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भारत में मातृ स्वास्थ्य

Lokesh Pal May 28, 2025 02:41 70 0

संदर्भ 

भारत में प्रजनन आयु वाली 57% से अधिक महिलाएँ अज्ञात एनीमिया से पीड़ित हैं, जो मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करता है।

मातृ स्वास्थ्य (Maternal health) के बारे में 

  • मातृ स्वास्थ्य का तात्पर्य गर्भावस्था, प्रसव और प्रसवोत्तर अवधि के दौरान महिलाओं के स्वास्थ्य से है।
    • प्रत्येक चरण में एक सकारात्मकता होनी चाहिए, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि महिलाएँ अपने बच्चे के स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए अपनी पूरी क्षमता का प्रयोग कर सकें।
  • मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने और सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने के लिए मातृ कल्याण सुनिश्चित करना आवश्यक है, विशेष रूप से SDG 3.1: वर्ष 2030 तक मातृ मृत्यु दर को प्रति 1,00,000 जीवित जन्मे बच्चों पर 70 से कम करना।

एनीमिया के बारे में

  • एनीमिया एक ऐसी स्थिति है, जिसमें हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है, जिससे रक्त की ऑक्सीजन को शरीर के अंगों तक ले जाने की क्षमता कम हो जाती है।
  • यह मुख्य रूप से आयरन की कमी के कारण होता है, लेकिन फाॅलेट, विटामिन B12 और विटामिन A की कमी के कारण भी हो सकता है।
  • सुभेद्य समूह: शिशु, 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, किशोरियाँ, गर्भवती और प्रसवोत्तर महिलाएँ एनीमिया के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील होती हैं।
    • WHO के अनुमान (2019) के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 500 मिलियन महिलाएँ (15-49 वर्ष की आयु) और 5 वर्ष से कम उम्र के 269 मिलियन बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं।
    • विश्व भर में लगभग 30% सामान्य महिलाएँ और 37% गर्भवती महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव: एनीमिया बच्चों में संज्ञानात्मक एवं शारीरिक विकास को बाधित करता है, वयस्कों में कार्य क्षमता को कम करता है और गर्भावस्था के दौरान वजन में कमी और समय से पहले प्रसव जैसे जोखिम बढ़ाता है।

भारत में मातृ स्वास्थ्य की स्थिति

  • नमूना पंजीकरण प्रणाली (Sample Registration System-SRS) के अनुसार, मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Ratio-MMR) 130 (वर्ष 2014-16) से घटकर 93 प्रति 1,00,000 जीवित जन्मे बच्चों (2019-21) हो गई है, जो 5 वर्षों में 29% की गिरावट है।
  • भारत ने वर्ष 2020 से पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 के <100 MMR के लक्ष्य को हासिल कर लिया है।
  • संयुक्त राष्ट्र मातृ मृत्यु अनुमान अंतर-एजेंसी समूह (Maternal Mortality Estimation Inter agency Group- MMEIG), 2025 के अनुसार:-
    • भारत का MMR वर्ष 1990 और वर्ष 2023 के बीच 86% घट गया, जबकि वैश्विक औसत कमी 48% है।
    • केवल वर्ष 2020 से वर्ष 2023 तक, भारत ने अपने MMR में 23 अंकों की कमी की, जो हाल ही में हुए बड़े सुधारों को दर्शाता है।

राज्यवार MMR संबंधी आँकड़े

निम्न MMR वाले राज्य (SDG लक्ष्य प्राप्त) केरल (20), महाराष्ट्र (38), तेलंगाना (45), आंध्र प्रदेश (46), तमिलनाडु (49), झारखंड (51), गुजरात (53), कर्नाटक (63)
उच्च MMR वाले राज्य मध्य प्रदेश (175), असम (167), उत्तर प्रदेश (151), ओडिशा (135), छत्तीसगढ़ (132), पश्चिम बंगाल (109), और हरियाणा (106)

प्रसवपूर्व एवं संस्थागत देखभाल (NFHS-5, 2019-21)

संकेतक

स्थिति

प्रथम तिमाही में ANC 59% (NFHS-4) से बढ़कर 70% (NFHS-5) हुआ।
चार या अधिक ANC विजिट 51% से 58% तक सुधार हुआ।
संस्थागत जन्म 79% से बढ़कर 88.6% हुआ; केरल, गोवा, तमिलनाडु में 100%
48 घंटे के भीतर प्रसवोत्तर देखभाल 78% तक सुधार हुआ।

भारत में मातृ मृत्यु दर में कमी के कारण

  • वित्तीय प्रोत्साहनों से संस्थागत प्रसव को बढ़ावा मिलता है: जननी सुरक्षा योजना (JSY) गर्भवती महिलाओं को नकद हस्तांतरण की पेशकश करके सुरक्षित संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देती है।
    • इस योजना के तहत प्रत्येक वर्ष 1 करोड़ से अधिक महिलाओं को लाभ मिलता है। वित्त वर्ष 2023-24 में इसका व्यय बढ़कर ₹1814.86 करोड़ हो गया था।
  • निःशुल्क मातृ देखभाल से आउट-ऑफ-पाकेट भार कम होता है: जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK) निःशुल्क प्रसव, दवाएँ, निदान और परिवहन सुनिश्चित करता है।
    • अप्रैल-दिसंबर 2024 के बीच 1.36 करोड़ महिलाओं ने जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK) का लाभ उठाया था।
  • उच्च जोखिम वाली गर्भवती महिलाओं को समय पर सुविधाएँ मिलने से उनके जीवन का खतरा कम होता है: PMSMA मासिक ANC जाँच की सुविधा देता है और उच्च जोखिम वाली गर्भावस्थाओं को डिजिटल रूप से ट्रैक करता है।
    • दिसंबर 2024 तक ई-PMSMA पोर्टल द्वारा समर्थित 78.27 लाख उच्च जोखिम वाली गर्भावस्थाओं की पहचान की गई।
  • गुणवत्ता मानकों से नैदानिक ​​परिणामों में सुधार: लक्ष्य (LaQshya) एवं सुमन (SUMAN) सम्मानजनक मातृत्व देखभाल एवं प्रसव कक्ष गुणवत्ता प्रमाणन को बढ़ावा देते हैं।
    • 1110 प्रसव कक्ष और 808 मातृत्व ओटी राष्ट्रीय स्तर पर प्रमाणित हैं; सुमन के तहत 47,700+ सुविधाएँ प्रदान की जा रही हैं।
  • गंभीर देखभाल विस्तार से मातृ मृत्यु में कमी आई: सरकार ने जटिलताओं के प्रबंधन के लिए प्रसूति ICUs/HDUs और MCH विंग स्थापित किए हैं।
    • भारत में 42,000+ बिस्तरों के साथ 400+ प्रसूति ICUs/HDUs और 650+ MCH विंग चालू हैं।
  • कुशल कार्यबल आपातकालीन देखभाल को मजबूत करता है: MBBS डॉक्टरों एवं नर्सों के प्रशिक्षण से ग्रामीण एवं रेफरल सुविधाओं में क्षमता बढ़ती है।
    • देश भर में 2,518 EmOC-प्रशिक्षित डॉक्टर, 2,683 LSAS-प्रशिक्षित और 3.3 लाख SBA तैनात हैं।
  • वास्तविक समय की निगरानी से त्वरित प्रतिक्रिया संभव होती है:  मातृ, प्रसवकालीन, बाल मृत्यु निगरानी और समीक्षा (Maternal, Perinatal, Child Death Surveillance and Review-MPCDSR) और प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य (Reproductive and child health-RCH) पोर्टल जैसे डिजिटल उपकरण मातृ मृत्यु और सेवा वितरण की निगरानी करते हैं।
    • मातृ मृत्यु निगरानी समीक्षा (Maternal Death Surveillance Review-MDSR) को संस्थागत बनाया गया है, जिसमें पोर्टल-आधारित MPCDSR ने मैनुअल रिपोर्टिंग सिस्टम की जगह ले ली है।

भारत में मातृ स्वास्थ्य में सुधार के लिए सरकारी पहल

नीतिगत रूपरेखा और राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ

  • SDG 3.1 लक्ष्य: वर्ष 2030 तक मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) को प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर ≤70 तक कम करना।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (NHP), 2017 का लक्ष्य: वर्ष 2020 तक MMR <100 के लक्ष्य को प्राप्त करना। भारत ने इसे 93 MMR (SRS 2019-21) के साथ हासिल कर लिया है।
  • कार्यान्वयन रणनीति: केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) प्रजनन, मातृ, नवजात, बाल, किशोर स्वास्थ्य और पोषण (Reproductive, Maternal, Newborn, Child, Adolescent Health and Nutrition-RMNCAH+N) दृष्टिकोण के माध्यम से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों का समर्थन करता है।

NHM के अंतर्गत प्रमुख कार्यक्रम

  • जननी सुरक्षा योजना (JSY) (2005): SC/ST/BPL परिवारों की महिलाओं के लिए संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देता है।
    • मातृ एवं नवजात मृत्यु दर को कम करने के लिए नकद प्रोत्साहन प्रदान करता है।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY) (वर्ष 2017, वर्ष 2022 में PMMVY 2.0 के रूप में अपडेट किया गया)
    • पहले जीवित बच्चे के लिए ₹5,000 का मातृत्व लाभ; बालिकाओं के प्रति सकारात्मक व्यवहार को बढ़ावा देने के लिए दूसरे बच्चे के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन।
    • पात्रता: 01 जनवरी, 2017 के बाद पहले बच्चे के लिए गर्भवती महिलाएँ।
  • जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK) (2011): गर्भवती महिलाओं और बीमार शिशुओं के लिए आउट-ऑफ-पाकेट व्यय को समाप्त करता है।
    • सार्वजनिक सुविधाओं में निःशुल्क प्रसव (C-सेक्शन सहित), परिवहन, निदान, दवाइयाँ, उपभोग्य वस्तुएँ, आहार और रक्त शामिल करता है।
  • सुरक्षित मातृत्व आश्वासन (SUMAN) (2019): सेवा से इनकार के लिए जीरो टाॅलरेंस के साथ निःशुल्क, सम्मानजनक, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा सुनिश्चित करता है। 
    • इसका उद्देश्य रोकी जा सकने वाली मातृ एवं नवजात मृत्यु को समाप्त करना है।
  • प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA) (2016): प्रत्येक महीने की 9 तारीख को निःशुल्क प्रसवपूर्व देखभाल (ANC) प्रदान करता है।
    • विस्तारित PMSMA (ई-PMSMA): अतिरिक्त ANC विजिट के लिए वित्तीय प्रोत्साहन के साथ उच्च जोखिम वाली गर्भावस्थाओं (HRP) को ट्रैक करता है; 5.9 करोड़ से अधिक महिलाओं की जाँच की गई। (21 मार्च, 2025 तक)
  • लक्ष्य (LaQshya) (2017): प्रसव कक्षों और प्रसूति ऑपरेशन थियेटरों में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करता है।
    • प्रसव एवं प्रसवोत्तर अवधि के दौरान सम्मानजनक एवं गुणवत्तापूर्ण देखभाल सुनिश्चित करता है।
  • एनीमिया मुक्त भारत (AMB) [पोषण (POSHAN) अभियान के तहत]: गर्भवती महिलाओं और किशोरों में एनीमिया की समस्या का परीक्षण, उपचार और पोषण रहित हस्तक्षेप के माध्यम से समाधान किया जा रहा है।
    • इसमें व्यापक संचार रणनीतियाँ शामिल हैं।

बुनियादी ढाँचे को मजबूत बनाना

  • व्यापक गर्भपात देखभाल (Comprehensive Abortion Care-CAC): प्रशिक्षण, दवा आपूर्ति, उपकरण और IEC के माध्यम से सुदृढ़ किया गया।
  • डिलीवरी पॉइंट: RMNCAH+N सेवाओं के लिए बुनियादी ढाँचे, उपकरण और प्रशिक्षित जनशक्ति के साथ उन्नत किया गया है।
  • फर्स्ट रेफरल यूनिट्स (FRUs): इन इकाइयों को जनशक्ति, रक्त भंडारण और रेफरल लिंकेज के साथ कार्यात्मक किया गया है।
  • मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य (Maternal and Child Health-MCH) विंग: देखभाल की गुणवत्ता में सुधार के लिए उच्च-मामले वाली सुविधाओं पर इसकी स्थापना की गई।
  • प्रसूति ICU/HDU: जटिल गर्भधारण के प्रबंधन के लिए तृतीयक देखभाल सुविधाओं पर परिचालन किया गया।

मातृ स्वास्थ्य देखभाल में सफलता की कहानियाँ तथा नवाचार

कई राज्यों ने अनूठी पहल की है, जिससे मातृ मृत्यु दर को कम करने में महत्त्वपूर्ण योगदान मिला है, जिनमें शामिल हैं:-

  • मध्य प्रदेश का ‘दस्तक अभियान’ (Dastak Abhiyan): एक समुदाय संचालित अभियान, जो मातृ स्वास्थ्य जोखिमों का शीघ्र पता लगाने और समय पर चिकित्सा हस्तक्षेप सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
  • तमिलनाडु का आपातकालीन प्रसूति देखभाल मॉडल: एक मजबूत रेफरल प्रणाली, जो सुनिश्चित करती है कि गर्भवती महिलाओं को समय पर आपातकालीन देखभाल मिले, जिससे मातृ जटिलताओं में कमी आए।

WOMAN-2 ट्रायल के बारे में

  • WOMAN-2 ट्रायल एक बड़ा, अंतरराष्ट्रीय, यादृच्छिक, प्लेसीबो-नियंत्रित परीक्षण था, जिसमें मध्यम या गंभीर एनीमिया से पीड़ित महिलाओं में प्रसवोत्तर रक्तस्राव पर ट्रैनेक्सैमिक एसिड (TXA) के प्रभावों की जाँच की गई थी।
  • इस परीक्षण का प्राथमिक परिणाम प्राथमिक प्रसवोत्तर रक्तस्राव (PPH) के नैदानिक ​​निदान वाली महिलाओं का अनुपात था।

प्राथमिक प्रसवोत्तर रक्तस्राव (Primary Postpartum Hemorrhage-PPH) के बारे में 

  • यह प्रसव के बाद होने वाला भारी रक्तस्राव है, जो प्रसव के 24 घंटों के भीतर होता है, जिसे योनि से प्रसव के बाद 500 mL या सिजेरियन सेक्शन के बाद 1000 mL से अधिक रक्त की हानि के रूप में परिभाषित किया जाता है।
  • इसका सबसे सामान्य कारण गर्भाशय की कमजोरी (गर्भाशय का ठीक से सिकुड़ने में विफलता) है, लेकिन अन्य कारणों में प्लेसेंटा या थक्के का रुक जाना, जननांग पथ में चोट लगना और रक्त के थक्के जमने संबंधी विकार शामिल हैं।

भारत में मातृ स्वास्थ्य से जुड़ी प्रमुख स्वास्थ्य चुनौतियाँ

  • गर्भवती महिलाओं में एनीमिया का उच्च बोझ: NFHS-5 (2019-21) की रिपोर्ट बताती है कि 52.2% गर्भवती महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं।
    • इसके कारणों में आयरन की कमी, फाॅलेट और B12 की कमी, हुकवर्म संक्रमण और कम आहार विविधता शामिल हैं।
    • सरकारी दस्तावेजों में उद्धृत WOMAN-2 ट्रायल में चेतावनी दी गई है कि एनीमिया से प्रसवोत्तर रक्तस्राव (PPH) का जोखिम 7 गुना बढ़ जाता है और मातृ मृत्यु दर में भी उल्लेखनीय वृद्धि होती है।
  • मातृ मृत्यु दर में क्षेत्रीय असमानताएँ: नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS), 2018-20 के अनुसार, राज्यों में MMR में बहुत भिन्नता है:-
    • असम (195) और मध्य प्रदेश (173) में MMR सबसे अधिक है, जबकि केरल (19) और महाराष्ट्र (33) में MMR सबसे अधिक है।
    • बीमारू (BIMARU) राज्य (बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश) लगातार राष्ट्रीय औसत (97) से ऊपर MMR की रिपोर्ट करते हैं, जो खराब स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे एवं पहुँच को दर्शाता है।
  • अपर्याप्त प्रसवोत्तर देखभाल (PNC): हालाँकि प्रसव पूर्व देखभाल (ANC) में सुधार हुआ है, प्रसवोत्तर देखभाल अक्सर उपेक्षित रहती है, बावजूद इसके कि प्रसव के बाद 1/3 मातृ मृत्यु होती है।
    • सरकार ने इस अंतर को दूर करने और प्रसव के बाद मातृ मृत्यु को कम करने के लिए वर्ष 2023 में ‘प्रसवोत्तर देखभाल के अनुकूलन पर योजना’ शुरू की, जिसमें PNC गतिविधियों को राज्य PIPs (2024-26) में एकीकृत किया गया।
  • उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था (High Risk Pregnancies-HRPs) चिंता का विषय बनी हुई है: वर्ष 2016 में PMSMA के शुभारंभ के बाद से सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 78.27 लाख से अधिक HRPs की पहचान की गई है।
    • पहचान के बावजूद, HRPs को दीर्घकालिक ट्रैकिंग और फॉलो-अप की आवश्यकता होती है, जो कई जिलों में असंगत है, जिससे मातृ परिणाम प्रभावित होते हैं।
  • उच्च भार वाले क्षेत्रों में अपर्याप्त ‘क्रिटिकल केयर इन्फ्रास्ट्रक्चर’: हालाँकि 400 से अधिक प्रसूति ICUs/HDUs स्वीकृत किए गए हैं, लेकिन बीमारू एवं दूरदराज के क्षेत्रों में अंतराल बना हुआ है, जहाँ रेफरल सिस्टम कमजोर हैं और परिवहन में देरी होती है।
    • उदाहरण के लिए, आपातकालीन प्रसूति देखभाल की कमी के कारण अक्सर मातृ मृत्यु गंभीर अवस्था में देरी से रेफरल के कारण होती है, विशेषकर ग्रामीण उत्तरी राज्यों में।
  • असुरक्षित गर्भपात का लगातार बोझ: भारत में 8 से 20% मातृ मृत्यु असुरक्षित गर्भपात के कारण होती है।
    • व्यापक गर्भपात देखभाल (Comprehensive Abortion Care-CAC) में 26,000 से अधिक चिकित्सा अधिकारियों को प्रशिक्षित करने के बावजूद, कई ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक पहुँच सीमित है।
  • मानव संसाधन की कमी और अत्यधिक बोझिल आशा प्रणाली: हालाँकि 3.3 लाख से अधिक स्टाफ नर्स, LHVs और ANMs को कुशल जन्म परिचारिका (Skilled Birth Attendants-SBAs) के रूप में प्रशिक्षित किया गया है, लेकिन ग्रामीण अस्पतालों में C-सेक्शन और एनेस्थीसिया (LSAS) के लिए विशेषज्ञों की उपलब्धता चिंता का विषय बनी हुई है।
    • सामुदायिक स्तर पर मातृ आउटरीच के लिए महत्त्वपूर्ण आशा कार्यबल पर कई भूमिकाओं (JSY, PNC विजिट, HRP ट्रैकिंग) का बोझ है, जिससे मातृत्त्व देखभाल की गुणवत्ता प्रभावित होती है।

अन्य देशों के सफल मातृ स्वास्थ्य मॉडल

  • श्रीलंका: मजबूत प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और मिडवाइफरी 
    • देश की व्यापक मिडवाइफ प्रणाली, घर-द्वार पर देखभाल और समय पर रेफरल प्रदान करती है, जो भारत की मिडवाइफ प्रणाली के समान है, लेकिन अधिक परिपक्व अवस्था में है।
  • थाईलैंड: सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज और रेफरल नेटवर्क
    • थाईलैंड में मजबूत वित्तीय सुरक्षा के साथ सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज ने मातृ परिणामों में सुधार किया।
    • इसने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों को आपातकालीन प्रसूति देखभाल के साथ उच्च-स्तरीय अस्पतालों से जोड़ने वाली एक मजबूत रेफरल प्रणाली विकसित की।
  • क्यूबा: एकीकृत स्वास्थ्य सेवा एवं शिक्षा
    • क्यूबा की व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली मातृ स्वास्थ्य को सामुदायिक शिक्षा एवं पोषण कार्यक्रमों के साथ एकीकृत करती है।
    • उच्च साक्षरता और जागरूकता के साथ-साथ निःशुल्क स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच के कारण वैश्विक स्तर पर सबसे कम MMR में से एक है।
  • नीदरलैंड: मिडवाइफ नेतृत्व वाली देखभाल की निरंतरता
    • नीदरलैंड कम जोखिम वाली गर्भावस्थाओं के लिए मिडवाइफ के नेतृत्व में देखभाल प्रदान करता है तथा उच्च जोखिम वाले मामलों के लिए प्रसूति विशेषज्ञों को एकीकृत करता है, जिससे व्यक्तिगत और निरंतर देखभाल सुनिश्चित होती है।
  • रवांडा: सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता नेटवर्क
    • मातृ मृत्यु दर को कम करने में रवांडा की सफलता का श्रेय ANC, प्रसव और PNC सहायता के लिए एक मजबूत सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (CHW) कार्यक्रम को दिया जाता है। 
    • CHW स्वास्थ्य केंद्रों में परिवहन और समय पर रेफरल की सुविधा भी प्रदान करते हैं।

भारत में मातृ स्वास्थ्य में प्रौद्योगिकी और नवाचार की भूमिका

  • डिजिटल ट्रैकिंग और रियल-टाइम मॉनिटरिंग: मातृ प्रसवकालीन शिशु मृत्यु निगरानी और प्रतिक्रिया (MPCDSR) प्रणाली जैसी तकनीकें मातृ मृत्यु की वास्तविक समय, पोर्टल-आधारित रिपोर्टिंग और विश्लेषण को सक्षम बनाती हैं।
    • प्रजनन और बाल स्वास्थ्य (RCH) पोर्टल गर्भवती महिलाओं को नाम से ट्रैक करता है, जिससे प्रसवपूर्व देखभाल, संस्थागत प्रसव और प्रसवोत्तर अनुवर्ती कार्रवाई की निरंतरता सुनिश्चित होती है।
  • उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था की पहचान एवं अनुवर्ती कार्रवाई: प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA) उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था (HRPs) की पहचान करने और उसे ट्रैक करने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म को एकीकृत करता है।
    • ई-PMSMA प्रणाली स्वास्थ्य कर्मियों और विशेषज्ञों को सुरक्षित प्रसव तक HRPs की निगरानी करने में सक्षम बनाती है, जिसमें अनुपालन को प्रोत्साहित करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन भी शामिल हैं।
  • टेलीमेडिसिन और दूरस्थ परामर्श: टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म दूरदराज और वंचित क्षेत्रों में गर्भवती महिलाओं को बिना यात्रा किए विशेषज्ञ परामर्श तक पहुँच प्रदान करते हैं।
    • टेलीकंसल्टेशन आपातकालीन स्थितियों के दौरान निर्णय लेने में फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कर्मियों की भी सहायता करते हैं।
  • प्रशिक्षण सिमुलेशन और कौशल प्रयोगशालाएँ: पुतलों (Mannequins) और आभासी वास्तविकता के साथ सिमुलेशन-आधारित प्रशिक्षण प्रयोगशालाओं का उपयोग स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को आपातकालीन प्रसूति देखभाल, C-सेक्शन प्रक्रियाओं और नवजात पुनर्जीवन का अभ्यास करने में सहायता करता है।
    • डॉक्टरों, नर्सों और दाइयों की दक्षता बढ़ाने के लिए देश भर में 127 से अधिक स्वतंत्र कौशल प्रयोगशालाएँ स्थापित की गई हैं।
  • डेटा एनालिटिक्स और पूर्वानुमान मॉडलिंग: मातृ स्वास्थ्य रिकॉर्ड पर उन्नत डेटा एनालिटिक्स भौगोलिक और जनसांख्यिकीय जोखिम समूहों की पहचान करने में मदद करते हैं, जिससे लक्षित हस्तक्षेप संभव हो पाते हैं।
    • पूर्वानुमान मॉडलिंग मातृ स्वास्थ्य सेवाओं और आपूर्तियों की माँग का पूर्वानुमान लगाकर संसाधन आवंटन का समर्थन करती है।
  • मोबाइल हेल्थ (mHealth) समाधान: मोबाइल ऐप और SMS सेवाएँ गर्भवती महिलाओं और देखभाल करने वालों को सीधे ANC विजिट, टीकाकरण, पोषण सलाह तथा खतरे के संकेत जागरूकता के लिए अनुस्मारक प्रदान करती हैं।
    • आशा कार्यकर्ता पंजीकरण, अनुवर्ती कार्रवाई और स्वास्थ्य शिक्षा के लिए मोबाइल टूल का उपयोग करते हैं, जिससे आउटरीच दक्षता में सुधार होता है।
  • चिकित्सा उपकरणों में नवाचार: कम लागत वाले पोर्टेबल डायग्नोस्टिक उपकरणों (जैसे- हीमोग्लोबिनोमीटर, पोर्टेबल अल्ट्रासाउंड) की शुरुआत से स्वास्थ्य केंद्रों पर एनीमिया, गर्भकालीन मधुमेह और भ्रूण के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का जल्द पता लगाने में मदद मिलती है।
    • नवजात शिशु की देखभाल में ‘कन्टिन्युअस पॉजिटिव एयरवे प्रेशर’ (Continuous Positive Airway Pressure-CPAP) मशीनों के उपयोग से नवजात शिशु के जीवित रहने की संभावना में सुधार होता है।

अंतरराष्ट्रीय संगठनों की भूमिका

  • तकनीकी सहायता और अनुसंधान सहयोग: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) जैसे संगठन मातृ स्वास्थ्य हस्तक्षेपों के लिए तकनीकी विशेषज्ञता, दिशा-निर्देश और मानक प्रदान करते हैं।
    • भारत में लॉन्गिट्यूडनल एजिंग स्टडी (LASI) जैसी सहयोगी अनुसंधान पहलों में हार्वर्ड टी. एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ और यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफोर्निया (USC) जैसे अंतरराष्ट्रीय भागीदार शामिल हैं, जो मातृ स्वास्थ्य सहित स्वास्थ्य रुझानों का अध्ययन करते हैं।
  • वित्त पोषण और कार्यक्रम संबंधी सहायता: संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF), WHO, UNFPA और विश्व बैंक जैसी एजेंसियाँ मातृ स्वास्थ्य कार्यक्रमों के लिए वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करती हैं।
    • सहायता स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने, स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षित करने और मातृ एवं नवजात शिशु देखभाल के लिए बुनियादी ढाँचे में सुधार करने तक फैली हुई है।
  • वैश्विक स्वास्थ्य मानक और लक्ष्य निर्धारित करना: संयुक्त राष्ट्र द्वारा तैयार किए गए सतत् विकास लक्ष्य (SDG) मातृ मृत्यु दर (SDG 3.1) को कम करने के लिए वैश्विक लक्ष्य निर्धारित करते हैं, जिन्हें प्राप्त करने के लिए भारत प्रतिबद्ध है।
    • अंतरराष्ट्रीय निकाय वैश्विक लक्ष्यों के अनुरूप राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीतियों को तैयार करने में सहायता करते हैं।
  • क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण: अंतरराष्ट्रीय संगठन देखभाल की गुणवत्ता में सुधार के लिए कुशल प्रसव परिचारिकाओं एवं मिडवाइफ सहित स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए प्रशिक्षण पहल का समर्थन करते हैं।
    • कार्यशालाओं, ई-लर्निंग और विनिमय कार्यक्रमों की सुविधा से मातृ स्वास्थ्य से संबंधित ज्ञान एवं कौशल में सुधार होता है।
  • निगरानी, ​​मूल्यांकन और डेटा सिस्टम: मातृ स्वास्थ्य डेटा संग्रह, निगरानी और रिपोर्टिंग सिस्टम [जैसे- मातृ मृत्यु निगरानी और प्रतिक्रिया (MDSR)] को मजबूत करने के लिए समर्थन करता है।
    • अंतरराष्ट्रीय संगठन डेटा विश्लेषण और स्वास्थ्य निगरानी में प्रौद्योगिकी के उपयोग के लिए क्षमता निर्माण में मदद करते हैं।
  • समर्थन एवं जागरूकता: वैश्विक स्वास्थ्य एजेंसियाँ ​​मातृ स्वास्थ्य के महत्त्व पर जोर देते हुए और संसाधन जुटाने के लिए समर्थन अभियान चलाती हैं।
    • वे सम्मानजनक मातृत्व देखभाल सुनिश्चित करने वाले अधिकार-आधारित दृष्टिकोणों को बढ़ावा देते हैं और मातृ स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करते हैं।
  • नवाचार एवं सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान: अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं और नवीन हस्तक्षेपों (जैसे- आपातकालीन प्रसूति देखभाल मॉडल, डिजिटल स्वास्थ्य उपकरण) को अपनाने में सुविधा प्रदान करना।
    • वैश्विक उदाहरणों को साझा करके भारत में पायलट परियोजनाओं और सफल मॉडलों को अपनाना।

भारत में मातृ स्वास्थ्य के लिए आगे की राह

  • प्रसवोत्तर देखभाल (PNC) और देखभाल की निरंतरता पर ध्यान केंद्रित करना: लगभग एक-तिहाई मातृ मृत्यु प्रसव और अस्पताल से छुट्टी के बाद होती है। 
    • आशा और ANM के माध्यम से समय पर अनुवर्ती कार्रवाई के साथ गृह एवं स्तरीय सुविधा आधारित PNC को सशक्त करना महत्त्वपूर्ण है।
  • उच्च भार वाले राज्यों में लक्षित हस्तक्षेप: असम, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में अभी भी MMR राष्ट्रीय औसत (93) से काफी ऊपर है।
    • HRP ट्रैकिंग में वृद्धि और ‘क्रिटिकल केयर इन्फ्रास्ट्रक्चर’ द्वारा समर्थित अनुकूलित जिला-स्तरीय रणनीतियाँ आवश्यक हैं।
  • मिडवाइफरी और कुशल मातृ देखभाल को मजबूत करना: अधिक राष्ट्रीय और राज्य मिडवाइफरी संस्थानों के माध्यम से मिडवाइफरी प्रशिक्षण पहल को बढ़ाने से सम्मानजनक और कुशल मातृ देखभाल सुनिश्चित होगी, विशेषकर प्रसूति विशेषज्ञों की कमी वाले कम सेवा वाले क्षेत्रों में।
  • क्रिटिकल केयर और आपातकालीन परिवहन नेटवर्क का विस्तार करना: दूरस्थ जिलों में अधिक प्रसूति ICUs/HDUs और CEmONC केंद्र (तमिलनाडु के मॉडल की तरह) की आवश्यकता है।
    • एंबुलेंस सेवाओं को रेफरल ट्रैकिंग के साथ एकीकृत करने से गंभीर मातृ देखभाल में पहले और दूसरे विलंब को कम किया जा सकेगा।
  • एनीमिया और पोषण जाँच को सार्वभौमिक बनाना: 50% से अधिक गर्भवती महिलाओं में एनीमिया पाया जाता है (NFHS-5)।
    • एनीमिया मुक्त भारत 2.0 के माध्यम से आयरन, B12, फाॅलेट, थायरॉयड और मधुमेह के लिए सार्वभौमिक पूर्व-गर्भधारण और प्रसव पूर्व जाँच को संस्थागत बनाया जाना चाहिए।
  • डिजिटल स्वास्थ्य उपकरणों की वास्तविक समय निगरानी और उपयोग: मातृ मृत्यु, HRPs और सेवा वितरण की वास्तविक समय ट्रैकिंग को सक्षम करने के लिए सभी राज्यों में MPCDSR, e-PMSMA और RCH पोर्टल के उपयोग को मजबूत करना।
    • आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन के साथ एकीकरण रिकॉर्ड को सुव्यवस्थित कर सकता है।
  • व्यवहारिक संचार और लैंगिक मानदंडों में सुधार: प्रारंभिक ANC, संस्थागत प्रसव, जन्म की तैयारी और बालिका स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए समुदाय के नेतृत्व वाले IEC/BCC अभियानों में निवेश करना।
    • PMMVY 2.0 (दूसरे बच्चे के लिए बालिका प्रोत्साहन के साथ) का विस्तार सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन को सुदृढ़ कर सकता है।

निष्कर्ष 

भारत में MMR को प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर 93 तक कम करने में उल्लेखनीय प्रगति NHM के तहत JSY, PMMVY, JSSK, SUMAN और AMB जैसी पहलों की सफलता को दर्शाती है। प्रसवोत्तर देखभाल को मजबूत करना, गर्भधारण से पूर्व जाँच के माध्यम से एनीमिया को संबोधित करना और उच्च भार वाले राज्यों में महत्त्वपूर्ण देखभाल के बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना वर्ष 2030 तक MMR <70 के SDG लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महत्त्वपूर्ण है, जिससे स्वस्थ माताओं और भावी पीढ़ियों को सुनिश्चित किया जा सके।

संबंधित प्रश्न

प्रश्न. सामाजिक विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए, विशेष रूप से वृद्धावस्था और मातृ स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में ठोस और पर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल नीतियों की आवश्यकता है। चर्चा कीजिए।

(150 शब्द, 10 अंक) (2020)

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