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मणिपुर संकट

Lokesh Pal February 24, 2025 02:28 194 0

संदर्भ

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है क्योंकि सत्तारूढ़ सरकार, मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पर आम सहमति नहीं बना पाई थी।

संबंधित तथ्य

  • मणिपुर पिछले 21 महीनों से हिंसक नृजातीय संघर्ष से ग्रसित था।
  • 3 मई, 2023 को मणिपुर के अखिल आदिवासी छात्र संघ (ATSUM) ने मैतेई अनुसूचित जनजाति की माँग का विरोध करते हुए एक मार्च का आयोजन किया, जिसके कारण नृजातीय संघर्ष उत्पन्न हुआ।
  • फरवरी 2025 में, मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इस्तीफा दे दिया और आगे के संवैधानिक संकट को रोकने के लिए राजनीतिक अस्थिरता के बीच राष्ट्रपति शासन लगाया गया।

राज्यों में राष्ट्रपति शासन के बारे में

  • इसे राज्य आपातकाल के नाम से भी जाना जाता है।
  • घोषणा के आधार
    • अनुच्छेद-355: केंद्र का कर्तव्य प्रत्येक राज्य को बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति से बचाना तथा यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक राज्य की सरकार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार संचालित हो।
    • अनुच्छेद-356: यदि राष्ट्रपति, राज्यपाल की रिपोर्ट से/उसके बिना संतुष्ट हो जाएँ तो वह घोषणा कर सकते हैं कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाई जा सकती है।
    • अनुच्छेद-365: यदि कोई राज्य केंद्र के किसी निर्देश का पालन करने में विफल रहता है।
  • अवधि
    • हालाँकि, इसे प्रत्येक 6 माह में साधारण बहुमत से संसदीय अनुमोदन से अधिकतम 3 वर्ष की अवधि के लिए बढ़ाया जा सकता है।
    • 44वाँ संशोधन: एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए राष्ट्रपति शासन को 6 महीने के लिए केवल तभी बढ़ाया जा सकता है, जब निम्नलिखित शर्तें पूरी हों:
      • यदि पूरे भारत या राज्य के किसी भाग में राष्ट्रीय आपातकाल लागू हो।
      • यदि चुनाव आयोग यह प्रमाणित करता है कि कठिनाइयों के कारण चुनाव नहीं कराए जा सकते है।

मणिपुर में नृजातीय संघर्ष का इतिहास

पूर्व-औपनिवेशिक एवं औपनिवेशिक युग (वर्ष 1947 से पूर्व )

  • मणिपुर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में
    • मणिपुर एक स्वतंत्र राज्य था, जिस पर निंगथौजा राजवंश (Ningthouja Dynasty) के मैतेई राजाओं का शासन था।
    • मैतेई शासक सनमहिज्म (Sanamahism) (स्वदेशी धर्म) का पालन करते थे, लेकिन बाद में 18वीं शताब्दी में हिंदू धर्म अपना लिया, जिससे आदिवासी पहाड़ी समुदायों से एक सांस्कृतिक अंतर उत्पन्न हुआ।
  • ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन (1891-1947)
    • मणिपुर वर्ष 1891 में ब्रिटिश शासन के अधीन एक रियासत बन गया।
    • ब्रिटिशों की फूट डालो और राज करो की नीति ने निम्नलिखित के बीच एक स्पष्ट अंतर उत्पन्न कर दिया:
      • घाटी में मैतेई लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रशासित किया जाता था।
      • पहाड़ी जनजातियों (नागा एवं कुकी) का अंग्रेजों के अधीन अलग प्रशासन था।
    • आंग्ल-कुकी युद्ध (1917-1919)
      • कुकी ने प्रथम विश्व युद्ध के लिए उन्हें भर्ती करने के ब्रिटिश प्रयासों का विरोध किया।
      • इससे कुकी-जोमी जनजातियों एवं ब्रिटिशों के बीच हिंसक संघर्ष हुआ।
    • नागा राष्ट्रवादी आंदोलन 1940 के दशक में शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य पृथक नागा मातृभूमि की माँग करना था।

स्वतंत्रता के बाद का काल (1947-1972)

  • भारत के साथ विलय (1949) और प्रारंभिक विवाद
    • भारत की स्वतंत्रता के बाद, मणिपुर का वर्ष 1949 में भारत में विलय कर दिया गया, जिससे स्थानीय लोगों में असंतोष व्याप्त हो गया।
    • मैतेई लोगों ने विलय का विरोध किया और संप्रभुता की वापसी की माँग की।
    • पहाड़ी जनजातियों (नागा एवं कुकी) ने अधिक स्वायत्तता या नागालैंड के साथ एकीकरण की माँग की।
  • नागालैंड का गठन (1963) और नागा विद्रोह
    • ‘नागा नेशनलिस्ट काउंसिल’ (Naga Nationalist Council-NNC) ने ग्रेटर नागालैंड (नागालिम) के लिए एक आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसमें मणिपुर के नागा-बाहुल्य क्षेत्र भी शामिल थे।
    • भारत सरकार ने वर्ष 1963 में नागालैंड को एक अलग राज्य बनाया, लेकिन नागा एकीकरण की माँग जारी रही।
    • ‘नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड’ (NSCN-IM) सहित नागा सशस्त्र समूहों ने मणिपुर के नागा क्षेत्रों को नागालिम में शामिल करने की माँग की।

उग्रवाद और नृजातीय संघर्ष (1972-2000 का दशक)

  • राज्य का दर्जा और मैतेई विद्रोह का उदय (वर्ष 1972 के पश्चात्)
    • मणिपुर को वर्ष 1972 में पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया, लेकिन नृजातीय समूह असंतुष्ट रहे।
    • मैतेई विद्रोही समूह, जैसे:
      • पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) (1978)
      • यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) (1964)
      • पीपुल्स रिवॉल्यूशनरी पार्टी ऑफ कांगलीपाक (PREPAK) (1977): स्वतंत्र मणिपुर की माँग की और भारत के साथ एकीकरण का विरोध किया।
  • कुकी-नागा संघर्ष (1990 का दशक)
    • नागालैंड का उग्रवाद मणिपुर में भी फैल गया, जहाँ NSCN-IM ने मणिपुर के नागा क्षेत्रों पर नियंत्रण की माँग की। 
    • कुकी ने इसका विरोध किया, जिसके कारण 1990 के दशक में हिंसक संघर्ष हुए। 
    • वर्ष 1992-1997 कुकी-नागा संघर्ष
      • सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों कुकी विस्थापित हुए।
      • NSCN-IM ने कुकी को निशाना बनाया और उन्हें नागा भूमि में ‘बाहरी’ बताया।
  • कुकी-जोमी बनाम मैतेई संघर्ष (वर्ष 2000 से वर्तमान तक)
    • मैतेई लोगों ने आदिवासियों सहित ‘बाहरी लोगों’ को घाटी में बसने से रोकने के लिए इनर लाइन परमिट (ILP) की माँग की।
    • वर्ष 2015 का विरोध प्रदर्शन
      • मणिपुर सरकार ने गैर-मैतेई लोगों के लिए भूमि अधिकारों को प्रतिबंधित करने वाले तीन विधेयक पेश किए।
      • इससे आदिवासी समुदाय में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए।
    • वर्ष 2018-2022 तक मैतेई बनाम जनजातीय संघर्ष
      • पहाड़ी जनजातियों द्वारा मैतेई समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की माँग का विरोध किया गया।

वर्ष 2023-2025 के संकट के तात्कालिक कारण

  • मैतेई द्वारा ST दर्जे की माँग (अप्रैल-मई 2023)
    • मैतेई लोगों ने आर्थिक और राजनीतिक हाशिए पर होने का हवाला देते हुए अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा माँगा। 
    • कुकी-जोमी जनजातियों ने भूमि अधिकार और आरक्षण की हानि के डर से इसका विरोध किया। 
    • मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा मैतेई लोगों के लिए ST दर्जे पर विचार करने के निर्देश के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।
  • नृजातीय संघर्ष एवं हिंसा (मई 2023 से आगे)
    • 3 मई, 2023: मणिपुर के अखिल आदिवासी छात्र संघ (ATSUM) ने मैतेई ST माँग का विरोध करते हुए एक मार्च का आयोजन किया।
    • मैतेई और कुकी-जोमी समूहों के बीच हिंसा भड़क उठी, जिसके परिणामस्वरूप:-
      • 260 से अधिक मौतें और 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए।
      • घरों, चर्चों और सरकारी इमारतों को जलाने सहित व्यापक आगजनी।
      • सुरक्षा बल हिंसा को रोकने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिसके कारण 40,000 से अधिक अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती की गई है।

मणिपुर संकट में शामिल जनजातियाँ

मैतेई समुदाय

  • सबसे बड़ा नृजातीय समूह (53%), जो अधिकतर इंफाल घाटी में निवास करता है।
  • मुख्य रूप से हिंदू, अल्पसंख्यक सनमहिज्म (स्वदेशी आस्था) और इस्लाम (मैतेई पंगल) का पालन करते हैं।

कुकी-जोमी जनजातियाँ

  • कुकी, जोमी और हमार उप-जनजातियाँ शामिल हैं, जो ज्यादातर चुराचांदपुर, कांगपोकपी और टेंग्नौपाल पहाड़ी जिलों में पाई जाती हैं।
  • मुख्य रूप से ईसाई, म्याँमार में चिन समुदायों के साथ मजबूत सांस्कृतिक संबंध हैं।

नागा जनजातियाँ

  • मणिपुर में प्रमुख नागा जनजातियाँ: तांगखुल, माओ, मारम, मारिंग, पौमई, अनल, जेलियानग्रोंग, थंगल।
  • उखरूल, सेनापति, तामेंगलोंग और चंदेल जिलों में रहते हैं।
  • मुख्य रूप से ईसाई, सांस्कृतिक रूप से नागालैंड की नागा जनजातियों से जुड़े हुए हैं।

नृजातीय और जनसांख्यिकीय संदर्भ

  • जनसंख्या
    • मैतेई: मणिपुर की लगभग 3 मिलियन आबादी का लगभग 53%, इंफाल घाटी में केंद्रित (10% भूमि, हिंदू बहुमत) है।
    • कुकी-जो और नागा: लगभग 40%, पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करते हैं (90% भूमि, ईसाई बहुमत), जिसमें 33 मान्यता प्राप्त जनजातियाँ हैं।
    • अन्य: पंगल (मैतेई मुस्लिम), नेपाली, पंजाबी, तमिल, मारवाड़ी (गैर-आदिवासी अल्पसंख्यक, प्रायः राजनीति में अदृश्य)।
  • भौगोलिक विभाजन
    • घाटी (10%): मैतेई बहुल, सघन आबादी वाले मैदान।
    • पहाड़ियाँ (90%): जनजातीय क्षेत्र, अनुच्छेद-371C के तहत संरक्षित, मैतेई लोगों को भूमि स्वामित्व से वंचित करता है।

मणिपुर संकट के लिए जिम्मेदार कारक

ऐतिहासिक और नृजातीय कारक

  • लंबे समय से चली आ रहा नृजातीय विभाजन: मैइती मुख्य रूप से हिंदू हैं, जो इंफाल घाटी में केंद्रित हैं और नागा एवं कुकी-जोमी जनजातियाँ मुख्य रूप से ईसाई हैं, जो पहाड़ियों में निवास करती हैं।
    • ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों ने घाटी और पहाड़ियों के बीच विभाजन उत्पन्न कर दिया।
  • ऐतिहासिक विद्रोह और सशस्त्र समूह
    • मैतेई विद्रोही समूह: UNLF, PLA, PREPAK- स्वतंत्र मणिपुर के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
    • नागा विद्रोह: NSCN-IM की ग्रेटर नगालैंड (नागालिम) की माँग।
    • कुकी-जोमी विद्रोह: अलग प्रशासन या स्वायत्तता की माँग।
    • इन समूहों के बीच लगातार संघर्षों के कारण बार-बार हिंसा होती रही है।
  • भूमि और पहचान के मुद्दे
    • मैइती को इंफाल घाटी के 10% हिस्से तक सीमित रखा गया है; अनुच्छेद-371C के कारण वे पहाड़ियों में भूमि नहीं खरीद सकते हैं।
    • नागा और कुकी ऐतिहासिक रूप से क्षेत्रीय नियंत्रण को लेकर संघर्षरत रहे हैं। उदाहरण के लिए, 1990 के दशक में कुकी-नागा संघर्ष। 
    • भूमि संरक्षण की माँग (मैतई के लिए इनर लाइन परमिट, जनजातियों के लिए पहाड़ी संरक्षण)।

राजनीतिक और प्रशासनिक मुद्दे

  • मैतेई लोगों द्वारा अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा दिए जाने की माँग (अप्रैल 2023): मैतेई लोगों ने आरक्षण लाभ और भूमि अधिकारों तक पहुँच के लिए ST का दर्जा दिए जाने की माँग की।
    • आदिवासी समूहों (कुकी और नागा) ने अपने संवैधानिक संरक्षण के समाप्त होने के डर से इसका विरोध किया।
    • मैतेई लोगों को ST का दर्जा दिए जाने पर विचार करने के मणिपुर उच्च न्यायालय के निर्देश के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।

सामाजिक-आर्थिक कारक

  • आर्थिक असमानताएँ एवं विकास असंतुलन
    • इंफाल घाटी (मैतेई) पहाड़ी क्षेत्रों (आदिवासी क्षेत्रों) की तुलना में बेहतर विकसित है।
    • पहाड़ी समुदायों में उचित बुनियादी ढाँचे, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा का अभाव है।
    • कुकी-जोमी और नागा जनजातियाँ खुद को हाशिए पर महसूस करती हैं, जिसके कारण स्वायत्तता की माँग होती है।
  • अफीम की खेती और नार्को-आतंकवाद के आरोप
    • कुकी-जोमी समुदायों पर ड्रग कार्टेल और अफीम की खेती करने का आरोप है।
    • म्याँमार से जुड़े ड्रग व्यापार (हेरोइन, मेथामफेटामाइन) हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं।
    • सरकार के ड्रग विरोधी अभियान को कुकी को गलत तरीके से निशाना बनाने के रूप में देखा जा रहा है, जिससे तनाव बढ़ रहा है।

म्याँमार कारक और शरणार्थी प्रवाह

  • म्याँमार के गृहयुद्ध (वर्ष 2021 में तख्तापलट) से उत्पन्न स्थिति: म्याँमार के नृजातीय समूहों पर सैन्य कार्रवाई के कारण चिन-कुकी शरणार्थी मणिपुर में प्रवेश कर गए।
    • मैतेई नेताओं ने कुकी को ‘अवैध अप्रवासी’ करार दिया, जिससे शत्रुता बढ़ गई।
  • मुक्त आवागमन व्यवस्था (FMR) और सीमा तनाव: भारत ने स्थानीय जनजातियों को म्याँमार-मणिपुर सीमा पर मुक्त आवागमन की अनुमति दी।
    • वर्ष 2023 में FMR को समाप्त करने की घोषणा की गई, जिससे जनजातीय असुरक्षा और बढ़ गई।
  • विदेशी सशस्त्र समूहों की संलिप्तता: रिपोर्टों से पता चलता है कि मणिपुर संघर्ष में म्याँमार स्थित उग्रवादी समूह शामिल हैं।
    • पूर्वोत्तर के विद्रोहियों पर चीन के प्रभाव का भी संदेह है।

सांप्रदायिक सद्भाव और अविश्वास का टूटना

  • सोशल मीडिया और गलत सूचना
    • फर्जी खबरों और वैमनस्यपूर्ण भाषणों ने हिंसा को बढ़ावा दिया।
    • आदिवासी महिलाओं को नग्न अवस्था में घुमाए जाने के वीडियो (जुलाई 2023) ने झड़पों को और तेज कर दिया।
  • धार्मिक ध्रुवीकरण
    • चर्च एवं ईसाई संस्थाओं को निशाना बनाया गया, जिससे मैतेई और कुकी के बीच दरार और गहरी हो गई।
    • मैतेई की कार्रवाइयों को सही ठहराने के लिए हिंदू राष्ट्रवादी आख्यानों का प्रयोग किया गया।
  • आंतरिक विस्थापन और मानवीय संकट
    • 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए, जो राहत शिविरों में रह रहे हैं।
    • खाद्य पदार्थों की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, मानसिक स्वास्थ्य संबंधी बढ़ती समस्याएँ।
    • मणिपुरी शरणार्थी मिजोरम, असम और नागालैंड भाग गए।

राजनीतिक संकट और राष्ट्रपति शासन

  • संवैधानिक संकट
    • अनुच्छेद-174: शीतकालीन सत्र के न होने के कारण विधानसभा सत्र अंतराल 6 महीने से अधिक हो गया।
    • 10 फरवरी को प्रस्तावित बजट सत्र सीएम के इस्तीफे के बाद रद्द कर दिया गया।
  • मुख्यमंत्री का इस्तीफा: फरवरी 2025 में मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे दिया।
  • 11वाँ उदाहरण: मणिपुर में बार-बार राष्ट्रपति शासन लागू होना पुरानी राजनीतिक कमजोरी और नृजातीय विविधता को दर्शाता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद-174: राज्य विधानमंडल के सत्र, सत्रावसान और विघटन

  • राज्यपाल समय-समय पर राज्य विधानमंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर बैठक के लिए बुलाएगा, जैसा वह उचित समझे।
  • लेकिन एक सत्र में इसकी अंतिम बैठक और अगले सत्र में इसकी पहली बैठक के लिए नियत तिथि के बीच छह महीने का अंतर नहीं होगा।

संविधान का अनुच्छेद-371C: मणिपुर के लिए विशेष प्रावधान

  • यह मणिपुर राज्य के लिए विशेष प्रावधान प्रदान करता है।
  • इसे मणिपुर के गठन के बाद वर्ष 1971 में जोड़ा गया था।
  • उद्देश्य: यह अनुच्छेद मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों के लिए विशेष प्रशासनिक प्रावधान करता है।
    • इसका उद्देश्य पहाड़ी समुदायों के लिए उचित शासन और प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है।
  • प्रमुख प्रावधान
    • पहाड़ी क्षेत्र समिति (Hill Areas Committee-HAC): मणिपुर विधानसभा में पहाड़ी क्षेत्रों के विधायकों से बनी एक विशेष समिति।
    • कार्य: पहाड़ी क्षेत्रों को प्रभावित करने वाले कानूनों, नीतियों और प्रशासन की देखरेख करना।
    • राज्यपाल की विशेष भूमिका: राज्यपाल के पास HAC के समुचित कामकाज को सुनिश्चित करने की विशेष जिम्मेदारी है।
      • राज्यपाल को पहाड़ी क्षेत्रों के प्रशासन पर राष्ट्रपति को वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
    • संघ सरकार की शक्तियाँ: राष्ट्रपति पहाड़ी क्षेत्रों के शासन के बारे में आदेश जारी कर सकते हैं।
      • केंद्र सरकार मणिपुर सरकार को निर्देश दे सकती है कि इन क्षेत्रों का प्रशासन कैसे किया जाए।
  • पर्वतीय क्षेत्रों की परिभाषा: इस अनुच्छेद के अंतर्गत राष्ट्रपति को कुछ क्षेत्रों को ‘पर्वतीय क्षेत्र’ घोषित करने का अधिकार है।

मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की चुनौतियाँ

  • नृजातीय संघर्ष समाधान
    • गहरा नृजातीय अविश्वास: कुकी-जोमी समूह एक अलग प्रशासन की माँग करते हैं, लेकिन मैतेई मणिपुर के किसी भी विभाजन का विरोध करते हैं।
      • नागाओं की अलग-अलग आकांक्षाएँ हैं, जिससे वार्ता जटिल हो जाती है।
      • नृजातीय शिकायतों को संबोधित करते हुए तटस्थता सुनिश्चित करना मुश्किल है।
    • बहुसंख्यक पूर्वाग्रह का डर: कई कुकी राष्ट्रपति शासन को मैतेई प्रभुत्व को फिर से स्थापित करने के लिए एक आवरण के रूप में देखते हैं।
      • सत्ता को केंद्रीकृत करने या जनजातीय स्वायत्तता को समाप्त करने का कोई भी प्रयास तनाव बढ़ा सकता है।
  • सुरक्षा और उग्रवाद प्रबंधन
    • निरस्त्रीकरण और विसैन्यीकरण की चुनौतियाँ: राज्य शस्त्रागारों से लूटे गए 4,000 से अधिक हथियार अभी भी लापता हैं।
      • ग्राम रक्षा बल (मैतेई और कुकी-जोमी) भविष्य के हमलों के डर से विघटन का विरोध करते हैं।
    • नए सिरे से उग्रवाद का खतरा: मैतेई उग्रवादी (UNLF, PLA, PREPAK) और कुकी-जोमी सशस्त्र समूह (KNA, UPF, ZRA) फिर से संगठित हो सकते हैं।
      • म्याँमार स्थित उग्रवादी समूह मणिपुर में घुसपैठ कर सकते हैं, जिससे क्षेत्र में अस्थिरता और बढ़ सकती है।
  • राजनीतिक चुनौतियाँ
    • केंद्रीय और स्थानीय हितों में संतुलन: केंद्र सरकार को किसी भी जातीय समूह के प्रति पक्षपातपूर्ण दिखने से बचना चाहिए।
      • जल्द ही निष्पक्ष चुनाव कराने में विफलता लोकतंत्र में विश्वास को खत्म कर सकती है।
  • शासन एवं संस्थागत चुनौतियाँ
    • प्रशासन में निष्पक्ष प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना: मैतेई प्रभुत्व के डर से जनजातीय समूह शासन में अधिक भागीदारी की माँग करते हैं।
      • लोगों का विश्वास पुनः प्राप्त करने के लिए राज्य संस्थाओं में प्रशासनिक फेरबदल की आवश्यकता है।
    • संवैधानिक और कानूनी मुद्दों पर विचार: अनुच्छेद-371C (मणिपुर के आदिवासियों के लिए विशेष प्रावधान) के निहितार्थों पर विचार किया जाना चाहिए।
      • उप-राज्यीय संवैधानिक विषमता को बदलने का कोई भी प्रयास आगे और अधिक अशांति को जन्म दे सकता है।

मणिपुर संकट के निहितार्थ

  • मानव जीवन की हानि एवं विस्थापन
    • हताहतों की संख्या: मई 2024 तक, 221 लोग मारे गए, 1,000 से अधिक घायल हुए, 32 लापता हुए, 4,786 घर जल गए और कई इमारतें क्षतिग्रस्त हो गईं।
    • विस्थापन: घाटी एवं पहाड़ी जिलों में 334 पंजीकृत राहत शिविरों में लगभग 58,000 लोग हैं; 12,000 लोग मिजोरम पलायन कर गए, 7,000 लोग नागालैंड, असम और मेघालय चले गए। अपंजीकृत विस्थापित (रिश्तेदारों के साथ या अस्थायी आश्रयों में रह रहे) का कोई पता नहीं है।
    • मानवीय संकट: मई 2023 से 50,000 से अधिक लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं, जिनकी बुनियादी आवश्यकताएँ (भोजन, पानी, आश्रय) घटते संसाधनों और संघर्ष-प्रेरित मुद्रास्फीति के कारण पूरी नहीं हुई हैं।
  • महिलाओं के विरुद्ध हिंसा
    • यौन हिंसा: मैतेई भीड़ ने कुकी-जो महिलाओं को नियंत्रण रणनीति के रूप में निशाना बनाया, जिसमें धमकी देकर उन पर हमला करना और जबरन कपड़े उतरवाना शामिल था।
      • एक उल्लेखनीय घटना में दो कुकी महिलाओं को भीड़ द्वारा नग्न अवस्था में घुमाया गया, जिसे एक वीडियो क्लिप में कैद किया गया, जिससे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आक्रोश फैल गया।
  • आर्थिक विकास में बाधाएँ
    • व्यापार पतन: हाथ से बुने हुए वस्त्रों, दवाओं और खाद्य पदार्थों के निर्यात में लगभग 80% की गिरावट आई।
    • बुनियादी ढाँचे में स्थिरता: हिंसा ने भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसी परियोजनाओं को बाधित किया और मोरेह की एक व्यापार केंद्र के रूप में भूमिका कम हो गई, जिससे पूर्वोत्तर भारत का दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ आर्थिक जुड़ाव बाधित हुआ।
    • गरीबी-अशांति चक्र: आर्थिक ठहराव से वंचितता बढ़ती है, जिससे युवा अशांति और उग्रवाद की ओर बढ़ते हैं।
  • उग्रवाद का विकास
    • अनुकूल स्थिति: लंबे समय तक अशांति उग्रवादी समूहों को प्रभाव बढ़ाने, वंचित युवाओं की भर्ती करने और चरमपंथी गतिविधियों को बढ़ाने के अवसर प्रदान करती है।
    • सीमा पार संबंध: म्याँमार स्थित समूहों (जैसे- नशीली दवाओं की तस्करी के माध्यम से) और बांग्लादेश में पिछले विद्रोही ठिकानों (जैसे- UNLF, PLA) के साथ ऐतिहासिक संबंध पुनर्जीवित हो सकते हैं, जिससे क्षेत्र में और अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है।
  • स्वास्थ्य एवं शिक्षा संकट
    • स्वास्थ्य सेवा का पतन: पहाड़ी जिलों में ‘कुकी-जो’ की  तृतीयक देखभाल तक पहुँच नहीं है; नागालैंड या मिजोरम की यात्रा में 17-24 घंटे लगते हैं, जिससे अघोषित मौतें होती हैं, उदाहरण के लिए चूरचंदपुर में जून 2023 में प्रसव के बाद एक माँ की मृत्यु।
      • शिविरों में विस्थापित लोगों को कुपोषण (दाल-चावल-आलू आहार), विटामिन A की कमी (बच्चों में रतौंधी का खतरा) और अनुपचारित जीर्ण बीमारियों (जैसे- किडनी रोग से मृत्यु) का सामना करना पड़ता है।
    • शिक्षा में व्यवधान: शिविरों में 22,000 से अधिक बच्चे बिना किसी स्कूली शिक्षा के रह रहे हैं; शिविरों की खराब स्थितियों (जैसे- पानी की कमी, अस्वास्थ्यकर जीवन) के कारण स्थिति और भी दयनीय हो गई है।
  • राजनीतिक और प्रशासनिक परिणाम
    • संवैधानिक तनाव: विधानसभा सत्र की समाप्ति (अनुच्छेद-174) और बीरेन सिंह के इस्तीफे ने संवैधानिक अनिश्चितता उत्पन्न कर दी, जिससे मणिपुर की संवेदनशील स्थिति (11वें राष्ट्रपति शासन) पर प्रकाश पड़ा।
  • क्षेत्रीय एवं सीमा सुरक्षा
    • म्याँमार में तख्तापलट: म्याँमार के तख्तापलट से आए 95,600 शरणार्थी (दिसंबर 2024) मणिपुर के नृजातीय संतुलन को अस्थिर कर रहे हैं, सीमा प्रबंधन पर दबाव डाल रहे हैं और 1,643 किलोमीटर लंबी सीमा के जरिए मादक पदार्थों की तस्करी को बढ़ावा दे रहे हैं।
    • आर्थिक जुड़ाव: हिंसा के कारण पूर्वोत्तर भारत के बाहरी आर्थिक संबंधों की संभावनाएँ कम हो रही हैं, सीमा हाट और FMR आधारित व्यापार जैसी योजनाएँ बाधित हो रही हैं।

मणिपुर संकट के लिए आगे की राह

  • सुरक्षा और कानून प्रवर्तन: सशस्त्र समूहों का तत्काल निरस्त्रीकरण और लूटे गए हथियारों की बरामदगी।
    • सभी समुदायों के लिए समान सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए तटस्थ कानून प्रवर्तन को मजबूत करना।
  • राजनीतिक और शासन सुधार: स्थिरता सुनिश्चित करने के बाद सभी नृजातीय समूहों के निष्पक्ष प्रतिनिधित्व के साथ समय से पूर्व चुनाव।
    • जनजातीय क्षेत्रों में बेहतर प्रशासन के लिए स्वायत्त जिला परिषदों (Autonomous District Councils-ADCs) को मजबूत करना।
  • सुलह एवं संवाद: मैतेई, कुकी-जोमी और नागा समुदायों के नेताओं के साथ एक स्वतंत्र शांति समिति का निर्माण करना।
    • अनुच्छेद-371C पर चर्चा सहित संवैधानिक तंत्र के माध्यम से शिकायतों का समाधान करना।
  • मानवीय सहायता एवं पुनर्वास: सुरक्षा गारंटी के साथ विस्थापित व्यक्तियों (60,000+ IDP) की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करना।
    • राहत शिविरों, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और आजीविका के अवसरों में सुधार करना।
  • आर्थिक पुनरुद्धार: भारत-म्याँमार सीमा व्यापार को फिर से शुरू करना और संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को पुनर्सक्रिय करना।
    • रोजगार और कौशल विकास के लिए विशेष आर्थिक पैकेज प्रदान करना।
  • सीमा सुरक्षा और बाहरी संबंधों को मजबूत करना: अवैध प्रवास और हथियारों की तस्करी को रोकने के लिए म्याँमार के साथ सीमा सुरक्षा को बढ़ाना।
    • भारत की एक्ट ईस्ट नीति के तहत म्याँमार और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ सहयोग करना।
  • नृजातीय हितों और संवैधानिक सुरक्षा उपायों में संतुलन: सभी समुदायों के लिए समान अधिकार और सुरक्षा सुनिश्चित करना, पक्षपात से बचना।
    • मणिपुर के किसी भी जबरन एकीकरण या विभाजन से बचना, जिससे तनाव बढ़ सकता है।

निष्कर्ष 

राष्ट्रपति शासन लागू होने से मणिपुर में शासन एवं सुरक्षा पुनर्स्थापन करने का अवसर मिलता है। हालाँकि, दीर्घकालिक समाधान के लिए राजनीतिक समावेशिता, आर्थिक पुनर्निर्माण और सामुदायिक सामंजस्य की आवश्यकता है। संवाद और संस्थागत सुधारों के माध्यम से ऐतिहासिक शिकायतों का समाधान करना राज्य में स्थायी शांति और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण होगा।

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