत्येक नवजात शिशु और बच्चे, विशेष रूप से कम संसाधन वाले क्षेत्रों में, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण देखभाल प्रदान करने पर जोर देते हुए सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज को बढ़ावा दिया गया है।
  • स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों को मजबूत बनाना: उपचार और देखभाल के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने हेतु नवजात शिशु देखभाल और बाल स्वास्थ्य प्रणालियों में सुधार का आह्वान किया गया है।
    • बच्चों की सुरक्षित देखभाल के लिए कुशल स्वास्थ्य कर्मियों और उचित सुविधाओं की आवश्यकता पर जोर दिया गया है।

प्रासंगिकता

  • वैश्विक प्रतिबद्धता: विश्व रोगी सुरक्षा दिवस, 2025 सरकारों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और समाज के लिए एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है कि वे वैश्विक स्तर पर नवजात शिशुओं और बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देना।
  • कमजोर आबादी: नवजात शिशुओं और बच्चों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करता है, जिन्हें अपरिपक्व प्रतिरक्षा प्रणाली, अनुभवहीन देखभालकर्ताओं और सीमित स्वास्थ्य सेवा पहुँच के कारण नुकसान का अधिक जोखिम होता है।

रोगी सुरक्षा के बारे में

  • परिभाषा: रोगी सुरक्षा का तात्पर्य स्वास्थ्य सेवा प्रदान करते समय होने वाली त्रुटियों, प्रतिकूल घटनाओं और रोगियों को होने वाले नुकसान की रोकथाम से है। यह सुनिश्चित करता है कि स्वास्थ्य सेवा हस्तक्षेप, रोगियों के जीवन या कल्याण को खतरे में न डालें।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ‘किसी को नुकसान न पहुँचाने’ का सिद्धांत रोगी सुरक्षा का मूल आधार है। हालाँकि इसके चिकित्सा लाभ अलग-अलग होते हैं।
  • प्रमुख पहलू
    • त्रुटि निवारण: निदान, उपचार और औषधि प्रशासन में चिकित्सीय त्रुटियों को कम करना।
    • सुरक्षित व्यवहार: मानक प्रोटोकॉल, संक्रमण नियंत्रण और सुरक्षित शल्य चिकित्सा पद्धतियों का कार्यान्वयन।
    • निगरानी एवं रिपोर्टिंग: जोखिमों की पहचान करने और देखभाल की गुणवत्ता में सुधार के लिए घटना रिपोर्टिंग प्रणालियाँ स्थापित करना।
    • प्रशिक्षण एवं जागरूकता: स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों और रोगियों को सुरक्षा प्रोटोकॉल के बारे में शिक्षित करना।
  • संबंधित परिदृश्य
    • वैश्विक चुनौती: स्वास्थ्य सेवा में उल्लेखनीय प्रगति के बावजूद, पूरे विश्व में लाखों लोग अभी भी असुरक्षित उपचार प्राप्त करते हैं।
      • वैश्विक स्तर पर, अस्पताल में भर्ती 10 में से 1 मरीज और बाह्य-रोगियों में से 4 को नुकसान पहुँचता है, जिससे विशेष रूप से भारत में, जहाँ स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, मजबूत रोगी सुरक्षा ढाँचे की आवश्यकता है।

भारत के लिए रोगी सुरक्षा क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • क्षति संबंधी उच्च घटना: विश्व स्तर पर, अस्पताल में भर्ती 10% मरीज और 40% बाह्य-रोगी असुरक्षित स्वास्थ्य सेवा प्रथाओं के कारण नुकसान का सामना करते हैं। भारत में, व्यस्त अस्पतालों और अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे जैसी प्रणालीगत चुनौतियों के कारण यह दर अधिक होने की संभावना है।
  • महामारी विज्ञान संबंधी बदलाव और उपचार की जटिलता: भारत संक्रामक रोगों (जैसे- टीबी, मलेरिया) से जीवनशैली संबंधी बीमारियों (जैसे- मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर) की ओर बदलाव का अनुभव कर रहा है, जिनके लिए दीर्घकालिक उपचार और बहु-विशिष्ट देखभाल की आवश्यकता होती है।
    • इससे देखभाल की जटिलता और सुरक्षा चूक की संभावना बढ़ जाती है।
  • रोगी सुरक्षा जोखिम में वृद्धि: पुरानी बीमारियों के प्रबंधन के लिए विभिन्न विशेषज्ञताओं में समन्वित देखभाल की आवश्यकता होती है, जिससे त्रुटियों, गलत संचार और समय पर हस्तक्षेप की कमी की संभावना बढ़ जाती है, जिससे सुरक्षा जोखिम पैदा होते हैं।
  • असुरक्षित चिकित्सा पद्धतियाँ: असुरक्षित इंजेक्शन, दवा की त्रुटियाँ और अस्पताल से होने वाले संक्रमण जैसे मुद्दे भारत में रोगी को होने वाले नुकसान में महत्त्वपूर्ण रूप से योगदान करते हैं।
    • अस्वच्छता की कमी, गलत नुस्खे और अपर्याप्त प्रशिक्षण इन जोखिमों को बढ़ा देते हैं।
  • अत्यधिक बोझ से दबी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली: ग्रामीण क्षेत्रों में 10,000 लोगों पर एक डॉक्टर होने के कारण, भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर अत्यधिक दबाव है, जिससे त्रुटिपूर्ण देखभाल की समस्या पैदा होती है।
    • इसके अतिरिक्त, केवल 5% भारतीय अस्पताल ही NABH द्वारा मान्यता प्राप्त हैं, जिससे रोगी सुरक्षा मानकों पर और भी अधिक समझौता होता है।
  • आर्थिक और सामाजिक प्रभाव: असुरक्षित स्वास्थ्य सेवा प्रथाओं के कारण अस्पताल में रहने की अवधि और चिकित्सा लागत बढ़ जाती है, जिससे परिवारों पर वित्तीय बोझ पड़ता है।
    • इसके अलावा, एक मजबूत सुरक्षा संस्कृति का अभाव स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करता है।

भारत में रोगी को होने वाले नुकसान के प्रमुख रूप

  • अस्पताल-जनित संक्रमण (Hospital-Acquired Infections -HAI): अस्पतालों में होने वाले संक्रमण, जैसे कि ICU में वेंटिलेटर संबंधी संक्रमण, जो अस्वच्छता के कारण होते हैं।
  • असुरक्षित इंजेक्शन: सिरिंज का बार-बार प्रयोग करने से एचआईवी और हेपेटाइटिस बी जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं।
  • दवा संबंधी त्रुटियाँ: गलत नुस्खे, गलत खुराक और दवाओं के बीच प्रतिकूल प्रतिक्रिया।
  • विलंबित निदान: गलत निदान, जैसे कि डेंगू को सामान्य बुखार समझ लेना।

रोगी सुरक्षा को मजबूत करने के लिए भारत द्वारा उठाए गए कदम

  • राष्ट्रीय रोगी सुरक्षा कार्यान्वयन ढाँचा (वर्ष 2018-वर्ष 2025): यह ढाँचा रोगी सुरक्षा को प्राथमिकता देने, प्रतिकूल घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिए प्रणालियाँ शुरू करने और गुणवत्ता मानक स्थापित करने का एक रोडमैप है।
  • अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (National Accreditation Board for Hospitals and Healthcare Providers- NABH): NABH सुरक्षा मानकों के आधार पर अस्पतालों का ऑडिट करता है, हालाँकि 5% से भी कम भारतीय अस्पताल पूरी तरह से मान्यता प्राप्त हैं, जो सुधार की काफी संभावना दर्शाता है।
  • फार्माकोविजिलेंस नेटवर्क: भारत की फार्माकोविजिलेंस सोसायटी और अन्य नेटवर्क प्रतिकूल दवा प्रतिक्रियाओं की निगरानी करते हैं, जिससे सुरक्षित दवा पद्धतियाँ सुनिश्चित होती हैं।
  • गैर-सरकारी संगठनों की भागीदारी: ‘पेशेंट्स फॉर पेशेंट सेफ्टी’ फाउंडेशन जैसे गैर-सरकारी संगठन, भारत के 1,100 से अधिक अस्पतालों में जागरूकता बढ़ाते हैं और सुरक्षित स्वास्थ्य सेवा पद्धतियों को बढ़ावा देते हैं।

स्वास्थ्य सेवा को सुरक्षित बनाने के लिए वैश्विक पहल

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) वैश्विक रोगी सुरक्षा कार्य योजना (वर्ष 2021- वर्ष 2030): इसका उद्देश्य सुरक्षित देखभाल सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों को मजबूत करके वैश्विक स्तर पर रोगियों को होने वाले नुकसान को कम करना है।
    • मुख्य लक्षित क्षेत्र
      • राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणालियों का निर्माण।
      • सुरक्षा में रोगी की भागीदारी को बढ़ावा देना।
      • सुरक्षा प्रोटोकॉल पर स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की शिक्षा को बढ़ावा देना।
      • सुरक्षित शल्य चिकित्सा और दवा सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  • ‘सुरक्षित सर्जरी जीवन बचाती है’ पहल: विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा शुरू की गई यह पहल शल्य चिकित्सा प्रक्रियाओं की सुरक्षा में सुधार लाने पर केंद्रित है।
    • मुख्य रणनीतियाँ
      • शल्य चिकित्सा संबंधी जटिलताओं को कम करने के लिए शल्य चिकित्सा सुरक्षा जाँच सूची प्रस्तुत करना।
      • शल्य चिकित्सा के दौरान सुरक्षित प्रथाओं और संक्रमण नियंत्रण को बढ़ावा देना।
  • वैश्विक रोगी सुरक्षा नेटवर्क (Global Patient Safety Network- GPSN): GPSN रोगी सुरक्षा पहलों पर काम करने वाले देशों और संगठनों को ज्ञान तथा सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिए एक मंच प्रदान करता है।
    • फोकस: यह अस्पतालों में रोगी सुरक्षा प्रथाओं के कार्यान्वयन का समर्थन करता है और रोगी को होने वाली हानि को न्यूनतम करने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों को प्रोत्साहित करता है।
  • रोगी सुरक्षा आंदोलन फाउंडेशन: इस गैर-लाभकारी संगठन का उद्देश्य अस्पतालों में सर्वोत्तम प्रथाओं को बढ़ावा देकर और नीतिगत परिवर्तनों का समर्थन करके रोकी जा सकने वाली रोगी मौतों को कम करना है।
    • मुख्य कार्य
      • अस्पतालों के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल।
      • अस्पताल सुरक्षा में सुधार के लिए नीतिगत सुधारों पर जोर देना।
      • चिकित्सा त्रुटियों को कम करने के लिए उपकरण प्रदान करना, जिसमें स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के लिए चेकलिस्ट और सुरक्षा प्रशिक्षण शामिल हैं।
  • स्वास्थ्य देखभाल में गुणवत्ता के लिए अंतरराष्ट्रीय सोसायटी (International Society for Quality in Health Care-ISQua): ISQua मान्यता और शिक्षा के माध्यम से देखभाल की गुणवत्ता और रोगी सुरक्षा में सुधार के लिए कार्य करता है।
    • मुख्य गतिविधियाँ
      • विश्व स्तर पर स्वास्थ्य सेवा संगठनों को मान्यता प्रदान करना।
      • गुणवत्ता सुधार और रोगी सुरक्षा मानकों पर प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंडा (Global Health Security Agenda- GHSA): इसका उद्देश्य वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा को बढ़ाना है, जिसमें विशेषतः महामारी जैसी आपात स्थितियों के दौरान स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों की सुरक्षा भी शामिल है।
    • लक्षित क्षेत्र
      • मजबूत स्वास्थ्य प्रणालियों का निर्माण।
      • इबोला या कोविड-19 के प्रकोप जैसी संकटकालीन स्थितियों में भी सुरक्षित स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करना।

भारत में रोगी सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ

  • अत्यधिक बोझिल स्वास्थ्य सेवा प्रणाली: डॉक्टरों की कम संख्या और लंबी शिफ्टों के कारण, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, थकान और त्रुटि-प्रवण देखभाल होती है।
  • सांस्कृतिक और सामाजिक बाधाएँ: स्वास्थ्य सेवा के प्रति मरीजों का निष्क्रिय दृष्टिकोण प्रायः मरीजों और डॉक्टरों के बीच सूचना की असमानता से उपजा है, जहाँ मरीज विश्वास तथा कम स्वास्थ्य साक्षरता के कारण उपचारों पर सवाल उठाने से हिचकिचाते हैं।
  • सीमित गुणवत्ता मानक: हालाँकि NABH मानक निर्धारित करता है, लेकिन व्यापक मान्यता का अभाव अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता में काफी भिन्नता का कारण बनता है।
  • प्रौद्योगिकी का अप्रभावी उपयोग: यद्यपि कृत्रिम बुद्धिमत्ता और डिजिटल स्वास्थ्य अभिलेखों में अपार संभावनाएँ निहित हैं, किंतु अनेक अस्पतालों में इनका सीमित उपयोग रोगी सुरक्षा में प्रगति को बाधित करता है।
  • अपर्याप्त स्टाफिंग: कई वार्डों में, पर्याप्त स्टाफ की कमी (जैसे- 40 मरीजों पर 2 नर्सें) देखभाल की गुणवत्ता को कम करती है।
  • मरीजों की निष्क्रियता: डॉक्टरों के प्रति सांस्कृतिक लगाव, कम स्वास्थ्य साक्षरता के कारण कई मरीजों को प्रश्न पूछने या चिकित्सा उपचारों को समझने से रोकती है।

आगे की राह

  • डेटा सिस्टम को मजबूत बनाना: रोगी सुरक्षा निगरानी और निर्णय लेने की प्रक्रिया में सुधार के लिए कई सर्वेक्षणों (जैसे- NSS, NFHS, CES) से प्राप्त रियल-टाइम डेटा को एकीकृत करना।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय में वृद्धि: बेहतर बुनियादी ढाँचा, पर्याप्त स्टाफ और बेहतर रोगी देखभाल सुनिश्चित करने के लिए GHE (सरकारी स्वास्थ्य व्यय) बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना।
  • रोगी सुरक्षा पहलों का विस्तार करना: NABH मान्यता को और अधिक अस्पतालों तक बढ़ाना, जिससे रोगी सुरक्षा प्रोटोकॉल पूरे देश में एक मानक बन जाना।
  • रोगियों को सशक्त बनाना: रोगियों और उनके परिवारों को प्रश्न पूछकर, चिकित्सा रिकॉर्ड बनाए रखकर और घर पर सुरक्षित प्रथाओं का पालन करके स्वास्थ्य सेवा में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना।
  • तकनीकी समाधान अपनाना: दवा संबंधी त्रुटियों को कम करने, रोगी की सही पहचान सुनिश्चित करने और उपचार की सटीकता बढ़ाने के लिए एआई-संचालित उपकरणों और क्यूआर कोड-आधारित प्रणालियों का लाभ उठाना।
  • सांस्कृतिक बदलाव को बढ़ावा देना: रोगी की निष्क्रिय भागीदारी से अधिक सक्रिय भागीदारी की ओर बदलाव, जहाँ रोगियों को चर्चाओं में शामिल होने और सूचित स्वास्थ्य सेवा विकल्प चुनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

निष्कर्ष

स्वास्थ्य सेवा में सुरक्षा की संस्कृति का निर्माण करने के लिए प्रदाताओं, रोगियों, परिवारों और समाज के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। NABH जैसी पहलों से प्रगति तो दिख रही है, लेकिन भारत को सुरक्षित स्वास्थ्य सेवा के लिए गुणवत्ता, स्टाफिंग और रोगी सहभागिता में कमियों को दूर करना होगा।

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