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पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा किए गए ऐतिहासिक आर्थिक सुधार

Lokesh Pal December 28, 2024 02:13 30 0

संदर्भ

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की आयु में 26 दिसंबर, 2024 को दिल्ली एम्स में निधन हो गया। उनके सम्मान में केंद्र सरकार ने 7 दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया है।

व्यक्तिगत विवरण

  • जन्म: 26 सितंबर, 1932, पंजाब, अविभाजित भारत।
  • शिक्षा
    • अर्थशास्त्र में स्नातक और परास्नातक (पंजाब विश्वविद्यालय, 1952, 1954)।
    • अर्थशास्त्र में ऑनर्स डिग्री (कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, 1957)।
    • अर्थशास्त्र में डी. फिल (ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, 1962)।
    • प्रकाशित पुस्तक: ‘भारत के निर्यात रुझान और आत्मनिर्भर विकास की संभावनाएँ’ (India’s Export Trends and Prospects for Self-Sustained Growth) (क्लेरेंडन प्रेस, ऑक्सफोर्ड, 1964)।
  • भारत सरकार में प्रमुख पद
    • मुख्य आर्थिक सलाहकार (वर्ष 1972-1976)
    • रिजर्व बैंक के गवर्नर (वर्ष 1982-1985)
    • योजना आयोग के प्रमुख (वर्ष 1985-1987)।
  • राजनीतिक कॅरियर
    • राज्यसभा सदस्य: वर्ष 1991 से वर्ष 2019 तक असम से, वर्ष 2019 से वर्ष 2024 तक राजस्थान से।
      • कभी भी लोकसभा के सदस्य नहीं रहे।
    • विपक्ष के नेता, राज्य सभा: वर्ष 1998 से वर्ष 2004 तक।
    • भारत के प्रधानमंत्री: वर्ष 2004-2014 (दो कार्यकाल)।
    • वित्त मंत्री: वर्ष 1991 से वर्ष 1996 तक पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार में।
  • पुरस्कार और सम्मान
    • एडम स्मिथ पुरस्कार, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (वर्ष 1956)।
    • यूरो मनी अवार्ड फॉर फाइनेंस मिनिस्टर ऑफ द ईयर (वर्ष 1993)।
    • एशिया मनी अवार्ड फॉर फाइनेंस मिनिस्टर ऑफ द ईयर (वर्ष 1993, 1994)।
    • जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार (वर्ष 1995)।
    • पद्म विभूषण (वर्ष 1987)।
    • कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालयों से डिग्री से सम्मानित।

प्रमुख सुधार एवं निर्णय

वित्त मंत्री के रूप में (वर्ष 1991 से वर्ष 1996 तक)

LPG सुधार (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण)

  • उदारीकरण
    • नई व्यापार नीति: लाइसेंसिंग प्रक्रिया को सरल बनाकर तथा गैर-आवश्यक आयातों को निर्यात से जोड़कर निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक नई व्यापार नीति शुरू की गई।
    • व्यापार योग्य एक्जिम स्क्रिप्स (Tradeable Exim scrips): निर्यात सब्सिडी हटा दी गई तथा निर्यातकों के लिए उनके निर्यात के मूल्य के आधार पर व्यापार योग्य एक्जिम स्क्रिप्स शुरू की गईं।

    • व्यापार एकाधिकार: व्यापार पुनर्गठन तथा विलय को सुगम बनाने के लिए एकाधिकार तथा प्रतिबंधात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम के प्रावधानों में ढील दी गई।
    • लाइसेंस राज का उन्मूलन: कुछ रणनीतिक क्षेत्रों को छोड़कर सभी में उद्योगों को पूर्व सरकारी अनुमोदन के बिना संचालन की अनुमति दी गई।
    • वित्तीय क्षेत्र सुधार: बैंकिंग प्रणाली की दक्षता बढ़ाने के लिए सांविधिक तरलता अनुपात (SLR) तथा नकद आरक्षित अनुपात (CRR) को कम करने जैसे वित्तीय क्षेत्र सुधारों को लागू किया गया।
  • निजीकरण
    • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिए 51% तक की स्वचालित स्वीकृति शुरू की गई, जबकि पहले यह सीमा 40% थी।
    • सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार: सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों तक सीमित कर दिया गया।
      • दक्षता में सुधार के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) में सरकारी हिस्सेदारी का विनिवेश शुरू किया गया।
  • वैश्वीकरण
    • खुली अर्थव्यवस्था: इसका फोकस भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजार के साथ एकीकृत करने और अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश को प्रोत्साहित करने पर था।
    • रुपये का अवमूल्यन: रुपये के बड़े पैमाने पर अवमूल्यन और नई व्यापार नीतियों ने भारतीय निर्यात को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्द्धी बना दिया।
    • टैरिफ बाधाओं को कम करना: आयात शुल्कों को कम करके और गैर-टैरिफ बाधाओं को समाप्त कर व्यापार उदारीकरण को बढ़ावा देना।

व्यापार योग्य एक्जिम स्क्रिप्स (Tradeable Exim scrips)

  • व्यापार योग्य एक्जिम स्क्रिप्स, जिन्हें ड्यूटी क्रेडिट स्क्रिप्स (DCS) के नाम से भी जाना जाता है, भारत सरकार द्वारा निर्यातकों को आयात शुल्क की भरपाई के लिए दिए जाने वाले प्रोत्साहन हैं।
  • इन्हें वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के तहत विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) द्वारा जारी किया जाता है।
  • उद्देश्य: भारत से निर्यात को बढ़ावा देना और विदेशी मुद्रा प्रवाह को बढ़ाना।

प्रधानमंत्री के रूप में (वर्ष 2004-2014)

  • FDI नीतियों की निरंतरता: सरकार ने FDI मानदंडों को और उदार बनाया, जिससे खुदरा, विमानन और बीमा जैसे क्षेत्रों में अधिक विदेशी इक्विटी की अनुमति मिली।
    • मल्टी-ब्रांड रिटेल को 51% FDI की मंजूरी मिली, जबकि सिंगल-ब्रांड रिटेल को 100% तक की अनुमति दी गई।
  • विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zones-SEZs): उनकी सरकार ने निवेश आकर्षित करने, निर्यात को बढ़ावा देने और कर प्रोत्साहन के साथ विशेष औद्योगिक केंद्र स्थापित करके रोजगार उत्पन्न करने के लिए SEZ अधिनियम (2005) लागू किया।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): सरकार ने बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण और औद्योगिक विकास को बढ़ाने के लिए PPP को बढ़ावा दिया, विशेषकर राजमार्गों, हवाई अड्डों और विद्युत परियोजनाओं में।
  • विनिर्माण क्षेत्र पर ध्यान: नीतियों का उद्देश्य विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करना था, जिसमें राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (2011) भी शामिल थी, जिसका उद्देश्य सकल घरेलू उत्पाद में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाना और लाखों नौकरियाँ उत्पन्न करना था।
  • कौशल विकास और प्रौद्योगिकी उन्नयन: सरकार ने कौशल विकास पहल को प्रोत्साहित किया और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार के लिए उद्योगों में उन्नत प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान किया।
  • भारत-अमेरिका परमाणु समझौता (2008): वर्ष 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते ने भारत के परमाणु अलगाव को समाप्त कर दिया और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ नागरिक परमाणु ऊर्जा सहयोग की अनुमति दी।
  • वैश्विक वित्तीय संकट 2008: वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान विवेकपूर्ण आर्थिक नीतियों के माध्यम से भारत को इस संकट से सुरक्षित रखा।

पारित प्रमुख अधिनियम

  • सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005
    • जून 2005 में अधिनियमित इस अधिनियम ने नागरिकों को सार्वजनिक प्राधिकरणों संबंधी सूचना तक पहुँचने का अधिकार दिया।
    • सार्वजनिक प्राधिकरणों को रिकॉर्ड को इस तरह बनाए रखने के लिए बाध्य किया, जिससे पहुँच आसान हो।
    • संवेदनशील सूचना के लिए अपील और छूट के लिए तंत्र प्रदान किया।
  • शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम, 2009
    • 6-14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की गारंटी, जिससे स्कूल छोड़ने की दर में उल्लेखनीय कमी आएगी।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), 2005
    • ग्रामीण परिवारों को प्रतिवर्ष 100 दिन का गारंटीकृत रोजगार उपलब्ध कराया गया, जिससे गरीबी और बेरोजगारी में कमी आई।
  • आधार (विशिष्ट पहचान)
    • नागरिकों को विशिष्ट पहचान संख्या प्रदान करके कल्याणकारी वितरण और वित्तीय समावेशन में सुधार लाने के लिए इसे शुरू किया गया।

विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत

  • आर्थिक कूटनीति
    • भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करने के लिए आर्थिक विकास का लाभ उठाने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • घरेलू आर्थिक सुधारों के पूरक के रूप में व्यापार और निवेश साझेदारी को प्राथमिकता दी गई।
  • रणनीतिक साझेदारियाँ
    • संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चीन और यूरोपीय संघ जैसी प्रमुख वैश्विक शक्तियों के साथ दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी बनाने पर जोर दिया।
    • एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की वकालत की, जिसमें भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • क्षेत्रीय संबंधों में संतुलन
    • दक्षिण एशिया में स्थिरता बनाए रखने के लिए पड़ोसी देशों के साथ बातचीत में व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया।
    • क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देते हुए सुरक्षा संबंधी चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया।

उल्लेखनीय विदेश नीति संबंधी उपलब्धियाँ

  • अमेरिका-भारत संबंध
    • अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौता (2008)
      • इस ऐतिहासिक समझौते ने भारत के परमाणु प्रौद्योगिकी संबंधी अलगाव को समाप्त कर दिया, जिससे असैन्य परमाणु व्यापार की अनुमति मिली और साथ ही भारत की परमाणु अप्रसार प्रतिबद्धताओं को भी सुनिश्चित किया गया।
      • इसने भारत को कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से यूरेनियम की आपूर्ति सुनिश्चित करने में सक्षम बनाया, जो उसकी ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण है।
    • आर्थिक सहयोग
      • द्विपक्षीय व्यापार में पाँच गुना वृद्धि हुई, जो वर्ष 2000 में 20 बिलियन डॉलर से बढ़कर वर्ष 2015 में 132 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया।
      • रक्षा व्यापार में वृद्धि देखी गई, जिसमें भारत ने C-130J हरक्यूलिस विमान जैसी उन्नत प्रणालियाँ खरीदीं।
  • चीन के साथ बेहतर संबंध
    • सीमा विवादों के बावजूद आर्थिक सहयोग को बढ़ावा दिया।
    • व्यापार संबंधों को मजबूत किया, उनके कार्यकाल के दौरान चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया।
      • उनके प्रयासों से व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिए रणनीतिक-आर्थिक वार्ता जैसे तंत्र की स्थापना हुई।
  • भारत-रूस संबंधों को मजबूत करना
    • इस अवधि के दौरान रक्षा संबंधों को मजबूती मिली, जिसमें 70% से अधिक भारतीय सैन्य हार्डवेयर रूस से प्राप्त हुए।
    • कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र जैसे परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण के लिए समझौतों ने ऊर्जा साझेदारी को उजागर किया।
  • दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग
    • 26/11 मुंबई हमलों के बाद विश्वास-निर्माण उपायों की पहल सहित पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंधों की वकालत की।
    • क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) में भारत की भूमिका को मजबूत किया।
  • वैश्विक संस्थाओं में भारत की भूमिका
    • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत की स्थायी सदस्यता की वकालत की।
    • वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक मुद्दों पर भारत के रुख को उजागर करने के लिए G20, ब्रिक्स और IBSA (भारत-ब्राजील-दक्षिण अफ्रीका) जैसे मंचों में सक्रिय भूमिका निभाई।
    • कोपेनहेगन जलवायु शिखर सम्मेलन (2009) में, उन्होंने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए सतत् विकास के लिए भारत की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला।
  • अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के साथ जुड़ाव
    • भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन जैसी पहलों के माध्यम से अफ्रीकी देशों के साथ संबंधों को मजबूत किया।
      • भारत ने भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (2008) की मेजबानी की, जहाँ भारत ने बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए अफ्रीकी देशों को 5 बिलियन डॉलर की ऋण सुविधा प्रदान की।
    • ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए लैटिन अमेरिकी देशों के साथ व्यापार और निवेश को बढ़ाया गया।
  • पूर्व की ओर देखो नीति (Look East Policy)
    • लुक ईस्ट नीति के अंतर्गत आसियान देशों के साथ संबंधों को मजबूत किया, व्यापार और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा दिया।
    • वस्तुओं और सेवाओं में भारत-आसियान मुक्त व्यापार समझौतों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • भारत वर्ष 2005 में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन का संस्थापक सदस्य बना, जिसने एशिया-प्रशांत क्षेत्र में इसके गहन एकीकरण का संकेत दिया।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर सुधारों का प्रभाव

  • राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर: राष्ट्रीय आय की वृद्धि दर वर्ष 1990-91 में 5% से बढ़कर वर्ष 2007-08 में लगभग 9.3% और वर्ष 2023-24 में 8.2% हो गई।
  • राष्ट्रीय आय की संरचना: कृषि का हिस्सा कम हुआ, जबकि उद्योग और सेवा क्षेत्र का हिस्सा बढ़ा।
    • वर्ष 1990-91 में, विनिर्माण क्षेत्र ने सकल घरेलू उत्पाद में 26% का योगदान दिया, जो वित्त वर्ष 2024 तक सकल मूल्य वर्द्धित (GVA) का 30% हो गया।
    • सेवा क्षेत्र का योगदान वर्ष 1991-92 में 44% से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 तक 50% से अधिक हो गया।
  • बचत और निवेश: सकल घरेलू बचत वर्ष 1990-91 में 23% से बढ़कर वर्ष 2015-16 में 31% हो गई।
    • सकल घरेलू पूँजी निर्माण के रूप में मापी गई निवेश की दर वर्ष 1990-91 में 26% से बढ़कर वर्ष 2015-16 में 31% और वित्त वर्ष 2023 में 30.2% हो गई।
  • विदेशी व्यापार: निर्यात क्षेत्र राष्ट्रीय आय में महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता और विदेशी मुद्रा का प्रमुख अर्जक बन गया।
  • विदेशी मुद्रा भंडार: भुगतान संतुलन में उल्लेखनीय सुधार हुआ, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार जून 1991 में 1.1 बिलियन डॉलर से बढ़कर अगस्त 2024 में 681.69 बिलियन डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): भारत ने लॉटरी, चिट फंड और परमाणु ऊर्जा जैसे कुछ क्षेत्रों को छोड़कर अधिकांश क्षेत्रों में 100% FDI की अनुमति दी।
    • FDI प्रवाह वर्ष 1990-91 में 1.3 बिलियन डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 70.97 बिलियन डॉलर हो गया।
    • विदेशी संस्थागत निवेशकों को विनियमों के अधीन भारतीय पूँजी बाजारों में निवेश करने की अनुमति दी गई।

डॉ. मनमोहन सिंह से सीखे गए सबक

  • विनम्रता और सक्रिय रूप से सुनना: डॉ. मनमोहन सिंह की आलोचना को भी सुनने की क्षमता ने सार्थक आदान-प्रदान और विविध दृष्टिकोणों के लिए जगह बनाई।
  • ईमानदारी और नैतिक नेतृत्व: उन्होंने अपने पूरे कॅरियर में बेदाग ईमानदार वाली अपनी छवि बनाए रखी, कभी भी अपने पद का प्रयोग व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं किया।
  • व्यावहारिकता के साथ दूरदर्शी नेतृत्व: उन्होंने दीर्घकालिक दृष्टि को राजनीतिक व्यावहारिकता के साथ जोड़ा, गठबंधन राजनीति का प्रबंधन करते हुए सुधारों की शुरुआत की।
    • वित्त मंत्री के रूप में, उन्होंने वर्ष 1991 के आर्थिक सुधारों की शुरुआत की। प्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने सूचना का अधिकार अधिनियम और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे ऐतिहासिक कानून पेश किए। 
    • उन्होंने वस्तु एवं सेवा कर (GST) के लिए आधार तैयार किया, जिसे बाद में NDA सरकार ने लागू किया।
  • आलोचना के तहत अनुग्रह: उन्होंने आलोचना को शत्रुता के बजाय रचनात्मक प्रतिक्रिया के रूप में स्वीकार किया और अक्सर शासन को बेहतर बनाने के लिए इस पर विचार किया।
    • वर्ष 2012 की पैनल चर्चा में सार्वजनिक रूप से आलोचना को स्वीकार किया और इसका उपयोग वित्त मंत्रालय में बदलाव लाने के लिए किया।
  • जिज्ञासा और सहयोगात्मक दृष्टिकोण: सीखने और सहयोग करने के प्रति डॉ. मनमोहन सिंह के खुलेपन ने उनकी टीम में सर्वश्रेष्ठ बौद्धिक लोगों को स्थान दिया, जिससे नवाचार और प्रगति को बढ़ावा मिला।
    • परिवर्तनकारी नीतियों को लागू करने के लिए मोंटेक सिंह अहलूवालिया और नंदन नीलेकणी जैसे विशेषज्ञों के साथ कार्य किया।
  • विनम्रता की विरासत: डॉ. मनमोहन सिंह ने आत्म-प्रचार से परहेज किया, उनका मानना ​​था कि इतिहास उनके योगदान का मूल्यांकन करेगा।
    • उन्होंने अपने संस्मरण लिखने से इनकार कर दिया, व्यक्तिगत महिमामंडन की तुलना में सेवा पर जोर दिया।

निष्कर्ष 

मनमोहन सिंह के नेतृत्व ने भारत को एक वैश्विक आर्थिक शक्ति में बदल दिया और कल्याण और बाजार सुधारों के बीच संतुलन बनाकर शासन को फिर से परिभाषित किया। उन्हें आधुनिक भारत की आर्थिक नीतियों के निर्माता और वर्ष 1991 के आर्थिक संकट और 2008 के वित्तीय संकट जैसे चुनौतीपूर्ण समय में भारत को आगे बढ़ाने का श्रेय दिया जाता है।

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