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मनोज पांडा:16वें वित्त आयोग के नए सदस्य

Lokesh Pal April 09, 2024 05:54 159 0

संदर्भ

वित्त मंत्रालय की एक अधिसूचना में कहा गया है कि सरकार ने ‘इंस्टिट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ’ (Institute of Economic Growth) के पूर्व निदेशक मनोज पांडा को 16वें वित्त आयोग का पूर्णकालिक सदस्य नियुक्त किया है।

संबंधित तथ्य

  • पदावधि: अधिसूचना में कहा गया है कि आयोग के उपरोक्त सदस्य कार्यभार सँभालने की तारीख से रिपोर्ट जमा करने की तारीख या 31 अक्टूबर, 2025 तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहेंगे।
  • पूर्व सदस्य: पांडा ने आयोग में ‘अर्था ग्लोबल’ के कार्यकारी निदेशक निरंजन राजाध्यक्ष का स्थान लिया है, जिन्होंने “अप्रत्याशित व्यक्तिगत परिस्थितियों” का हवाला देते हुए सदस्य पद छोड़ दिया था।
  • अनुभव: पांडा के अनुसंधान क्षेत्रों में व्यापक आर्थिक रुझानों और संभावनाओं की निगरानी और विश्लेषण, विकास तथा वितरण के दृष्टिकोण से वैकल्पिक व्यापार एवं राजकोषीय नीति विकल्पों का मूल्यांकन शामिल है।
  • अन्य सदस्य 
    • आयोग के अन्य पूर्णकालिक सदस्यों में 15वें वित्त आयोग के सदस्य और पूर्व सचिव अजय नारायण झा और पूर्व विशेष सचिव एनी जॉर्ज मैथ्यू शामिल हैं।
    • भारतीय स्टेट बैंक समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष को आयोग के अंशकालिक सदस्य के रूप में नियुक्त किया गया।
  • वर्तमान में राज्यों का कर में हिस्सा 
    • वर्तमान में, भारत में 15वें वित्त योग की अनुशंसा के अनुसार केंद्र द्वारा संघीय करों का 41 प्रतिशत हिस्सा राज्यों के साथ साझा किया जाता है।

16वाँ वित्त आयोग

  • 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया हैं, जो पहले नीति आयोग के उपाध्यक्ष थे।
  • आयोग वित्त वर्ष 2027 से शुरू होकर अगले पाँच वर्षों के लिए राज्यों को केंद्र के कर राजस्व के वितरण को परिभाषित करेगा।
  • राष्ट्रपति ने एक अधिसूचना को मंजूरी दे दी है, जिसमें कहा गया है कि आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्य अपने संबंधित पद ग्रहण करने की तारीख से रिपोर्ट जमा करने तक या 31 अक्टूबर 2025 तक , जो भी पहले हो, अपना पद सँभालेंगे।

वित्त आयोग

  • वित्त आयोग संविधान के अनुच्छेद-280 के तहत हर पाँच वर्ष पर गठित किए जाने वाले संवैधानिक निकाय हैं, जो संघ और राज्यों के बीच वित्तीय संसाधनों के वितरण पर अनुशंसाएँ प्रस्तुत करते हैं। 
  • इन अनुशंसाओं में तीन मुख्य पहलू शामिल होते हैं: 
    • लंबवत हस्तांतरण 
    • केंद्रीय करों के विभाज्य पूल में राज्यों की हिस्सेदारी
    • क्षैतिज वितरण
  • संरचना 
    • अनुच्छेद-280(1) के तहत उपबंध है कि वित्त आयोग राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त्त किए जाने वाले एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा।
    • अनुच्छेद-280(2) के तहत संसद को शक्ति प्राप्त है कि वह वित्त आयोग की  निर्धारित करे।
    • संसद द्वारा वित्त आयोग के सदस्यों की अर्हताएँ निर्धारित करने हेतु वित्त आयोग (प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम,1951 पारित किया गया है। इसके अंतर्गत निम्नलिखित अर्हताएँ हैं:
    • अध्यक्ष एक ऐसा व्यक्ति हो जो लोक मामलों का ज्ञाता हो।
    • अन्य चार सदस्यों में उच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की अर्हता हो या उन्हें प्रशासन व वित्तीय मामलों का विशेष ज्ञान हो अथवा अर्थशास्त्र का विशिष्ट ज्ञान हो।
  • राज्यों के बीच संसाधनों का आवंटन एक ऐसे फॉर्मूले के आधार पर किया जाता है, जो उनकी वित्तीय आवश्यकताओं, क्षमताओं और प्रदर्शन को परिलक्षित करता है। 

वित्त आयोग  की कुछ सफल अनुशंसाएँ

  • FCs ने विगत वर्षों में कई अनुशंसाएँ की हैं, जिनका भारत में सार्वजनिक वित्त, शासन और विकास के विभिन्न पहलुओं पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है। इसके कुछ उदाहरण हैं: 
    • राजकोषीय अनुशासन, जनसंख्या नियंत्रण, वन संरक्षण, बिजली क्षेत्र में सुधार आदि को प्रोत्साहित करने के लिए राज्यों हेतु प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन की शुरुआत। 
    • प्राकृतिक आपदाओं के लिए राज्यों और स्थानीय निकायों की तैयारियों एवं प्रतिक्रिया क्षमता को बढ़ाने के लिये आपदा राहत निधियों की शुरुआत।
    • स्थानीय निकायों की वित्तीय स्वायत्तता और बुनियादी सेवाओं के वितरण में उनकी जवाबदेही को सुदृढ़ करने के लिये अनुदान की शुरुआत। 
    • स्वास्थ्य, शिक्षा, न्याय वितरण, सांख्यिकीय प्रणाली जैसे विशिष्ट क्षेत्रों के लिए अनुदान की शुरुआत की है। ताकि इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय अंतराल और इनकी आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। 
  • वित्त आयोग की अनुशंसाओं का कार्यान्वयन एवं निगरानी:  
    • FCs की अनुशंसाएँ अपनी प्रकृति में सलाहकारी होती हैं और केंद्र सरकार पर बाध्यकारी नहीं होती हैं। हालाँकि इन्हें आम तौर पर मामूली संशोधन या सुधार के साथ स्वीकार कर लिया जाता है। 
    • केंद्र सरकार राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम अनुशंसाओं की स्वीकृति को अधिसूचित करती है, जिसमें वह अवधि निर्दिष्ट होती है (आमतौर पर पाँच वर्ष) जिसके लिए वे मान्य होते हैं। 
    • केंद्र सरकार संसद में एक व्याख्यात्मक ज्ञापन भी पेश करती है, जिसमें अनुशंसाओं पर की गई कार्रवाई और किसी भी सुधार/विचलन के कारण बताए जाते हैं। 
    • अनुशंसाओं का कार्यान्वयन और निगरानी का कार्य केंद्र और राज्य स्तर पर विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों द्वारा किया जाता है, जो विषय वस्तु और हस्तांतरण से जुड़ी शर्तों पर निर्भर करता है।

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