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भारत में विनिर्माण क्षेत्र

Lokesh Pal May 13, 2025 02:38 19 0

संदर्भ

वैश्विक विनिर्माण क्षेत्र नवाचार-संचालित उच्च-तकनीकी उत्पादों की ओर अग्रसर हो रहा है, जिसके लिए भारत को प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिए अनुसंधान एवं विकास, कौशल और आपूर्ति शृंखला को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में विनिर्माण क्षेत्र का महत्त्व

  • GDP में प्रमुख योगदानकर्ता: विनिर्माण क्षेत्र भारत की GDP में ~17% का योगदान देता है।
  • भारत को वर्ष 2047 तक 3.7 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था से 30-35 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में बदलने के लिए, विनिर्माण को GDP में कम-से-कम 25% का योगदान देना होगा।
  • रोजगार सृजन का इंजन: विनिर्माण क्षेत्र में 27 मिलियन से अधिक लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कार्यरत हैं।
    • भारत को अपने बढ़ते कार्यबल को अवशोषित करने के लिए वर्ष 2030 तक वार्षिक रूप से 78.5 लाख गैर-कृषि रोजगार सृजित करने होंगे
    • औद्योगिक कौशल अंतराल को पाटने के लिए रीस्किलिंग और ITI अपग्रेडेशन (₹60,000 करोड़ की परियोजना) का उपयोग किया जा रहा है।
  • निर्यात और विदेशी मुद्रा आय को बढ़ावा: भारत का व्यापारिक निर्यात अप्रैल-दिसंबर 2024 में ₹52.35 लाख करोड़ (~US$ 602.6 बिलियन) तक पहुँच गया।
    • वित्त वर्ष 2024 में मोबाइल फोन का निर्यात दोगुना होकर ₹47,779 करोड़ हो गया।
    • फार्मास्यूटिकल, निर्यात क्षेत्र के ₹4.17 लाख करोड़ टर्नओवर का 50% है।
  • तकनीकी क्षमता और नवाचार को बढ़ाता है: PLI (उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना) और SAMARTH उद्योग भारत 4.0 जैसी योजनाएँ भारत में स्मार्ट विनिर्माण और उद्योग 4.0 (Industry 4.0) के अपनाने को प्रोत्साहित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • पेटेंट फाइलिंग (WIPO 2023) में भारत अब वैश्विक स्तर पर 6वें स्थान पर है, जिसमें मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स, मैकेनिकल और संचार तकनीक में आवेदन हैं।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित करता है: पिछले दशक में विनिर्माण क्षेत्र में FDI में ₹14.45 लाख करोड़ (US$ 165.1 बिलियन) 69% की वृद्धि देखी गई है।
    • Apple, Foxconn, Micron, Google (तमिलनाडु में पिक्सेल उत्पादन) से प्रमुख निवेश।
  • बुनियादी ढाँचे के विकास की रीढ़: बड़े पैमाने पर सार्वजनिक परियोजनाओं द्वारा स्टील और सीमेंट की खपत:
    • विनिर्माण और निर्माण क्षेत्र में स्टील की माँग: वित्त वर्ष 2024 में कुल खपत का ~68%।
  • सीमेंट: भारत का वार्षिक उत्पादन ~427 मिलियन टन; प्रति व्यक्ति खपत ~290 किलोग्राम (वैश्विक औसत 540 किलोग्राम के मुकाबले)।
  • MSME को समर्थन और समावेशी औद्योगिक विकास: विनिर्माण विशेषतः कपड़ा, व्हाइट गुड्स और ऑटोमोटिव घटकों से संबंधित हजारों MSME और स्थानीय इकाइयों को बनाए रखता है।
    • उदाहरण के लिए, व्हाइट गुड्स के लिए पीएलआई में 43% आवेदक MSME हैं, जो समावेशी औद्योगिक भागीदारी दिखाते हैं।

वैश्विक विनिर्माण में वर्तमान रुझान

  • वैश्विक विनिर्माण परिदृश्य में परिवर्तन: पिछले दशक में, उच्च आय वाले देशों ने विनिर्माण में महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी खो दी है।
    • मुख्य रूप से उच्च-मध्यम आय वाले देशों द्वारा अधिकार कर लिया गया है, जिसका नेतृत्व चीन कर रहा है।
    • भारत उन कुछ निम्न-मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में से है, जिसने अभी तक प्रमुख अभिकर्ता न होने के बावजूद अपनी हिस्सेदारी में सुधार किया है।
  • क्षेत्रीय पुनर्संरेखण और विविधीकरण: वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में निम्नलिखित कारणों से पुनर्संरेखण हो रहा है:-
    • भू-राजनीतिक तनाव (जैसे, अमेरिका-चीन व्यापार संघर्ष)
    • महामारी से प्रेरित व्यवधान
    • कंपनियों द्वारा उत्पादन को भारत, वियतनाम आदि में स्थानांतरित करने के लिए ‘चीन +1’  रणनीतियों को बढ़ावा देना।
  • तकनीकी उन्नति: वैश्विक विनिर्माण तेजी से नवाचार आधारित हो रहा है, जो निम्नलिखित पर केंद्रित है:
    • उन्नत अनुसंधान एवं विकास; स्वचालन और रोबोटिक्स; AI; हरित और जलवायु-लचीली प्रौद्योगिकियाँ।
    • उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के निर्यात बास्केट में उच्च तकनीक वाले उत्पाद प्रभावी हैं।
  • पर्यावरण और विनियामक दबाव: वैश्विक विनिर्माण, जलवायु लक्ष्यों और उत्सर्जन में कमी के आदेशों के अनुकूल हो रहा है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा, चक्रीय अर्थव्यवस्था और हरित इस्पात की ओर तीव्र परिवर्तन हो रहा है।
    • उदाहरण के लिए, भारत के सीमेंट और इस्पात उद्योगों को कार्बन-तटस्थ उत्पादन की ओर लाया जा रहा है।
  • व्यापार संरक्षणवाद: आक्रामक औद्योगिक और व्यापार नीतियों में वृद्धि: बढ़े हुए टैरिफ, स्थानीयकरण मानदंड और निर्यात प्रतिबंध।
    • विदेशी बाजारों में भारत की निर्यात माँग और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित करना।
  • वैश्विक मंदी और माँग में बदलाव: वैश्विक स्तर पर, विशेष रूप से विकसित बाजारों में उपभोग वस्तुओं से सेवाओं की ओर स्थानांतरित हो रहा है।
    • वर्ष 2024 की तीसरी तिमाही में विनिर्माण उत्पादन में केवल 0.4% की वृद्धि हुई, जो कमजोर वैश्विक माँग का संकेत है।
  • भारत के लिए विकास के अवसर: आईएमएफ के अनुसार, विनिर्माण उत्पादन तेजी से उभरते बाजारों, खासकर भारत और चीन की ओर बढ़ रहा है।
  • वैश्विक विनिर्माण में भारत की हिस्सेदारी: भारत की भागीदारी 2.8% तथा चीन की भागीदारी 28.8% है जो विकास की अपार संभावनाओं को दर्शाता है।

भारत के विनिर्माण क्षेत्र में चुनौतियाँ

  • प्रति व्यक्ति मूल्य संवर्द्धन और उत्पादकता में कमी: यह प्रति व्यक्ति उत्पादन में अक्षमता और कम प्रदर्शन को दर्शाता है।
  • कमजोर वैश्विक हिस्सेदारी और प्रतिस्पर्द्धात्मकता: भारत वैश्विक विनिर्माण उत्पादन में केवल 2.8% का योगदान देता है, जो चीन के 28.8% से बहुत पीछे है।
    • जनसांख्यिकीय लाभ के बावजूद, भारत वैश्विक स्तर पर एक छोटा अभिकर्ता बना हुआ है।
  • कौशल में कमी और पुरानी प्रशिक्षण प्रणाली: सर्वेक्षण कौशल की कमी को उजागर करते हैं: ITI स्नातकों में एआई, रोबोटिक्स और डिजिटल तकनीक उद्योगों के लिए तत्परता की कमी है।
    • कई ITI को सुरक्षा या बुनियादी ढाँचे के मानदंडों को पूरा किए बिना ही मान्यता दे दी गई।
  • कम अनुसंधान निवेश और नवाचार क्षमता: भारत अनुसंधान पर GDP का केवल 0.65% खर्च करता है, जबकि अमेरिका जैसे देश 2.5% से अधिक खर्च करते हैं।
    • विनिर्माण उत्पादकता नवाचार से जुड़ी है: $159K (अमेरिका), $103K (जर्मनी), $21K (चीन) – भारत पीछे है।
  • बुनियादी ढाँचे संबंधी बाधाएँ और रसद लागत: नीतिगत समर्थन के बावजूद, रसद और बुनियादी ढाँचे की कमी उत्पादन लागत को बढ़ाती है।
    • वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधान और उच्च रसद व्यय निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता में बाधा डालते हैं।
  • प्रमुख क्षेत्रों में आयात निर्भरता: आयातित पूँजीगत वस्तुओं और पेट्रोकेमिकल मध्यवर्ती पर उच्च निर्भरता (उदाहरण के लिए, पेट्रोकेमिकल मध्यवर्ती का 45% आयात किया जाता है) है।
    • घरेलू विनिर्माण में तकनीकी गहराई की कमी को दर्शाता है।
  • खंडित MSME पारिस्थितिकी तंत्र और सीमित मूल्य संवर्द्धन: MSME प्रभावी  हैं, लेकिन उनके पास आधुनिक तकनीक और ऋण तक पहुँच की कमी है।
    • उदाहरण: कपड़ा क्षेत्र कपास पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करने के कारण पिछड़ जाता है, जबकि वैश्विक बाजार मानव निर्मित फाइबर (Man-Made Fibres- MMF) की ओर स्थानांतरित हो जाता है।

भारत में तकनीकी शिक्षा और कौशल से संबंधित मुद्दे

  • उद्योग की आवश्यकताओं के साथ कौशल की कमी होना: मौजूदा तकनीकी शिक्षा अक्सर आधुनिक उद्योगों की आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहती है, खासकर AI, डेटा एनालिसिस, रोबोटिक्स और हरित प्रौद्योगिकियों में।
    • पारंपरिक ITI प्रशिक्षण स्मार्ट अर्थव्यवस्था की माँगों के अनुरूप नहीं है।
  • प्लेसमेंट में कमी: ITI स्नातकों का केवल एक छोटा हिस्सा ही उच्च तकनीक या डिजिटल क्षेत्रों में रोजगार पाता है।
    • यह खराब उद्योग संबंध और पुराने पाठ्यक्रम डिजाइन दोनों को दर्शाता है।
  • कमजोर बुनियादी ढाँचा और निगरानी: कई निजी ITI को सुरक्षा और निर्माण मानकों को पूरा किए बिना ही मान्यता दे दी गई।
    • ऑडिट में निरीक्षण में कमियाँ पाई गईं- संस्थान बुनियादी प्रयोगशालाओं या बुनियादी ढाँचे के बिना कार्य कर रहे थे।
  • सैद्धांतिक शिक्षा पर अत्यधिक जोर: इंजीनियरिंग कॉलेज अकादमिक स्थिति को प्राथमिकता देते हैं, जबकि व्यावहारिक कौशल या नवाचार पर सीमित ध्यान दिया जाता है।
    • छात्रों में प्रायः रचनात्मक समस्या-समाधान और वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों के संपर्क की कमी होती है।
  • सीमित अनुसंधान और उन्नत प्रयोगशालाएँ: अधिकांश तकनीकी संस्थान अत्याधुनिक टूल रूम, परीक्षण प्रयोगशालाएँ या उत्पाद विकास सुविधाएँ प्रदान नहीं करते हैं।
    • इससे छात्रों की नवाचार और उद्योग-स्तर के प्रोटोटाइप में संलग्न होने की क्षमता सीमित हो जाती है।
  • कोर इंजीनियरिंग पर अपर्याप्त ध्यान: आईटी और एआई पर अत्यधिक ध्यान ने मैकेनिकल, सिविल, इलेक्ट्रिकल और केमिकल इंजीनियरिंग जैसी आधारभूत धाराओं को पीछे छोड़ दिया है।
    • कोर विषयों की उपेक्षा के कारण उपकरण और मशीन निर्माण में राष्ट्रीय क्षमता कमजोर बनी हुई है।
  • पाठ्यक्रम डिजाइन में निजी क्षेत्र की सीमित भूमिका: हाल ही में, पाठ्यक्रम डिजाइन और प्रशिक्षण मानक न्यूनतम उद्योग सहयोग के साथ सरकार द्वारा संचालित थे।
    • नई आईटीआई अपस्केलिंग परियोजना में 10% निजी क्षेत्र के वित्तपोषण और प्रशिक्षण मॉड्यूल के सह-निर्माण का प्रस्ताव है।

नीतिगत ढाँचा और सरकारी पहल

  • मेक इन इंडिया (2014): घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने और वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में भारत की स्थिति को बढ़ाने के लिए शुरू किया गया।
    • क्षेत्रीय समर्थन के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और ऑटोमोबाइल क्षेत्रों में वृद्धि को प्रोत्साहित किया गया।
  • उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (Production-Linked Incentive- PLI) योजना: इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल और व्हाइट गुड्स सहित 14 क्षेत्रों में शुरू की गई।
    • घरेलू विनिर्माण को बढ़ाने और आयात पर निर्भरता को कम करने का लक्ष्य।
  • राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (2011): GDP में विनिर्माण हिस्सेदारी को 25% तक बढ़ाने तथा  100 मिलियन नौकरियाँ सृजित करने का लक्ष्य।
    • राष्ट्रीय निवेश और विनिर्माण क्षेत्र (National Investment and Manufacturing Zones- NIMZ) की स्थापना और बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा देता है।
  • राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन (बजट 2025-2026): औद्योगिक क्लस्टर, हरित प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र बनाने और MSME को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
    • स्वच्छ तकनीक, डिजिटल विनिर्माण उपकरण और स्थानीय आपूर्ति शृंखलाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करता है।
  • समर्थ उद्योग भारत 4.0 (2017): समर्थ केंद्रों की स्थापना के माध्यम से स्मार्ट उन्नत विनिर्माण को बढ़ावा देता है।
    • SME और पूँजीगत वस्तु क्षेत्र में उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों (IoT, रोबोटिक्स, AI) को सुविधाजनक बनाता है।
  • आईटीआई अपस्केलिंग और स्किलिंग रिफॉर्म: 1,000 औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (आईटीआई) को अपग्रेड करने के लिए 60,000 करोड़ रुपये मंजूर किए गए।
    • पाँच वर्षों में 20 लाख युवाओं को कुशल बनाया जाएगा।
    • पाठ्यक्रम डिजाइन करने और संकाय को प्रशिक्षित करने में निजी क्षेत्र की भागीदारी शामिल है।
  • विशिष्ट उद्योगों के लिए नीति समर्थन: राष्ट्रीय इस्पात नीति तथा इस्पात स्क्रैप रीसाइक्लिंग नीति हरित और सतत इस्पात विनिर्माण को बढ़ावा देती है।
    • टेक्सटाइल PLI योजना तथा तकनीकी वस्त्रों के लिए समर्थन का उद्देश्य वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में सुधार करना और आयात निर्भरता को कम करना है।
  • अनुसंधान और विकास प्रोत्साहन: सरकार अनुसंधान संबंधी व्यय को GDP के 0.65% से बढ़ाकर 2% करना चाहती है।
    • IPR सरलीकरण (पेटेंट नियम 2024) और प्रौद्योगिकी नवाचार पोर्टल के माध्यम से प्रोत्साहन।
  • पूँजीगत वस्तु प्रतिस्पर्द्धात्मकता योजना – चरण II: प्रौद्योगिकी अधिग्रहण, उत्कृष्टता केंद्र स्थापित करने और इंजीनियरिंग सहायता बुनियादी ढाँचे पर ध्यान केंद्रित करती है।
    • आयातित मशीनरी पर निर्भरता से निपटता है।

भारत के विनिर्माण क्षेत्र के लिए आगे की राह

  • अनुसंधान एवं विकास निवेश में वृद्धि करना तथा नवाचार को बढ़ावा देना: नवाचार और तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान एवं विकास व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 0.65% से बढ़ाकर 2% करना।
    • विनिर्माण क्लस्टरों तथा तकनीकी संस्थानों में उन्नत प्रयोगशालाएँ, टूल रूम और डिजाइन-परीक्षण केंद्र स्थापित करना।
  • तकनीकी शिक्षा और व्यावहारिक कौशल को मजबूत करना: व्यावहारिक अनुप्रयोग, समस्या-समाधान और उद्योग इंटरफेस पर ध्यान केंद्रित करने के लिए इंजीनियरिंग और आईटीआई पाठ्यक्रम में सुधार करना।
    • व्यावहारिक प्रशिक्षण को 50% वेटेज आवंटित करना और तकनीकी संस्थानों में असेंबली लाइन, टूल रूम तथा उत्पाद विकास प्रयोगशालाएँ विकसित करना।
  • मजबूत कोर इंजीनियरिंग क्षमताएँ बनाना: मैकेनिकल, सिविल, इलेक्ट्रिकल, केमिकल और मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग जैसे मूलभूत विषयों को सुदृढ़ करना।
    • पूँजीगत वस्तुओं में आयात निर्भरता को कम करने के लिए घरेलू उपकरण और मशीनरी उत्पादन पर ध्यान देना।
  • MSME और स्थानीय मूल्य शृंखलाओं को बढ़ावा देना: MSME के बीच औपचारिकता, वित्त तक पहुँच और प्रौद्योगिकी अपनाने को प्रोत्साहित करना।
    • PLI योजनाओं और घटक विनिर्माण, विशेष रूप से वस्त्र और इलेक्ट्रॉनिक्स में MSME की भागीदारी का समर्थन करना।
  • राज्य-विशिष्ट विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना: डिजाइन, परीक्षण और प्रमाणन सुविधाओं के साथ ‘प्लग-एंड-प्ले’ औद्योगिक पार्क स्थापित करना।
    • ‘इन-हाउस प्रोटोटाइप’ विकास और अकादमिक अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के साथ सहयोग को प्रोत्साहित करना।
  • बुनियादी ढाँचे और रसद बाधाओं को कम करना: राष्ट्रीय रसद नीति के तहत रसद दक्षता में सुधार करना।
    • विनिर्माण लागत को कम करने के लिए आपूर्ति शृंखलाओं, भंडारण, बिजली और परिवहन बुनियादी ढाँचे को मजबूत करना।
  • सतत् और हरित विनिर्माण को प्रोत्साहित करना: हरित इस्पात और सीमेंट उत्पादन, स्क्रैप रीसाइक्लिंग तथा ऊर्जा-कुशल प्रक्रियाओं को बढ़ावा देना।
    • स्टील स्क्रैप रीसाइक्लिंग नीति जैसी नीतियों द्वारा समर्थित जलवायु-अनुकूल विनिर्माण के लिए वैश्विक मानकों के साथ संरेखित करना।

निष्कर्ष

भारत का विनिर्माण क्षेत्र, जो GDP और रोजगार का एक महत्त्वपूर्ण कारक है, के वित्त वर्ष 2026 तक 1 ट्रिलियन डॉलर के मूल्य तक पहुँचने की अपार संभावनाएँ हैं, जिसमें उन्नत अनुसंधान, कौशल विकास और मजबूत नीति समर्थन शामिल है। कम उत्पादकता, कौशल की कमी और बुनियादी ढाँचे के अंतराल जैसी चुनौतियों का समाधान करते हुए नवाचार और स्थिरता को अपनाकर, भारत अपने वैश्विक विनिर्माण क्षेत्र तथा आर्थिक लचीलेपन को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है।

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