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मालदीव और लक्षद्वीप में समुद्र-स्तर में वृद्धि

Lokesh Pal September 02, 2025 03:31 13 0

संदर्भ 

मालदीव में ‘कोरल माइक्रो एटोल’ पर किए गए एक अध्ययन के अनुसार, 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध से मध्य हिंद महासागर का स्तर बढ़ रहा है।

मुख्य बिंदु 

  • वर्ष 1930 से वर्ष 2019 तक समुद्र का स्तर लगभग 0.3 मीटर बढ़ा, जो दीर्घकालिक वृद्धि की पुष्टि करता है।
  • वृद्धि दर
    • 1–1.8 मिमी./वर्ष (वर्ष 1930–59)
    • 2.7–4.1 मिमी./वर्ष (वर्ष 1960–92)
    • 3.9–4.8 मिमी./वर्ष (वर्ष 1990–2019)।
  • वर्ष 1959 से, औसत वृद्धि  3.2 मिमी./वर्ष रही है, जो हालिया दशक में बढ़कर लगभग 4 मिमी./वर्ष हो गई है।
  • मालदीव-लक्षद्वीप क्षेत्र में पिछले 50 वर्षों में 30-40 सेमी की वृद्धि देखी गई है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • समुद्र स्तर में वृद्धि: समुद्र स्तर में वृद्धि 1950 के दशक में प्रारंभ हुई, जबकि सामान्य धारणा यह थी कि यह 1990 के दशक में शुरू हुई थी।
  • वैज्ञानिक प्रमाण: कोरल ग्रोथ बैंड और यूरेनियम काल-निर्धारण तकनीकों ने समुद्र-स्तर में परिवर्तनों के अत्यधिक सटीक तथा  दीर्घकालिक रिकॉर्ड प्रदान किए है।
  • प्रभाव: प्रवाल वृद्धि में बाधाएँ अल नीनो, हिंद महासागर द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole – IOD) और चंद्र ज्वारीय चक्रों (Lunar Tidal cycles) से जुड़ी थीं, जो समुद्र-स्तर में उतार-चढ़ाव और जलवायु संबंधी घटनाओं के मध्य मजबूत संबंध दर्शाती हैं।
  • अद्वितीय क्षेत्रीय गतिशीलता : मध्य हिंद महासागर में तटीय क्षेत्रों की तुलना में समुद्र-स्तर में पहले और तेजी से वृद्धि हुई, जो विशिष्ट समुद्र विज्ञान और वायुमंडलीय कारकों से प्रेरित थी।

समुद्र-स्तर में वृद्धि के कारण

  • तापीय विस्तार: महासागरीय ऊष्मा अवशोषण के कारण समुद्री जल का विस्तार होता है, जिससे जल स्तर बढ़ता है।
  • हिमनद और हिम-चादर (Ice-Sheet) का पिघलना: हिमालय, आर्कटिक और अंटार्कटिक की बर्फ के पिघलने से महासागरों में मीठे जल में वृद्धि होती है।
  • हिंद महासागर का गर्म होना: औसत से अधिक गर्म होने से धाराएँ और परिसंचरण तीव्र हो जाते हैं, जिससे स्थानीय जल स्तर में वृद्धि होती है।
  • जलवायु परिवर्तनशीलता: अल नीनो, IOD तथा पवन अपरूपण जैसी घटनाएँ क्षेत्रीय परिवर्तनों में वृद्धि करती हैं।

निहितार्थ

  • पारिस्थितिकी परिणाम: बढ़ते समुद्र स्तर से प्रवाल भित्तियों, मैंग्रोव और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा उत्पन्न होता है, जिससे जैव विविधता ​​को नुकसान पहुँचता है।
  • सामाजिक और मानवीय प्रभाव: तटीय समुदायों को अत्यधिक लवणता और बाढ़ के कारण विस्थापन, आजीविका के नुकसान और स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
  • आर्थिक चुनौतियाँ: बंदरगाह, मत्स्यपालन और पर्यटन उद्योग जोखिम में हैं, जिससे बुनियादी ढाँचे की लागत और आपदा प्रबंधन का बोझ बढ़ रहा है।
  • भू-राजनीतिक आयाम: हिंद महासागर में समुद्र के स्तर में तेजी से वृद्धि समुद्री सीमाओं, विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) तथा क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए चिंताएँ उत्पन्न करती है।

आगे की राह

  • निगरानी एवं अनुसंधान: दीर्घकालिक समुद्र-स्तर रिकॉर्ड के लिए ‘कोरल माइक्रो एटोल’, ज्वारमापी और उपग्रहों का उपयोग करना।
  • तटीय लचीलापन: मैंग्रोव का पुनर्स्थापन करना, सीवाल्स (Seawalls) का निर्माण करना तथा जलवायु-अनुकूल बुनियादी ढाँचे में निवेश करना।
  • क्षेत्रीय सहयोग: हिंद महासागर के तटीय देशों को डेटा साझा करना चाहिए और अनुकूलन रणनीतियों का समन्वय करना चाहिए।
  • वैश्विक जलवायु कार्रवाई: उत्सर्जन को कम करना तथा महासागरीय तापमान वृद्धि को सीमित करने के लिए पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करना।
  • भारत के लिए (लक्षद्वीप फोकस): द्वीपीय पारिस्थितिकी तंत्रों का संरक्षण करना, आपदा प्रबंधन की तैयारी करना तथा अनुकूलन उपायों में निवेश करना।

वैश्विक रिपोर्ट और वैज्ञानिक ढाँचे

  • IPCC AR6 (वर्ष 2021-2022): उत्सर्जन परिदृश्यों के आधार पर, वर्ष 2100 तक वैश्विक औसत समुद्र स्तर में 0.28-1.01 मीटर की वृद्धि का अनुमान।
  • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO): स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2023: यह पुष्टि करता है कि हिंद महासागर का तापमान वैश्विक औसत से अधिक तेजी से बढ़ रहा है, जिससे क्षेत्रीय समुद्र-स्तर संबंधी विसंगतियाँ तीव्र हो रही हैं।
  • UNFCCC और पेरिस समझौता: तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे सीमित रखने की प्रतिबद्धताएँ, संवेदनशील द्वीपीय देशों के लिए अनुकूलन रणनीतियों को सीधे आकार देती हैं।

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